Friday, April 19, 2013

The Worst of the Worst dictator - ...तो क्‍या गद्दाफी, सद्दाम जैसा ही होगा मुशर्रफ का हश्र? - www.bhaskar.com


कभी जनता उनके आगे सिर झुकाती थी। आज जनता उन्हें गालियां देती है। कभी लोग उनके सामने जाने से डरते थे। आज वहीं सीना तान कर उन जूतों की बरसात करते हैं। यह कहानी दुनिया के बड़े तानाशाहों की जिन्होंने जितनी तेजी से फर्श से अर्श का सफर तय किया, उतनी तेजी से यह लोग नीचे आ गिरे। 
 
 
कभी पाकिस्तान पर एकछत्र राज्य करने वाले पूर्व राष्ट्रपति और फौजी तानाशाह परवेज मुशर्रफ अपने सबसे बदतरीन समय से गुजर रहे हैं। जिन जजों को कभी उन्होंने बंधक बनाया था, वे आज चुन-चुन कर बदला ले रहे हैं। मुशर्रफ को दो दिनों की ट्रांजिट रिमांड पर भेजा गया है। उन पर आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है।
 
दुनिया में ऐसे बहुत से तानाशाह हुए जिन्होंने दशकों तक देश और दुनिया को हिला कर रखा। लेकिन अपने आखिरी वक्त में उनका हश्र बहुत ही बुरा हुआ। तानाशाह मुल्‍क कहे जाने वाले अमेरिका का भी आज हाल बुरा है।

Monday, April 15, 2013

देश का बंटवारा आज भी जख्म दे रहा है इन हिंदुओं को:


