Saturday, October 13, 2012

"लक्ष्य":: सफलता पाने कि एक दृढ़ इच्छा ! - ममता शर्मा (A National Award Winning Article)




"लक्ष्य" -
 कितना छोटा सा शब्द है पर पाने के लिए तो आपकी जान निकाल देता है| ना जाने हम जिंदगी में हम कितनी बार मरते हैं , शायद रोज मरते हैं इसे बेहतर बनाने के लिए| और पंख तो हम सब के पास हैं और शायद उड़ान भी, पर उड़ान भरने को हम सब शायद तैयार नहीं | उडान भरना अपने आप में सुखद अनुभव है, उड़ान भरने से मेरा आश्य सफलता के लिए मेहनत करने से है, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने कि चेष्टा से है | आसमान में उड़ान भरना सब चाहते हैं पर उड़ान कब भरनी है और कैसे भरनी है ये जानना बहुत कठिन होता है | खुद में डूबना पड़ता है, खुद में खोने पड़ता है, खुद से लड़ना पड़ता है , आलोचनाओं को सहना पड़ता है और आप फिर भी डटे रहे तो लक्ष्य भी आपका और सफलता भी आपकी | कोई नहीं जानता कि आपने कैसे लड़ा और कैसे जीता, कितने सालों कि मेहनत के बाद एक सूरज-सा दिखता है और वो रोशनी सिर्फ आपको सुकून देगी|
 कभी आईने में खुद का अक्श भी धुंधला सा पड़ जाता है और आप सोचते हैं कि क्या सच में इतना दूर निकल आयें हैं अपने लक्ष्य को पाने के लिए, क्या सपनो में हम इतना खो गए कि सोने का भी वक्त नहीं रहा ? नहीं शायद वक्त सब कुछ करने का है, करने का था, पर आप विकल्प के तौर पर सिर्फ और सिर्फ केंद्रित होना जानते हैं, या यूँ कहें कि आप विकल्प लेना ही नहीं चाहते | आपके पास सिर्फ और सिर्फ एक लक्ष्य होता है पाने के लिए भी और खोने के लिए भी| और आप उस पर इतना केंद्रित हो जाते हैं कि आपके पास ना सोने का वक्त होता है और न जागते हुए होश में रहने का| आखिर जिंदगी भी तो यही है जाने क्या क्या खोना पड़ता है| लक्ष्य तब तक महत्वपूर्ण नहीं हो सकता जब तक कि आप खुद नहीं चाहते के आप जिंदगी में कुछ बेहतर करें, कुछ कर गुजरें जीवन के इन झमेलों से निकल कर |
 ना जाने कितनी बार हम आधी रात को उठ जाते हैं और फिर सोचते हैं कि क्या ये मेरे सपनो को खोने का डर है या फिर मेरे लक्ष्य को प्राप्त करने कि इतनी चेष्ठा जो हमे चैन से सोने तक नहीं देती | या फिर कोई घबराहट है अपने ही सपनो को खो देने की | कई बार तो पंख इस कदर बंद हो जाते हैं जैसे किसी ने जकड रखे हों अपने हाथों से | ये हाथ शायद विचार हैं और जब तक हम विचारों से बंधे हैं, अपने विचारों को अभिव्यक्त नहीं कर पाते तब तक हम ऐसे ही पंछी हैं जो नहीं जानता कि उड़ना कैसे है |

