Saturday, December 8, 2012

एक चिंतन:


समता मूलक समाज का निर्माण करने के लिए देश पर शासन करने वाले और देश के लिए नीतियां बनने वाले लोगो का देश कि जनता के साथ सीधा रिश्ता होना चाहिए| लेकिन जो शासकगण हैं, जो देश के लिए नीतियां बनाते हैं, जो संपन्न हैं, जो उच्च वर्ग हैं वो शहरों में रहते हैं, वे जनता से बिलकुल दूर हो गए हैं.| 

जब वे बच्चे होते हैं तो अलग स्कूलों में पढते हैं, और जब उनके बच्चे होते हैं तो वो भी इन्ही स्कूलों में पढते हैं| इस वर्ग को क्या मालूम की टाटपट्टी पर स्कूलों कि टपकती हुई छत के नीचे बैठने का क्या मतलब होता है? ये क्या जाने कि पेशाब की बदबू और कक्षा कि पढाई में क्या रिश्ता है? इस वर्ग का बच्चा घर आकार अपने पिता से शिकायत नही करता कि मास्टर उसपर झुंझलाहट निकालता है| हमारे देश के निति-निर्माता वर्ग को ये सब भोगना नहीं पड़ता, इसलिए कुछ चुनिन्दा स्कूलों पर तो करोडो रूपये  खर्च किये जाते हैं और जिन पाठशालाओं में करोड़ों बच्चे पढते हैं वे उपेक्षा का शिकार बनी रहती हैं|

जिस देश में "कॉन्वेंट" स्कूल नहीं होगा, और शासक वर्ग का बच्चा भी टाटपट्टी स्कूल में पढ़ेगा और घर आकार स्कूल की बदबू की, अँधेरे की, पिटाई की चर्चा करेगा, उस दिन देश कि शिक्षा का नक्शा बदल जाएगा|
जिस दिन रेल कि तृतीय श्रेणी में मंत्री धक्के खायेगा, अफसर को टॉयलेट के पास खड़े होकर रात काटनी पड़ेगी और नेता को दरवाजे से लटक कर सफर करना पड़ेगा, उस दिन देश कि रेलों कि दशा सुधारने के लिए सही चिंतन कि शुरुआत होगी....
वन्देमातरम....

Friday, December 7, 2012

for those who lost their mobile.


If u lost your mobile, send an e-mail to cop@vsnl.net with the following info.
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Missed date:
IMEI No.:
“No need to go to police station”

Saturday, December 1, 2012

अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा है, ना कि विश्व भाषा:


ये अफवाह फैलाई जाती है कि अंग्रेजी एक विश्व-भाषा है, इसका नतीजा ये होता है कि हम समझने लगते हैं कि दुनिया का सारा ज्ञान अंग्रेजी में है, जबकि असलियत में कई अन्य भाषाओँ में अंग्रेजी से अच्छे कार्ये हुए हैं, अनुसन्धान हुए हैं| हम उनसे या तो  वंचित रह जाते हैं या फिर उन्हें अंग्रेजी अनुवाद के जरिये ही पढते हैं| आज विज्ञान कि जितनी पुस्तकें रुसी भाषा में हैं, दुनिया कि और किसी भाषा में नहीं हैं| जर्मन भाषा में जितने ऊँचे स्तर के दार्शनिक हुए हैं और किसी भाषा में नही हुए|दुनिया के बड़े बड़े अखबार असाई शिम्बून और प्रावदा जापानी और रुसी भाषा में निकलते हैं न कि अंग्रेजी भाषा में| कला, संगीत, चित्रकारी, पुरातत्व आदि विषयों पर आज भी फ़्रांसिसी भाषा फ्रेंच में जितना गहन और प्रचुर साहित्य उपलब्ध है, उसकी तुलना में अंग्रेजी साहित्य पासंग के बराबर भी नहीं है|
दुनिया के इतिहास तो सर्वाधिक प्रभावित करने वाली पुस्तकें- बाइबल, वेद, कुरआन, धम्मपद, जिन्दवेस्ता, दास कापिटल- आदि भी अंग्रेजी में नही लिखी गयी| लेकिन जिन लोगो के दिमाग पर अंग्रेजी का भूत सवार है, उनके लिए सारे तथ्य निरर्थक हैं| उनके लिए चर्चिल अगर अंग्रेज था तो नपोलियन भी अंग्रेज ही होगा|ग्लेडस्टोन अगर अंग्रेजी बोलता था , तो लेनिन भी अंग्रेजी बोलता होगा| दुनिया का सारा ज्ञान, साहस, शौर्य, प्रतिभा सब कुछ अंग्रेजी में है, ऐसा सोचने वाला दिमाग छोटा और संकुचित दिमाग है,  वह विश्व स्तर पर सोचने वाला दिमाग बन ही नही सकता....
वन्देमातरम.......

अंग्रेजी कि बैशाखिया:


अंग्रेजी के प्रति हमारे एकांगी प्रेम का परिणाम ये हुआ है कि भारत अपने पुराने मालिक इंग्लैंड से और उसके नए उतराधिकारी अमेरिका से एक पिछलग्गू कि तरह काफी अच्छी तरह जुड गया है, लेकिन बाकि दुनिया से उसके अच्छे रिश्ते कायम नही हो पाए हैं|अंग्रेजों के कुछ पुराने गुलाम देशों जैसे पकिस्तान , बर्मा , लंका, घना आदि और जहाँ अंग्रेज जाकर बस गए थे ऐसे देशों जैसे अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि तो छोड़ कर दुनिया के किसी भी देश में अंग्रेजी का प्रयोग नही होता, और पुराने गुलाम देशो में भी अंग्रेजी का प्रयोग सिर्फ नौकरशाह और अंग्रेजी तालीम-याफ्ता लोग करते हैं.. उनकी संख्या प्राय: 2% से भी कम होती है|

अंग्रेजी को विश्व भाषा मान लेने का सीधा दुष्परिणाम यह हुआ है कि दुनिया के हर देश के साथ हम अंग्रेजी में व्यवहार करते हैं चाहे वहाँ कि भाषा जर्मन हो, रुसी हो, चीनी हो, अरबी हो या फ़ारसी हो| हर रोग का हमारे पास एक ही इलाज है -जमाल घोटा |इसी का नतीजा है कि जब विजय लक्ष्मी पंडित जब राजदूत का पद ग्रहण करने रूस गई तो उनके अंग्रेजी में लिखे परिचय पत्र को स्टालिन ने उठा कर फेंक दिया और पूछा कि क्या आपकी अपनी कोई भाषा नही है?
हमारे देश के राजदूत को जब किसी देश में नियुक्त किया जाता है तो वो उस देश कि भाषा नहीं सीखते सिर्फ अंग्रेजी से काम चला लेने कि असफल कोशिश करते रहते हैं| उस देश के राजनीतिज्ञ क्या सोचते हैं, उस देश कि जनता का विचार प्रवाह किस तरफ जा रहा है, उस देश के अखबार क्या लिख रहे हैं, ये सब हमारे राजदूतों तो तभी पता चल सकता हैं और जल्दी पता लगा सकता है जब वो वहाँ कि स्थानीय भाषा को जानते हो| प्राय: होता यह है कि या तो दुभाषिये के जरिये सूचनाएं इकठ्ठी करते हैं या फिर तब तक हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहते हैं जब तब तक लन्दन या न्यूयोर्क के अंग्र्रेजी अखबार उन्हें पढ़ने को ना मिले |वे अंग्रेजी कि बैसाखियों के सहारे चलते हैं, नकली बैसाखियाँ असली पैरों से भी अधिक प्यारी हो गयी हैं| जो कौम बैसाखियों के सहारे चलती है वह हजार साल कि यात्रा के बावजूद भी खुद को वहीँ खड़ा पाती है, जहाँ से उसने पहले यात्रा शुरू कि थी........

Friday, October 19, 2012

आप सब से एक विनती है !!!

आप सभी से विनती है कि भगवान से दुआ करें कि प्यारे अंकल जी जहाँ कहीं भी हो सही सलामत हों और जल्द से जल्द घर लौट आयें.......
plz..!!!
(He is missing since 16-10-2012 from Ambala)
agar aapko is baare me koi b jaankari mile to jaruru sampark karein.
09467116029, 09416026383, 09416461037
pls... aapki thodi si satarkta kisi ghar ki khushiyaan lauta sakti hai.
call me at 9671415432

Plz share it...


Monday, October 15, 2012

जन भावनाओं के विपरीत काम कर रहे हैं हमारे जन प्रिय नायक और युवाओं के चालाक आदर्श पुतले....आखिर इनके पास जनता की गाढ़ी कमाई का ही चूसा हुआ पैसा है न..


कालाधन विदेश से वापस लाने के अभियान में इन्होने अभी तक अपनी जबान क्यों नहीं खोली, फिल्मो में और दर्शकों से आदर्श दर्शाने वाले इन चालाक भेदियो को क्या जनता की आकांक्षा समझ में नहीं आती है.