मात्र 3  दिन के अपने बेटे को उसके दादा-दादी के पास छोड्कर पाकिस्तान से तीर्थयात्रा वीजा पर भारत आने वाली 30 वर्षीय भारती रोती हुई अपनी व्यथा बताते हुए कहती है कि “अगर मै अपने बेटे का वीजा बनने का इंतज़ार करती तो कभी भी भारत न आ पाती.” 15 वर्षीय युवती माला का कहना है कि पाकिस्तान मे उनके लिये अपनी अस्मिता को बचाये रखना मुश्किल है तो 76 वर्षीय शोभाराम कहते है कि वे भारत मे हर तरह की सजा भुगत लेंगे परंतु अपने वतन पाकिस्तान वापस नही जायेंगे क्योंकि हमारा कसूर यह है कि हमने हिन्दू-धर्म मे पाकिस्तान की धरती पर जन्म लिया है. मै अपनी आँखो के सामने अपने घर की महिलाओ की अस्मिता लुटते नही देख सकता कहते हुए 80 वर्षीय बुजुर्ग वैशाखी लाल की आँखे नम हो गयी. दरअसल यह दिल्ली स्थित बिजवासन गाँव के एक सामाजिक कार्यकर्ता नाहर सिँह के द्वारा की गई आवास व्यवस्था मे रह रहे 479 पाकिस्तानी हिन्दुओं की कहानी है (कुल 200 परिवारो मे 480 लोग है, परंतु एक 6 माह की बच्ची का पिछले दिनो स्वर्गवास हो गया). एक माह की अवधि पर तीर्थयात्रा पर भारत आये पाकिस्तानी -हिन्दू अपने वतन वापस लौटने के लिये तैयार नही है, साथ ही भारत-सरकार के लिये चिंता की बात यह है कि इन पाकिस्तानी हिन्दुओ की वीजा-अवधि समाप्त हो चुकी है.
इतिहास के पन्नों में दर्ज 15 अगस्त 1947 वह तारीख है, जिस तारीख को भारत न केवल भौगोलिक दृष्टि से दो टुकडो में बँटा अपितु लोगो के दिल भी टुकडो मे बँट गये. पाकिस्तान के प्रणेता मुहमद अली जिन्ना को पाकिस्तान में हिन्दुओं के रहने पर कोई आपत्ति नहीं थी ऐसा उन्होंने अपने भाषण में भी कहा था  कि “क्योंकि पाकिस्तानी -  संविधान के अनुसार पाकिस्तान कोई मजहबी इस्लामी देश नहीं है , तथा विचार अभिव्यक्ति से लेकर धार्मिक स्वतंत्रता को वहा के संविधान के मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया है.”  विभाजन की त्रासदी से लेकर अब तक गंगा-यमुना मे बहुत पानी बह चुका है. ज़ख्मो को भरने के लिये दोनो देशो के बीच आगरा जैसी कई वार्ताएँ हुई, टी.वी चैनलो पर कार्यक्रम किये गये, बस व रेलगाडी चलाई गयी, क्रिक़ेट खेला गया परंतु  ज़ख्म तो नही भरा, इसके उलट विभाजन का यह ज़ख्म एक् नासूर बन गया. स्वाधीन भारत की प्रथम सरकार मे उद्योग मंत्री डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पुरजोर विरोध के उपरांत भी अप्रैल 1950 मे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और लियाकत अली के साथ एक समझौता किया जिसके तहत भारत सरकार को पाकिस्तान मे रह रहे हिन्दुओ और सिखो के कल्याण हेतु प्रयास करने का अधिकार है. परंतु वह समझौता मात्र कागजी ही सिद्ध हुआ. पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओ ने हिन्दुस्तान में शरण लेने के लिए ज्योहि पलायन शुरू किया, विभाजन के घाव फिर से हरे हो गये. पर कोई अपनी मातृभूमि व जन्मभूमि से पलायन क्यों करता है यह अपने आप में एक गंभीर चिंतन का विषय है. क्योंकि मनुष्य का घर-जमीन मात्र एक भूमि का टुकड़ा न होकर उसके भाव-बंधन से जुड़ा होता है. समाचारो से पता चलता है कि पाकिस्तान में आये दिन हिन्दूओ पर जबरन धर्मांतरण,महिलाओ का अपहरण, उनका शोषण, इत्यादि जैसी घटनाएँ आम हो गयी है.
प्रकृति कभी भी किसी से कोई भेदभाव नहीं करती और इसने सदैव ही इस धरा पर मानव-योनि  में जन्मे सभी मानव को एक नजर से देखा है. हालाँकि मानव ने समय – समय पर अपनी सुविधानुसार दास-प्रथा, रंगभेद-नीति, सामंतवादी इत्यादि जैसी व्यवस्थाओं के आधार पर मानव-शोषण की ऐसी कालिमा पोती है जो इतिहास के पन्नो से शायद ही कभी धुले. समय बदला. लोगो ने ऐसी अत्याचारी व्यवस्थाओं के विरुद्ध आवाज उठाई. विश्व के मानस पटल पर सभी मुनष्यों को मानवता का अधिकार देने की बात उठी परिणामतः विश्व मानवाधिकार का गठन हुआ. मानवाधिकार के घोषणा-पत्र में साफ शब्दों में कहा गया कि मानवाधिकार हर व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है, जो प्रशासकों द्वारा जनता को दिया गया कोई उपहार नहीं है तथा इसके मुख्य विषय शिक्षा ,स्वास्थ्य ,रोजगार, आवास, संस्कृति ,खाद्यान्न व मनोरंजन इत्यादि से जुडी मानव की बुनयादी मांगों से संबंधित होंगे. इसके साथ-साथ अभी हाल में ही पिछले वर्ष मई के महीने में पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी  द्वारा मानवाधिकार कानून पर हस्ताक्षर करने से वहाँ एक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग कार्यरत है.
