Monday, September 3, 2018

योगेश्वर श्री कृष्ण के असली स्वरुप को पहचानें |


अपने इतिहास, संस्कृति, धर्मग्रन्थों, महापुरुषों आदि को विकृत, कलंकित पतित एवं छेड़खानी करने वाली संसार में जाति है तो वह हिन्दू हैं। जिसने अपने इतिहास, पूर्वजों महापुरुषों के सत्य यथार्थ स्वरूप को समझा, जाना, माना और अपनाया नहीं है। जैसा आज योगीराज भगवान श्रीकृष्ण का अश्लील, भोगी, विलासी, लम्पट, पनघट पर गोपिकाओं को छोड़ने वाला आदि दिखाया, सुनाया पढ़ाया तथा बताया जा रहा है। वैसा सच्चे अर्थ में उनका प्रमाणिक जीवन चरित्र नहीं था। उन्हें चोरजार शिरोमणि, माखन चोर आदि कहकर/लांछन लगाये गए। मीडिया श्रीकृष्ण के नाम पर अश्लीलता, श्रृंगार, वासना, कामुकता, ग्लैमर अन्ध विश्वास, पाखण्ड आदि दिखा, सुना और फैला रहा है। आज की पीढ़ी इन्हीं बातों को सच व ऐतिहासिक मान रही है। कोई रोकने, टोकने व कहने वाला नहीं है। वास्तव में श्रीकृष्ण का गुण, कर्म स्वभाव आचरण, जीवन दर्शन चरित्र ऐसा नहीं था जो आज मिलता है। असली उनका चरित्र महाभारत में है जहां वे सर्वमान्य, सर्वपूज्य, योगी, उपदेशक, मार्ग दर्शन, विश्वबन्धुत्त्व, नीतिनिपुण, सत्य न्याय, धर्म के पक्षधर के रूप में दिखाई देते हैं।

जब वर्तमान में प्रदर्शित जीवन चरित्र की तुलना महाभारत के श्रीकृष्ण से करते हैं। तो रोना आता है। गीता जैसा अमूल्य ग्रन्थ महाभारत का ही अंग है। विश्व में धर्म व आध्यात्म के क्षेत्र में ज्ञान भारत को गीता से मिला और सम्मान व पहिचान बनी। गीता में श्रीकृष्ण ने जो जीवन जगत के लिए अमर उपदेश व सन्देश दिए हैं वे युगों-युगों तक जीवित-जागृत रहेंगे। गीता भागने का नहीं जागने की दृष्टि विचार एवं चिन्तन देती है। जीवन-जगत में रहते हुए, निष्काम करते हुए जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष तक पहुंचने का गीता दिव्य सन्देश देती है। गीता में ज्ञान-विवेक वैराग्य पूर्ण श्रीकृष्ण योगी के रूप में सामने आते हैं। जैसे कोई हिमायल की चोटी पर खड़ा योगी आत्मा-परमात्मा, जीवन-मृत्यु, भोग,योग, ज्ञान, कर्म, भक्ति आदि का चिन्तन प्रेरणा व सन्देश दे रहा हो। तत्वज्ञ पाठकगण सोचें-विचारें और समझें- कहां गीता के श्रीकृष्ण और पुराणों कथाओं कल्पित कहानियों के श्रीकृष्ण हैं? हमने उन्हें क्या से क्या बना दिया है। अमृत से निकालकर उन्हें कीचड़ में डाल रहे हैं? महाभारत और गीता के श्रीकृष्ण को भूलकर, छोड़कर आज समाज पुराणों व रसीली कथाओं के श्रीकृष्ण के चरित्र को पकड़ रहे हैं।

