Friday, August 5, 2016

यजन और भजन का अंतर समझ लीजिए


सीता राम चरन रति मोरे।
अनुदिन बढहिं अनुग्रह तोरे।।

रति काम से नहीं रति राम से चाहिये, श्री भरतजी भजन में डूबे हैं, हम सब यजन में रहते हैं, हम सब पाना चाहते हैं ये सब यजन हैं, जो हर परिस्थिति में संतुष्ट है वो भजन है, माँगने वाले को सदा शिकायत रहेगी कि मुझे कम दिया है, औरों को तूने इतना दे दिया, मुझे क्या दिया? माँगने वाला सदा प्रभु को दोष देता है।

भक्त हमेशा अनुग्रह में जीता है, अनुग्रह का अर्थ है प्रभु तूने इतना दिया है कि मैं तो इसे सम्भालने की क्षमता भी नहीं रखता, मेरी तो इतनी पात्रता भी नहीं है, ये भाव जहाँ से उठे उसे भजन कहते हैं, जो मिला है वो तो बहुत कम है मैरी पात्रता इससे बहुत ज्यादा है ऐसे भाव जहाँ से उठे उसको यजन कहते हैं, बुद्धि से पैदा हो वो यजन है।

जैसे मछली को पकड़ने के लिये जाल फेंका जाता है, भक्त का जाल उल्टा होता है, भक्त पुकारता है भगवन! तू कैसे ही मुझे अपने जाल में फँसा ले, अगर तू नहीं फँसायेगा तो मुझे ये माया का जाल फँसा लेगा, इसलिये जो फँसाती है वो बुद्धि है और जो फँसता है वो ह्रदय है, इसलिये भक्त भगवान से हमेशा ये ही कहते हैं!

अपने चरणों का दास बनाले, काली कमली के ओढन वाले।
गहरी नदिया नाव पुरानी, केवटिया या कौ नादानी।
मेरी नैया को पार लगा ले, काली कमली के ओढन वाले।
अपने चरणों का दास बनाले, काली कमली के ओढन वाले।।

अगर आप नहीं फँसाओगे तो माया मुझे फँसा लेगी, मुझे माया का दास नहीं बनना, भक्त दास बनता है परमात्मा का, इसलिये पंडित जन यजन करते हैं पर प्रेमी भजन करता है, ये जो यज्ञादि हो रहे हैं ये सब यजन हैं, ये यज्ञों अनुष्ठानों की निन्दा नहीं हैं, जो सूत्र है उस पर चर्चा कर रहे हैं।

प्रेम स्वयं करना पड़ता है जबकि अनुष्ठान यज्ञादि हमेशा किसी दूसरे से कराया जाता है, यजन दूसरे से और भजन स्वयं किया जाता है, प्रेम किसी दूसरे से कराओगे क्या? हम सिनेमाघर में दूसरे को प्रेम करते नाचते गाते देखते हैं, हम नाचें, हम गायें, हम प्रेम में डूबे, हम प्रेम में सराबोर हों ये भक्ति हैं, प्रेम ह्रदय से छलकता हैं।

पुजारी हमारे घर आकर घंटी बजाकर चला गया, उसकी ड्यूटी हो गयी, कल कोई दूसरा ज्यादा पैसा देगा तो वहाँ ड्यूटी करेगा, जिस दिन तनख्वाह नहीं दोगे उसी दिन पूजा बन्द कर देगा, उसे भी परमात्मा से कोई लेना देना नहीं है, हमको भी परमात्मा से कोई लेना देना नहीं है अन्यथा बीच में किसी को रखने की क्या आवश्यकता थी?

हमको नहीं आता विधि विधान मान लिया, हमें शास्त्र के नियम व्यवस्थायें नहीं आती मान लिया, आप प्रश्न करेंगे कि फिर करें क्या? अरे करना क्या है, परमात्मा के चरणों में बैठकर थोड़ी देर रो लेते, अपनी टूटी-फूटी भाषा में कुछ बात कर लेते, अपनी भाव भरी प्रार्थना खुद रच लेते, माँ गोद में बच्चे को खिलाती है वो कौन सा प्रशिक्षण लेकर आयी है कि बच्चे को कैसे खिलाया जाता है?