मीडिया क्रिकेट और फिल्म का महिमा मंडन करती है, लोग फिर उसको देखने जाते हैं, समय और पैसा बरबाद करते हैं, फिर ये  विदेशी और नुकसान देह चीजों का प्रचार करते हैं जिससे इन चालाक भेडियो के समर्थक इन उत्पादों की जम कर खरीदी करते हैं, जिससे कंपनियों को खूब पैसा जाता है, इन पैसो से इन हीरो-हिरोइनों-खिलाडियों को खूब हिस्सा मिलता है, कंपनी उसी कमाई में से मडिया को भी पैसा देती है. यानी ये चालाक आदर्श बने शातिर लोग जनता को बेवकूफ बनाते है और इस देश व् देश की जनता  के बारे में इनकी सोच बहुत ही घिनौनी है...नहीं तो क्या ये---

Saturday, October 13, 2012

"लक्ष्य":: सफलता पाने कि एक दृढ़ इच्छा ! - ममता शर्मा (A National Award Winning Article)




"लक्ष्य" -
 कितना छोटा सा शब्द है पर पाने के लिए तो आपकी जान निकाल देता है| ना जाने हम जिंदगी में हम कितनी बार मरते हैं , शायद रोज मरते हैं इसे बेहतर बनाने के लिए| और पंख तो हम सब के पास हैं और शायद उड़ान भी, पर उड़ान भरने को हम सब शायद तैयार नहीं | उडान भरना अपने आप में सुखद अनुभव है, उड़ान भरने से मेरा आश्य सफलता के लिए मेहनत करने से है, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने कि चेष्टा से है | आसमान में उड़ान भरना सब चाहते हैं पर उड़ान कब भरनी है और कैसे भरनी है ये जानना बहुत कठिन होता है | खुद में डूबना पड़ता है, खुद में खोने पड़ता है, खुद से लड़ना पड़ता है , आलोचनाओं को सहना पड़ता है और आप फिर भी डटे रहे तो लक्ष्य भी आपका और सफलता भी आपकी | कोई नहीं जानता कि आपने कैसे लड़ा और कैसे जीता, कितने सालों कि मेहनत के बाद एक सूरज-सा दिखता है और वो रोशनी सिर्फ आपको सुकून देगी|
 कभी आईने में खुद का अक्श भी धुंधला सा पड़ जाता है और आप सोचते हैं कि क्या सच में इतना दूर निकल आयें हैं अपने लक्ष्य को पाने के लिए, क्या सपनो में हम इतना खो गए कि सोने का भी वक्त नहीं रहा ? नहीं शायद वक्त सब कुछ करने का है, करने का था, पर आप विकल्प के तौर पर सिर्फ और सिर्फ केंद्रित होना जानते हैं, या यूँ कहें कि आप विकल्प लेना ही नहीं चाहते | आपके पास सिर्फ और सिर्फ एक लक्ष्य होता है पाने के लिए भी और खोने के लिए भी| और आप उस पर इतना केंद्रित हो जाते हैं कि आपके पास ना सोने का वक्त होता है और न जागते हुए होश में रहने का| आखिर जिंदगी भी तो यही है जाने क्या क्या खोना पड़ता है| लक्ष्य तब तक महत्वपूर्ण नहीं हो सकता जब तक कि आप खुद नहीं चाहते के आप जिंदगी में कुछ बेहतर करें, कुछ कर गुजरें जीवन के इन झमेलों से निकल कर |
 ना जाने कितनी बार हम आधी रात को उठ जाते हैं और फिर सोचते हैं कि क्या ये मेरे सपनो को खोने का डर है या फिर मेरे लक्ष्य को प्राप्त करने कि इतनी चेष्ठा जो हमे चैन से सोने तक नहीं देती | या फिर कोई घबराहट है अपने ही सपनो को खो देने की | कई बार तो पंख इस कदर बंद हो जाते हैं जैसे किसी ने जकड रखे हों अपने हाथों से | ये हाथ शायद विचार हैं और जब तक हम विचारों से बंधे हैं, अपने विचारों को अभिव्यक्त नहीं कर पाते तब तक हम ऐसे ही पंछी हैं जो नहीं जानता कि उड़ना कैसे है |

 एक छोटा सा परिंदा भी जानता है कि ‘पर’ कहाँ मारने हैं | वह उड़ना सीखता है शायद इस डर से कि कहीं उड़ नहीं पाया तो शायद जमीन पर उसके पंख यूँ ही रोज कैद होते रहेंगे | एक डर से ही सही पर पता है कि मुझे उड़ना है, एक खुले आसमान में साँस लेनी है | और कोई उड़ान भी नहीं और आप उड़ना ना चाहें , कोई मुझे सिखा भी नहीं सकता कि मुझे कहाँ उड़ना है, पर फिर भी हम सीखते हैं , जानते हैं और अनुभव करते हैं कि हमें कहाँ तक जाना है | कोई आपको सिखा नहीं सकता कि आपका लक्ष्य क्या है, कैसे आपको पाना है, कैसे प्राप्त करना है, आपको खुद जानना है , खुद पाना है| खुद सीखना है, और खुद को ही खोना है|कोई नहीं सिखा सकता कि आपको आसमान में कितना ऊँचे उड़ना है, जहाँ तक आपकी उड़ान है आप उड़िए, जहाँ तक आपके पंख रूपी विचार हैं, कल्पनाएं हैं, सपने हैं, वहाँ तक सोचिये | पर जब तक आप सोचना ही नहीं चाहते, उड़ना ही नहीं चाहते शायद आप गंभीर भी नहीं होना चाहते अपने लक्ष्य को लेकर,अपने सपनो को लेकर| माँ-बाप के पैसे पे देखे सपने सस्ते हैं और आसान भी, पर जब आप खुद लड़ते हैं अपने सपनो के लिए , खुद चलते हैं धूप में , तो आपसे ज्यादा किसी को इंतज़ार नहीं होता कि कब छांया दिखे और कब आपको सुकून के पल मिलें |शायद उस धूप से निकल छांया में बैठने कि चेष्ठा कि है जो बार-बार हमें प्रेरित करती है कि हम उडें, हम जियें, हम लडें और इस कदर लडें, उडें तो ऐसे कि हर तरफ सन्नाटा भी हो तो भी आपके अंदर जो सदियों से सोया पड़ा है, जो भाव मर चुके हैं लड़ते-लड़ते वो ऐसे जागें कि आपका खुद का मन करे ताली बजाने का , आप खुद में एक गर्व अनुभव करें कि हाँ मैंने लड़ा है, मैंने सपनो को लेकर लड़ा है और इस कदर लड़ा है के मेरी जिंदगी कि शाम कब हो चली मुझे पता ही नहीं चला क्योंकि मैं इतना बेखबर रहा अपने लक्ष्य को पाने में कि मुझे वक्त ही नहीं मिला कि मैं किसी कि आलोचना करू, किसी को बुरा बोलू या मैं लोगो के साथ खड़ी हो खुद को बता सकूँ कि मुझ में कितनी काबिलियत है, जब आप प्रयत्न करते हैं तो आपको जवाब देने कि जरुरत नहीं होती और हर कोई जवाब को समझ भी नहीं सकता , सिर्फ आप जानते हैं कि आपने कैसे जीया हैं अपने लक्ष्य को |
 जब तक हमारे पास पहचान ही नहीं तो जिंदगी कैसे हो सकती है | हमारा लक्ष्य और सपने ही हैं जो पहचान दिलाते हैं और उनके ऊपर किये गए हमारे रोज के प्रयत्न | और अगर किसी दिन पंख मिल भी जाएँ तो वो उडते हैं , खुले आसमान कि तरफ उडते हैं और लौट कर उसी आसमान की तरफ आते हैं, जहाँ से पहली उड़ान भरी थी | जब सपने देखने कि लत पड़ जाती है तो इस कदर पड़ जाती है कि सपने देखे बिना चैन नहीं अआता और जब आदत खुली आँखों से सपने देखने कि पड़ जाये तो खाली बैठने में भी चैन नहीं आता| लगता है कुछ अधूरा सा है, कुछ गम सा है हमारे चुप-चाप से आशियाने में | एक आशियाना जो आपने खुद बनाया है, एक सपना जो आपने खुद देखा है, एक लक्ष्य जिसे पाने कि चाहत सिर्फ और सिर्फ मेरी है | हर किसी के लिए ये समझना मुश्किल है कि सपने कैसे अपनों पर भी खोए हैं, कैसे अपने सपनो को टूटते भी देखा है , पर सपने टूट भी जाएँ, लक्ष्य कभी पीछे नहीं छूटता |
 या मैं यूँ कहूँ कि लक्ष्य को पाने कि चेष्ठा ही है जो जिंदा रखे हुए है एक इन्शान को , कितने ही सपने टूट जायें , कितनी कि असफलताएं हाथ लगें , पर जब शुरुआत हो जाती है खुद को पाने की, खुद में खो जाने कि, लक्ष्य को पाना आसान लगने लगता है| बहुत भागते हैं एक शेर कि तरह , बहुत दौड़ते हैं बच जाने के लिए जिंदगी के झमेलों से और इतना भाते हैं जैसे कोई हिरन भागता है अपनी जान बचाने को , और इधर-उधर भी भागते हैं तितली कि तरह, पर चैन नहीं आता | कुछ गम भी होते हैं अपने खुद के छोटे से शहर में | चाहे कितना ही सुख मिले, आराम मिले, माँ-बाप के पैसो पे सपने देखना आसान है, और अपने दम पर सपनो को पाने कि चाहत, लक्ष्य तक पहुँच जाने कि चाहत खुद में एक अलग ही अनुभव है| सपने और लक्ष्य दो अलग चीजें हैं|
 लोग आलोचनाएं करते हैं, ऊँगली उठाते हैं और हँसते भी हैं कि जिस लक्ष्य के सपने आप देख रहें वो इस छोटी सी दुनिया में सिर्फ एक शब्द हैं |हाँ बिलकुल शब्द ही तो हैं, शब्द जिनका अर्थ सिर्फ लक्ष्य प्राप्त करने वाले जानता है | पर सिर्फ लड़ने वाला जानता है कि उसने लड़ाई कैसे लड़ी है, और भीड़ में जीता कैसे जाता है | सिर्फ वही जानता है कि पसीना कैसे लहू सा बहाया है, कैसे अकेले कि चला है बीहड़ और सुनसान जंगलों में और मुलाकात भी तो वहीँ हुई थी सपनो से, अपने अस्तित्व से, अपने लक्ष्य से|कुछ खोखली दीवारें मिलती हैं और निकल जाना चाहते हैं हम उन खोखली दीवारों से, जहाँ दुनिया नहीं जानती कि उद्देश्य क्या है और कैसे लक्ष्य आदमी के लिए एक साँस कि बीमारी सी लगने लगती है, जहाँ लक्ष्य छूटता दीखता है तो साँस भी टूटने लगती है| पर जीतता वही है और लक्ष्य भी वही प्राप्त करता है जो लड़ता है , तो अगर हारता है तो इस कदर कि उसे सुकून होता है कि उसने केवल खड़े होकर तमाशा नहीं देखा, उसने प्रयत्न किया है और जीता है , और जीतता है तो ऐसे कि वो देखना नहीं चाहता कि एक आदमी कैसे अधूरा ही मरता है जिसे ना जीना आता है ,ना मरना और जिंदगी कि दौड इतनी भी सस्ती नहीं|
 लक्ष्य पाने कि दौड इतनी भी छोटी नहीं के एक दिन में सब कुछ पा लें और खो दें |ये प्रयत्न हैं और रोज किये गए प्रयत्न हैं |रोज हम बढते हैं, केवल शरीर से नहीं विचारों से और जब विचारों में लक्ष्य एक समुंद्र के पानी कि तरह तली में बैठ जाए तो उसे निकालना मुश्किल होता है , और ऊपर से कितना ही पानी बहता रहे , कितनी ही लहरें आती रहें फिर भी आदमी रुकता नहीं, चलता है, उड़ता है, और जीता है , एक अंत-हीन समुंद्र कि तरह|
 मुझे एक कवि कि लिखी पंक्तियाँ अब भी याद हैं, कवि ने कुछ यूँ लिखा है|
 "बगिया बगिया बालक भागे,
 तितली फिर भी हाथ ना आवे ,
 इस पगले को कौन बताये ,
 ढूँढ रहा है जो तू जग में,
 जो तू पाए , मन में ही पाए,
 सपनो से भरे नैना,
 तो नींद है न चैना,
 ऐसी डगर कोई अगर जो अपनाए ,
 हर राह के वो अंत पे रास्ता ही पाए,

