Tuesday, September 25, 2012

malls को जबरदस्ती भारत पर थोपा जा रहा है :


अमेरिकन और यूरोपियन अर्थव्यवस्था में, क्योंकि हर वस्तु हर स्थान पर उपलब्ध नहीं होती इसीलिए वो हर स्थान पे, जहां से भी जो कुछ मिले वो सब इकट्ठा कर के, Centralized करके एक स्थान पर रखते है ताकि लोग आ के खरीद कर ले जा सके और अपनी जिन्दगी चला स
 के । इसी के लिए उन देशों ने shopping malls बनाये । भारत के दुकान और यूरोप के shopping malls में ज़मीन - असमान का अंतर है । उनके malls में गाड़ी से ले कर सुई की धागा भी मिलेगा क्योंकि यदि न मिले तो उनकी जिन्दगी नहीं चलेगी । तो उन देशो के shopping malls उनके मजबूरीयों की उपज है ।
 centralized malls रखने के लिए उनके देशो में बड़ी कंपनियों का जरूरत है और बड़ी कंपनियों के लिए बड़ी पूंजी की जरुरत है । एक mall खोलने में 2 से 50 लाख डोलर (1 से 25 करोड़ रुपये) लगते है जो सिर्फ बड़ी कंपनियों के पास हैं ...जैसे wall -mart । wall -mart के एक साल का टोटल सेल भारत सरकार के बजट से दो गुणा अधिक है । भारत का एक साल का बजट 5.5 लाख करोड़ है और wall -mart का एक साल का सेल 11 लाख करोड़ ।
 भारत देश की विशेषता है की यहाँ सब कुछ सभी स्थानों पे उपलब्ध होता है, और जब सब कुछ सभी स्थानों पे उपलब्ध है तो भारत में decentralization है । यूरोप अमेरिका में ऐसा नहीं होता अतः वहां centralization है I समय-समय पर विदेशी अक्रान्ताओ ने भारत के उत्तम decentralized व्यवस्था को तोड़ने का प्रयास किया लेकिन 600 साल में भी कोई सफल नहीं हुआ परन्तु अब यही कुप्रयास भारत में डॉ मनमोहन सिंह कर रहे हैं ।
 भारत की सरकार भारत की अर्थव्यवस्था को ऐसे स्थान पर ले जा के खड़ा करना चाहती है जहाँ यूरोप और अमेरिका मज़बूरी में खड़ा है । उनकी मजबूरी को हमारी सरकार और जनता समृद्धि एवं विकास का प्रतीक मान रही है । परन्तु इससे भारत की बेरोजगारी और बढ़ेगी । यानी malls जितने रोजगार खड़े करेंगे उससे अधिक को बेरोजगार कर देंगे । बड़ी कंपनिया आने से monopoly बढता है, competition नही बढता ।
http://www.youtube.com/watch?v=H-Z4QO2P5b8

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