Sunday, May 19, 2013

मंदिर जाने के लाभ।

मंदिर जाने के चमत्कार जानेंगे तो आप
भी रोज जाएंगे
मंदिर -----
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मंदिर और उसमें स्थापित भगवान
की मूर्ति हमारे
लिए आस्था के केंद्र हैं। मंदिर हमारे धर्म
का प्रतिनिधित्व करते हैं और हमारे
भीतर
आस्था जगाते हैं। किसी भी मंदिर
को देखते ही हम
श्रद्धा के साथ सिर झुकाकर भगवान के
प्रति नतमस्तक
हो जाते हैं।
आमतौर पर हम मंदिर भगवान के दर्शन
और इच्छाओं की पूर्ति के
लिए जाते हैं लेकिन मंदिर जाने
के और कई लाभ भी हैं। यहां जानिए मंदिर
जाने से हमें
क्या-क्या चमत्कारी लाभ प्राप्त होते
हैं...
मंदिर वह स्थान है जहां जाकर मन
को शांति का अनुभव
होता है। वहां हम अपने भीतर नई
शक्ति का अहसास करते
हैं। हमारा मन-मस्तिष्क प्रफुल्लित
हो जाता है। शरीर
उत्साह और उमंग से भर जाता है। मंत्रों के
स्वर, घंटे-
घडिय़ाल, शंख और नगाड़े
की ध्वनियां सुनना मन
को अच्छा लगता है। इन सभी के पीछे है,
ऐसे वैज्ञानिक कारण
जो हमें प्रभावित करते हैं।
मंदिरों का निर्माण पूर्ण वैज्ञानिक
विधि है।
मंदिर का वास्तुशिल्प
ऐसा बनाया जाता है, जिससे
वहां शांति और दिव्यता उत्पन्न
होती है। मंदिर की वह
छत जिसके नीचे
मूर्ति की स्थापना की जाती है।
ध्वनि सिद्धांत को ध्यान में रखकर बनाई
जाती है,
जिसे गुंबद कहा जाता है। गुंबद के शिखर के
केंद्र बिंदु के ठीक नीचे
मूर्ति स्थापित होती है। गुंबद
तथा मूर्ति का मध्य केंद्र एक
रखा जाता है। गुंबद के कारण
मंदिर में किए जाने वाले मंत्रोच्चारण के
स्वर और अन्य
ध्वनियां गूंजती है तथा वहां उपस्थित
व्यक्ति को प्रभावित करती है। गुंबद और
मूर्ति का मध्य केंद्र एक ही होने से
मूर्ति में निरंतर ऊर्जा प्रवाहित
होती है। जब हम उस मूर्ति को स्पर्श
करते हैं, उसके आगे सिर टिकाते हैं,
तो हमारे अंदर
भी ऊर्जा प्रवाहित हो जाती है। इस
ऊर्जा से हमारे अंदर
शक्ति, उत्साह, प्रफुल्लता का संचार
होता है। मंदिर
की पवित्रता हमें प्रभावित करती है।
हमें अपने
अंदर और बाहर इसी तरह की शुद्धता रखने
की प्रेरणा मिलती है।
मंदिर में बजने वाले शंख और
घंटों की ध्वनियां वहां के वातावरण में
कीटाणुओं को नष्ट
करते रहती हैं। घंटा बजाकर मंदिर के
गर्भगृह में प्रवेश
करना हमें शिष्टाचार सिखाता है कि जब
हम किसी के घर में प्रवेश
करें तो पूर्व में सूचना दें। घंटे का स्वर
देवमूर्ति को जाग्रत करता है,
ताकि आपकी प्रार्थना सुनी जा सके। शंख
और घंटे-
घडिय़ाल की ध्वनि दूर-दूर तक सुनाई
देती है, जिससे
आसपास से आने-जाने वाले अंजान
व्यक्ति को पता चल
जाता है कि आसपास कहीं मंदिर है।
मंदिर में स्थापित देव प्रतिमा में
हमारी आस्था और
विश्वास होता है। मूर्ति के सामने बैठने
से हम एकाग्र
होते हैं। यही एकाग्रता धीरे-धीरे हमें
भगवान के साथ
एकाकार करती है, तब हम अपने अंदर
ईश्वर
की उपस्थिति को महसूस करने लगते हैं।
एकाग्र होकर
चिंतन-मनन से हमें अपनी समस्याओं
का समाधान जल्दी मिल
जाता है। मंदिर में स्थापित देव
प्रतिमाओं के सामने नतमस्तक
होने की प्रक्रिया से हम अनजाने ही योग
और व्यायाम
की सामान्य विधियां पूरी कर लेते हैं।
इससे हमारे
मानसिक तनाव, शारीरिक थकावट,
आलस्य दूर हो जाते
हैं।
मंदिर में परिक्रमा भी की जाती है,
जिसमें पैदल
चलना होता है। मंदिर परिसर में हम नंगे
पैर पैदल ही घूमते हैं। यह
भी एक व्यायाम है। नए शोध में साबित
हुआ है नंगे पैर मंदिर जाने से पगतलों में
एक्यूपे्रशर
होता है। इससे पगतलों में शरीर के कई
भीतरी संवेदनशील
बिंदुओं पर अनुकूल दबाव पड़ता है
जो स्वास्थ्य के लिए
लाभदायक है। इस तरह हम देखते हैं
कि मंदिर जाने से हमे बहुत
लाभ है।
मंदिर को वैज्ञानिक शाला के रूप में
विकसित करने के
पीछे हमारे पूर्वज ऋषि-
मुनियों का यही लक्ष्य
था कि सुबह जब हम अपने काम पर जाएं
उससे पहले मंदिर
से ऊर्जा लेकर जाएं, ताकि अपने
कर्तव्यों का पालन
सफलता के साथ कर सकें और जब शाम
को थककर वापस आएं
तो नई ऊर्जा प्राप्त करें। इसलिए दिन
में कम से
कम एक या दो बार मंदिर अवश्य
जाना चाहिए। इससे
हमारी आध्यात्मिक उन्नति तो होती है,
साथ ही हमें
निरंतर ऊर्जा मिलती है और शरीर स्वस्थ
रहता है।

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