 और हासिल भी क्या हुआ है यूँ बैठे रहने से | कोई कारवां कोई मंजिल यूँ ही तो नहीं मिलती और जब तक हम एक ठन्डे खून में पड़ें हैं तब तक कोई सपना पूरा नहीं होता |और मंजिल यूँ ही हाथ नहीं लगती आपको मजबूत बनना पड़ता है, टूटना भी पड़ता है, रुकना भी पड़ता है, असफलता भी देखनी पड़ती है, आलोचनाएं भी सहनी पड़ती हैं पर जीत का मजा भी तभी है जब ये पूरे होश हवाश में मिले और आपको परखने के लिए पूरी जान निकाल दे |अगर आप प्रयत्न ही नहीं करते तो आपका हारना तय है, और अगर आप लड़ते हैं अपने लक्ष्य के लिए तो आप किसी से कम नहीं| एक हिरन बनने से बेहतर है एक बाज बनना जो जानता है कि उसे कहाँ पर नज़र रखनी है और उसका शिकार उसे कब मिलेगा| शिकार मिलेगा ही क्योंकि बाज जानता है कि लक्ष्य पर केन्द्रित कैसे होना है, और जब शिकार (लक्ष्य) हाथ आये तो कैसे अपनी पकड़ मजबूत बनाये रखनी है|
 "कुछ मंजिले मेरी भी हैं इन डूबते सितारों में,
 वक्त के दरिया में कुछ साजिशें अभी बाकी हैं!!

 "सपनों से उठ कर हकीकत में लगी लड़ियाँ क्या होती हैं,
 ये समझा पाओ हमे किसी दिन तो बताना !!! "
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ममता शर्मा जी के ब्लॉग का पता:



Thursday, October 11, 2012

मोदी जी के जीवन के कुछ ऐतिहासिक पल


सुनिए उन ऐतिहासिक पलों कि कहानी खुद नरेंद्र मोदी जी के मुंह से जब उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया गया -

 ''मित्रों मेरे यहाँ जब मैं गांधीनगर में आया तो उससे पहले मैं दिल्ली में रहता था ,कई वर्षों से गुजरात आया नहीं था ,अचानक गुजरात का कार्य मेरे जिम्मे आ गया ,और मुझे याद है जब मुझे मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया गया तो उस समय अटल जी ने मेरे पास फोन किया मुझे ये बताने के लिए, उन्होंने पूछा कि भई कहाँ हो ,मैंने कहा कि मैं शमशान में हूँ, ये सुनकर वे हंस पड़े और बोले कि यार तुम श्मशान में हो ,मैं तुमसे अब क्या बात करूँ ,मैंने कहा नहीं अटल जी आपने मुझे फोन किया है तो कोई काम होगा आप बताइए ,अटल जी बोले अच्छा ये बताओ कि कितनी बजे लौटोगे और ये तुम शमशान में क्यों हो, मैंने बताया कि ये जो माधवराव सिंधिया जी का निधन हुआ है एक्सीडेंट होने के कारण उसमें उनके साथ एक पत्रकार भी था गोपाल नाम का ,उसकी भी उनके साथ ही मृत्यु हुई है ,तो मैं गोपाल के क्रियाकर्म में आया हूँ क्योंकि माधवराव जी के क्रियाकर्म में तो सब जायेंगे लेकिन गोपाल के क्रियाकर्म में कौन जाएगा,उसके क्रियाकर्म में भी तो कोई होना चाहिए , मैं उस गोपाल के क्रियाकर्म में था कोई और राजनेता नहीं था बस दो-चार उसके पत्रकार मित्र थे ,

 तो उसके बाद रात को मैं अटल जी से मिलने गया वहाँ जाकर पता चला कि मुझे ये गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला हुआ है और कुछ दिनों बाद मुझे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेनी है, तो ये जानने के बाद मैंने दिल्ली से गुजरात में फोन मिलाया अपनी पार्टी के दफ्तर में , मैंने कहा भई ये तुम मुझे बुला तो रहे हो लेकिन मैं रहूँगा कहाँ क्योंकि मेरे पास तो घर नहीं है, तो उन्होंने कहा कि आप चिंता मत कीजिये हम सर्किट हॉउस में आपको एक कमरा बुक करवा देंगे , तो मैंने उनसे कहा कि देखो भैया आप कमरा जरूर बुक करवाइए लेकिन एक बात का ध्यान रहे ,मैं कोई MLA या अभी सरकार का हिस्सा नहीं हूँ इसलिए अगर उस कमरे के किराए का पूरा पैसा राज्य कि सरकार लेती है तो ही कमरा बुक करवाइयेगा, वो अलग बात है कि गुजरात में सरकार मेरी ही पार्टी कि थी लेकिन फिर भी मैंने पूरा चार्ज देकर वो कमरा बुक करवाया और वहीं से जिंदगी कि शुरुआत एक नए मोड़ पे हुई दोस्तों

 खैर कुछ दिनों सर्किट हाउस के उस कमरे में रहा, फिर उसके बाद शपथ-समारोह हुआ ,मुख्यमंत्री बना और फिर उसके कारण एक quarter दे दिया गया रहने के लिए लेकिन जब मैं वहाँ सर्किट हाउस के कमरे में था और अभी मेरा मुख्यमंत्री बनना बाकी था तो ढेरों लोग मुझे मिलने आते थे ,सब कहते थे मोदी जी अब आप आये हो ,चुनाव सिर पे है ,कैसे जीतोगे , कुछ भी करो या ना करो लेकिन बस एक काम जरूर कर दो, कम से कम गाँव में शाम को खाना खाते समय तो बिजली मिले बस इतना कर दो , मित्रों आपको जानके आश्चर्य होगा कि उस समय मेरे गुजरात में शाम को भोजन के समय भी बिजली उपलब्ध नहीं होती थी ,अँधेरा रहता था और लोग मुझे यही कहते थे कि साहब बस इतना कर दो , मित्रों मैं भी गाँव से हूँ और एक गरीब परिवार से हूँ तो मुझे मालुम था कि जब परीक्षा के दिन होते हैं और रात को बिजली चली जाती है तो एक विद्यार्थी को कितनी पीड़ा होती है ,उस पीड़ा को मैंने भुगता हुआ था , तो मैंने तय किया कि मैं कुछ करूँगा और मैं उस पर सोचने लगा लेकिन करीब एक साल तक मैं इस बारे में कुछ कर नहीं पाया क्योंकि उसी साल चुनाव हुए और मैं दौबारा चुनकर आया,

 जब मैं दौबारा चुना गया तो मैंने अपने अफसरों को बुलाया और कहा कि हमें जनता को 24 घंटे बिजली देनी है , उन सारे अफसरों ने और मेरी पूरी सरकार ने मना कर दिया कि गुजरात में 24 घंटे देने के लिए बिजली है ही नहीं और ये सम्भव ही नहीं है , छह महीने तक फाइलें घुमती रही मैं चीखता रहा कि अरे भई कुछ करो लेकिन कुछ नहीं हुआ

 आखिर में मैंने फैसला किया कि अब इस काम को मैं अपने हाथ में लूँगा और मैंने एक ज्योतिग्राम योजना बनाई जिसके जरिये मैंने केवल 1000 दिन के अंदर-२ गुजरात में 24 घंटे 3-Phased Uninterrupted Power Supply उपलब्ध करवाई , मित्रों ये मात्र 1000 दिन में 24 घंटे बिजली देना कैसे सम्भव हुआ ,ये बातें मैं आपको सिर्फ इसलिए बता रहा हूँ कि आपको विश्वास हो जाए कि देश को बदला जा सकता है , वो ही मुलाजिम ,वो ही बिजली कम्पनियां ,वो ही फाइलें ,वो ही दफ्तर ,वो ही सरकारी अफसर सब कुछ वही लेकिन फिर भी स्तिथियाँ बदली जा सकी , और कोई ऐसा नहीं था कि मोदी से पहले बिजली के बटन बंद कर रखे थे और मोदी के कहने से वे बटन चालू कर दिए , इस ज्योतिग्राम योजना को जमीन पर उतारने के लिए मुझे 1000 दिन में बिजली के 23 लाख नए खम्बे डालने पड़े , Can You Imagine केवल 1000 दिनों में बिजली के 23 लाख नए खम्बे डालना......क्या लगता है

