शहीद अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान के जीवन की कुछ प्रेरणादायक घटनाये
एक बार शहीद अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान किसी कारन से बेहोश हो गए तो बेहोशी की हालत में राम राम पुकारने लगे. उनके घर वाले अचरज में आकार सोचने लगे की एक मुस्लमान होते हुए भी वे राम राम क्यूँ पुकार रहे हैं. पास खड़ा एक मित्र इस रहस्य को समझ गया और राम प्रसाद बिस्मिल जी को बुला लाया जिनके आने से अशफ़ाक़ुल्ला जी शांत हो गए. ऐसे थीदोनों की मित्रताजो मत मतान्तर के आपसी भेदभाव से कहीं ऊपर उठ कर थी.
एक बार कानपूर आर्यसमाज में बिस्मिल जी और अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान जी कुछ मंत्रणा कर रहे थे की कुछ मुस्लिम दंगाइयों ने वहांहमला कर दिया. अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान जी ने अपनी पिस्तोल निकल कर उनकी तरफ करके चेतावनी देकर कहाकी रूक जाओ यह आर्यसमाज मेरा घरहैं अगर इसकी एक ईट को भी नुकसान पंहुचा तो आज तुम में से कोई जिन्दा नहीं बचेगा.दंगाई डर कर वापिस भाग गए.
जब जेल में अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान और बिस्मिल जी बंद थे तो एक मुस्लिम थानेदार ने अशफ़ाक़ुल्ला जी को इस्लाम की दुहाई देते हुए कहाँ की तुम एक मुस्लमान होते हुए भी हिन्दुओं का साथ दे रहे हो तो अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान जी ने कहाँ की मेरे लिए एक हिन्दू राष्ट्र अंग्रेजी हुकूमत से कहीं ज्यादा अच्छी हैं.वह मुस्लिम थानेदार मायूस होकर चला गया पर इस्लाम की दुहाई देकर उन्हें सरकारी गवाह नहीं बना सका.
धन्य हैं वह माँ जिनकी कोख से अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान जैसे शहीद पैदा हुए जिनके लिए मत से ऊपर उनका देश था. आज केमुसलमानों के लिएअशफ़ाक़ुल्ला ख़ान सबसे आदरणीयएवं अनुसरणीय मुसलमान हैं क्यूंकि उन्होंने देश को अंग्रेजों से आजाद करवाने में अपनी शक्ति लगाई नाकि पाकिस्तान को बनाने में.
अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान की शायरी उनके सच्चे मुस्लमान होने कासबूत हैं जिसमे उनकी इच्छा जन्नतकी नहीं अपितु बार बार जन्म लेकर इस देश की सेवा करने की हैं.
“जाऊँगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा, जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा?
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं “फिरआऊँगा,फिर आऊँगा,फिर आकर के ऐ भारत माँ तुझको आज़ाद कराऊँगा”.
जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बातनहीं कर पाता हूँ;
हाँ खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूँगा, और जन्नत के बदले उससे यक पुनर्जन्म ही माँगूंगा.”
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