भगवान और ईश्वर में अंतर क्या है
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यह बहुत अच्छी शंका है इस प्रश्न को हमें अवश्य समझना चाहिए।
भगवान राम भगवान कृष्ण भगवान बुद्ध इत्यादि इत्यादि यह सब भगवान कहाते हैं परंतु इन को ईश्वर कोई नहीं कहता।
ऋषि मुनि योगी राजा महाराजा को भगवान कहना कहां तक उचित है यह हमें समझना चाहिए।
संपूर्ण ऐश्वर्य वीर्य यश श्री ज्ञान और वैराग्य इन छह का नाम भग है जिन महापुरुषों में उपरोक्त 6 गुण विद्यमान होते हैं वह भगवान काहने योग्य हैं।
भगवान एक उपाधि है जैसे ब्राह्मण, मुनि ,ऋषि, महर्षि, ब्रम्हर्षि इत्यादि राजा जनक को राज ऋषि कहते थे और नारद जी को देव ऋषि कहते थे यह सब सत्य असत्य को जानने व मानने वाले महात्मा थे।
कौन भगवान ईश्वर कहलाने के योग्य है देखें ईश्वर सर्व सतगुण युक्त चेतन तत्व है वह सच्चिदानंद स्वरूप- निराकार- सर्व शक्तिमान - न्यायकारी- दयालु -अजन्मा- अनंत- निर्विकार -अनादि -अनुपम- विचित्र- अद्भुत- सर्वाधार- सर्वेश्वर- सर्वव्यापक- सर्व अंतर्यामी -सर्वज्ञ -अजर -अमर- अभय -नित्य- पवित्र- सृष्टि कर्ता- सृष्टि धरता और सृष्टि करता है वह सबका मित्र ,सबका साथी, सबका माता पिता ,बंधु और सखा है, सबका कर्मफल दाता विधाता है वह अखंड और अकाय है जितने भी सद्गुणों की कल्पना कर सकते हैं वह परमात्मा उन सब में पूर्ण है वह परिपूर्ण है ईश्वर अनेक नहीं एक है।
देहधारी कभी ईश्वर नहीं हो सकता नहीं उसकी बराबरी कर सकता है ।अपने अच्छे कर्मों से महात्मा बन सकता है ऐश्वर्य प्राप्त कर सकता है ईश्वर के कुछ ही गुणों को धारण करके वह भगवान बन सकता है।
भगवान श्री कृष्ण ने गीता के चौथे अध्याय में कहा है
हे अर्जुन मेरे और तुम्हारे बहुत से जन्म बीत चुके हैं मैं उन जन्मों को योगबल से जान सकता हूं परंतु तुम नहीं जानते।
गीता के इस कथन से सिद्ध होता है कि श्री कृष्ण भी भगवान थे परंतु ईश्वर नहीं थे क्योंकि शरीर धारण करने वाला ईश्वर नहीं बन सकता भगवान अवश्य बन सकता है।
जगत में भगवान होते हैं यह ठीक है, परंतु भगवान में जगत है यह कथन गलत है, ईश्वर में जगत है और जगत में ईश्वर विद्यमान है यह ठीक है।
धन्यवाद।
मा०सुन्दर धतीर।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।