 एक छोटा सा परिंदा भी जानता है कि ‘पर’ कहाँ मारने हैं | वह उड़ना सीखता है शायद इस डर से कि कहीं उड़ नहीं पाया तो शायद जमीन पर उसके पंख यूँ ही रोज कैद होते रहेंगे | एक डर से ही सही पर पता है कि मुझे उड़ना है, एक खुले आसमान में साँस लेनी है | और कोई उड़ान भी नहीं और आप उड़ना ना चाहें , कोई मुझे सिखा भी नहीं सकता कि मुझे कहाँ उड़ना है, पर फिर भी हम सीखते हैं , जानते हैं और अनुभव करते हैं कि हमें कहाँ तक जाना है | कोई आपको सिखा नहीं सकता कि आपका लक्ष्य क्या है, कैसे आपको पाना है, कैसे प्राप्त करना है, आपको खुद जानना है , खुद पाना है| खुद सीखना है, और खुद को ही खोना है|कोई नहीं सिखा सकता कि आपको आसमान में कितना ऊँचे उड़ना है, जहाँ तक आपकी उड़ान है आप उड़िए, जहाँ तक आपके पंख रूपी विचार हैं, कल्पनाएं हैं, सपने हैं, वहाँ तक सोचिये | पर जब तक आप सोचना ही नहीं चाहते, उड़ना ही नहीं चाहते शायद आप गंभीर भी नहीं होना चाहते अपने लक्ष्य को लेकर,अपने सपनो को लेकर| माँ-बाप के पैसे पे देखे सपने सस्ते हैं और आसान भी, पर जब आप खुद लड़ते हैं अपने सपनो के लिए , खुद चलते हैं धूप में , तो आपसे ज्यादा किसी को इंतज़ार नहीं होता कि कब छांया दिखे और कब आपको सुकून के पल मिलें |शायद उस धूप से निकल छांया में बैठने कि चेष्ठा कि है जो बार-बार हमें प्रेरित करती है कि हम उडें, हम जियें, हम लडें और इस कदर लडें, उडें तो ऐसे कि हर तरफ सन्नाटा भी हो तो भी आपके अंदर जो सदियों से सोया पड़ा है, जो भाव मर चुके हैं लड़ते-लड़ते वो ऐसे जागें कि आपका खुद का मन करे ताली बजाने का , आप खुद में एक गर्व अनुभव करें कि हाँ मैंने लड़ा है, मैंने सपनो को लेकर लड़ा है और इस कदर लड़ा है के मेरी जिंदगी कि शाम कब हो चली मुझे पता ही नहीं चला क्योंकि मैं इतना बेखबर रहा अपने लक्ष्य को पाने में कि मुझे वक्त ही नहीं मिला कि मैं किसी कि आलोचना करू, किसी को बुरा बोलू या मैं लोगो के साथ खड़ी हो खुद को बता सकूँ कि मुझ में कितनी काबिलियत है, जब आप प्रयत्न करते हैं तो आपको जवाब देने कि जरुरत नहीं होती और हर कोई जवाब को समझ भी नहीं सकता , सिर्फ आप जानते हैं कि आपने कैसे जीया हैं अपने लक्ष्य को |
 जब तक हमारे पास पहचान ही नहीं तो जिंदगी कैसे हो सकती है | हमारा लक्ष्य और सपने ही हैं जो पहचान दिलाते हैं और उनके ऊपर किये गए हमारे रोज के प्रयत्न | और अगर किसी दिन पंख मिल भी जाएँ तो वो उडते हैं , खुले आसमान कि तरफ उडते हैं और लौट कर उसी आसमान की तरफ आते हैं, जहाँ से पहली उड़ान भरी थी | जब सपने देखने कि लत पड़ जाती है तो इस कदर पड़ जाती है कि सपने देखे बिना चैन नहीं अआता और जब आदत खुली आँखों से सपने देखने कि पड़ जाये तो खाली बैठने में भी चैन नहीं आता| लगता है कुछ अधूरा सा है, कुछ गम सा है हमारे चुप-चाप से आशियाने में | एक आशियाना जो आपने खुद बनाया है, एक सपना जो आपने खुद देखा है, एक लक्ष्य जिसे पाने कि चाहत सिर्फ और सिर्फ मेरी है | हर किसी के लिए ये समझना मुश्किल है कि सपने कैसे अपनों पर भी खोए हैं, कैसे अपने सपनो को टूटते भी देखा है , पर सपने टूट भी जाएँ, लक्ष्य कभी पीछे नहीं छूटता |
 या मैं यूँ कहूँ कि लक्ष्य को पाने कि चेष्ठा ही है जो जिंदा रखे हुए है एक इन्शान को , कितने ही सपने टूट जायें , कितनी कि असफलताएं हाथ लगें , पर जब शुरुआत हो जाती है खुद को पाने की, खुद में खो जाने कि, लक्ष्य को पाना आसान लगने लगता है| बहुत भागते हैं एक शेर कि तरह , बहुत दौड़ते हैं बच जाने के लिए जिंदगी के झमेलों से और इतना भाते हैं जैसे कोई हिरन भागता है अपनी जान बचाने को , और इधर-उधर भी भागते हैं तितली कि तरह, पर चैन नहीं आता | कुछ गम भी होते हैं अपने खुद के छोटे से शहर में | चाहे कितना ही सुख मिले, आराम मिले, माँ-बाप के पैसो पे सपने देखना आसान है, और अपने दम पर सपनो को पाने कि चाहत, लक्ष्य तक पहुँच जाने कि चाहत खुद में एक अलग ही अनुभव है| सपने और लक्ष्य दो अलग चीजें हैं|
 लोग आलोचनाएं करते हैं, ऊँगली उठाते हैं और हँसते भी हैं कि जिस लक्ष्य के सपने आप देख रहें वो इस छोटी सी दुनिया में सिर्फ एक शब्द हैं |हाँ बिलकुल शब्द ही तो हैं, शब्द जिनका अर्थ सिर्फ लक्ष्य प्राप्त करने वाले जानता है | पर सिर्फ लड़ने वाला जानता है कि उसने लड़ाई कैसे लड़ी है, और भीड़ में जीता कैसे जाता है | सिर्फ वही जानता है कि पसीना कैसे लहू सा बहाया है, कैसे अकेले कि चला है बीहड़ और सुनसान जंगलों में और मुलाकात भी तो वहीँ हुई थी सपनो से, अपने अस्तित्व से, अपने लक्ष्य से|कुछ खोखली दीवारें मिलती हैं और निकल जाना चाहते हैं हम उन खोखली दीवारों से, जहाँ दुनिया नहीं जानती कि उद्देश्य क्या है और कैसे लक्ष्य आदमी के लिए एक साँस कि बीमारी सी लगने लगती है, जहाँ लक्ष्य छूटता दीखता है तो साँस भी टूटने लगती है| पर जीतता वही है और लक्ष्य भी वही प्राप्त करता है जो लड़ता है , तो अगर हारता है तो इस कदर कि उसे सुकून होता है कि उसने केवल खड़े होकर तमाशा नहीं देखा, उसने प्रयत्न किया है और जीता है , और जीतता है तो ऐसे कि वो देखना नहीं चाहता कि एक आदमी कैसे अधूरा ही मरता है जिसे ना जीना आता है ,ना मरना और जिंदगी कि दौड इतनी भी सस्ती नहीं|
 लक्ष्य पाने कि दौड इतनी भी छोटी नहीं के एक दिन में सब कुछ पा लें और खो दें |ये प्रयत्न हैं और रोज किये गए प्रयत्न हैं |रोज हम बढते हैं, केवल शरीर से नहीं विचारों से और जब विचारों में लक्ष्य एक समुंद्र के पानी कि तरह तली में बैठ जाए तो उसे निकालना मुश्किल होता है , और ऊपर से कितना ही पानी बहता रहे , कितनी ही लहरें आती रहें फिर भी आदमी रुकता नहीं, चलता है, उड़ता है, और जीता है , एक अंत-हीन समुंद्र कि तरह|
 मुझे एक कवि कि लिखी पंक्तियाँ अब भी याद हैं, कवि ने कुछ यूँ लिखा है|
 "बगिया बगिया बालक भागे,
 तितली फिर भी हाथ ना आवे ,
 इस पगले को कौन बताये ,
 ढूँढ रहा है जो तू जग में,
 जो तू पाए , मन में ही पाए,
 सपनो से भरे नैना,
 तो नींद है न चैना,
 ऐसी डगर कोई अगर जो अपनाए ,
 हर राह के वो अंत पे रास्ता ही पाए,

