Sunday, November 24, 2019

दहेज की बारात - काका हाथरसी (बृज भाषा में)

जा दिन एक बरात कौ, मिल्यौ निमंत्रण-पत्र,
 फूले-फूले हम फिरें, यत्र-तत्र-सर्वत्र।
 यत्र-तत्र-सर्वत्र, फरकती बोटी-बोटी, 
बा दिन अच्छी नाहिं लगी, अपने घर रोटी। 
कहँ ‘काका’ कविराय, लार म्हौंड़ेसों टपके,
कर लड़ुअन की याद, जीभ स्याँपिन सी लपकै। 

मारग में जब है गई अपनी मोटर फेल, 
दौरे स्टेशन, लई तीन बजे की रेल। 
तीन बजे की रेल, मच रही धक्कमधक्का, 
द्वै मोटे गिर परे, पिच गए पतरे कक्का। 
कहँ ‘काका’ कविराय, पटक दूल्हा ने खाई, 
पंडितजू रह गए, चढ़िगयौ ननुआ नाई। 
नीचे कों करि थूथरौ, ऊपर कों करि पीठ, 
मुरगा बनि बैठे हमहुँ, मिली न कोऊ सीट। 
मिली न कोऊ सीट, भीर में बनिगौ भुरता, 
फारि लै गयौ कोउ हमारौ आधौ कुरता। 
कहँ ‘काका’ कविराय, परिस्थिति बिकट हमारी, 
पंडितजी रहि गए, उन्हीं पै ‘टिकस’ हमारी। 

फक्क-फक्क गाड़ी चलै, धक्क-धक्क जिय होय, 
एक पन्हैया रहि गई, एक गई कहुँ खोय। 
एक गई कहुँ खोय, तबहिं घुसि आयौ टी-टी, 
माँगन लाग्यौ टिकस, रेल ने मारी सीटी। 
कहँ ‘काका’, समझायौ पर नहिं मान्यौ भैया, 
छीन लै गयौ, तेरह आना तीन रुपैया। 

जनमासे में मचि रह्यो ठंडाई कौ सोर, 
मिर्च और सक्कर दइऔ सपरेटा में घोर। 
सपरेटा में घोर, बराती करते हुल्लड़, 
स्वाद-स्वाद में खेंचि गए हम बारह कुल्हड़। 
कहँ ‘काका’ कविराय, पेट है गयौ नगाड़ौ, 
निकरौसी के समय हमें चढि़आयौ जाड़ौ। 

बेटावारे ने कही, यही हमारी टेक, 
दरबज्जे पै लै लऊँ, नगद पाँच सौ एक। 
नगद पाँच सौ एक, परेंगी तब ही भाँवर, 
दूल्हा करिदौ बंद, दई भीतर सौं साँकर। 
कहँ ‘काका’ कवि, समधी डोलें रूसे-रूसे, 
अर्धरात्रि है गई, पेट में कूदें मूसे। 

बेटीवारे ने बहुत जोरे उनके हाथ, 
पर बेटा के बाप ने सुनी न कोऊ बात। 
सुनी न कोऊ बात, बराती डोलें भूखे, 
पूरी-लडुआ छोड़, चना हू मिले न सूखे। 
कहँ ‘काका’ कविराय, जान आफत में आई, 
जम की भैन बरात, कहावत ठीक बनाई। 

समधी-समधी लडि़ परे तै न भई कछु बात, 
चले घरात-बरात में थप्पड़-घूँसा-लात। 
थप्पड़-घूँसा-लात, तमासौ देखें नारी, 
देख जंग कौ दृश्य, कँपकँपी बँधी हमारी। 
कहँ ‘काका’ कवि, बाँध बिस्तरा भाजे घर कों, 
पीछे सब चल दिए, संग में लैकें वर कों। 

मार भातई पै परी, बनिगौ वाको भात, 
बिना बहू के गाम कों, आई लौट बरात। 
आई लौट बरात, परि गयौ फंदा भारी, 
दरबज्जे पै खड़ीं, बरातिन की घरवारी। 
कहँ काकी ललकार, लौटकें वापिस जाऔ, 
बिना बहू के घर में कोऊ घुसन न पाऔ। 

