आज आर्यावर्त मेँ तथाकथित भगवानोँ का एक दौर चल पड़ा है। यह संसार अंधविश्वास और तुच्छ ख्याति- सफलता के पीछे भागने वालोँ से भरा हुआ है।
“यह विश्वगुरू आर्यावर्त का पतन ही है कि आज परमेश्वर की उपासना की अपेक्षा लोग गुरूओँ, पीरोँ और कब्रोँ पर सिर पटकना ज्यादा पसन्द करते हैँ।”
आजकल सर्वत्र साँई बाबा की धूम है, कहीँ साँई चौकी, साँई संध्या और साँई पालकी मेँ मुस्लिम कव्वाल साँई भक्तोँ के साथ साँई जागरण करने मेँ लगे हैँ। मन्दिरोँ मेँ साँई की मूर्ति सनातन काल के देवी देवताओँ के साथ सजी है। मुस्लिम तान्त्रिकोँ ने भी अपने काले इल्म का आधार साँई बाबा को बना रखा है व उनकी सक्रियता सर्वत्र देखी जा सकती है। इन सबके बीच साँई बाबा को कोई विष्णु का ,कोई शिव का तथा कोई दत्तात्रेय का अवतार बतलाता है।
साईँ के जीवनचरित्र की एकमात्र प्रामाणिक उपलब्ध पुस्तक है- “साँईँ सत्चरित्र”॥
इस पुस्तक के अध्ययन से साईँ के जिस पवित्र चरित्र का अनुदर्शन होता है,
क्या आप उसे जानते हैँ?
चाहे चीलम पीने की बात हो, चाहे स्त्रियोँ को अपशब्द कहने की?
चाहे माँसाहार की बात हो, या चाहे धर्मद्रोही, देशद्रोही व इस्लामी कट्टरपन की….
इन सबकी दौड़ मेँ शायद ही कोई साँई से आगे निकल पाये। यकीन नहीँ होता न?
तो आइये चलकर देखते हैँ…
]साँई माँसाहार का प्रयोग करता था व स्वयं जीवहत्या करता था?
प्रमाण:-
(1)मस्जिद मेँ एक बकरा बलि देने के लिए लाया गया। वह अत्यन्त दुर्बल और मरने वाला था। बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 161.
(2)तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैँ स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 162.
(3)फकीरोँ के साथ वो आमिष(मांस) और मछली का सेवन करते थे।
-:अध्याय 5. व 7.
(4)कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल अर्थात् नमकीन पुलाव।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 269.
(5)एक एकादशी के दिन उन्होँने दादा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीद लाने को दिये। दादा पूरे कर्मकाण्डी थे और प्रायः सभी नियमोँ का जीवन मेँ पालन किया करते थे।
-:अध्याय 32. पृष्ठः 270.
(6)ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है? दादा ने योँ ही मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा है। तब बाबा कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखोँ से ही देखा है और न ही जिह्वा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है? थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो। बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मेँ डालकर बोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर देखो”।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 270.
प्रश्न:-
{1}क्या साँई की नजर मेँ हलाली मेँ प्रयुक्त जीव ,जीव नहीँ कहे जाते?{2}क्या एक संत या महापुरूष द्वारा क्षणभंगुर जिह्वा के स्वाद के लिए बेजुबान नीरीह जीवोँ का मारा जाना उचित होगा?{3}सनातन धर्म के अनुसार जीवहत्या पाप है।
तो क्या साँई पापी नहीँ?{4}एक पापी जिसको स्वयं क्षणभंगुर जिह्वा के स्वाद की तृष्णा थी, क्या वो आपको मोक्ष का स्वाद चखा पायेगा?{5}तो क्या ऐसे नीचकर्म करने वाले को आप अपना आराध्य या ईश्वर कहना चाहेँगे?