 और हासिल भी क्या हुआ है यूँ बैठे रहने से | कोई कारवां कोई मंजिल यूँ ही तो नहीं मिलती और जब तक हम एक ठन्डे खून में पड़ें हैं तब तक कोई सपना पूरा नहीं होता |और मंजिल यूँ ही हाथ नहीं लगती आपको मजबूत बनना पड़ता है, टूटना भी पड़ता है, रुकना भी पड़ता है, असफलता भी देखनी पड़ती है, आलोचनाएं भी सहनी पड़ती हैं पर जीत का मजा भी तभी है जब ये पूरे होश हवाश में मिले और आपको परखने के लिए पूरी जान निकाल दे |अगर आप प्रयत्न ही नहीं करते तो आपका हारना तय है, और अगर आप लड़ते हैं अपने लक्ष्य के लिए तो आप किसी से कम नहीं| एक हिरन बनने से बेहतर है एक बाज बनना जो जानता है कि उसे कहाँ पर नज़र रखनी है और उसका शिकार उसे कब मिलेगा| शिकार मिलेगा ही क्योंकि बाज जानता है कि लक्ष्य पर केन्द्रित कैसे होना है, और जब शिकार (लक्ष्य) हाथ आये तो कैसे अपनी पकड़ मजबूत बनाये रखनी है|
 "कुछ मंजिले मेरी भी हैं इन डूबते सितारों में,
 वक्त के दरिया में कुछ साजिशें अभी बाकी हैं!!