हाथ जोरि माँगी क्षमा, नीची करकें मोंछ, 
काकी ने पुचकारिकें, आँसू दीने पोंछ। 
आँसू दीने पोंछ, कसम बाबा की खाई, 
जब तक जीऊँ, बरात न जाऊँ रामदुहाई। 
कहँ ‘काका’ कविराय, अरे ओ बेटावारे, 
अब तौ दै दै, टी-टी वारे दाम हमारे। 

Thursday, September 19, 2019

होमवर्क📚 - जब अध्यापक का सामना गरीबी के सच से होता है

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गूडमॉर्निंग सर!
गूडमॉर्निंग बच्चों! बैठिये!
थैंक यू सर!
आप सब को कल होमवर्क दिया था ..किया?
यस सर!
किसने किसने होमवर्क किया?हाथ ऊपर??
गुड!!जिन बच्चों ने होमवर्क नही किया वो बच्चे खड़े हो जाएँ??

कक्षा में सभी बच्चे विद्यालय मानक के अनुसार होनहार नही होते.. हर एक बच्चा अपनी अपनी  क्षमता अनुसार अलग होता है। किसी के पढ़ने लिखने की क्षमता अच्छी होती है तो किसी की कम..वो थोड़े अलग बच्चे होते हैं..

दूर दराज बसे गाँव के सरकारी स्कूल की इस कक्षा में भी एक ऐसी ही बच्ची थी,जो अलग थी। 

"ख़ुशी" नाम था उसका।

बच्चे होमवर्क नहीं करते तो कैसी कहानियां बनाते हैं.. बचपन तो याद होगा।
पेट दर्द, कॉपी नहीं थी, कल स्कूल नही आये थे, सर भूल गए थे, सर किया हूँ कॉपी घर छूट गयी..

...पर वो बिलकुल चुप थी! उसके चेहरे पर एक शिकन भी नहीं, उसे शायद डाँट या शायद मार खाने का डर भी नहीं था। मैली यूनिफॉर्म पहने सांवले रँग की वो लड़की अजीब तरह से मुझे देखती रही.. एक अजीब तरह की चुनौती थी उसके देखने में।

होमवर्क क्यों नहीं किया?
चुप!
बताओ वरना आज तो पक्का सजा मिलेगी!!
चुप!
बोल क्यों नही रही???
चुप!

अब मेरा सब्र खो रहा था। आवाज़ की तल्खी बढ़ रही थी। इतने में उसकी सहेली ने बताना शुरू किया..
"सर! ख़ुशी का हाथ जल गया था।।"

नज़र पड़ी, हाथ पर छोटा फफोला था..

अंदर का अध्यापक दबने लगा... इस बार मेरी आवाज़ में नरमी थी... फिर पूछा

हाथ कैसे जला ख़ुशी..?

अब चुप हो जाने की बारी मेरी थी। ख़ुशी ने बताना शुरू किया:-
सर समय ही नही मिला!मम्मी होटल पर काम करती हैं न!मैं अपने 3 साल के भाई को सम्भाल रही थी। कल रात बहुत देर से घर आई थी। रात को भी खाना मैं ही बनाई। सवेरे भी खाना बना के आ रही हूँ। छौकां ऊपर छटक गया तो हाथ जल गया।

मैं किस "होमवर्क" की बात कर रहा था.. ? असली "होमवर्क" तो आउट ऑफ़ सिलेबस था, उसके भी...
....मेरे भी।

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Yasho Dev Rai
( देवयशो ) 

आलोक:-
( यदि आप सोचते हैं की सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई नही होती गई तो आपने अपने देश को अच्छे से जाना ही नहीं, ऐसे विद्यालयों के द्वार खुले हैं उस उपेक्षित समाज के बच्चों के लिए भी जो अपने जीने की भी लड़ाई लड़ रहे हैं।
हमें उन सब का सम्मान करना चाहिए जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए प्रयासरत हैं, चाहे वो सुविधाविहीन बच्चे हों, फीस भर पाने में असमर्थ अभिभावक हों या फिर एक अशिक्षा से अनदेखी लड़ाई लड़ रहा शिक्षक.. जय हिन्द!)