 मैंने महाराष्ट्र से पूरा माल उठवा लिया ,मध्य-प्रदेश से उठवा लिया ,राजस्थान से उठवा लिया, उस समय देश में इनका जितना भी जहां भी manufacturing होता था सारा का सारा मैं खरीद कर गुजरात में ले आता था, इन्हीं 1000 दिनों में मैंने बिजली के 53,000 नए Transformers लगवाए गुजरात में , मित्रों आपके महाराष्ट्र के गाँव में अगर कोई Transformer जल जाता होगा तो 3-4 महीनों तक उसे बदला या ठीक नहीं किया जाता होगा, मेरे यहाँ भी यही होता था ,किसान रोता था ,वो बिजली कम्पनियों के दफ्तर में जाकर आरती उतारता था और साथ में प्रसाद भी चढा देता था लेकिन उसके बाद भी 45 दिनों तक Transformer change नहीं होता था ,उसकी फसल बर्बाद हो जाती थी ,उसके सपने चूर-२ हो जाते थे लेकिन परिस्तिथि बदलती नहीं थी मित्रों , ऐसी व्यवस्था के भीतर भी सिर्फ 1000 दिन में मैंने 56,000 नए Transformers लगवाकर दिखाए और इन्हीं 1000 दिनों में 75000 Kms कि बिजली कि तारें बिछवाई ,अब आप सोचिये मित्रों वही मुलाजिम, वही बिजली कम्पनियां ,वही फाइलें ,वही दफ्तर ,वही सरकारी अफसर लेकिन इस सबके बावजूद जब मैं कर सकता हूँ तो आप भी कर सकते हैं दोस्तों ,आप भी कर सकते हैं बस करने का नेक और मजबूत इरादा चाहिए साथियों ''

 - नरेंद्र मोदी

Monday, October 8, 2012

जागो और जगाओ अपने आप को कैंसर से बचाओ!!!!!



 आलू की चिप्स से हो सकता है कैंसर फास्ट फूड आउटलेट में परोसी जाने
 वाली आलू की चिप्स पकाने की अपनी शैली को लेकर इसका सेवन करने वालों में कैंसर का कारण बन सकती है। वैज्ञानिकों ने बेहद उच्च तापमान पर
 पकाई गई चिप्स में एक्रीलामाइड रसायन का पता लगाया है जो सिर्फ अपनी पकाने की प्रक्रिया के कारण कैंसर का कारण बन सकता है । डेली एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर में कहा गया है कि बिक्री से पहले अधपके रखे गए
 आलुओं को जब परोसने से पहले बेहद उच्च तापमान पर
 पकाया जाता है तो उनमें एक्रीलामाइड का स्तर और अधिक बढ़ जाता है। एक्रीलामाइड एक कारसिनोजेन है।
 यह बिस्कुट, ब्रेड, कुरकुरी चीजों और चिप्स में
 पाया जाता है जिन्हें 120 डिग्री सेल्सियस
 तापमान से अधिक पर पकाया, तला या भूना जाता है!


 References:-








Thursday, October 4, 2012

अंग्रेजी के चक्कर में हुआ बड़ा ही घाटा

नमस्कार को टाटा खाया, नूडल को आंटा !!
अंग्रेजी के चक्कर में हुआ बडा ही घाटा !!
बोलो धत्त तेरे की !!

माताजी को मम्मी खा गयी, पिता को खाया डैड !!

और दादाजी को ग्रैंडपा खा गये, सोचो कितना बैड !!

बोलो धत्त तेरे की !!

गुरुकुल को स्कूल खा गया, गुरु को खाया चेला !!
और सरस्वती की प्रतिमा पर उल्लू मारे ढेला !!
बोलो धत्त तेरे की !!

चौपालों को बियर बार खा गया, रिश्तों को खाया टी.वी. !!
और देख सीरियल लगा लिपिस्टिक बक-बक करती बीबी !!
बोलो धत्त तेरे की !!
रस्गुल्ले को केक खा गया और दूध पी गया अंडा !!
और दातून को टूथपेस्ट खा गया, छाछ पी गया ठंढा !!
बोलो धत्त तेरे की !!

परंपरा को कल्चर खा गया, हिंदी को अंग्रेजी !!
और दूध-दही के बदले चाय पी कर बने हम लेजी !!
बोलो धत्त तेरे की !!

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश


कृपया यह पूरा लेख पढ़ें ........
सरल हिन्दी में लिखा गया है : F D I यानि  Foreign Direct Investment के मतलब  को - आज के लेख के शीर्षक में  .
हिंदी के प्रति हमारे कम हुए लगाव का परिणाम है कि हम केवल " एफ डी आई " ही समझ पा रहे हैं - इसके माने क्या है - इस गहराई में उतरने पर केवल मात्र  सिरहन , बेबसी , उकताहट , निराशा , हताशा , लाचारी और गुलामी ...... बस कुछ इसी तरह के अर्थ निकलेंगे . 
ज़रा इन पर्याय वाची शब्दों के मायाजाल से निकल कर  सरल और सहज भाव से सोचिए कि " कोई " क्यों आपके व्यापार में बिना पूंजी के रकम लगाएगा ? " वह " आपकी सहायता क्यों करना चाहता है ? सरल सा उदाहरण : आप अपने घर / दुकान के निर्माण - कार्य में व्यस्त हैं , रकम थोड़ी कम पड़ रही है , इसी बीच बिलकुल अनजाना दूर देश का राही आकर आपको कहता है कि लाओ बाकी का निर्माण मैं करा देता हूँ ...... कैसा लगेगा आपको ? बस .... ....
अभी जो बवाल मचा है कि खुदरा किराणा व्यापार इस " शब्द " के अंतर्गत होगा ......यही तो मायाजाल है ! यह तो अंग्रेजों को दुबारा बुलाने की तरकीब मात्र है . एक कहावत है " सिर भी तुम्हारा - जूता भी तुम्हारा " देश के गद्दारों ने हमारा ही पैसा लूट कर विदेशियों के हवाले कर दिया - अब वही पैसा हम पर शासन करने आ रहा है . आप अपने स्वयं के जीवनकाल ( विद्यार्थी भी अपने छोटे से जीवनकाल से समझ सकते हैं ) में झाँक कर देखें कि " फोगट या फ़ोकट " शब्द आपातकाल में धोखा ही देता है , कड़ी मेहनत - सच्ची लगन की कमाई ही बरकत करती है . 
एक बात और : क्या हम और हमारे बच्चे केवल मात्र " नौकर " बनने के लिए ही काबिल है ? यह भयंकर दुर्भाग्य का दौर चल रहा है कि आज की नौजवान पीढ़ी बिना सोचे समझे न जाने क्या क्या " पढ़ " रही है ! उद्देश्य मात्र नौकरी का !! प्राकृतिक संसाधनों , जंगलों में बिखरी पड़ी अमूल्य जड़ी - बूंटी जैसी संपदाओं , खेत - खलिहानों , फल - फूलों , शाक - शब्जियों , विभिन्न अनाजों ........ इस धरा की अमूल्य धरोहरों को भी ये विदेशी पैनी नज़रों से देख रहे हैं . क्यों ? क्योंकि हमें तो बस " पढ़ " कर १८ - २० घंटों की गुलामी ( नौकरी का कड़ा हरियाणवी शब्द ) करनी है ..... क्या करना है खेत - खलिहानों से ? 
ध्यान रखिए - ये एफ डी आई टाइप के लूटेरे एक दिन आपके घरों में घुस कर हमारे लिए बच्चों का उत्पादन भी करने लग जाएंगे ... और हम शानदार सूट - हैट पहन कर घर के बाहर चोकीदारी करते नज़र आयेंगे - हमारा अतीत गवाह है इस बात का - इस कड़वी तथ्यात्मक बात के लिए मैं मेरे समस्त देशवासियों से नतमस्तक होकर अग्रिम क्षमा की भी याचना करता हूँ ...... पर सच्चाई आपके कानों में उड़ेलना चाहता हूँ . 
सचेत हो जाओ , हमें हमको - हमारों को बचाना है  तो इन क्षुब्द राजनीतिक दलों की दलीलों से भी ऊपर उठ कर " गुलामी की चिकनी रोटी की  जगह आज़ादी की हरी घास खानेको तैयार करना है " 
मर्जी आपकी ...........
जुगल किशोर सोमाणी , जयपुर  

मौत और बीमारी के सौदागर को आरबीआई का निदेशक बनाया गया|


 इसी महीने में भारत सरकार ने भारतीय तंबाकू कंपनी (आईटीसी) लिमिटेड के अध्यक्ष, वाई सी देवेश्वर को भारतीय रिजर्व बैंक के केन्द्रीय निदेशक बोर्ड के निदेशक के रूप में मनोनीत किया गया है....
 जनवरी 2011 में भारत सरकार ने देवेश्वर को भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान में से एक, पद्म भूषण से सममानित किया था।
 यह प्रशंसा एक ऐसे कंपनी के लिए जो अपने 5.5 करोड़ वफादार कस्टमरों को समय से पूर्व मार देती है और स्वास्थ्य को क्षति पहुंचाती है!

