तंबू समेटते समय मंजर अजीब था जनाब। किसानों के घर लौटते ही गरीब बच्चों को भोजन और आवास की चिंता सताने लगी है। लंगर में आज यह उनका अंतिम भोजन था।
...दिल्ली-हरियाणा के सिंघू सीमा पर हजारों किसानों ने अपना विरोध प्रदर्शन समाप्त कर दिया और लंगर बंद कर दिए हैं। 13 वर्षीय आर्यन को अब अपने दो जून की रोटी की चिंता सता रही है। आर्यन कोई अकेला नहीं, बल्कि उसकी तरह सैकड़ों लोग हैं, जो किसानों की सामुदायिक रसोई में भोजन करते थे और एक साल से अधिक के विरोध प्रदर्शन के दौरान किसानों के तंबुओं में ही सो जाते थे।
...शनिवार को झुग्गी वासियों सहित बड़ी संख्या में बच्चों और आसपास के गरीबों ने किसानों के लंगर पर आखिरी बार पेटभर भोजन किया। बच्चों ने बताया कि हम नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना यहीं लंगर में करते थे। आज लंगर में यह हमारा आखिरी भोजन है। अब हमें भूख मिटाने को बहुत संघर्ष करना होगा। किसानों ने कहा कि उनके मन में भी इन बच्चों के लिए भावनाएं पैदा हो गई थीं। ये बच्चे विरोध स्थल पर आते थे और उन्हें अपने बेट-बेटियों और पोते की याद दिलाते थे।
...मोहाली के सतवंत सिंह ने कहा, ये बच्चे हमारे प्रदर्शन का हिस्सा बन गए थे। वे यहां भोजन के लिए आते थे। उन्होंने मुझे मेरे पोतों की याद दिला दी थी। मुझे उन्हें यहां अपने साथ रखना अच्छा लगता था। अब ईश्वर उनकी रक्षा करेंगे। हम ऐसे बच्चों के भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हैं।
...मलिन बस्तियों के निवासी आमतौर पर इस क्षेत्र में कारखानों या गोदामों में काम करते हैं। यह बेघर लोग किसानों के अस्थायी टेंटों में ही रहते थे। अब उन्हें किसी छत को लेकर चिंता सता रही थी। बिहार के सुपौल के 38 वर्षीय मोनू कुशवाहा ने कहा कि किसानों के विरोध-प्रदर्शन के लिए सिंघू सीमा पर आने से पहले, वह फुटपाथ पर सोता था। पिछले साल आंदोलन शुरू होने के बाद हालात बदल गये थे। कुशवाहा ने अफसोस जताते हुए कहा, किसानों के आंदोलन के दौरान मैं उनके एक तंबू में सोता था और लंगर में खाना खाता था। अब यह सब बंद हो जाएगा और मैं फिर से फुटपाथ पर आ जाऊंगा, मेरे जैसे सैकड़ों लोग ठंड-गर्मी में भटकते रहेंगे।
...कुंडली में केएफसी टॉवर के पास स्थित झुग्गियों में रहने वाले आठ वर्षीय मौसम ने कहा कि वह पिछले एक साल से लंगर में अच्छा खाना खा रही थी। उसने कहा, मेरे पिता एक कारखाने में काम करते हैं लेकिन परिवार बड़ा है, इसलिए हमें अक्सर एक समय का भोजन छोडऩा पड़ता है। पिछले एक साल से हम लंगर में बहुत सारा खाना खाते थे। हम घर के लिए भी खाना ले जाते थे। अब यह सब बंद हो जाएगा। हमारी बस्ती में जब कोई बीमार हो जाता था तो हम मरीज को लेकर यहीं आ जाते थे। यहां डाक्टर दवा देते थे और हम लोग सही हो जाते थे।
...11 वर्षीय तरुण ने कहा, मेरा स्कूल राजमार्ग के दूसरी ओर है। जब से किसान यहां आए, मुझे सडक़ पार करने में कोई समस्या नहीं होती थी। मैं यहां खाना खाता था और फिर स्कूल चला जाता था। मुझे कोई न कोई सडक़ पार करा देता था। यह मेरे लिए दुख की बात है कि किसान वापस जा रहे हैं। तरुण के पिता एक शोरूम में काम करते हैं।
...आज सुबह से ही झुग्गी-झोपड़ी वालों का झुंड किसानों के तंबुओं पर उमड़ पड़ा। उन्होंने तिरपाल, बांस की लकडिय़ां, लोहे की छड़ें एकत्र की। जिनके पास सामान रखने की जगह नहीं थी तो किसानों ने उनको कुछ रुपए दिए, किसी को कपड़े, किसी को बिस्तर दिया।
..गरीबों ने बड़े दिल के किसानों को भरे मन से घर को विदा किया.. सब ने कहा- ये देश बने किसानों का और मजलूमों का..
साभार--सोशल मीडिया
बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शि लेख
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