वो पागलों की तरह उससे घन्टों बतियाती रहती है, बालक न जानता है न सुनना जानता है, छाती से लगाये घंटो बातें करती है, ये ह्रदय की भाषा है, ये ह्रदय से जाकर टकराती है इसलिये हमें शास्त्र, मन्त्र, विधि-विधान नहीं आते तो ना आयें, हम ठाकुरजी के पास बैठकर उन्हें बता तो सकते हैं कि हमें कुछ आता नहीं।

केहि विधि अस्तुति करहुँ तुम्हारी।
अधम जाति मैं जडमति भारी।।
अथम ते अधम अधम अति नारी।
तिन्ह महँ मैं मतिमंद अधारी।।

दण्डकारण्य में शबरी अकेली थी क्या? कितने ऋषि-मुनि द्वार खड़े स्वस्तिक-वाचन का पाठ कर रहे थे, पुष्प हार लिये खड़े थे, भगवान ने किसी की ओर देखा तक नहीं, सीधे शबरी के आश्रम पग धरा, प्रभु विधि की ओर नहीं निधि की ओर आकर्षित होता है, शबरी को तो कोई विधि आती ही नहीं।

जैसे हमने सुना है कि बालक ने परमात्मा को क ख ग ही सुना दिया, कह दिया भगवन! मंत्र जैसा चाहो अपनी पसन्द का बना लेना, आप कृपया अपनी वर्णमाला तो सुनाइये परमात्मा को, और इसकी भी क्या आवश्यकता है? क्या भगवान हमारे भाव को समझता नहीं है।

"बैर भाव मोहि सुमिरहिं निसिचर" जब बैर भाव ऐसा हो सकता है तो प्रेम भाव कैसा होता होगा, आप कल्पना किजिये, हम मंदिर जाते हैं, क्या भाव है? कुछ माँगने जा रहे हैं तो यजन है, चढाने जा रहे है तो भजन हैं, लेकिन चार सेब चढाकर चालीस गुना प्रभु से माँगने जा रहे हैं।

ह्रदय में भीतर सूची भरी हुई है कि ये माँगना है वो माँगना है जहाँ से हम लेने जाते है वो दुकान है और जहाँ हम देने जाते है वो मंदिर हैं इसलिये भगवत प्रेम के बिना जितने भी अनुष्ठान हैं वो सब यजन हैं।

शेष जारी ••••••••••••

जय श्री रामजी
शुभ रात्रि
मोतीभाई रावल

100 करोड़ में से कितने हैं सच्चे भारतीय

विडंबना लगती है जब कुछ लोग कहते हैं कि हम 100 करोड़ हिन्दू हैं या 100 करोड़ भारतीय हैं, हम 100 करोड़ हिन्दू मिल जाएं तो क्या नही कर सकते??

यदि आकलन करो कि यह 100 करोड़ कौन हैं तो लज्जा आ जाती है सोचकर... ।

100 करोड़ हिन्दू ?

100 करोड़ भारतीय?

कौन से 100 करोड़?

वो जो प्लासी की लड़ाई में अंग्रेजों की और से लड़ रहे थे?

वो जो बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों की और से लड़ रहे थे?

वो जो प्लासी की लड़ाई के बाद हो रही आतिशबाजी में नाच रहे थे?

वो जो 1857 के संग्राम में भी अंग्रेजों की और से लड़ रहे थे?

वो जो 1860 के बाद अंग्रेजों की आईएएस, आईपीएस, आदि नौकरियाँ पाने के लिए विदेशी कल्चर को अपनाने में सबसे आगे दौड़ने लगे थे?

वो जो अंग्रेजों के यहाँ क्लर्क थे?

वो जो चापलूसी कर कर के अंग्रेजों के राय बहादुर, दीवान, जागीरदार बनते थे?

वो जो जज, मजिस्ट्रेट बनते थे?

वो जो पुलिस अधिकारी बनते थे, हवलदार बनते थे?

वो भारतीय .. या वो हिन्दू जिनकी एक गोली शायद चन्द्रशेखर आज़ाद के शरीर को लहू लुहान कर गई होगी?

वो भारतीय जो क्रांतिकारियों की मुखबिरी करते थे?

चलो
कामनवेल्थ वाली झूठी आज़ादी की बात करते हैं।

वो भारतीय जिन्होंने स्वत: अपने बच्चों को गुरुकुल भेजकर स्वावलंबी बनाने के स्थान पर सरकारी और कान्वेंट स्कूलों में भेजना आरंभ किया ...नौकरी की मानसिकता से?

