पेट्रोल की राजनीति और जनता पर महँगाई की मार से केवल देश ही नही विदेश में रहने वाले भारतीयभी कम से कम कांग्रेस सरकार से नाराज़ हैं और मनमोहन सिंह की कार्य कुशलता पर शक करने लगे हैं. सिर्फ़ कहने को मनमोहन जी एक कुशल अर्थ शास्त्री हैं मगरदेश ने आज तक बस उनकी आर्थिक ग़लतियाँ ही देखीहैं. अब पेट्रोल और दूसरे पेत्रोलिउम पदार्थों को ही ले लें जिसको भारत में कम से कम सारी महँगाई की जड़ माना जाता है, उस पर हीं इनका अर्थ शस्त्रा ढीला हो रहा है. इनको समझ ही नही आता की करें तो क्या करे. भारत मे जो पेट्रोल का दाम है वो तो अंतरराष्ट् रीय बाज़ार के दाम से दो गुना है फिर भी तेल कंपनी के घाटे के नाम पर जनता की जेब में हाथ दल कर उसका रोटी पानी बंद करवाने की सरकार की मनमानी को कब तक बर्दाश्त कर सकते. मनमोहन सिंह एक अर्थ में बड़े कुशल अर्थ शास्त्री बन गये जो इनके राज में कम से कम आधा भारत अर्थ शस्त्र तो सीख ही गया और हर कोई तेल और दूसरे पदार्थों के दामों का पूरा हिसाब किताब सीख गया. अब मुझे ही देख लें हम ने कभी अर्थ शस्त्रा ठीकसे पढ़ा नही है मगर आज पेट्रोल की कॅल्क्युले शन करने बैठ गया. आप भी देखें आज की तारीख में कक्चा तेल अंतरराष्ट् रीय बाज़ार में करीब 88 डॉलर पर बॅरल के हिसाब से बिक रहा है और वर्ष की समाप्ति तक एक अनुमान है की ये 100 डॉलर तक जा सकता है. हम 100 डॉलर का हिज़ हिसाब पकड़ लेते हैं. 100 डॉलर मतलब करीब 4800 रुपया और1 बॅरल मतलब करीब 160 लीटर कच्चा तेल. अब हिसाब लगा लें 30 रुपया 1 लीटर मतलब साफ है की बसे दाम होना चाहिए 30 रुपया जो की आज की डटे में 31 रुपया कुछ पैसा है. अब इसमे जोड़ें विदेशों से भारत लाने पर खर्चा करीब 6 रुपया तो हो गया 36रुपया आगे इसमें आप रेफाइनरी का खर्चा जोड़ दें 5 रुपया प्रति लाइटतो हो गया 41 रुपयाअब इसमे एजेंट का कोमिशन 1 रुपया प्रति लीटर तो कुल हो गया 42 रुपया अगर सरकार चाहे तो 42 रुपया प्रति लीटर पर पेट्रोल आम जनता को मिल सकता है मगर ये देश हित में ठीक नही होगा सो देश के खर्चे कहाँ से आएँगे तो आप प्रति लीटर अगर 8 रुपया जोड़ दें सरकार का टॅक्स तो भी 50 रुपया लीटर से अधिक तो नही होना चहिय मगर सरकार ने जो सारे टॅक्सस लगा रखे हैं वो 25-30 रुपया प्रति लीटर हैं और यहीं से पेट्रोल महँगा होजाता है. और आम जन को निचोड़ कर उसका पूरा रस निकल लेता है.
साभार : कवि प्रभात कुमार भारद्वाज (समाज सेवक)
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