Friday, December 9, 2011

जंगल को बना कर सूखे का ढेर अब वो माचिस बनाने वालों से कह रहे हैं
अपनी हदों में रहो, आग लगने का डरहैं
ैकल तक इन्ही माचिसों से जला कर आग तुमने भी बहुत हाँथ सेके हैं
और आज कह रहे हैं, देख कर यहाँ हमारा भी घर है
हम तो हर बार जले तुम्हारी लगाईं आग में, मौका तुम्हारा पहला है
अब शायद समझ सकोगे हमारे दिल का दर्द, जब दिल तुम्हारा दहला है
माहौल सूखे का है, हवाएं भी गर्म हैं, चिंगारी कहीं से भी लग सकती है
माचिस की तीली मिले न मिले, ये जंगल की आग है कभी भी भड़क सकती है
हम भुझाना भी चाहें तो हमारे बस में नहीं
तुम्हारी लगाईं आग के धुएं ने हमारी आँखों का पानी तक सुखा दिया
पर हो सके तो माफ़ करना ये हमवतनो
सच्चाई बयाँ करतेकरते भावनाओं मेंआकर गर दिल तुम्हारा दुखा दिया
वक़्त अभी भी है संभल जाओ ये आग का खेल बुरा है सबके लिए
वर्ना जंगल तो जलकर ही पनपा है कभी बदलाव तो कभी हक के लिए
हो सके तो कभी सोचना कि आखिर ये माहौल बना ही क्यूँ ???

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