Sunday, July 7, 2019

क्रांतिकारी की चप्पल




वो अलस्सुबह दस बजे उठता है। मुँह-हाथ धोता है, जिसे वो नहाना हीसमझता है। केतली-भर चाय बना बिस्तर पर बैठता है। पहले अखबार पढ़ता है। फिर दर्शन का रुख करता है। गुरजेफ से लेकर जिब्रान तक सब पढ़ता है। वो पढ़ता जाता है और उसका तापमान बढ़ता जाता है। 

दोपहर होते-होते भुजाएँ फड़कने लगी हैं। भेजे के कुकर में विचारों की बिरयानी हद से ज्यादा उबल चुकी है, रग-रग में सीटियाँ बज उठी हैं। उसे उलटी करनी है। लेकिन कहाँ जाए? ढक्कन कैसे खोले ? दोस्त तो सभी नौकरियों (जो उसकी नजर में छोटी) पर गए हैं।

 हताशा में वो टीवी चलाता है। खबरिया चैनल पर रुकता है। जहाँ ‘आजादी से हासिल’ पर चर्चा हो रही है। इसे खुराक मिल गई। लेकिन दो मिनट में तीनों विचारक खारिज। ये सब किताबी बातें हैं, इनमें से कोई जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं। वो गुस्से में 7388 पर एसएमएस करता है। सोचता है, एंकर अभी मैसेज पढ़ कहेगा—वाह! क्या कसीली बात लिखी है। वो इंतजार कर रहा है, बिना जाने कि ये रिपीट टेलिकास्ट है! 

इस बीच बहस बिजली समस्या की तरफ मुड़ती है। वो सीधा होता है, वॉल्यूम बढ़ाता है...सत्यानाश...तभी बिजली चली जाती है। लानत है...हासिल की बात करते हैं, ‘ये’ हासिल है...बिजली की समस्या पर चर्चा सुनने लगो तो बिजली चली जाती है! 

ईश्वर, तू ही बता, आखिर क्या कसूर था मेरा? तेंदूखेड़ा की बजाय मैं टोरंटो में क्यों नहीं जन्मा? बर्गर की जगह भिंडी क्यों लिखी मेरी किस्मत में? लेकिन तभी उसे ‘रंग दे बसंती’ का डायलॉग याद आता है—सिस्टम से समस्या है तो शिकायत मत करो, उसे बदलने की कोशिश करो। वो खड़ा होता है...सोचता है...बहुत हुआ...मैं जा रहा हूँ अज्ञानता का अंधकार मिटाने, ज्ञान के दीप जलाने, होम का मोह छोड़, दुनिया के लिए खुद को होम करने।

लेकिन, ये क्या...कहाँ हो तुम...यहीं तो थी...कहाँ चली गई...यहाँ-वहाँ हर जगह ढूँढ़ा...नहीं मिल रही...खयाल आया...कहीं छोटा भाई तो नहीं पहन गया...हाँ, वही पहन गया होगा...उसे तो मैं... 

देखते-ही-देखते माहौल और मूड बदलने लगा है। देश को बदल देने की ‘महत्त्वाकांक्षा’, भाई को देख लेने की ‘आकांक्षा’ में तबदील हो गई है। क्रांतिकारी का भाई, जो जरा नीचे दही लेने गया है, नहीं जानता कि उसने देश की उम्मीदों की दही कर दी। नाउम्मीद हुआ क्रांतिकारी फिर से बिस्तर पर जा लेटा है। तापमान गिरने लगा है, जोश भाप बन उड़ चुका है। और इस मुल्क की तकदीर ‘एक बार फिर’ इसलिए नहीं बदल पाई क्योंकि क्रांतिकारी को उसकी चप्पल नहीं मिली! 

