करके खर्चा कितना सारा, पुतला सिर्फ जलाते हो
पर अन्दर के रावण पर तुम, काबू ना पापाते हो
जब दौलत की खातिर, अपने भाई को दफनाते हो
मात -पिता के आंसूभी तुम, जब हंसकर पी जाते हो
फिर ये मेला कैसा भैया, कुछ मन में पड़ताल करो
कुछ सीखो भी विजय पर्व से, क्यों हर साल मनाते हो
राम की पूजा करते हो पर, नफरत ही फैलाते हो
कैसे राम मिलेंगेजब तुम, राम को रोज़ लजाते हो
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