संसार का दुर्भाग्य है कि श्रीकृष्ण के सत्यस्वरूप, जीवनादर्शन के साथ अन्याय व धोखा हो रहा है। पुराणों में श्रीकृष्ण को युवा व वृ( होने ही नहीं दिया, बाल लीलाओं में उनका सम्पूर्ण जीवन अंकित व चित्रित होकर रह गया। जिन्हांने कभी भीख नहीं मांगी थी। आज हम उनके चित्र व नाम पर धन बटोर व भीख मांग रहे हैं? किसी विदेशी चिन्तक ने श्रीकृष्ण के वर्तमान स्वरूप को देखकर टिप्पणी की थी यदि भारत में सबसे अधिक अन्याय व अत्याचार किया है तो वह अपने महापुरुषों के चरित्र के साथ किया है उनके असली स्वरूप को भुलाकर विकृत व कलंकत रूप में उन्हें दिखा रहे हैं। इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा।

 महाभारत में राधा का कहीं नाम नहीं आता है। किन्तु राधा के नाम बिना श्रीकृष्ण की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। राधा यशोदा के भाई रावण की पत्नी थी। पुराणों, लोक कथाओं, कहानियों साहित्य आदि में श्रीकृष्ण के चरित्र को कलंकित व विकृत बदनाम करने के लिए राधा का नाम जोड़ा गया। इतिहास में मिलावट की गई। लोगों को नैतिक, धार्मिक जीवन मूल्यों से पथभ्रष्ट करने के लिए श्रीकृष्ण और राधा के नाम पर अश्लीलता व श्रृंगारिक कूड़ा-करकट इकट्ठा कर लिया गया। जो आज फल-फूल रहा है। श्रीकृष्ण पत्नीव्रत थे उनकी धर्म पत्नी रुक्मिणी थीं। श्रीकृष्ण के जीवन वृत्त में तो रुक्मिणी का नाम आता है मगर व्यावहारिक रूप में मंदिरों, लीलाओं, कथाओं, झांकियों आदि में रुक्मिणी को श्रीकृष्ण के साथ नहीं दिखाया जाता है। यह रुक्मिणी के साथ पाप और अन्याय है। सच्चा इतिहास इसे कभी माफ नहीं करेगा। श्रीकृष्ण जैसे एक पत्नीव्रती, ज्ञानी, संयमी मर्यादापालक महापुरुष व्यभिचारी एवं परस्त्रीगामी कैसे हो सकते हैं। श्रीकृष्ण संसार के अद्वितीय महापुरुष थे।

 प्रतिवर्ष श्रीकृष्ण के जन्म को जन्माष्टमी के रूप में बड़ी धूमधाम से कृष्णलीला, रासलीला, झांकियां और तरह -तरह के कार्यक्रमों के रूप में मनाया जाता है। ग्लैमरस रास-रंग, रसीले श्रृंगारिक कार्यक्रम होते हैं। करोड़ों का बजट चकाचौंध में चला जाता है। जो श्रीकृष्ण के योगदान महत्त्व, जीवनदर्शन, गीताज्ञान, शिक्षाओं उपदेशों आदि का चिन्तन-मनन होना चाहिए वह गौण होकर ओझल हो जाता है। मूल छूट जाता है। ऐसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रेरक अवसरों पर महापुरुषों द्वारा दिए गए उपदेशों, सन्देशों, विचारों व ग्रन्थों पर चिन्तन-मनन व आचरण की शिक्षा लेनी चाहिए। जो महापुरुषों के जीवन चरित्रों के साथ काल्पनिक, चमत्कारिक और अतिशयोक्ति पूर्ण बातें जोड़ दी गई हैं जिन्हें लोग सत्य वचन महाराज और सिर नीचा करके स्वीकार कर रहे हैं उन व्यर्थ की मनगढ़न्त बातों पर परस्पर चर्चा करके भ्रांतियों और अन्जान को हटाना चाहिए तभी महापुरुषों को स्मरण करने तथा जन्मोत्सव मनाने की सार्थकता,उपयोगिता और व्यावहारिकता है। उस महामानव इतिहास पुरुष योगेश्वर श्रीकृष्णकी स्मृति को कोटि-कोटि प्रणाम।
 -डॉ. महेश विद्यालंकार

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