सरकार ने राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में पढने वाले मासूम विद्यार्थियों के साथ हमेशा भेदभाव किया है| यही कारण है की राज्य में प्राथमिक शिक्षा का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है| सरकार के द्वारा बनाए गए नियम ही प्राथमिक शिक्षा को अन्धकार में धकेल रहे हैं|
सरकार के नियमों में अनुसार पहली से पाँचवीं कक्षा वाले प्राथमिक विद्यालयों में 60 विद्यार्थियों पर मात्र 2 अध्यापको के पद ही आबंटित हैं, अगर हम मिडिल स्कूल से तुलना करें तो वहां तीन कक्षाएं हैं, छठी सातवीं और आठवीं| इन तीन कक्षाओं में अगर हर कक्षा में एक विद्यार्थी है तो इस तरह तीन विद्यार्थियों के लिए मिडिल स्कूल में अध्यापको के 4 पद आबंटित हैं| ( टीजीटी विज्ञान, टीजीटी संस्कृत, टीजीटी इंग्लिश, पी.टी या ड्राइंग टीचर)| इन सब के अलावा मिडिल स्कूल में एक पर ESHM का भी होता है|
अगर हम हाई स्कूल के तुलना करें, तो वहां 9वीं और 10वीं दो कक्षाएं हैं, अगर इन दोनों कक्षाओ में अगर एक-एक विद्यार्थी भी हो तब भी उस हाई स्कूल में उन दो छात्रो के लिए अध्यापकों के 6 पद आबंटित हैं | (6 विषय हैं उनके लिए 6 पीजीटी)
इसके अलावा मिडिल और हाई हाई स्कूल में चतुर्थ श्रेणी (peon) और क्लर्क का पद भी होता है| पर सरकार के प्राथमिक विद्यालयों में ना तो peon होता है और ना ही क्लर्क होता है, peon और क्लर्क का काम वहां पर प्राथमिक शिक्षक को ही करना होता है, और हैरान करने वाली बात तो ये है की बीएलओ का चयन भी इन्ही 2 अध्यापकों में से ही किया जाता है जिनपर पहले से ही 60 बच्चों की जिम्मेदारी है|
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि अध्यापक तो 2 ही हैं पर इन्हें कक्षाएं तो 5 ही पढ़ानी पड़ती हैं||(पहली से पाँचवीं)| इसका मतलब ये की इनमे से एक अध्यापक तीन कक्षाओं को पढ़ाएगा और दूसरा दो कक्षाओं को| RTE के अनुसार साल में 220 कार्यदिवस होने चाहिए| जो अध्यापक तीन कक्षाओं को पढ़ा रहा है वो स्पष्ट है की हर कक्षा को अपना एक तिहाई समय ही दे पाएगा| इस तरह से उन तीन कक्षाओं के 220 कार्यदिवस तीन साल में पूरे होंगे ना की एक साल में| एक साल में तो उनके कार्यदिवस मात्र 73 ही बने| जब तक प्राथमिक विद्यालयों में हर कक्षा के लिए अलग-अलग अध्यापक ना हो तब तक ऐसी कक्षाओं के 220 कार्यदिवस एक साल में पूरे हो ही नहीं सकते|
राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में पढने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा की बुनियाद लगातार कमजोर होती जा रही है, और सरकार इस ओर कोई ध्यान दे ही नहीं रही| सरकार की तरफ से शिक्षा में सुधार के लिए चाहे कितनी ही योजनाएं चलाई जाएँ जब तक प्राथमिक विद्यालयों में हर कक्षा के लिए अलग-अलग अध्यापक नहीं होगा तब तक प्राथमिक शिक्षा में सुधार संभव ही नहीं है|
एक कक्षा एक अध्यापक के बिना सरकार की शिक्षा में सुधार की सारी योजनाएं, सारे प्रयास मात्र ढकोसला ही हैं|