Sunday, August 26, 2012

जियो मेरे लाल......

देख के अपनी दुर्गति भैया,

अन्‍ना खा गया ताव.

वो फिर भागा राजनीति को,

मिल्‍यो न जब कोई भाव.

पर केजरी तो अति अधीर हो,

भयो मुंगेरीलाल

जियो मेरे लाल, जियो रे मोरे लाल…

अनशन कितना भारी काम है,

केजरी ने लियो जान.

सोचा फिर से बैठ गया जो,

निकल न जाए प्राण.

खल बन खेलूं राजनीति मैं,

बांका न हो बाल

जियो मेरे लाल, जियो रे मोरे लाल…

रोज रोज इक नाटक लेकर,

जंतर मंतर आयेंगे.

ढ़ोंग करेंगे खूब स्‍वार्थ को

सत्‍ता तब पायेंगे

वैसे सारे जन ये निठल्‍ले,

खूब बजावें गाल

जियो मेरे लाल, जियो रे मोरे लाल…

साभार - मनोज कुमार श्रीवास्तव

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