“यह विश्वगुरू आर्यावर्त का पतन ही है कि आज परमेश्वर की उपासना की अपेक्षा लोग गुरूओँ, पीरोँ और कब्रोँ पर सिर पटकना ज्यादा पसन्द करते हैँ।”
आजकल सर्वत्र साँई बाबा की धूम है, कहीँ साँई चौकी, साँई संध्या और साँई पालकी मेँ मुस्लिम कव्वाल साँई भक्तोँ के साथ साँई जागरण करने मेँ लगे हैँ। मन्दिरोँ मेँ साँई की मूर्ति सनातन काल के देवी देवताओँ के साथ सजी है। मुस्लिम तान्त्रिकोँ ने भी अपने काले इल्म का आधार साँई बाबा को बना रखा है व उनकी सक्रियता सर्वत्र देखी जा सकती है। इन सबके बीच साँई बाबा को कोई विष्णु का ,कोई शिव का तथा कोई दत्तात्रेय का अवतार बतलाता है।
साईँ के जीवनचरित्र की एकमात्र प्रामाणिक उपलब्ध पुस्तक है- “साँईँ सत्चरित्र”॥
इस पुस्तक के अध्ययन से साईँ के जिस पवित्र चरित्र का अनुदर्शन होता है,
क्या आप उसे जानते हैँ?
चाहे चीलम पीने की बात हो, चाहे स्त्रियोँ को अपशब्द कहने की?
चाहे माँसाहार की बात हो, या चाहे धर्मद्रोही, देशद्रोही व इस्लामी कट्टरपन की….
इन सबकी दौड़ मेँ शायद ही कोई साँई से आगे निकल पाये। यकीन नहीँ होता न?
तो आइये चलकर देखते हैँ…
]साँई माँसाहार का प्रयोग करता था व स्वयं जीवहत्या करता था?
प्रमाण:-
(1)मस्जिद मेँ एक बकरा बलि देने के लिए लाया गया। वह अत्यन्त दुर्बल और मरने वाला था। बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 161.
(2)तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैँ स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा।
-:अध्याय 23. पृष्ठ 162.
(3)फकीरोँ के साथ वो आमिष(मांस) और मछली का सेवन करते थे।
-:अध्याय 5. व 7.
(4)कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल अर्थात् नमकीन पुलाव।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 269.
(5)एक एकादशी के दिन उन्होँने दादा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीद लाने को दिये। दादा पूरे कर्मकाण्डी थे और प्रायः सभी नियमोँ का जीवन मेँ पालन किया करते थे।
-:अध्याय 32. पृष्ठः 270.
(6)ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है? दादा ने योँ ही मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा है। तब बाबा कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखोँ से ही देखा है और न ही जिह्वा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है? थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो। बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मेँ डालकर बोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर देखो”।
-:अध्याय 38. पृष्ठ 270.
प्रश्न:-
{1}क्या साँई की नजर मेँ हलाली मेँ प्रयुक्त जीव ,जीव नहीँ कहे जाते?{2}क्या एक संत या महापुरूष द्वारा क्षणभंगुर जिह्वा के स्वाद के लिए बेजुबान नीरीह जीवोँ का मारा जाना उचित होगा?{3}सनातन धर्म के अनुसार जीवहत्या पाप है।
तो क्या साँई पापी नहीँ?{4}एक पापी जिसको स्वयं क्षणभंगुर जिह्वा के स्वाद की तृष्णा थी, क्या वो आपको मोक्ष का स्वाद चखा पायेगा?{5}तो क्या ऐसे नीचकर्म करने वाले को आप अपना आराध्य या ईश्वर कहना चाहेँगे?
{1}साँई जिन्दगी भर एक मस्जिद मेँ रहा, क्या इससे भी वह मुस्लिम सिध्द नहीँ हुआ? यदि वह वास्तव मेँ हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक होता तो उसे मन्दिर मेँ रहने मेँ क्या बुराई थी?{2}सिर से पाँव तक इस्लामी वस्त्र, सिर को हमेशा मुस्लिम परिधान कफनी मेँ बाँधकर रखना व एक लम्बी दाढ़ी, यदि वो हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक होता तो उसे ऐसे ढ़ोँग करने की क्या आवश्यकता थी?
