सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
Friday, February 17, 2012
1962 मॆं यूनिसेफ ने एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें अंडों को लोकप्रिय बनाने के व्यवसायिक उद्देश्य से अनिषेचित (INFERTILE) अंडों को शाकाहारी अंडे (VEGETARIAN EGG) जैसा मिथ्या नाम देकर भारत के शाकाहारी समाज में भ्रम फैला दिया। 1971 में मिशिगन यूनिवर्सिटी(अमे रिका) के वैज्ञानिक डॉ0 फिलिप जे0 स्केम्बेल ने 'पॉलट्री फीड्स एंड न्युट्रीन' नामक पुस्तक में यह सिद्ध किया कि"संसार का कोई भी अंडा निर्जीव नहीं होता, फिर चाहे वह निषेचित (सेने योग्य) हो या अनिषेचित, अनिषेचित अंडे में भी जीवन होता है, वह एक स्वतंत्रजीव होता है। अंडे के ऊपरी भाग पर हजारो सूक्ष्म छिद्र होते है जिनमे अनिषेचित अंडे का जीव श्वास लेता है", जब तक श्वासोच्छवास की क्रिया होती है, अंडा सडन-गलन से मुक्त रहता है। यह उसमें जीवन होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। "यदि ऐसे अंडे में श्वासोच्छवास की क्रिया बंद हो जाए तो अंडा शीघ्र ही सड जाता है।" इसतरहअंडे को निर्जीव और शाकाहार समकक्ष मनवाना बहुत बडी धूर्तता है, यह मात्र उत्पादकों के व्यापारिक स्वार्थ के खातिर प्रचारित भ्रांतिसे अधिक कुछ भी नहीं है।
No comments:
Post a Comment