Wednesday, October 3, 2012

हमारे राष्ट्र के पतन के कुछ मुख्य कारण :-


 १- सत्ता परिवर्तन का माध्यम जनता , किन्तु सत्ता में जनता का अधिकार शुन्य |

 २-सत्ता पर आसीन व्यक्ति जनता का माई बाप बन जाता है और जनता के फैसले करने का अधिकार उसके पास आ जाता है और जनप्रतिनिधि इसी घमंड में खुद को भगवान् समझने लगता है और जनता खुद को दास |

 ३-सत्ता आते ही जनता के उत्थान की बात करने वाला जनता से अपनी दुरी बना लेता है और जनता उसकी दुरी को अपन
 ा सौभाग्य मान लेती है |

 ४- जात पात का द्रेश फैला कर जनता को आपस में उलझाये रखते है ये नेता और सत्ता हाथ में आते ही संविधान का हवाला देने लग जाते है |

 ५-अय्यास , नशेडी , गुंडे , अत्याचारी , आतंकियों और मुस्लिम तुष्टिकरण के पैरोकार क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियों में शामिल किये जाते है और जनता उनको चुनती है और राज करने के लिए भेजती है ||

 ६- पढ़े लिखे बुद्धिजीवी वर्ग का सेकुलर होना और मुस्लिम समुदाय के पढ़े लिखे बुद्धिजीवी का और अधिक कट्टर होना |

 ७- सो काल्ड सेकुलर युवा पीढ़ी को सनातन धर्म के विषय में ज्ञान ना होना और अपने पूर्वजो के संघर्षमय इतिहास ज्ञात ना होना |

 ८-सो काल्ड सेकुलर युवा पीढ़ी का नशे की दुनिया में उतरना , राष्ट्र और धर्म से कोई मतलब ना होना |

 ९-तथाकथित हिन्दू और तथाकथित हिन्दुत्ववादी संगठनो का हिन्दुओं को भटकने की चाल और सच्चे हिन्दुत्वादी संगठनो के खिलाफ आग उगलना , दुष्प्रचार करना |

 १०-तथाकथित भारतीय जनमानस में नैतिकता का पतन , धर्मज्ञान का आभाव , राष्ट्रभक्ति क्रिकेट के मैदान पर समाप्त , सैनिकों और स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्र भक्तो का सम्मान न होना ||

 ११- सबसे बड़ा और प्रमुख कारण गांधी की नकली अहिंसा और कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण और लुट की राजनीति ||

 १२- भारतीय जनमानस में अपने अच्छे बुरे की समझ का ना होना और अपने भले के लिए दुसरे पर निर्भर होकर उसका गुलाम बन जाना ||

 और भी बहुत से कारण है हमारे राष्ट्र के पतन के ||

 सोचिये और इस भ्रम से निकालिए की आपके पड़ोस में भगत सिंह जन्म लेंगे और आपका उद्धार करेगे ,,,

Tuesday, October 2, 2012

लाल बहादुर शास्त्री जी को उनके जन्म दिवस पर शत् शत् नमन


जब लाल बहादुर शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी और घर आकर अपनी मां के चरण छुए तो उनकी माँ ने इतना कहा- "नन्हें, मैं चाहती हूं भले ही तुम्हें कुछ हो जाए, लेकिन देश को तुम्हारे रहते कुछ नहीं होना चाहिए, लोगों की सेवा तुम्हें जी-जान से करनी है, बिना अपनी जान की परवाह किए।"

 नमन ऐसी माँ को जिसकी कोख से देश के लाल ने जन्म लिया....!
 जय जवान, जय किसान !


Monday, October 1, 2012

पीजा, नूडल, मैगी, चाउमिन, बर्गर, ये सब हैं बर्बादी का घर.


कचरे मेँ कचरा सड़ाया हुआ आटा
 .
 बर्गर, पीजा, नूडल, मैगी, चाउमिन, मोमोज, मंच्यूरियन, पावरोटी, डबलरोटी, हॉटडॉग आदि
 .
 हम आटा क्योँ खाते हैँ ?
 कार्बोहाइड्रेट्स के लिये जो कि मिलता है ताजे आटे से
 और हमारी मूर्खता देखिये कि आटे को 10-15 दिन तक सड़ा के खाते हैँ और फिर भागते हैँ डॉक्टर के पास, सुबह शौचालय मेँ दो दो घण्टे तक पेट साफ नहीँ होता, भूख नहीँ लगती, सर्दी जुकाम रहता है, सिर मेँ माइग्रेन दर्द है, घुटने दर्द होते हैँ, त्वचा कठोर हो चुकी है, सिर के बाल कड़क हैँ, पसीने मे बहुत बदबू आती है, साँस मे से बहुत बदबू आती है, आलस्य रहता है, चुस्ती व कार्यक्षमता की कमी है आदि । आप जिस डॉक्टर को भगवान मानकर उसके पास जाते हैँ वो आपको ये छोटी सी जानकारी कभी नहीँ बताता कि ये सड़ा हुआ आटा शरीर के लिये कितना घातक होता है और पाचन तंत्र बिगाड़ देता है । डॉक्टर साहब को दरअसल आपकी चिकित्सा से अधिक अपने कमीशन की चिँता है क्योँकि लाखोँ रुपये डोनेशन देकर लोगोँ को लूटने के लिये डॉक्टरी पढ़ी है तो वसूली भी तो आपसे ही करेँगे । ये डॉक्टर नहीँ डाकू हैँ । जेब काटने वाले चाकू हैँ ।
 .
 आयुर्वेद अपनाओ जीवन बचाओ
 .
 पहला सुख निरोगी काया

तो बुरा क्या है..


नयी धुन चढ़ी शहर को मेरे.. तो बुरा क्या है..
 हम भी ज़रा मिजाज़ में ढल लिए.. तो बुरा क्या है!

 कोई ठिकाना नहीं इन हवाओं का बेशक..
 पर अब उंगलियाँ रेत पर चल गयीं .. तो बुरा क्या है!

 वैसे तो दुनिया गवाह है मेरी दरियादिली की..
 छुप के खैरात भी लूँ.. तो बुरा क्या है!

 यूँ तो लाखो हैं रंजिशें दिलो में लेकिन..
 हंस के बा अदब मिल लिए.. तो बुरा क्या है!

 वतन तो वैसे ही जल चुका खूबसूरत रोशनी से..
 थोड़ी चिंगारी हमने भी कर दी.. तो बुरा क्या है!


-शोभा प्रभाकर जी द्वारा रचित...

कहती बेटी बांह पसार


कहती बेटी बांह पसार
 मुझे चाहिए प्यार, दुलार

 बेटी की अनदेखी क्यूँ
 करता हैं निष्ठुर संसार

 सोचो ज़रा हमारे बिन
 बसा सकोगे घर परिवार

 गर्भ से ले कर यौवन तक
 मुझ पर लटक रही तलवार

 मेरी व्यथा, वेदना का
 अब हो स्थायी उपचार

Sunday, September 30, 2012

भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिसअल्तमस कबीर


 देश के नएमुख्य न्यायाधीश जस्टिसअल्तमस
 कबीर का संबंधएक रसूखदार और देश केजाने-
 माने परिवार से है।
 पिता औरचाचा मंत्री रहे। बहनभी हाई
 कोर्ट जज हैं।जस्टिस कबीर समाज
 केकमजोर वर्गों के
 प्रति बेहद संवेदनशील हैं।(कमजोर वर्ग
 केवल मुस्लिम)इसकी झलक उनकेनिजी जीवन
 और काम मेंभी दिखती है।अल्तमस का जन्म
 19जुलाई 1948 को फरीदपुर(अब बांग्लादेश में) में हुआ था। परिवार के कुछ लोगअब भी वहां रहते हैं। उनकेपिता जहांगीर औरचाचा हुमायूं कबीरकोलकाता में बस गए।पिता ट्रेड
 यूनियन लीडरथे। 1967 में पश्चिम
 बंगालकी पहली गैर-कांग्रेसी सरकार में
 वेमंत्री रहे। चाचा कईदफा केंद्रीय
 मंत्री रहे।अल्तमस की सगी बहनलैला पूर्व
 केंद्रीयमंत्री जॉर्ज
 फर्नांडीजकी पत्नी हैं, लेकिनयुवा अल्तमस
 का झुकावकानून की ओर था।1973 से
 उन्होंने वकालतशुरू की।
 इसी दौरानअपनेघर के ठीक नीचे
 रहनेवाली मीना से उन्हें प्रेमहुआ। वह
 कैथोलिक ईसाई
 थी। दोनों ने पहले चर्च मेंशादी की फिर
 निकाह किया।

Saturday, September 29, 2012

इस दौर के बच्चे मुझे अच्छे नहीं लगते....


.इस दौर के बच्चे मुझे अच्छे नहीं लगते....
क्युकी उन्हें रिलायंस के शेयर के रेट पता है
 
मगर आटे दाल के भाव नहीं पता.
.
उन्हें सात समंदर दूर रहने वाले फ्रेंड के बारे में सब पता है...
मगर पास वाले कमरे में बूढी दादी की बीमारी के बारे में कुछ नहीं पता...
 

उन्हें बालीवुड के भांडों के खानदान के बारे में पता है
 
मगर अपनी गोत्र के बारे में कुछ नहीं पता....
 

उन्हें यह पता है की नियाग्रा फाल्स कहा है..
 
मगर लुप्त हुई सरस्वती नदी के बारे में कुछ नहीं पता....
 

उन्हें जीसस और मरायक की पूरी स्टोरी याद है ..
 
मगर महाभारत और रामायण के बारे में कुछ नहीं पता...
 

उन्हेँ शेक्सपियर चेतन भगत के बारे मेँ पता है लेकिन प्रेमचंद के बारे मेँ नहीँ
 

जब दुकानदार कहता है ये फॉरिन ब्राँड है तो वो खुश होकर खरीद लेते हैँ लेकिन स्वदेशी उत्पाद को वो तुच्छ समझते हैँ
 

उन्हेँ ब्रैड पिट एँजेलिना जॉली सेलेना गोमेज के बारे मेँ पता है लेकिन राजीव दीक्षित कौन है ये नहीँ पता
 

अमेरिका मेँ 
Iphone 5 कब लाँच होगा वो जानते हैँ लेकिन देश मेँ क्या हो रहा वो नहीँ जानते

एक था टाईगर का वीकली कलैक्शन उन्हेँ पता है लेकिन देश के गरीब की आय से अनभिज्ञ है
 

करीना कैटरीना का बर्थडे याद रखते हैँ वो लेकिन आजाद भगत सुभाष को भूल जाते हैँ
 

क्युकी वे बच्चे अपने माँ बाप के मनोरंजन का नतीजा है...
 
अर्जुन और द्रोपदी का अभिमन्यु नहीं..........