क्या ये मुस्लिम कट्टरता के लक्षण नहीँ हैँ?{3}वह जिन्दगी भर एक मस्जिद मेँ रहा, परन्तु उसकी जिद थी की मरणोपरान्त उसे एक मन्दिर मेँ दफना दिया जाये, क्या ये न्याय अथवा धर्म संगत है? “ध्यान रहे ताजमहल जैसी अनेक हिन्दू मन्दिरेँ व इमारते ऐसी ही कट्टरता की बली चढ़ चुकी हैँ।”{4}उसका अपना व्यक्तिगत जीवन कुरान व अल-फतीहा का पाठ करने मेँ व्यतीत हुआ, वेद व गीता नहीँ?, तो क्या वो अब भी हिन्दू मुस्लिम एकता का सूत्र होने का हक रखता है?{5}उसका सर्वप्रमुख कथन था “अल्लाह मालिक है।”परन्तु मृत्युपश्चात् उसके द्वितीय कथन “सबका मालिक एक है” को एक विशेष नीति के तहत सिक्के के जोर पर प्रसारित किया गया। यदि ऐसा होता तो उसने ईश्वर-अल्लाह के एक होने की बात क्योँ नहीँ की?
फकीरों के साथ वो मांस और मच्छली का सेवन करते थे. कुत्ते भी उनके भोजन पत्र में मुंह डालकर स्वतंत्रता पूर्वक खाते थे.(अध्याय 7 साईं सत्चरित्र ) अपने स्वार्थ वश किसी प्राणी को मारकर खाना किसी इश्वर का तो काम नहीं हो सकता और कुत्तों के साथ खाना खाना किसी सभ्य मनुष्य की पहचान भी नहीं है.
अमुक चमत्कारों को बताकर जिस तरह उन्हें भगवान् की पदवी दी गयी है इस तरह के चमत्कार तो सड़कों पर जादूगर दिखाते हें . काश इन तथाकथित भगवान् ने इस तरह की जादूगरी दिखने की अपेक्षा कुछ सामाजिक उत्तथान और विश्व की उन्नति एवं समाज में पनप रहीं समस्याओं जैसे बाल विवाह सती प्रथा भुखमरी आतंकवाद भास्ताचार अआदी के लिए कुछ कार्य किया होता!
साई को अगर ईश्वर मान बैठे हो अथवा ईश्वर का अवतार मान बैठे हो तो क्यो?आप हिन्दू है तो सनातन संस्कृति के किसी भी धर्मग्रंथ में साई महाराज का नाम तक नहीं है।तो धर्मग्रंथो को झूठा साबित करते हुये किस आधार पर साई को भगवान मान लिया ?( और पौराणिक ग्रंथ कहते है कि कलयुग में दो अवतार होने है ….एक भगवान बुद्ध का हो चुका दूसरा कल्कि नाम से अंतिम चरण में होगा……. ।){ वेदों में तो अवतारवाद नहीं हैं |}
अगर साई को संत मानकर पूजा करते हो तो क्यो? क्या जो सिर्फ अच्छा उपदेश दे दे या कुछ चमत्कार दिखा दे वो संत हो जाता है?साई
महाराज कभी गोहत्या पर बोले?, साई महाराज ने उस समय उपस्थित कौन सी सामाजिक बुराई को खत्म किया या करने का प्रयास किया |
अगर आप पौराणिक हो और अगर मनोकामना पूर्ति के लिए साई के भक्त बन गए हो तो तुम्हारी कौन सी ऐसी मनोकामना है जो कि भगवान शिवजी , या श्री विष्णु जी, या कृष्ण जी, या राम जी पूरी नहीं कर सकते सिर्फ साई ही कर सकता है?तुम्हारी ऐसी कौन सी मनोकामना है जो कि वैष्णो देवी, या हरिद्वार या वृन्दावन, या काशी या बाला जी में शीश झुकाने से पूर्ण नहीं होगी ..वो सिर्फ शिरडी जाकर माथा टेकने से ही पूरी होगी।
ॐ साई राम ……..ॐ हमेशा मंत्रो से पहले ही लगाया जाता है अथवा ईश्वर के नाम से पहले …..साई के नाम के पहले ॐ लगाने का अधिकार कहा से पाया? जय साई राम ………. श्री मे शक्ति माता निहित है ….श्री शक्तिरूपेण शब्द है ……. जो कि अक्सर भगवान जी के नाम के साथ संयुक्त किया जाता है ……. तो जय श्री राम में से …..श्री तत्व को हटाकर ……साई लिख देने में तुम्हें गौरव महसूस होना चाहिए या शर्म आनी चाहिये?