ध्यान देने योग्य है कि अभी कुछ दिन पहले ही  पाकिस्तान  हिंदू काउंसिल के अध्यक्ष जेठानंद डूंगर मल कोहिस्तानी के अनुसार पिछले कुछ महीनों में बलूचिस्तान और सिंध प्रांतों से 11 हिंदू व्यापारियों सिंध प्रांत के और जैकोबाबाद से एक नाबालिग लड़की मनीषा कुमारी के अपहरण से हिंदुओं में डर पैदा हो गया है. वहा के  कुछ टीवी चैनलों के साथ - साथ पाकिस्तानी अखबार डॉन ने  भी 11 अगस्त के अपने संपादकीय में लिखा कि  ‘हिंदू समुदाय के अंदर असुरक्षा की भावना बढ़ रही है’  जिसके चलते जैकोबाबाद के कुछ हिंदू परिवारों ने धर्मांतरण,फिरौती और अपहरण के डर से भारत जाने का निर्णय किया है.  पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल के अनुसार  वहां हर मास लगभग  20-25 लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराकर शादियां कराई जा रही हैं.  यह संकट तो पहले केवल बलूचिस्तान तक ही सीमित था, लेकिन अब इसने पूरे पाकिस्तान को अपनी चपेट में ले लिया है. रिम्पल कुमारी का मसला अभी ज्यादा पुराना नहीं है कि उसने साहस कर न्यायालय का दरवाजा  तो खटखटाया, परन्तु वहाँ की उच्चतम न्यायालय भी उसकी मदद नहीं कर सका और अंततः उसने अपना हिन्दू धर्म बदल लिया. हिन्दू पंचायत के प्रमुख बाबू महेश लखानी ने दावा किया कि कई हिंदू परिवारों ने भारत जाकर बसने का फैसला किया है क्योंकि यहाँ की  पुलिस अपराधियों द्वारा फिरौती और  अपहरण के लिए निशाना बनाए जा रहे हिंदुओं की मदद नहीं करती है. इतना ही नहीं पाकिस्तान से भारत आने के लिए 300 हिंदू और सिखों के समूह  को पाकिस्तान ने  अटारी-वाघा बॉर्डर पर रोक कर सभी से वापस लौटने का लिखित वादा लिया गया. इसके बाद ही इनमें से 150 को भारत आने दिया गया.
अभी पिछले दिनो  पाकिस्तान द्वारा हिन्दुओ पर हो रही ज्यादतियों पर भारत की संसद में भी सभी दलों के नेताओ ने एक सुर में पाकिस्तान की आलोचना की जिस पर भारत के विदेश मंत्री ने सदन को यह कहकर धीरज बंधाया कि वे इस  मुद्दे पर पाकिस्तान से बात  करेंगे परन्तु पाकिस्तान से बात करना अथवा संयुक्त राष्ट्र में इस मामले को उठाना तो दूर यूंपीए सरकार ने इस मसले को ही ठन्डे बसते में डाल दिया और आज तक एक भी शब्द नहीं कहा. पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओ पर की जा रही बर्बरता को देखते हुए हम मान सकते है कि विश्व-मानवाधिकार पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओ के लिए नहीं है यह सौ प्रतिशत सच होता हुआ ऐसा प्रतीत होता है. भारत के कुछ हिन्दु संगठनो के लोगो के अनुसार इन पाकिस्तानी हिन्दुओ द्वारा इस सम्बन्ध में पिछले माह (मार्च) में ही भारत के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, विदेश मंत्री, कानून मंत्री, दिल्ली के उपराज्यपाल व मुख्यमंत्री के साथ  सभी संबन्धित सरकारी विभागों सहित भारत व संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोगों को भी पत्र भेजा जा चुका है किन्तु आज तक किसी के पास न तो इन पाक पीडितों का दर्द सुनने की फ़ुर्सत है और न ही किसी ऐसी कार्यवाही की जो पाकिस्तानी दरिंदगी पर अंकुश लगा सके. तो क्या यह मान लिया जाय कि पाकिस्तान के 76 वर्षीय शोभाराम का कहना सही ही है कि पाकिस्तानी हिन्दू अपने हिन्दू होने की सजा भुगत रहे है और उनके लिए मानवाधिकार की बात करना मात्र एक छलावा है ? ऐसी वीभत्स परिस्थिति मे यदि समय पर विश्व मानवाधिकार ने इस गंभीर समस्या पर कोई संज्ञान नहीं लिया यह अपने आप में विश्व मानवाधिकार की कार्यप्रणाली और उसके उद्देश्यों की पूर्ति पर ऐसा कुठाराघात है जिसे इतिहास कभी नहीं माफ़ करेगा.