एफ़डीआई के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी की लूट ::


 प्लासी के युद्ध से 7 वर्ष पूर्व 1750 में भारत में विश्व का 24.5% विनिर्माण (Manufacturing) होता था जबकि यू॰के॰ में केवल 1.9% मतलब विश्व बाजार में उप्लब्ध हर 4 में से 1 वस्तु भारत में निर्मित होती थी।

 सन् 1900 आते आते भारत में विश्व का केवल 1.7% विनिर्माण उत्पाद रह गया और ब्रिटेन में यह बढ़कर 18.5% हो गया था।

 स्वदेशी अपनाओ, देश बचाओ !

Thursday, September 27, 2012

देश को १० पैसे प्रति यूनिट के हिसाब से भी मिल सकती है बिजली ..


10  पैसे किलो कोयला बेचने वाले शातिर 10 पैसा यूनिट बिजली भी बना सकते हैं लेकिन यह विदेशी ईसाइयो के लिए घातक होगा......इसीलिये कांग्रेस ने हर क्षेत्र के अनुसंधान को भी बंद करा रखा है.....

सौरी ऊर्जा से बिजली बनाने में कुछ भी नहीं करना होता है...आप खाना खाने को भूल सकते हैं लेकिन आपका पैनल बिजली बनाना नहीं भूलेगा..

सोलर पैनल की 25 साल की गारंटी होती है और 40साल तक की वारंटी यानी यह काम करेगा लेकिन 80% क्षमता पर....आंधी में टूट नहीं गया तो 40 साल तक बिजली देगा..


भारत में उपलब्ध तकनीक और संसाधनों का प्रयोग किया जाये तो यह पैंनल 20/- प्रति वाट के हिसाब से बाजार में सरकार लाकर हर घर को 11 घंटे अनिवार्य बिजली दे सकती है क्योकि पैनल उष्मा से नहीं, प्रकाश से काम करते हैं.

यही 1000 वाट का पैनल ११ घंटे काम करे तो ११ Unit बिजली बनेगी और यह बिना रुके 365 दिन और 30 साल (औसत) काम करेगा. अपने जीवन काल में बिना कुछ खर्च किये 

11 x 365 x30 years x @Rs.3.00 Unit =Rs.3,61,350/- की बिजली मिलेगी..

1000 वाट पैनल लगाने पर 1000 x 20 = 20,000/-  रुपये खर्च होंगे.

30 साल में 30 x 365 x 11 यूनिट बिजली बनेगी यानी 120450 यूनिट 

20,000/- के खर्चे को 120450 यूनिट दे भाग दीजिए तो यह 16.60 पैसे प्रति यूनिट आएगा और आप अपने पॉवर हाउस स्वयं मालिक होंगे और रोज गारंटेड बिजली मिलेगी..  अब इसी खर्चे में सब जोडते जाइए—लेकिन यह 1.00 रुपये कभी भी नहीं हो पायेगा.
चीन इस समय सोलर पैनलो का बेतहाशा उत्पादन कर रहा है और उसका खर्च 25/- रुपये वाट पड रहा है लेकिन भारी मात्र में उत्पादन से और ऊर्जा के लिए खुद सूर्य  ऊर्जा ही प्रयोग किया जाये तो यह खर्चा भारत के लिए 20/- रुपया ही आएगा......

सूर्य ऊर्जा और थोरियम भारत को विश्व का राजा बना देंगे..लेकिन बीच में लुटेरो की जमात कांग्रेस आ जाती है....

भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए सभी बधाओं को हटाने का संकल्प ले..2अक्तूबर के दिन....याद रखे..
जय भारत..


स्वामी रामदेव बनाम कांग्रेस फकीर की वजीर से लड़ाई,ॐ VS रोम


तमाम उत्पादों को सौ प्रतिशत शुद्ध और खरा बताते हुए योगगुरु बाबा रामदेव ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार उनके खिलाफ षडयंत्र कर रही है.
उन्होंने बुधावार को हरिद्वार में कहा कि केंद्र सरकार उनसे इस तरह का व्यवहार कर रही है और वह अंतिम सांस तक संघर्ष करते रहेंगे.
योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा कि जैसे आईएसआई भारत को अपना दुश्मन मानकर कार्रवाई करती है, इसी तरह भारत सरकार हमसे व्यवहार कर रही है. हम पर सरकार ने 90 लाख करोड का जुर्माना लगाया है.
उन्होंने कहा कि मेरे खिलाफ सरकार के नोटिसों का ‘शतक्रम’ पूरा हो चुका है और अब ‘सहस्त्रक्रम’ की श्रंखला शुरू हो गयी है. बाबा ने अपने खिलाफ सरकारी कार्रवाई को ‘फकीर की वजीर’ से लडाई बताया.

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार उनके उत्पादों के संदर्भ में उन्हें रिपोर्ट दिये बिना सीधे मीडिया में उछालकर बदनाम कर रही है. पिछले एक माह से खामोश सरकार अक्तूबर के आंदोलन से पहले फिर हरकत में आ गयी है.
बाबा ने अपने उत्पादों को खरा बताते हुए कहा सरकार के एफएसएसआई एक्ट 2006 के नये ‘क्वालिटी स्टैंर्डड’ पर हमारे सभी उत्पाद सरकार की ही रिपोर्ट के अनुसार खरे हैं.
बाबा ने कहा कि हम गुणवत्ता की दृष्टि से अन्तरराष्ट्रीय स्तर के उत्पाद तैयार कर रहे है तथा सरकारी सूची में शामिल प्रयोगशालाओं में से तीन अलग-अलग प्रयोगशालाओं मे हम अपने उत्पाद का पहले ही परीक्षण करवा चुके है. केवल लेबल पर प्रिंटिग या मिस ब्रांडिंग के आरोप हम पर लगाये गये है

शिक्षक भर्ती: RPSC का ये कैसा खेल, अभ्यर्थियों ने मांगी तो नष्ट कर दीं OMR शीटें

जयपुर.राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) ने द्वितीय श्रेणी शिक्षक भर्ती (सामाजिक विज्ञान) 

के तीन लाख नौ हजार अभ्यर्थियों की उत्तर पुस्तिकाएं नष्ट कर इस परीक्षा की पारदर्शिता पर सवाल 

खड़े कर दिए हैं। हाईकोर्ट ने 5 सितंबर को ही आरपीएससी को दिशा-निर्देश दिए थे कि अभ्यर्थियों को 

ओएमआर शीट दिखाई जाए। इसके बावजूद आरपीएससी ने 11 सितंबर को सभी ओएमआर शीट नष्ट 

कर दी।

http://www.bhaskar.com/article/RAJ-JAI-teacher-recruitment-3845048.html?HF-19

डालर और रुपये की समय समय पर कीमत::


 1947 में 1 डालर = 1.00 रूपये
 1966 में 1 डालर = 7.50 रूपये
 1975 में 1 डालर = 8.40 रूपये
 1984 में 1 डालर = 12.36 रूपये
 1990 में 1 डालर = 17.50 रूपये
 1991 में 1 डालर = 24.58 रूपये
 1992 में 1 डालर = 28.97 रूपये
 1995 में 1 डालर = 34.96 रूपये
 2000 में 1 डालर = 46.78 रूपये
 2001 में 1 डालर = 47.93 रूपये
 2002 में 1 डालर = 48.98 रूपये
 2003 में 1 डालर = 45.57 रूपये
 2004 में 1 डालर = 43.84 रूपये
 2005 में 1 डालर = 46.11 रूपये
 2007 में 1 डालर = 44.25 रूपये
 2008 में 1 डालर = 49.82 रूपये
 2009 में 1 डालर = 46.29 रूपये
 2010 में 1 डालर = 45.09 रूपये
 2011 में 1 डालर = 51.10 रूपये
 2012 में 1 डालर = 54.47 रूपय

 ध्यान देने वाली बात तो ये है कि 1991 से मंदमोहन विश्व बैक के कर्मचारी बने और तब से लेकर अब तक रूपये .ेकी वैल्यू में 3 गुना से अधिक. कमज़ोरी आई है

