हमारे विज्ञापन क्या सिखाते
हैं....... ..?????
हम किसी ब्राडं की बनियान पहिनतेहैं
तो लड़की सेट होती है !
हम किसी ब्राडं की चड्डी पहिनते हैं
तो लड़की सेट होती है !
हम किसी ब्राडं के जूते पहिने
तो लड़की सेट होती है !
हम किसी ब्राडं का जेल बालों में लगायें
तो लड़की सेट होती है !
हम किसी ब्राडं का सूट पहिने
तो लड़की सेट होती है !
हम किसी ब्राडं की ब्लेड से शेव बनायें
तो लड़की सेट होती है !
हम किसी ब्राडं की कार चलायें
तो लड़की सेट होती है !
हम किसी ब्राडं का चश्मा पहिने
तो लड़की सेट होती है !
हम किसी ब्राडं की काफी पियें
तो लड़की सेट होती है !
हम किसी खास ब्राडं का मोबाइलरखें
तो लड़की सेट होती है !
हम किसी खास ब्राडं का परफयूम/
डिओडोरेंट लगायें तो लड़की सेट होती है !
हम किसी खास ब्राडं की सिगरेटपिये
तो भी वही बात लड़की सेट होती है!
हम किसी खास ब्राडं की शराब पियें
तो वही बात लड़की सेट होती है!
हम किसी खास ब्राडं टूथपेस्ट से ब्रश
करते हैं तो भी लड़की सेट होती है !
लगभग* हम हर अपना कार्य सिर्फ
लड़की को सेट करने के लिये करते हैं और अब
तो हद ही हो गई.......! !!!
“दो प्राथमिक क़क्षा के छात्र बाइक में
प्रतिस्पर् धा करते हैं और एक
अपनी हमउम्र लड़की को सेट कर बाइक
पर बैठा कर ले जाता है”
हम क्या यह कभी पाते हैं कि एक लड़के ने
कोई भी इस तरह का काम
किया तो किसी लड़की ने उसे भाई
बनाया या किसी लड़के ने
किसी लड़की को मां, बहिन,
मौसी या किसी भी अन्य इस तरह के
किसी पाक रिश्ते में पाया !
हर वक्त हर समय हम लड़की को एक
ही नज़र से देखते हैं और वो है सिर्फ भोग
की द्र्ष्टी !
और यही बात हर उस विज्ञापन में
होती है जिसमें कोई लड़की कुछ
भी करती है तो उससे लड़्का सेट होता है,
और यही फिल्मों में भी होता है और
हीरो की बहिन अक्सर बलात्कार करने के
काम आती है!
क्या हमारी सोच, हमारा हर एक्ट सिर्फ
इसलिये है कि हम एक दूसरे को भोग
की दृ्ष्टि से देखें ! हमारी इस विकृत
मानसिकता से हम कब बाहर
आयेंगें... .????
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