HUM SAB FAKE HAIN
BY NIRAJ BADHWAR
(FROM KINDLE)

Tuesday, July 2, 2019

होनी ने बनने नहीं दिया धोनी (व्यंग्य रचना)

क्रिकेट में हर बड़ी हार के बाद औसत भारतीय नौजवान बिना किसी बाहरी दबाव के एक जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेता है। वो ये कि इनसे कुछ नहीं होगा, अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। भले ही गली की टीम में उसकी जगह पक्की न हो, मगर वो मानता है कि इस देश में अगर कोई ऐसा प्रतिभावान, ऊर्जावान, पहलवान माई का लाल है, तो वो मेरी ही माई का है। 

इस लिहाज से टीम इंडिया की हालिया हार का कुछ हद तक मैं भी जिम्मेदार हूँ। मगर यकीन मानिए दोस्तो, इसके लिए पूरी तरह मैं भी कसूरवार नहीं हूँ। जोश मुझमें भी खूब था, बिना फोटोशॉप में गए टीम इंडिया की तसवीर मैं भी बदलना चाहता था, मगर हालात कभी मेरे साथ नहीं रहे। 

बचपन में जब ये बात संज्ञान में आई कि मैं एक ऐसे देश में पैदा हुआ हूँ, जहाँ नागरिकता का सबूत देने के लिए क्रिकेट खेलना जरूरी है, तो मैंने भी देशभक्ति दिखाई। शुरुआत लकड़ी के ऐसे टुकड़े से हुई, जिससे इत्तेफाक से घर में कपड़े भी धुलते थे। माँ उससे कपड़े धोतीं और मैं गेंदबाज। इलाके की दुकानों और मेरे शब्दकोष में उस समय तक क्रिकेट बैट का कोई वजूद नहीं था। शुरुआती क्रिकेट कॅरियर उसी थापे के सहारे आगे बढ़ा। फिर कद बढ़ा तो बड़े बल्ले की जरूरत महसूस हुई। अपने-अपने माँ-बाप से झगड़कर गली के दस-एक लड़कों ने मिलकर एक बैट खरीदा। 

खेलते समय हम आईसीसी के किसी नियम के दबाव में नहीं आते थे। खिलाडि़यों की संख्या इस बात पर निर्भर करती कि कितनों के बाप घर पर हैं और कितनों के काम पर। गली में दाएँ-बाएँ घर थे, लिहाजा कवर ड्राइव और ऑन ड्राइव की मनाही थी। हम सिर्फ मुँह और गेंद उठा सामने मार सकते थे। उसमें भी कुछ ऐसे घरों में गेंद जाने पर आउट रखा था, जहाँ गेंद के बदले गालियाँ मिलती थीं।

 कोलतार की सड़क अब भी हमारे लिए अफवाह थी। कच्ची सड़क पर जगह-जगह गड्ढे रहते। उन्हीं गड्ढों में अपनी योग्यता के हिसाब से निशाना साध हम लेग स्पिन और ऑफ स्पिन करते। गेंदबाजी एक्शन में अपने पसंदीदा गेंदबाजों की घटिया नकल करते। गली क्रिकेट के दौरान बरसों तक मैं खुद को महान् स्पिनर मानता रहा। मगर इस बीच हमारे यहाँ पक्की सड़क का आगमन हुआ। सड़क से गड्ढे और गेंदों से स्पिन गायब हो गई। तब पहली बार मुझे एहसास हुआ कि इस देश का पूरे का पूरा सिस्टम उभरती प्रतिभाओं को दबाने में लगा है।

 ऐसे किसी दबाव को नकार हम गली से कूच कर मैदान पहुँचे। किसी को इनसान कहने के लिए जिस तरह उसमें अक्ल अनिवार्य शर्त नहीं है, उसी तरह बिना घास, बिना पिच और स्टैंड्स के इसे भी क्रिकेट स्टेडियम कहा जाता था। शहर के सभी लड़के अपनी भड़ास यहीं निकालते। क्रिकेट की जिन बारीकियों पर जानकार घंटों बहस करते हैं, जैसे बल्लेबाज का फुटवर्क, गेंदबाज का सीधा कंधा—हमें जरा भी प्रभावित नहीं करतीं। नियम इनसान की सहज बुद्धि खत्म कर देता है, ये मान हम अपने तरीके से खेलते। फिसड्डी बल्लेबाज, पैदल गेंदबाजों की बैंड बजाते और खुद को ब्रेडमैन मानते। थके हुए गेंदबाज खुद से ज्यादा थके हुओं की पिटाई कर मुगालतों में जीते।