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हिंदू शरणार्थियों कि किसी भी तरह कि सहायता करने के लिए सम्पर्क करें:
0996541063, 01275259734

हिंदू औरतें बोलीं, 'वे जबरन कलमा पढ़वाते हैं':

'मुझे जान से मार दो मगर पाकिस्तान वापस मत भेजो...'। कुछ ऐसा कहते हुए रो पड़े पाकिस्तानी हिंदू। कभी अपने वतन से बेहद प्यार करने वाले ये ‌लोग अब वहां नहीं जाना चाहते।

दक्षिणी दिल्ली के बिजवासन इलाके में रह रहे 479पाकिस्तानी हिंदुओं का जत्‍था करीब महीने भर पहले भारत तीर्थयात्रा पर आया था। पाकिस्तान में अपने साथ हो रहे अत्याचार और सरकारी उपेक्षा की वजह से अब वे वहां जाने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं।

वीजा नहीं, नागरिकता की मांग
हालांकि इन लोगों के लिए राहत की बात यह है कि भारत सरकार ने 8 अप्रैल को खत्‍म हो रहे उनके वीजा अवधि को एक महीने को बढ़ा दिया गया है। लेकिन उन्हें अभी भी अपने भविष्य की चिंता है। इन लोगों की मांग है कि उन्हें भारतीय नागरिकता मिले।

इन हिंदुओं में कुछ लोगों ने जब मीडिया से अपना दर्द साझा किया तो माहौल गमगीन हो गया। एक औरत ने बताया कि पाकिस्तान में उनके साथ बेइंतहा जुल्म किए जाते हैं। वहां उन्हें अपने बच्चों को पढ़ाने की आजादी नहीं है। मजबूरी में उन्हें अपने बच्चों को मदरसे में पढ़ाना पड़ता है।

कुछ औरतों ने बताया, ''हमें हिंदी नहीं कलमा पढ़ने को बोला गया है। अब वहां रहने का बिल्कुल माहौल नहीं है।
पाकिस्तान में हमारे साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। लूटपाट और डकैती तो आम बात है।''

दिल्ली में खानाबदोश की जिंदगी जी रहे इन लोगों को बस इतना संतोष है कि वे यहां सु‌रक्षित हैं।

हिंदू होने कि सजा :




अश्विनी कुमार

 (एडिटर पंजाब केसरी):


