Monday, October 1, 2012

तो बुरा क्या है..


नयी धुन चढ़ी शहर को मेरे.. तो बुरा क्या है..
 हम भी ज़रा मिजाज़ में ढल लिए.. तो बुरा क्या है!

 कोई ठिकाना नहीं इन हवाओं का बेशक..
 पर अब उंगलियाँ रेत पर चल गयीं .. तो बुरा क्या है!

 वैसे तो दुनिया गवाह है मेरी दरियादिली की..
 छुप के खैरात भी लूँ.. तो बुरा क्या है!

 यूँ तो लाखो हैं रंजिशें दिलो में लेकिन..
 हंस के बा अदब मिल लिए.. तो बुरा क्या है!

 वतन तो वैसे ही जल चुका खूबसूरत रोशनी से..
 थोड़ी चिंगारी हमने भी कर दी.. तो बुरा क्या है!


-शोभा प्रभाकर जी द्वारा रचित...

2 comments:

  1. जी नही ये शोभा प्रभाकर जी कि रचना है... मुझे पहले नही पता था वरना उनके नाम से ही पोस्ट करता... क्षमा चाहता हूँ....

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