 "सपनों से उठ कर हकीकत में लगी लड़ियाँ क्या होती हैं,
 ये समझा पाओ हमे किसी दिन तो बताना !!! "
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Thursday, October 11, 2012

मोदी जी के जीवन के कुछ ऐतिहासिक पल


सुनिए उन ऐतिहासिक पलों कि कहानी खुद नरेंद्र मोदी जी के मुंह से जब उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया गया -

 ''मित्रों मेरे यहाँ जब मैं गांधीनगर में आया तो उससे पहले मैं दिल्ली में रहता था ,कई वर्षों से गुजरात आया नहीं था ,अचानक गुजरात का कार्य मेरे जिम्मे आ गया ,और मुझे याद है जब मुझे मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया गया तो उस समय अटल जी ने मेरे पास फोन किया मुझे ये बताने के लिए, उन्होंने पूछा कि भई कहाँ हो ,मैंने कहा कि मैं शमशान में हूँ, ये सुनकर वे हंस पड़े और बोले कि यार तुम श्मशान में हो ,मैं तुमसे अब क्या बात करूँ ,मैंने कहा नहीं अटल जी आपने मुझे फोन किया है तो कोई काम होगा आप बताइए ,अटल जी बोले अच्छा ये बताओ कि कितनी बजे लौटोगे और ये तुम शमशान में क्यों हो, मैंने बताया कि ये जो माधवराव सिंधिया जी का निधन हुआ है एक्सीडेंट होने के कारण उसमें उनके साथ एक पत्रकार भी था गोपाल नाम का ,उसकी भी उनके साथ ही मृत्यु हुई है ,तो मैं गोपाल के क्रियाकर्म में आया हूँ क्योंकि माधवराव जी के क्रियाकर्म में तो सब जायेंगे लेकिन गोपाल के क्रियाकर्म में कौन जाएगा,उसके क्रियाकर्म में भी तो कोई होना चाहिए , मैं उस गोपाल के क्रियाकर्म में था कोई और राजनेता नहीं था बस दो-चार उसके पत्रकार मित्र थे ,