वरिष्ठ पत्रकार खुशवंत सिंह की प्रसिद्ध पुस्तक 'ट्रेन टु पाकिस्तान' में विभाजन की त्रासदी और तकलीफों को बहुत ही भावनात्मक तरीके से बयान किया गया है। उन्होंने उम्मीद जाहिर की थी कि भविष्य में ऐसा कभी नहीं होगा लेकिन जब मैंने पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आए हिन्दू परिवारों की दास्तान सुनी तो मैंने महसूस किया कि मोहम्मद अली जिन्ना से लेकर आसिफ अली जरदारी तक पाकिस्तान से आने वाली ट्रेन कभी नहीं रुकी। आजादी के बाद से ही पाकिस्तान से हिन्दू परिवारों का भारत आना जारी रहा लेकिन पिछले कुछ वर्षों से पाकिस्तान में रह रहे हिन्दू, अहमदिया, सिख और ईसाई परिवार खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं और जाहिर है कि हिन्दू और सिख परिवार जब भी आएंगे भारत ही आएंगे। इस बार कुम्भ का स्नान करने के लिए वीजा लेकर आए पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हिन्दू परिवार पाकिस्तान जाने की बजाय मर जाना पसंद कर रहे हैं। मीडिया द्वारा शोर मचाने पर बिजवासन में शरण लेकर बैठे इन परिवारों की वीजा अवधि सरकार ने एक माह और बढ़ा तो दी लेकिन यह समस्या का अस्थायी हल ही है। कोई भी व्यक्ति अपनी सम्पत्ति और रोजगार छोड़ कर दर-दर की ठोकरें खाने के लिए भारत क्यों आएगा लेकिन जब इन परिवारों पर अत्याचार हदें पार करने लगा तो उन्होंने पलायन करके भारत आना ही बेहतर समझा। पाकिस्तान में आतंकवाद और कट्टरवाद ने जो हालात पैदा किए हैं, वैसे तो उसमें एक सामान्य नागरिक जी ही नहीं सकता। वहां अल्पसंख्यकों को कोई ज्यादा अधिकार नहीं दिए जाते। उन्हें न तो धार्मिक आजादी है, न उनकी बहू-बेटियां सुरक्षित हैं। अल्पसंख्यकों को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है। आखिरकार उनके पास एक ही रास्ता बचता है या तो वह भारत आ जाएं या फिर धर्म परिवर्तन कर घुट-घुट कर जीवन जीने को मजबूर हो जाएं।
यूं तो पाकिस्तान में भी मानवाधिकार आयोग है और कई ऐसे संगठन हैं जो मानवाधिकारों के लिए आवाज बुलंद करते रहे हैं। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमलों में बढ़ौतरी की पुष्टिï की थी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि पाकिस्तान में हर महीने लगभग 25 हिन्दू लड़कियों का अपहरण हो जाता है। पाकिस्तान की प्रैस कराची और ब्लूचिस्तान में बलात्कार और धर्मांतरण की खबरें प्रकाशित करती रहती है। अल्पसंख्यकों के बच्चे स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा लेने को मजबूर हैं। पाकिस्तान की अल्पसंख्यक महिलाओं को तो एक तरफ यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है तो दूसरी तरफ वह अल्पसंख्यक होने का खामियाजा भुगतती हैं। एक महिला अपने तीन दिन के बेटे को दादा-दादी के पास छोड़कर यहां आई है। 15 वर्षीय बालिका तो अपनी अस्मिता को बचाने के लिए यहां आई। एक वृद्ध अपनी आंखों के सामने अपने घर की महिलाओं से बलात्कार होते नहीं देख सकते। इनका गुनाह केवल इतना है वह हिन्दू हैं।
विभाजन के समय पाकिस्तान नहीं जाने वाले मुस्लिम भारत में रह कर भाग्यशाली हैं क्योंकि यहां वह पूरी तरह सुरक्षित हैं और उन्हें पूरे अधिकार हैं। देश के शीर्ष पदों पर भी मुस्लिम आसीन रहे हैं। यदि पाकिस्तान की स्थापना के बुनियादी सिद्धांतों को देखा जाए तो इसमें वहां रहने वाले सभी धर्मों के लोगों को पूरी सुरक्षा, संरक्षण व सहयोग देने की बात कही गई थी, परन्तु धर्मांधता एवं धार्मिक कट्टïरवाद ने पाकिस्तान को आज इस मुकाम पर ला खड़ा किया है कि पूरी दुनिया में वह ऐसे देशों की सूची में सबसे ऊपर नजर आ रहा है। अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले रोकने में पुलिस और सरकार असहाय हो चुकी हैं। हिन्दुओं, सिखों, ईसाइयों के अलावा शिया हजारा समुदाय को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। ब्लूचिस्तान, स्वात घाटी जैसे क्षेत्रों में लश्करे झांगवी तथा सिपाहे सहाबा के आतंकी सैकड़ों शिया समुदाय के लोगों की हत्याएं कर चुके हैं। ईसाई समुदाय के लोगों को तो पाक में मामूली मजदूरी का काम भी नहीं मिल पाता। वास्तव में कट्टरपंथी ताकतों के आगे हुक्मरानों ने हथियार डाल रखे हैं। यह सब होना ही था क्योंकि पाकिस्तान की बुनियाद ही सत्ता पाने की इच्छा शक्ति पर रखी गई थी और सत्ता की भूख बढऩे के कारण हर राजनीतिज्ञ कट्टरपंथी ताकतों से सांठगांठ करता रहा।
भारत को पाकिस्तान में मानवाधिकारों के लगातार हनन को लेकर बड़ी भूमिका निभानी चाहिए थी लेकिन भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने कुछ न करने की कूटनीति अपना रखी है। विडम्बना यह भी है कि देश की धर्मनिरपेक्ष ताकतें हिन्दुओं का सवाल आते ही अपना व्यवहार बदल लेती हैं। संसद में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दू परिवारों को लेकर चर्चा भी हुई लेकिन सरकार ने किया कुछ नहीं। सारी दुनिया में मानवाधिकारों का ढिंढोरा पीटने वाला अमरीका पाक में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों पर बोलने को तैयार नहीं। अमरीका और संयुक्त राष्ट्र क्यों नहीं पाकिस्तान पर दबाव डालते कि वह अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निवर्हन करे। हिन्दू बंगलादेश, भूटान से भी भगाए जा रहे हैं और भारत सरकार ने तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ रखा है तो वह इन शरणार्थियों की क्या सुनेगी। इस देश में असम और कश्मीर के हिन्दुओं के हितों की बात करना भी मुसीबत हो चुकी है। लगता है यह देश शरणार्थियों का देश बनकर रह जाएगा। क्या पाक से लौटे परिवारों को नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए? क्या वह उम्र भर खानाबदोशों की जिन्दगी जीने को ही मजबूर रहेंगे?


नोट: अगर आप पाकिस्तान से आये इन हिंदू भाइयो बहनों, माताओं और बच्चों का कुछ सहयोग करना चाहते हैं तो कृपया जरुर सम्पर्क करें: 09996541063, 01275259734

Sunday, April 14, 2013