Thursday, January 26, 2017

एक बार फिर से सुभाष माँगता है देश

घोर अंधियार है उजास मांगता है देश ,

पतझड़ छाया  , मधुमास मांगता है देश !

कुर्बानियो का एहसास मांगता है देश ,

एक बार फिर से सुभाष मांगता है देश !!

चंद काले पन्ने फाड़े गए हैं किताब से

इतिहास को सजाया खादी और गुलाब से

पूछता हूँ क्यूँ सुभाष का कोई पता नहीं

कैसे कहूँ बीती सत्ता की कोई खता नहीं

एकाएक वो सुभाष जाने कहाँ खो गए

और सारे कर्णधार जाने कहाँ सो गए

मानो या ना मानो फर्क है साज़िशो और भूल में

कोई षड़यंत्र छुपा है समय की धूल में

गांधी का अहिंसा मंत्र रोता चला जा रहा

देखिये ये लोकतंत्र सोता चला जा रहा ,

आज़ादी कि हत्या में सभी क्यों मौन है

इनकी ख़ुदकुशी के जिम्मेदार कौन कौन है

अभी श्वेत खादी कि ये आंधी नहीं चाहिए

दस बीस साल तक गांधी नहीं चाहिए

सोये हुए शेर कि तलाश मांगता है देश

एक बार फिर से सुभाष मांगता है देश

ढाल और खड्ग बिन गाथा को गढा गया

आज़ादी का स्वर्ण ताज खादी से मढ़ा गया

लाल किले में लगा दी क्यारियां गुलाब की

तारे जा के बैठे हैं जगह आफताब की

आज़ादी कि नीव को लहू से था भरा गया

मिली नहीं थी भीख में आज़ादी को वरा गया

कितने जाबांज बाज धरती में गड गए

किन्तु श्रेय को ले कपोत उड़ गए

कहते हो बैठे थे सुभाष जिस विमान में

हो गया है ध्वस्त वो विमान ताइवान में

सूर्य के समक्ष वक्ष तान घटा छा गयी

भाग्य कि कलम स्याही से कहर ढा गयी

दिव्य क्रान्ति ज्योत को अँधेरा आ के छल गया

बोलते हो सूर्य पुत्र चिंगारी से जल गया

आप से वो जली हुई लाश मांगता है देश

एक बार फिर से सुभाष मांगता है देश!!

जय हिंद।

No comments:

Post a Comment