जीवन परिचय
राजीव दीक्षित का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़
जनपद की अतरौली तहसील के नाह गाँव में राधेश्याम
दीक्षित एवं मिथिलेश कुमारी के यहाँ 30 नवम्बर
1967 को हुआ था। फिरोजाबाद से इण्टरमीडिएट तक
की शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त उन्होंने
इलाहाबाद से बी० टेक० तथा भारतीय
प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से एम० टेक०
की उपाधि प्राप्त की। वे टेलीकम्यूनीकेशनमें उच्च
शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे।अपनी इस
इच्छा को पूर्ण करने हेतु उन्होंने कुछ समय भारत के
सीएसआईआर तथा फ्रांस के टेलीकम्यूनीकेशनसेण्टर
में
काम भी किया। तत्पश्चात् वे भारत के पूर्व
राष्ट्रपति डॉ० ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ जुड़
गये।
कलाम साहब उन्हें एक श्रेष्ठ वैज्ञानिक के साँचे में
ढालने ही वाले थे किन्तु राजीव ने जब बिस्मिल
की आत्मकथा का अध्ययन
किया तो अपना पूरा जीवन ही राष्ट्र-सेवा में
अर्पित कर दिया। उनका अधिकांश समय महाराष्ट्र
के वर्धा जिले में प्रो० धर्मपाल के कार्य को आगे
बढ़ाने में व्यतीत हुआ।
सन् 1999 में राजीव के
स्वदेशी व्याख्यानों की कैसेटों ने समूचे देश में धूम
मचा दी थी। पिछले कुछ महीनों से वे लगातार गाँव
गाँव शहर शहर घूमकर भारत के उत्थान और देश
विरोधी ताकतों व भ्रष्टाचारियों को पराजित करने
के लिए जन जागृति पैदा कर रहे थे। दीक्षित बिस्मिल
की आत्मकथा से इतने अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने
बच्चन सिंह से आग्रह करके फाँसी से पूर्व उपन्यास
ही लिखवा लिया। राजीव पिछले 20 वर्षों से
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व उपनिवेशवाद के खिलाफ
तथा स्वदेशी की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे थे।
योगदान
दीक्षित ने 20 वर्षों में लगभग 12000 से अधिक
व्याख्यान दिये। भारत में 5000 से अधिक
विदेशी कम्पनियों के खिलाफ उन्होंने
स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत की। देश में सबसे
पहली स्वदेशी-विदेशी वस्तुओं की सूची तैयार करके
आम जनता से स्वदेश में निर्मित सामग्री अपनाने
का आग्रह किया। 1995-96 में टिहरी बाँध के
खिलाफ ऐतिहासिक मोर्चे में भाग लिया और पुलिस
लाठी चार्ज में काफी चोटें भी खायीं। उसके बाद
1997 में सेवाग्राम आश्रम, वर्धा में प्रख्यात
इतिहासकार प्रो० धर्मपाल के सानिध्य में अँग्रेजों के
समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन करके
समूचे
देश को आन्दोलित करने का काम किया। 10
वर्षों तक स्वामी रामदेव के सम्पर्क में रहने के बाद
उन्होंने 9 जनवरी 2009 को भारत स्वाभिमान ट्रस्ट
का दायित्व सँभाला।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के समय से
ही उनके अन्दर राष्ट्र के लिए कुछ कर गुजरने
की तमन्ना पैदा हुई। भारतीय सभ्यता और
संस्कृति पर
मँडरा रहे खतरों को लेकर आक्रोश पैदा हुआ।
माँ भारती को मानसिक गुलामी, विदेशी भाषा,
विदेशी षड्यन्त्रों से मुक्त करवाने के लिए उन्होंने
आजादी बचाओ आन्दोलन प्रारम्भ किया। अपने
राष्ट्र को आर्थिक महाशक्ति के रुप में खडा करने के
लिए उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने
की प्रतिज्ञा की और उसे जीवन पर्यन्त निभाया।
अपने जीवन के अन्त तक उन्होंने इन
सिद्घान्तों का दृढता के साथ पालन किया।
सिद्घान्तों का पालन करते हुए अनेकों बाधायें
आयीं परन्तु उन्होंने कभी भी समझौतावादी एवं
पलायनवादी होना स्वीकार नही किया।
सिद्घान्तों के
प्रति दृढता सीखनी हो तो उनका जीवन सबके लिये
आदर्श है।
निस्सन्देह वे भारत माँ के गौरव पुत्र थे। ऐसे
ओजस्वी वक्ता जिनकी वाणी पर
माँ सरस्वती साक्षात निवास करती थी। जब वे
बोलते थे तो स्रोता घण्टों मन्त्र-मुग्ध होकर
उनको सुना करते थे। भारत के स्वर्णिम अतीत
का गुणगान अथवा विदेशियों के
द्वारा की गयी आर्थिक लूट का बखान करते हुए
उनका दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता था।
यदि उन्हें भारत का चलता-फिरता सुपर कम्प्यूटर
कहा जाये तो अतिशयोक्ति न होगी। विलक्षण
प्रतिभा के धनी राजीव की विनम्रता सबके ह्रदय
को छू जाती थी। भारत को विश्व की आर्थिक
महाशक्ति बनाने को संकल्पित भारत स्वाभिमान के
उद्देश्यों को प्रचारित प्रसारित करते हुए वे छत्तीसगढ
राज्य के दुर्ग जिले के प्रवास पर थे। कर्मक्षेत्र में
अहर्निश डटे रहकर उन्होंने भारत माँ को आर्थिक
गुलामी से मुक्त करवाने हेतु अपना बलिदान कर दिया।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
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