Sunday, November 10, 2024

अपने अवचेतन मन को समझकर आप आसमान छू सकते हैं


एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए बयान में विराट कोहली कहता है कि, “जब मैं यात्रा कर रहा होता हूँ तो मैं कल्पना करता (Visualise) रहता हूँ कि मैं आनेवाले मैंच में किस गेंदबाज को किस प्रकार खेल रहा हूँगा”।

जब आप ऐसा करते हैं तो आप अपने अवचेतन मन को उस घटना में उसी प्रकार से व्यवहार करने के लिए तैयार कर देते हैं। आप अपने लिए भविष्य को निश्चित कर चुके होते हैं। भविष्य कि निश्चितता की उम्मीद आपके अवचेतन मन की सबसे बडी शक्ति हैं।

कहा भी गया है कि जब हमारे पास कुछ नहीं होता तब भी भविष्य होता है। लेकिन दुभार्ग्यपूर्ण स्थिति तब होती है जब भविष्य निश्चित नहीं अनिश्चित या अंधकारमय हो।

इतने अहम् प्रशिक्षण को हमें हमारे बचपन में सिखा देना चाहिए लेकिन आज भी कोई स्कूल, शिक्षण बोर्ड, सरकार या अन्य संस्थान राष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहल नहीं कर रही हैं। अगर आप छात्रों व युवकों से पूछे कि वे अपने भविष्य की किस तरह की तस्वीर देखते हैं – तो अधिकांश या तो भविष्य को देख ही नहीं पाते या उनमें से भी अधिकांश भविष्य की तस्वीर को एक धुँधला, स्थिर, छोटा व अंधकारमय चित्र की तरह देखते हैं। इस तस्वीर को लेकर उनका अवचेतन मन किसी भी कार्य जैसे पढना, स्वस्थ रहना, अच्छी व महत्त्वपूर्ण चीजों के प्रशिक्षण के प्रति उनकी प्रेरणा को शून्य कर देता है।

यही कारण है कि पढाई जैसी प्रक्रिया (जिसमे किसी भी छात्र को न्यूनतम शारीरिक कार्य करना पडता हैं) में तनाव का अनुभव होता है और वे बडे स्तर पर डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। क्योकिं उनके पास वे मानचित्र ही नहीं हैं जो उन्हें इन कामों के लिए प्रेरित कर सकें।

Wednesday, July 3, 2024

अनाज भंडारण में सल्फास की गोलियां डालना कैंसर को निमंत्रण देना है - डा. जुगल किशोर

अनाज भण्डारण में सल्फास की गोलियां डालना सीधे कैंसर को दावत देना है, ऐसे रसायनों से इंसान की बीमारी से लड़ने की क्षमता खत्म हो जाती है और जुखाम से लेकर कैंसर तक हर बीमारी की पकड़ में ऐसा व्यक्ति जल्दी आता है। 
प्रकृति से हमें तोहफे में मिले इम्यून सिस्टम में कमजोरी आती है जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो जाती है। उक्त जानकारी कृषि बीज गोदाम प्रभारी डॉ जुगुल किशोर ने देते हुए बताया कि एल्युमीनियम फास्फेट जिसे सल्फास कहा जाता है जिसका प्रयोग जानकारी के अभाव में किसान अनाज भण्डारण के समय उसमें करते हैं जो बिल्कुल ग़लत है। जबकि आर्गनिक व देशी तरीका अनाज को सुरक्षित रखने का बिना खर्च मौजूद है। 
नीम की पत्ती से लेकर मिर्च,हींग का प्रयोग कीटों से बचाने के लिए कारगर है लेकिन जल्दबाजी में किसान ऐसे रसायनों का इस्तेमाल कर अपने ही सेहत से खिलवाड़ कर रहा है। उन्होंने बताया कि कपड़े में तीन चार तह के बीच हींग का टुकड़ा रखकर अनाज भण्डारण में दो तीन जगह रखने से कीड़े इसके गंध से पास नहीं फटकते और किसी तरह से नुकसान भी नहीं है।इसी प्रकार यदि बीज संजो कर रखने हैं तो आप इन्हें सरसों एवं कड़ुवा तेल में मलकर राख में रखने से सालों साल तक कोई समस्या नहीं है।अनाज भण्डारण करने की परंपरा हमारे देश में प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक विधि रही है ताकि अनाज सुरक्षित व पवित्र भी बनी रहे। आजकल टीन के पतरों से बनी‌ टंकियों को अनाज रखने के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है।इस तरह के टंकियों में अनाज भण्डारण से पूर्व तीन चार दिन धूप में रखें और इसके भीतरी सतह में नीम के तेल व कपूर का लेप करें जिससे अंदर अंडे लार्वे खत्म हो जाए अनाज को सुखाकर रखें। अगर हो सके तो प्याज, लहसुन, एवं तुलसी की सूखी पत्तियां भी डाल सकते हैं इससे भण्डारण किया गया अनाज सुरक्षित रहेगा।

Thursday, March 7, 2024

पैसे के आवंटन से किसी को संतुष्टि नहीं है


पैसे के चक्कर से किसी एक व्यक्ति को भी संतुष्टि नहीं मिली। पैसे का संग्रह करने जाते हैं तो और संग्रह करने की जगह बना ही रहता है। पैसे को बाँटने (दान आदि करने) जाते हैं तो और बाँटने की जगह रखा ही रहता है। पैसे को गाड़ने जाते हैं तो और गाड़ने की जगह बना ही रहता है। इससे संतुष्टि की जगह तो कभी किसी को मिलती नहीं है। इसके तृप्ति बिन्दु की कोई जगह ही नहीं है। इसके तृप्ति बिन्दु की कोई दिशा भी नहीं है। स्वयं हम पैसे से संतुष्ट हो नहीं सकते। पैसे को बाँटने से भी संतुष्ट नहीं हो सकते। ज्यादा पैसे इकट्ठा कर लिए उससे कोई समझदार हो गया हो, यह प्रमाणित नहीं हुआ। कुछ भी पैसे नहीं रख कर, घर बार बेच कर कोई समझदार हो गया हो, यह भी प्रमाणित नहीं हुआ। ज्यादा कम लगा ही रहता है। न ज्यादा में तृप्ति है, न कम में तृप्ति है, न ही बीच की किसी स्थिति में। पैसे के चक्कर में लक्ष्य सुविधा संग्रह ही बनता है। सुविधा संग्रह का कोई तृप्ति बिन्दु नहीं है। कितना भी कर लो और चाहिए, यह बना ही रहता है। पैसे के चक्कर में मानव की संतुष्टि का कोई निश्चित स्वरूप निकल ही नहीं सकता।

-संवाद
नागराज जी के साथ
(मध्यस्थदर्शन)