 तो उसके बाद रात को मैं अटल जी से मिलने गया वहाँ जाकर पता चला कि मुझे ये गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला हुआ है और कुछ दिनों बाद मुझे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेनी है, तो ये जानने के बाद मैंने दिल्ली से गुजरात में फोन मिलाया अपनी पार्टी के दफ्तर में , मैंने कहा भई ये तुम मुझे बुला तो रहे हो लेकिन मैं रहूँगा कहाँ क्योंकि मेरे पास तो घर नहीं है, तो उन्होंने कहा कि आप चिंता मत कीजिये हम सर्किट हॉउस में आपको एक कमरा बुक करवा देंगे , तो मैंने उनसे कहा कि देखो भैया आप कमरा जरूर बुक करवाइए लेकिन एक बात का ध्यान रहे ,मैं कोई MLA या अभी सरकार का हिस्सा नहीं हूँ इसलिए अगर उस कमरे के किराए का पूरा पैसा राज्य कि सरकार लेती है तो ही कमरा बुक करवाइयेगा, वो अलग बात है कि गुजरात में सरकार मेरी ही पार्टी कि थी लेकिन फिर भी मैंने पूरा चार्ज देकर वो कमरा बुक करवाया और वहीं से जिंदगी कि शुरुआत एक नए मोड़ पे हुई दोस्तों

 खैर कुछ दिनों सर्किट हाउस के उस कमरे में रहा, फिर उसके बाद शपथ-समारोह हुआ ,मुख्यमंत्री बना और फिर उसके कारण एक quarter दे दिया गया रहने के लिए लेकिन जब मैं वहाँ सर्किट हाउस के कमरे में था और अभी मेरा मुख्यमंत्री बनना बाकी था तो ढेरों लोग मुझे मिलने आते थे ,सब कहते थे मोदी जी अब आप आये हो ,चुनाव सिर पे है ,कैसे जीतोगे , कुछ भी करो या ना करो लेकिन बस एक काम जरूर कर दो, कम से कम गाँव में शाम को खाना खाते समय तो बिजली मिले बस इतना कर दो , मित्रों आपको जानके आश्चर्य होगा कि उस समय मेरे गुजरात में शाम को भोजन के समय भी बिजली उपलब्ध नहीं होती थी ,अँधेरा रहता था और लोग मुझे यही कहते थे कि साहब बस इतना कर दो , मित्रों मैं भी गाँव से हूँ और एक गरीब परिवार से हूँ तो मुझे मालुम था कि जब परीक्षा के दिन होते हैं और रात को बिजली चली जाती है तो एक विद्यार्थी को कितनी पीड़ा होती है ,उस पीड़ा को मैंने भुगता हुआ था , तो मैंने तय किया कि मैं कुछ करूँगा और मैं उस पर सोचने लगा लेकिन करीब एक साल तक मैं इस बारे में कुछ कर नहीं पाया क्योंकि उसी साल चुनाव हुए और मैं दौबारा चुनकर आया,

 जब मैं दौबारा चुना गया तो मैंने अपने अफसरों को बुलाया और कहा कि हमें जनता को 24 घंटे बिजली देनी है , उन सारे अफसरों ने और मेरी पूरी सरकार ने मना कर दिया कि गुजरात में 24 घंटे देने के लिए बिजली है ही नहीं और ये सम्भव ही नहीं है , छह महीने तक फाइलें घुमती रही मैं चीखता रहा कि अरे भई कुछ करो लेकिन कुछ नहीं हुआ

 आखिर में मैंने फैसला किया कि अब इस काम को मैं अपने हाथ में लूँगा और मैंने एक ज्योतिग्राम योजना बनाई जिसके जरिये मैंने केवल 1000 दिन के अंदर-२ गुजरात में 24 घंटे 3-Phased Uninterrupted Power Supply उपलब्ध करवाई , मित्रों ये मात्र 1000 दिन में 24 घंटे बिजली देना कैसे सम्भव हुआ ,ये बातें मैं आपको सिर्फ इसलिए बता रहा हूँ कि आपको विश्वास हो जाए कि देश को बदला जा सकता है , वो ही मुलाजिम ,वो ही बिजली कम्पनियां ,वो ही फाइलें ,वो ही दफ्तर ,वो ही सरकारी अफसर सब कुछ वही लेकिन फिर भी स्तिथियाँ बदली जा सकी , और कोई ऐसा नहीं था कि मोदी से पहले बिजली के बटन बंद कर रखे थे और मोदी के कहने से वे बटन चालू कर दिए , इस ज्योतिग्राम योजना को जमीन पर उतारने के लिए मुझे 1000 दिन में बिजली के 23 लाख नए खम्बे डालने पड़े , Can You Imagine केवल 1000 दिनों में बिजली के 23 लाख नए खम्बे डालना......क्या लगता है

