Tuesday, July 10, 2012

रामसेतु - राम के युग की प्रामाणिकता



रामसेतु - राम के युग की प्रामाणिकता

हम भारतीय विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के वारिस है तथा हमें अपने गौरवशाली इतिहास तथा उत्कृष्ट प्राचीन संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। रामसेतु एक आश्चर्यजनक ऐतिहासिक पक्ष है जो भौतिक रूप में उत्तर में बंगाल की खाड़ी को दक्षिण में शांत और स्वच्छ पानी वाली मन्नार की खाड़ी से (मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरू मध्य को) अलग करता है, जो धार्मिक एवं मानसिक रूप से दक्षिण भारत को उत्तर भारत से जोड़ता है। भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच उथली चट्टानों की एक चेन है। इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है। समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ़ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है। इसे भारत में रामसेतु व दुनिया में एडम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई लगभग 48 किमी है।

वाल्मीकि के रामायण में एक ऐसे रामसेतु का ज़िक्र है जो काफ़ी प्राचीन है और गहराई में हैं तथा जो 1.5 से 2.5 मीटर तक पतले कोरल और पत्थरों से भरा पड़ा है। इस पुल को राम के निर्देशन पर कोरल चट्टानों और रीफ से बनाया गया था। प्राचीन वस्तुकारों ने इस संरचना की परत का उपयोग बड़े पैमाने पर पत्थरों और गोल आकार के विशाल चट्टानों को कम करने में किया और साथ ही साथ कम से कम घनत्व तथा छोटे पत्थरों और चट्टानों का उपयोग किया, जिससे आसानी से एक लंबा रास्ता तो बना ही, साथ ही समय के साथ यह इतना मज़बूत भी बन गया कि मनुष्यों व समुद्र के दबाव को भी सह सके। शांत परिस्थिति के कारण मन्नार की खाड़ी में काफ़ी कम संख्या में कोरल और समुद्र जीव जंतुओं का विकास होता है, जबकि बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र में ये जीव-जंतु पूरी तरह अनुपस्थित हैं।

इस तथ्य के अनेक प्रमाण हैं कि पुरातन काल में रामसेतु का प्रयोग भारत और
श्रीलंका के बीच में भूमार्गके तौर पर किया जाता था। बौद्ध धर्म के इतिहास में
भी इस बात का जिक्र है कि अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उनकी पुत्री
संघमित्राव पुत्र महेंद्र इसी पुल के रास्ते आज से लगभग 2300वर्ष पूर्व भारत से
श्रीलंका बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए पहुंचे थे। महाकवि कालिदासद्वारा
रचित रघुवंशम्में राम सेतु का वर्णन नासा द्वारा दिए गए चित्रों से बिल्कुल
मिलता है। महाभारत, विष्णुपुराणतथा अग्निपुराणमें भी इस पुल के बारे में लिखा
गया है। दक्षिण भारत तथा श्रीलंका के अत्यंत प्राचीन सिक्कों पर भी इस
रामसेतु पुल के चित्र उपलब्ध हैं। प्राकृत साहित्य में 7वींसे 12वींसदी के बीच
इस रामसेतुको सेतुबंध का नाम दिया गया था। रामसेतुका नाम एडम्स ब्रिज सोलहवीं शताब्दी में यूरोपवासियों के भारत आने के बाद पडा। 16वींतथा 17वींशताब्दी में बने दो डच मानचित्र तथा एक फ्रेंच मानचित्र में एडम्सब्रिज अर्थात रामसेतु को रामेश्वरम्तथा तलाईमन्नार (श्रीलंका) के बीच क्रियात्मक भूमार्गदर्शाया गया है। सन् 1803 के मद्रास प्रेसिडेंसीके अंग्रेजी सरकार द्वारा जारी गजट में लिखा गया है कि 15वीं शताब्दी के मध्य तक रामसेतु का प्रयोग तमिलनाडु से श्रीलंका जाने के लिए किया जाता था, परंतु बाद में एक भयंकर तूफान से इस पुल का बडा भाग समुद्र में डूब गया। 14वर्ष के वनवास में श्रीराम ने जिन स्थानों की यात्रा की उनका क्रमिक विवरण अनुसंधानकारों ने (विशेषकर श्रीराम अवतार ने) अयोध्या से लेकर रामेश्वरम्तक उन स्थानों की यात्रा की, जहां वनवास की अवधि में श्रीराम गए थे और पाया कि 195 स्थानों पर आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं। वाल्मीकि रामायण में श्रीराम द्वारा वनवास के समय गमन किए गए स्थानों का विवरण मिलता है, जिनमें कई नदियों तथा सरोवरों के किनारे स्थित ऋषि आश्रमों का भी उल्लेख है। इनमें से कई स्थानों में अभी भी स्मारक स्थल हैं तथा स्थानीय लोग यह मानते हैं कि प्रभु राम वास्तव में उन जगहों पर आए थे। —

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