 इन्हीं मुगालतों को सीने से लगाए हम टीवी पर क्रिकेट मैच भी देखते। टीम की हर हार पर उसे चुन-चुनकर गालियाँ देते। यही सोचते कि जब मैं स्टेडियम में कोदूमल की गेंदों की धज्जियाँ उड़ा सकता हूँ तो भारतीय बल्लेबाज एम्ब्रोज की रेल क्यों नहीं बना सकते? हमारी नजर में नाई मोहल्ले के बिल्लू रंगीला और ऑस्ट्रेलिया के ब्रेट ली में कोई फर्क नहीं था। इस तरह अपने-अपने विश्वास से हम टीम इंडिया में चुने जाने के कगार पर थे। मगर तभी हमारे सारे सपने एक ही झटके में सूली पर चढ़ गए। कथित स्टेडियम में नई धान मंडी ट्रांसफर कर दी गई। विकेटों की जगह ट्रक और खिलाडि़यों की जगह आढ़तियों ने ले ली। जिस स्टेडियम से हम गेंदों को बाहर फेंकते थे, जल्द ही हमें उससे बाहर फेंक दिया गया। आज भी सोचता हूँ तो लगता है कि शायद होनी को मेरा धोनी बनना मंजूर ही नहीं था। 

 Neeraj Badhwar. Hum Sab Fake Hain  (Hindi) . Prabhat Prakashan. Kindle Edition.

Monday, July 1, 2019

घुमक्कड़

(लोकेश कौशिक जी की कलम से)

घुमक्कड़ दुनिया की ऐसी प्रजाति है जिसका नशा इश्क़ के नशे को भी फीका कर देता।

कुछ लोगो को खर्चे की फिक्र होती है और कुछ बेहद खर्चीले होते है। मगर घूमने के लिए हर बार बहुत ज्यादा खर्च करना हो ऐसा भी नही है।

तो चलिए थोड़ा बहुत अपनी समझ के हिसाब से बता रहा हूँ, और साथ ही इस बार के टूर की जानकारी भी सांझा कर रहा हूँ।

मैंने बहुत ज्यादा यात्राएं नही की है, लेकिन बचपन मे कश्मीर में रहने के कारण पहाड़ो से लगाव हो गया था। अलवर, सरिस्का, भृतहरि, पांडु पोल और सिलीसेढ़ की झील कॉलेज टाइम में घूम ली थी। उसके बाद एक बार रोहतांग पास जाने का मौका मिला,7बार ऋषिकेश, 4 बार नीलकंठ,  3 बार मनाली, 2 बार रेणुका जी, 4 बार कसौली, 3 बार मोरनी, एक बार पुष्कर जी, एक बार जयपुर, 1 बार हमीरपुर, 2 बार ऊना, एक बार हरिपुर धार और चूड़धार, 3 बार शिमला और कुफरी।

इसके अलावा आगरा, ग्वालियर और हाल ही में लखनऊ, गोरखपुर और बिहार के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। इसके अलावा भी बीसों छोटे मोटे दर्शनीय स्थल देखने का मौका महादेव की कृपा से मिल चुका है।

इस बार मौका था भारत के  हिमाचल में आखिरी गांव छितकुल जाने का। 12 जून को मैं और मेरे साथी बब्बन, कमल, अशोक और फौजी पंकज निकल पड़े इस बेहतरीन यात्रा के लिये। हम शाम 6:30 पर आपबे घर रेवाड़ी से निकले और रात 12 बजे 350 किमी दूर चंडीगढ़ मेरी कर्मभूमि पहुंचे। रात का खाना हम बनवा कर लाये थे तो आराम से खा पीकर सो गये। सुबह 8:15 पे हम निकले और 4 घण्टे बाद शिमला होते हुए कुफरी पहुंचे। गर्मी के इस मौसम में भी ठंड का आलम ये था कि हमे स्वेटर खरीदनी पड़ी। 