Wednesday, September 26, 2012

अँग्रेजी भाषा के बारे में भ्रम : गुलामी या आवयश्कता


आज के मैकाले मानसों द्वारा अँग्रेजी के पक्ष में तर्क  और उसकी सच्चाई :
1. अंग्रेजी अंतरार्ष्टर्ीय भाषा है:: िवश्व में इस समय 10 सबसे बड़ी अथर्व्यवःथायें (Top 10
Economies) अमेिरका, चीन, जापान, भारत, जमर्नी, रिशया,ब्राजिल, ब्रिटेन,फ़्रांस एवं इटली है| िजसमे
मात्र  २ देश ही अंमेजी भाषा का प्रयोग करते हैं अमेिरका और ब्रिटेन वोह भी एक सी नहीं, दोनों
िक अंग्रेजी में भी अंतर है | अब आप ही बताएं िक िकस आधार पर अंमेजी को वैिश्वक भाषा
(Global Language) माना जाए |दुिनया में इस समय 204 देश हैं और मात्र 12 देशों में अँग्रेजी
बोली, पढ़ी और समझी जाती है। संयुक्त राष्टर् संघ जो अमेिरका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है,
वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। इन अंग्रेजों की जो बाइिबल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी
और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलतेथे। ईशा मसीह की भाषा और बाइिबल की भाषा अरमेक थी।
अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से िमलती जुलती थी, समय के कालचब में
वो भाषा िवलुप्त हो गयी। पूरी दुिनया में जनसंख्या के िहसाब से सिर्फ 3% लोग अँग्रेजी बोलते हैं
िजसमे भारत दूसरे नंबर पर है | इस िहसाब से तो अंतरार्ष्टर्ीय भाषा चाइनीज हो सकती है क्यूंिक
ये दुिनया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती हैऔर दूसरे नंबर पर िहन्दी हो सकती है।
2. अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है:: िकसी भी भाषा की समृिद्ध इस बात से तय होती है की उसमें
िकतने शब्द हैं और अँग्रेजी में िसफर् 12,000 मूल शब्द हैं बाकी अँग्रेजी के सारे शब्द चोरी के हैं
या तो लैिटन के, या तो फ्रेंच के, या तो मीक के, या तो दक्षिण  पूर्व  एशिया  के कुछ देशों की
भाषाओं के हैं। उदाहरण: अँग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सब UNCLE चाची, ताई, मामी, बुआ
सब AUNTY क्यूंकी अँग्रेजी भाषा में शब्द ही नहीं है। जबिक गुजराती में अकेले 40,000 मूल
शब्द हैं। मराठी में 48000+ मूल शब्द हैं जबिक िहन्दी में 70000+ मूल शब्द हैं। कैसे माना जाए
अँमेजी बहुत समृद्ध भाषा है ?? अँग्रेजी सबसे लाचार/ पंगु/ रद्दी भाषा है क्योंिक इस भाषा के
िनयम कभी एक से नहीं होते। दुिनया में सबसे अच्छी भाषा वो मानी जाती है िजसके िनयम
हमेशा एक जैसे हों, जैसे: संस्कृत । अँग्रेजी में आज से 200 साल पहले This की स्पेलिंग  Tis होती
थी। अँग्रेजी में 250 साल पहले Nice मतलब बेवकूफ होता था और आज Nice मतलब अच्छा
होता है। अँग्रेजी भाषा में Pronunciation कभी एक सा नहीं होता। Today को ऑस्ट्रेलिया  में
Todie बोला जाता है जबकि ब्रिटेन में Today. अमेिरका और ब्रिटेन में इसी
बात का झगड़ा है क्योंिक अमेरीकन अँग्रेजी में Z का ज्यादा प्रयोग करते हैं और ब्रिटिश अंग्रेजी
में S का, क्यूंकी कोई िनयम ही नहीं है और इसीिलए दोनों ने अपनी अपनी अलग अलग अँग्रेजी
मान ली।
3. अँग्रेजी नहीं होगी तो िवज्ञान और तकनीक की पढ़ाई नहीं हो सकती:: दुिनया में 2 देश इसका
उदाहरण हैं की िबना अँमेजी के भी िवज्ञान और तकनीक की पढ़ाई होटी है- जापान और फ़्रांस ।
पूरे जापान में इंजीन्यिरंग, मेिडकल के जीतने भी कॉलेज और िवश्विवद्यालय हैं सबमें पढ़ाई
"JAPANESE" में होती है, इसी तरह फ़्रांस में बचपन से लेकर उच्चिशक्षा तक सब फ्रेंच में पढ़ाया
जाता है।हमसे छोटे छोटे, हमारे शहरों िजतने देशों में हर साल नोबल िवजेता पैदा होते हैं लेिकन
इतनेबड़े भारत में नहीं क्यूंकी हम िवदेशी भाषा में काम करते हैं और िवदेशी भाषा में कोई भी
मौिलक काम नहीं िकया जा सकता सिर्फ  रटा जा सकता है। ये अग्रेजी का ही पिरणाम है की
हमारे देश में नोबल पुरःकार िवजेता पैदा नहींहोते हैं क्यूंकी नोबल पुरःकार के िलए मौिलक
काम करना पड़ता है और कोई भी मौिलक काम कभी भी िवदेशी भाषा में नहीं िकया जा सकता
है। नोबल पुरःकार के िलए P.hd, B.Tech, M.Tech की जरूरत नहीं होती है। उदाहरण: न्यूटन
कक्षा 9 में फ़ेल हो गया था, आइस्टीन कक्षा 10 के आगे पढे ही नही और E=hv बतानेवाला मैक्स
प्लांक कभी ःकूल गया ही नहीं। ऐसी ही शेक्सिपयर, तुलसीदास, महिषर् वेदव्यास आदि  के पास
कोई डिग्री नहीं थी, इनहोने सिर्फ  अपनी मातृभाषा में काम िकया।जब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी
माध्यम से हटकर अपनी मातृभाषा  में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेजियत  से हमारा रिश्ता
टूटेगा। अंमेजी पढ़ायें इसमें कोई बुरे नहीं लेिकन िहंदी या माऽभाषा की कीमत पर नहीं| िकसी भी
संस्कृति  का पुट उसके सािहत्य में होता है और सािहत्य िबना भाषा के नहीं पढ़ा जा सकता|
सोिचये यदि  आज के बालकों को िहंदी का ज्ञान ही नहीं होगा तो वे कैसे रामायण, महाभारत और
गीता पढ़ सकें गे िजसका ज्ञान प्राप्त  करने के िलए हजारों अंग्रेज ऋिषकेश, वाराणसी, वृन्दावन में
पड़े रहते हैं और बड़ी लगन से िहंदी एवं संःकृत का ज्ञान प्राप्त  करतें हैं |क्या आप जानते हैं
जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्यूंकी जापान के लोगों में अपनी मातृभाषा
से िजतना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है। जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर
राष्ट्रीयता  की भावना भरी जाती है।जो लोग अपनी मातृभाषा से प्यार नहीं करते वो अपने देश से
प्यार नहीं करते सिर्फ झूठा िदखावा करते हैं। दुिनया भर के वैज्ञािनकों का मानना है की दुिनया
में कम्प्युटर के िलए सबसेअच्छी भाषा 'संस्कृत  है। सबसे ज्यादा संस्कृत  पर शोध इस समय
जर्मनी  और अमेिरका में चल रहा है। नासा ने 'िमशन संस्कृत' शुरू िकया है और अमेिरका में बच्चों
के पाठ्यबम में संस्कृत  को शािमल िकया गया है। सोिचए अगर अँग्रेजी अच्छी भाषा होती तो ये
अँग्रेजी को क्यूँ छोड़ते और हम अंग्रेजियत  की गुलामी में घुसे हुए है। कोई भी बड़े से बड़ा तीस
मार खाँ अँग्रेजी बोलतेसमय सबसे पहले उसको अपनी मातृभाषा  में सोचता है और िफर उसको
िदमाग में Translate करता है िफर दोगुनी मेहनत करके अँग्रेजी बोलता है। हर व्यिक्त अपने जीवन
के अत्यंत िनजी क्षणों में मातृभाषा ही बोलता है। जैसे: जब कोई बहुत गुःसा होता है तो गाली
हमेशा मातृभाषा में ही देता हैं।िकसी भी व्यिक्त िक अपनी पहचान ३ बातो से होती है, उसकी
भाषा, उसका भोजन और उसका भेष (पहनावा). अगर ये तीन बात नहीं हों अपनी संस्कृति  की
तो सोिचये अपना पिरचय भी कैसे देंगे िकसी को ?

Tuesday, September 25, 2012

malls को जबरदस्ती भारत पर थोपा जा रहा है :


अमेरिकन और यूरोपियन अर्थव्यवस्था में, क्योंकि हर वस्तु हर स्थान पर उपलब्ध नहीं होती इसीलिए वो हर स्थान पे, जहां से भी जो कुछ मिले वो सब इकट्ठा कर के, Centralized करके एक स्थान पर रखते है ताकि लोग आ के खरीद कर ले जा सके और अपनी जिन्दगी चला स
 के । इसी के लिए उन देशों ने shopping malls बनाये । भारत के दुकान और यूरोप के shopping malls में ज़मीन - असमान का अंतर है । उनके malls में गाड़ी से ले कर सुई की धागा भी मिलेगा क्योंकि यदि न मिले तो उनकी जिन्दगी नहीं चलेगी । तो उन देशो के shopping malls उनके मजबूरीयों की उपज है ।
 centralized malls रखने के लिए उनके देशो में बड़ी कंपनियों का जरूरत है और बड़ी कंपनियों के लिए बड़ी पूंजी की जरुरत है । एक mall खोलने में 2 से 50 लाख डोलर (1 से 25 करोड़ रुपये) लगते है जो सिर्फ बड़ी कंपनियों के पास हैं ...जैसे wall -mart । wall -mart के एक साल का टोटल सेल भारत सरकार के बजट से दो गुणा अधिक है । भारत का एक साल का बजट 5.5 लाख करोड़ है और wall -mart का एक साल का सेल 11 लाख करोड़ ।
 भारत देश की विशेषता है की यहाँ सब कुछ सभी स्थानों पे उपलब्ध होता है, और जब सब कुछ सभी स्थानों पे उपलब्ध है तो भारत में decentralization है । यूरोप अमेरिका में ऐसा नहीं होता अतः वहां centralization है I समय-समय पर विदेशी अक्रान्ताओ ने भारत के उत्तम decentralized व्यवस्था को तोड़ने का प्रयास किया लेकिन 600 साल में भी कोई सफल नहीं हुआ परन्तु अब यही कुप्रयास भारत में डॉ मनमोहन सिंह कर रहे हैं ।
 भारत की सरकार भारत की अर्थव्यवस्था को ऐसे स्थान पर ले जा के खड़ा करना चाहती है जहाँ यूरोप और अमेरिका मज़बूरी में खड़ा है । उनकी मजबूरी को हमारी सरकार और जनता समृद्धि एवं विकास का प्रतीक मान रही है । परन्तु इससे भारत की बेरोजगारी और बढ़ेगी । यानी malls जितने रोजगार खड़े करेंगे उससे अधिक को बेरोजगार कर देंगे । बड़ी कंपनिया आने से monopoly बढता है, competition नही बढता ।
http://www.youtube.com/watch?v=H-Z4QO2P5b8

Monday, September 24, 2012

क्या आप जानते हैं ?? "अशोक चिन्ह" को बाबा साहिब अंबेडकर ने क्यों अपनाया था ?


क्या आप जानते हैं ??
"अशोक चिन्ह" को बाबा साहिब अंबेडकर ने क्यों अपनाया था ?