वो भारतीय या वो हिन्दू जिसने शिखा, जनेऊ, तिलक का स्वयं परित्याग किया ...न् जाने कितने औरँगज़ेब उनके इर्द गिर्द घूम रहे होंगे?

वो भारतीय जो अपने बच्चों को बचपन में जब स्कूल भेजता है तो ...लायक स्वावलम्बी नही अपितु नालायक देशद्रोही बनाने हेतु भेजता है जिससे कि वो कामनवेल्थ सिस्टम को चलाने में सहयोगी बन सके?

वो भारतीय जो आज भाषा, प्रान्त, आरक्षण के नाम पर एक अन्य भारतीय को जान से मारने से भी पीछे नही हटता?

वो भारतीय जो आज भारत पाकिस्तान मैच में गालों पर तिरंगा लगा कर अपने राष्ट्रवाद का प्रदर्शन करता है?

वो भारतीय जिसका देशप्रेम केवल तभी उमड़ता है जब सीमा पर 2 जवानों के सर काट दिए जाते हैं?

वो भारतीय जो अंधभक्ति में हर हर महादेव के स्थान पर हर हर मोदी के नारे लगाने लगते हैं?

वो भारतीय जो आज भी भारत में शिक्षा दीक्षा पाकर विदेशी नौकरियों के पीछे भाग रहे हैं?

वो भारतीय जो आज वर्दी पहन कर गौरक्षकों पर लाठियां बरसाते हैं?

वो भारतीय जो आज वन्दे मातरम कहने वालों पर ही लाठियां बरसाते हैं?

वो भारतीय जो सर्वधर्म समभाव की आड़ में अधर्म को भी धर्म समझे बैठे हैं?

वो भारतीय जो आज अपने पूर्वजों की महान विरासत, संस्कृति को बोझ समझते हैं और जिन्हें देखना कोई गर्व नही अपितु मात्र पिकनिक का विकल्प है?

*वो हिन्दू जो आज राजनीतिक पार्टी की आन, बान और शान को ही धर्म की बपौती समझे बैठा है?*

वो हिन्दू को आज साईं बाबाओं, निर्मल बाबाओं, महरौली वाले गंजे गुरूजी को पूज रहे हैं और पूछते हैं ... *शंकराचार्य कौन हैं?*

वो हिन्दू जो आज मात्र गले में कंठी टाँगे हरि भजन को ही अपना सर्वस्व कर्म समझे बैठा है?

वो हिन्दू आज हिन्दू को ही मूर्ति पूजा और पुराणों में श्रद्धा के कारण उनको गरिया रहा है?

वो हिन्दू जो आज पंथ, सम्प्रदायों में मस्त हो customize & convinient hinduism की और बढ़ रहा है?

वो हिन्दू जो आज मांस, मदिरा और मैथुन को ही जीवन का उद्देश्य समझे बैठा है?

वो हिन्दू जो आज सुबह ऑफिस जल्दी पहुँचने हेतु पूजा तो छोड़ सकता है... परन्तु शाम को दरगाह, मजार पर फूल चढ़ाना नही भूलता?

वो हिन्दू... जो आज रोमांटिक गानों में एकदम उदासीन जीवन जीने और girl friend की चाह में जिंदगी को झंड बनाने पर तुला है?

*वो हिन्दू ...जिसकी आधी पेंट उसके पिछवाड़े के नीचे लटक रही होती है?*

वो भारतीय जो आज अपनी देववाणी संस्कृत या हिंदी के शुद्ध उच्चारण पर उपहास स्वरूप हंसते हैं?

*वो भारतीय जो आज भी 26 जनवरी और 15 अगस्त मनाते हैं? और कामनवेल्थ की गुलामी का आनन्द उठाते हैं?*

*वो भारतीय जो आज गर्व से कहते हैं I PROUD TO BE AN INDIAN*

निर्णय कीजिये अब आप...
यही भारतीय बचाएंगे देश...

100 करोड़ में से कितने हैं ऋषि भूमि के वास्तविक वंशज जो गर्व करते हैं स्वयं पर जो कह सकते हैं कि उपरोक्त किसी भी श्रेणी में उनका नाम कहीं सूचीबद्ध नही।

(विचार अवश्य करे आप इन में से कहाँ है)

जय श्रीराम कृष्ण परशुराम

हर हर महादेव
(Copied)