 मैंने महाराष्ट्र से पूरा माल उठवा लिया ,मध्य-प्रदेश से उठवा लिया ,राजस्थान से उठवा लिया, उस समय देश में इनका जितना भी जहां भी manufacturing होता था सारा का सारा मैं खरीद कर गुजरात में ले आता था, इन्हीं 1000 दिनों में मैंने बिजली के 53,000 नए Transformers लगवाए गुजरात में , मित्रों आपके महाराष्ट्र के गाँव में अगर कोई Transformer जल जाता होगा तो 3-4 महीनों तक उसे बदला या ठीक नहीं किया जाता होगा, मेरे यहाँ भी यही होता था ,किसान रोता था ,वो बिजली कम्पनियों के दफ्तर में जाकर आरती उतारता था और साथ में प्रसाद भी चढा देता था लेकिन उसके बाद भी 45 दिनों तक Transformer change नहीं होता था ,उसकी फसल बर्बाद हो जाती थी ,उसके सपने चूर-२ हो जाते थे लेकिन परिस्तिथि बदलती नहीं थी मित्रों , ऐसी व्यवस्था के भीतर भी सिर्फ 1000 दिन में मैंने 56,000 नए Transformers लगवाकर दिखाए और इन्हीं 1000 दिनों में 75000 Kms कि बिजली कि तारें बिछवाई ,अब आप सोचिये मित्रों वही मुलाजिम, वही बिजली कम्पनियां ,वही फाइलें ,वही दफ्तर ,वही सरकारी अफसर लेकिन इस सबके बावजूद जब मैं कर सकता हूँ तो आप भी कर सकते हैं दोस्तों ,आप भी कर सकते हैं बस करने का नेक और मजबूत इरादा चाहिए साथियों ''

 - नरेंद्र मोदी

Monday, October 8, 2012

अनमोल व्यख्यान जो आपका जीवन बदल देँगे


पूज्य राजीव दीक्षित जी के अनमोल व्यख्यान जो आपका जीवन बदल देँगे । डाउनलोड करके सुनेँ और दूसरोँ को भी सुनाएँ । भारत बचाओ आन्दोलन
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http://98.130.113.92/Macaulay_Shikshan_Paddhati.mp3
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http://98.130.113.92/Angrejee_Bhasha_Ki_Gulaami.mp3
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http://98.130.113.92/Udharikaran_Aur_Vaishvikaran.mp3
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http://98.130.113.92/Arthvyavastha_Ko_Sudhaarne_Ke_Upaay.mp3

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http://98.130.113.92/Bharat_Ki_Vishwa_Ko_Den.mp3
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http://98.130.113.92/Aetihaasik_Bhoolen.mp3
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http://98.130.113.92/Mansaahaar_Se_Haaniyan.mp3
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http://98.130.113.92/Bharat_Ka_Sanskrutik_Patan.mp3
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http://98.130.113.92/Vigyapano_Ka_Baal_Mann_Par_Prabhav.mp3
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http://98.130.113.92/Elizabeth_Ki_Bharat_Yaatra_1997.mp3
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http://98.130.113.92/Swaasthya_Katha.mp3
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http://98.130.113.92/Bharat_Aur_Europe_Ki_Sanskruti.mp3
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http://98.130.113.92/Mahatma_Gandhi_Ko_Shradhanjali.mp3
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http://98.130.113.92/Ram_Katha_Naye_Sandarbh_Mein.mp3
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http://98.130.113.92/Bharat_Aur_Paschimi_Vigyan_Takniki.mp3
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http://98.130.113.92/Pratibha_Palaayan_Pune_Engg_College.mp3
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http://98.130.113.92/CTBT_Aur_Bharatiya_Asmita.mp3
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www.rajivdixit.com