शायद आजादी के इतने साल बाद भी किसी ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया। इसका कारण सिर्फ इतना था कि आजादी के बाद बाबा साहिब अंबेडकर का सिर्फ एक सपना आरक्षण भी जो १० साल में पूरा होना था अब तक नहीं कर पाए, बस उसको वोट बेंक का आधार बनाकर रख दिया।
अशोक चिन्ह लेकर वे अशोक की तरह का शासन देने का सपना पाले हुए थे, जिसको हमारे नेताओ ने पूरा करने की पहल तक नहीं की।

१. अशोक के शासन की तरह से राज्य की सड़कों के दोनों ओर फलदार पेड़ लगाये जाए (पर वृक्षारोपण में बेकार पेड़ लगाये गए जिनका प्रयोग इमारती लकड़ी में भी नहीं होता और
ना किसी प्रकार के पशुओं के चारे में इस्तेमाल होता क्यों ?)
२. अशोक ने अपने राज्य में जगह जगह पर रुकने के सराय बनवाई थी। (और हमारी सरकारों ने उस ओर क्या ध्यान दिया ? सभी को मालूम है कि सरकारी गेस्ट हॉउस किस के लिए हैं और वहां पर क्या होता है ?)
३. अशोक के राज्य में सभी कत्लगाहों को बंद कर दिया था। ( क्योंकि उसके स्थान पर पूर्ति फलो से हो जाती थी, ये तो मुगलों के आने बाद आरम्भ हुए थे जिसको ब्रिटिश के आने बाद भी चालू रखा गया था और आज भी चालू है जिसे बाबा साहिब बंद करना चाहते थे।)
४. अशोक के राज्य में जगह जगह पर शुद्ध पानी के प्याऊ लगवाये गए थे यहाँ तक प्रत्येक गाव में कुएँ खुदवाए गए थे। (आजादी के बाद कुएँ सिर्फ कागजो पर खोदे गए थे) क्यों कुछ गलत है क्या ?

अब अशोक चिन्ह राष्ट्रीय प्रतीक रखकर भारत सरकार ये काम ना करके क्या अशोक चिन्ह का अपमान नहीं कर रही है ? क्या इस चिन्ह को रखने का अधिकार है ? क्या ये हमारा अपमान नहीं है क्या ? क्या ये इस देश के संविधान के निर्माता का जो उन्होंने चिन्ह को अपनाया है उसका अपमान नहीं है ?
यह आप सबको फैसला करना है कि गलती अगर होती है तो उसका सुधार भी होता है, पर कब जब समय निकल जाये तब .....!!

[चाणक्य शर्मा]

जय हिन्द, जय भारत !
वन्दे मातरम्



विदेशी कंपनी Nestle (नैस्ले) से सामान खरीदना बंद करें

दोस्तों याद रखना क्रांतिकारी मंगलपांडे को.......जिसने आजादी की पहली गोली गौ माता की रक्षा के लिए चलाई थी और अंग्रेज़ मेजर हयूसन को उड़ा दिया था और फिर उनको फांसी हुई। 

हमारे क्रांतिवीर गौ माता के रक्षा के लिए फांसी पर चढ़े है !!

और आप गौ माता की रक्षा के लिए इस विदेशी कंपनी Nestle (नैस्ले) से सामान खरीदना बंद नहीं कर सकते ??

याद रखो ये वही विदेशी कंपनी Nestle है, जो अपनी चाकलेट Kitkat में गाय के बछड़े के मांस का रस मिलाती  है। 






देश कैसे खुशहाल हो सकेगा


एक बार एक हंस और एक हंसिनी जंगल में घूम रहे थे बातों बातों में समय का पता नहीं चला शाम हो गयीवो अपने घर का रास्ता भूल गए और चलते-चलते एक सुनसान जगह पर एक पेड़ के नीचे जाकर रुक गए . हंसिनी बोली मैं बहुत थक गयी हूँ चलो रात यहीं बिताते हैं सुबह होते ही चल पड़ेंगे. हंस बोला ये बहुत सुनसान और वीरान जगह लगती है (—-”यहाँ कोई उल्लू भी नहीं रहता है”—–) चलो कोई और जगह देखते हैं . उसी पेड़ पर बैठा एक उल्लू हंस और हंसिनी बातें सुन रहा था वो बोला आप लोग घबराएँ नहीं मैं भी यहीं रहता हूँ डरने की कोई बात नहीं है आप सुबह होते ही चले जाईयेगा . हंस और हंसिनी उल्लू की बात मानकर वहीँ ठहर गए .   सुबह हुई हंस और हंसिनी चलने लगे तो उल्लू ने उन्हें रोक लिया और हंस से बोला तू हंसिनी को लेकर नहीं जा सकता ये मेरी पत्नी है.

यू.पी. में शिक्षकों की भर्ती का आवेदन अगले माह


 जागरण ब्यूरो, लखनऊ : बेसिक शिक्षा परिषद के संचालित प्राथमिक स्कूलों में 85,556 शिक्षकों की भर्ती के लिए अगले माह विज्ञापन प्रकाशित किए जाएंगे। इनमें से 72,825 पद पर अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी)/केंद्रीय अध्यापक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) उत्तीर्ण बीएड डिग्रीधारक की नियुक्ति की जाएगी। जिन्हें चयन के बाद छह माह का विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। वहीं 9820 पदों पर टीईटी/सीटीईटी उत्तीर्ण उन अभ्यर्थियों का चयन किया जाएगा जो बीटीसी 2004, विशिष्ट बीटीसी 2004-05, 2007 व 2008 व दो वर्षीय बीटीसी उर्दू प्रवीणताधारी प्रशिक्षण पूरा कर चुके हैं। इनके अलावा 2911 पदों पर 1997 से पहले मुअल्लिम-ए-उर्दू या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) से डिप्लोमा इन उर्दू टीचिंग की उपाधि हासिल करने वाले अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी जाएगी। मुअल्लिम-ए-उर्दू उपाधिधारकों और एमएयू से डिप्लोमा इन उर्दू टीचिंग की उपाधि हासिल करने वालों को टीईटी से छूट देने का मामला शासन स्तर पर विचाराधीन है। शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पर चर्चा करने के लिए शनिवार को प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा सुनील कुमार की अध्यक्षता में शासन स्तर पर बैठक हुई। बैठक में शिक्षकों की भर्ती के लिए आठ अक्टूबर को विज्ञापन प्रकाशित करने की संभावित तिथि तय की गई। अभ्यर्थियों से ऑनलाइन आवेदन प्राप्त करने की अंतिम तिथि 10 नवंबर निर्धारित की गई है। ऑनलाइन आवेदन की अंतिम तिथि बीतने के बाद उर्दू शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति के लिए निबंध की लिखित परीक्षा भी आयोजित होगी। 16 नवंबर को नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआइसी) जिलों में चयनित अभ्यर्थियों की मेरिट सूची प्रकाशित कर देगा। 23 नवंबर से बीटीसी 2004, विशिष्ट बीटीसी 2004-05, 2007, 2008 व दो वर्षीय बीटीसी उर्दू प्रवीणताधारी प्रशिक्षण पूरा कर चुके अभ्यर्थियों तथा मुअल्लिम-ए-उर्दू या एएमयू से डिप्लोमा इन उर्दू टीचिंग की उपाधि हासिल करने वाले अभ्यर्थियों की काउन्सिलिंग शुरू हो जाएगी। वहीं शिक्षकों के 72,825 पदों पर चयनित बीएड डिग्रीधारकों की काउन्सिलिंग तीन दिसंबर से शुरू होगी।

Saturday, September 22, 2012

*अंगेजी कानूनों के २ जबरदस्त पहलू जो आज भी बहुत कारगर हैं जनता को चुप करने के लिए,


    *अंगेजी कानूनों के २ जबरदस्त पहलू जो आज भी बहुत कारगर हैं जनता को चुप करने
    के लिए, ये फंडे अंग्रेजो ने आयरलैंड में अजमा लिया था .*

    भारत के लगभग सभी कानून हुबहू वाही हैं जो अंग्रेजो ने सबसे पहले आयरलैंड को
    गुलाम बनाने के लिए बनाये थे और उनका बहुत तगड़ा परिणाम मिला था. अंग्रेजी
    कानून के दो मुख्या सिद्धांत हुआ करते थे:

    १)कानून को इस तरह बनाया जाये की जनता आम जीवन में रोज इसका उल्लंघन करने के
    लिए बाध्य हो जाये.

    २)कानून का बार बार उल्लंघन करके जनता में इतना अपराध बोध हो जाये की वह
    हुकूमत करने वालो के बड़े से बड़े अपराध की तरफ भी उंगली न उठा पाए.

    आयरलैंड में आजमाए गए इस व्यवस्था की वजह से अंग्रेजो उन्ही कानूनों को बिना
    किसी परिवर्तन के भारत में पूरी तरह लागू कर दिया था और वे भारत को इन्ही
    कानूनों के बल पर बड़े मजे से २५० सालो तक बेख़ौफ़ होकर राज किया. उन्होंने हर
    जरुरी काम के लिए परमिट और लाइसेंस का प्राविधान कर रखा था जिससे जब चाहे जनता
    को फंसाया जा सके.

    सबसे मजे की बात है की इन्ही कानूनों को भारत में स्वतंत्रता के बाद भी बिना
    किसी फेर बदल के नेहरू ने “ट्रांसफर ऑफ पॉवर अग्रीमेंट” के तहत लागू कर दिया
    जो आज भी चल रहे है. भारत के वर्तमान कानून में ऐसे ऐसे प्राविधान की हम लोग
    उनका उल्लंघन करते हुए अपराधबोध से ग्रस्त हो चुके है और इसे वजह से नेताओ के
    बड़े से बड़े अपराध पर भी उंगली नहीं उठा पाते है. अंगेजो ने भारतीयों को छोटे
    से छोटे अपराध के लिए जेलों में डाला और स्वयं बड़े अपराध करके बचते रहे. आज
    भी वाही हो रहा है. अंग्रेजो ने हर अपराध की एक ही सजा बना रखी थे जिसमे सबसे
    पहले जनता ही उल्लंघन करके फंस जाती थी. इसमे अंग्रेजो ने काफी दिमाग खर्च
    किया था. जैसे चोरी छोटी या बड़ी, सब बराबर है.... और जनता उसे भुगत रही है.

    हमें सबसे पहले अपराध का श्रेणीकरण करके उसका दंड निर्धारित करना होगा. १०००
    रुपये और अरबो रुपये के भ्रष्टाचार में अंतर करके दंड बनाना होगा अदि....