संत वही होता है जो लोगो को भगवान से जोड़े , संत वो होता है जो जनता को भक्तिमार्ग की और ले जाये , संत वो होता है जो समाज मे व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए पहल करे … इस साई नाम के मुस्लिम पाखंडी फकीर ने जीवन भर तुम्हारे राम या कृष्ण का नाम तक नहीं लिया , और तुम इस साई की काल्पनिक महिमा की कहानियो को पढ़ के इसे भगवान मान रहे हो … कितनी भयावह मूर्खता है ये ….महान ज्ञानी ऋषि मुनियो के वंशज आज इतने मूर्ख और कलुषित बुद्धि के हो गए है कि उन्हे भगवान और एक साधारण से मुस्लिम फकीर में फर्क नहीं आता ?
यह संसार अंधविश्वास और तुच्छ ख्यादी एवं सफलता के पीछे भागने वालों से भरा पड़ा हुआ है. दयानंद सरस्वती, महाराणा प्रताप, शिवाजी, सुभाष चन्द्र बोस, सरदार भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, सरीखे लोग जिन्होंने इस देश के लिए अपने प्राणों को न्योच्चावर कर दीये लोग उन्हिएँ भूलते जा रहे हैं और साईं बाबा जिसने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में न कोई योगदान दिया न ही सामाजिक सुधार में कोई भूमिका रही उनको समाज के कुछ लोगों ने भगवान् का दर्जा दे दिया है. तथा उन्हें योगिराज श्री कृष्ण और मायादापुरुशोत्तम श्री राम के अवतार के रूप में दिखाकर न केवल इन महापुरुषों का अपमान किया जा रहा अपितु नयी पीडी और समाज को अवनति के मार्ग की और ले जाने का एक प्रयास किया जा रहा है.
आवश्यकता इस बात की है की है की समाज के पतन को रोका जाये और जन जाग्रति लाकर वैदिक महापुरुषों को अपमानित करने की जो कोशिशे की जा रही, उनपर अंकुश लगाया जाये.
मैंने अधिकतर साईं भक्तो को देखा है जो शिर्डी साईं की अंधभक्ति करते है, पर ऐसे अंधभक्तो को एक आँख खोलने वाला उपाय बता रहा, कृपया करके आप साईं सत्चरित्र जरुर पढ़े तीसरे अध्याय तक आप साईं को मानना ही छोड़ देंगे यदि आप शाकाहारी है, अगले अध्यायों में आप 22, 23 और 38 अध्याय पढ़ कर तो बस क्या कहू, अगर बुद्धि होगी और दिमाग की बत्ती जल होगी तो इस साईं नाम के राक्षस को अपने जीवन से निकल कर बाहर फेंक देंगे और बकियों को भी बचाने की सोचेंगे, पर अगर मुर्ख होंगे तो ही आप साईं ही भक्ति करेंगे, आज के समय में हिन्दुओ के पतन का सबसे बड़ा कारण साईं ही है, इसलिए जितने भी साईं भक्त है उनसे मेरी प्रार्थना है की साईं सत्चरित्र अवश्य पढ़े,,, ये आपकी अंधश्रद्धा नहीं बल्कि आपके लाखो साल पुराने सनातन धर्म के अस्तित्व का प्रशन है जो आपकी मुर्खता के कारण पतन की और जा रहा है, अगर आप अब भी नहीं संभले तो आपके आने वाली संताने खतना करा कर नमाज पढ़ती नजर आयेंगी,, इसलिए पढ़े और जागे..... असतो मा सद्गमयः तमसो मा ज्योतिर्गमयः (हे परमेश्वर! हमेँ बुराई से अच्छाई, व अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो)
जैसे सूर्य आकाश में छिपकर नहीं रह सकता, वैसे ही मार्ग दिखलाने वाले महापुरुष भी संसार में छिप कर नहीं रह सकते। वेदव्यास (महाभारत, वनपर्व)) यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपिमाम् गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मूर्दा (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र अथवा समाधि) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत-प्रेत ही बनते हैं. जैसे की ये साईं
Jai Hind...