कुफरी के बाद हम निकले नारकंडा, हाँ एक जरुरी बात, हिमाचल में फल बेहद शानदार और स्वादिष्ट होते है तो इनका आनन्द लेना नही भूले। नारकंडा से रामपुर के रस्ते पर बेहतरीन प्राकृतिक नजारों का लुत्फ उठाते हुए चलने के बाद हम रस्ते में एक जगह रुके और हुक्के का आनन्द उठाने लगे। वही पर सड़क के किनारे पहाड़ो पर हमें हुक्का पीते देख हरियाणा नम्बर की एक गाड़ी रुकी उसमे भी हमारी उम्र के 5 लड़के थे, हरियाणा वालो को इतनी दूर हुक्का मिल जाये समझो राम मिल गया। उन सबने हमारे साथ हुक्का गुड़गुड़ाते हुए हमें बेहतरीन जानकारी दी और एक मैप भी दिया।

वहां से चलने के बाद रामपुर से पहले हमें अनेक झरने मिले मगर हम लोग रुके सतलुज के किनारे। जून के महीने जब आप बेहद खुशगवार मौसम से रूबरू हो और पहाड़ो से घिरे नीचे नदी बह रही हो तो आपके लिए ये जन्नत से कम नही हो जाता। इस जगह का आनन्द उठाने के बाद हम चल पड़े रामपुर की तरफ, एक जरुरी बात आपको जहां भी पेट्रोल पंप मिले टँकी फुल करवाते रहिये, क्योंकि मिलने को आपको 20 किमी दूर भी पम्प मिल जाये और ना मिलने पर 70 किमी तक भी आस नही।

रामपुर को क्रॉस करते हुए शाम 7 बजे हम ज्यूरी पहुंचे, वही पर आज रात रुकने का प्रोग्राम हमने बनाया। मात्र 800 रुपए में हमे 2 कमरे उपलब्ध हो गए। नीचे शुद्ध वैष्णव ढाबे पर बेहद लजीज खाना मात्र 70 रुपए की डाइट ओर उपलब्ध था, जो हमारे लिए फायदे का और ढाबे वाले के लिए घाटे का सौदा रहा। जब सब लोग 10-10 रोटी ठूंस चुके थे तो शर्म के मारे उठने में ही भलाई समझी गई। पहाड़ो की राते सिर्फ स्याह नही होती, यहां होती है दिल को ठंडक देती और पहाड़ो में घूम कर संगीत पैदा करती हवा। मोटी मोटी रजाईया रात की सर्दी को आराम से रोक पा रही थी, हुक्का पीकर हम लोग सो गए। 

14 की सुबह 6 बजे नहा धोकर, पूजा पाठ करके हम निकल लिए कल्पा की तरफ, क्योंकि कल्पा से ही किन्नर कैलाश के दर्शन हो सकते है। जाना तो हमे काजा भी था, पर कुछ लोगो ने जैसी सूचना दी उसके हिसाब से हम लोगो ने काजा का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया। ज्यूरी से चल कर रस्ते में करछम डैम आता है जिससे राइट साइड में एक रस्ता साँगला घाटी होते हुए छितकुल जाता है और एक रस्ता काजा की तरफ जहां रस्ते में है रिकोंग पीओ और कल्पा। हम लोग कल्पा पहुंचे, चारो तरफ ऊंचे ऊंचे पहाड़ों पर लदी बर्फ हमें आनन्द से सरोबार कर रही थी। रिकोंग पीओ वाला रास्ता बेहद संकरा था, अगर आप अच्छे ड्राइवर नही है तो आपको पहाड़ो में गाड़ी नही चलानी चाहिए खासकर ऐसे रस्तो पर।

रिकोंग पीओ से 10 किमी ऊपर चढ़ कर हम पहुंचे कल्पा, यहां एक बौद्ध मंदिर भी है जो बेहद सुंदर है। मगर हमारे लिए तो सबसे सुंदर सिर्फ महादेव है, तो हम लोग दूर से ही महादेव के दर्शन करके आनन्दित होने लगें। किन्नर कैलाश जाने के लिए अगस्त में यात्रा शुरू होती है जो 3-4 दिन की होती है, इस समय बर्फ की अधिकता के कारण वो रस्ता बन्द रहता है। सुबह के 10 बजे थे हम लोगो ने एक ढाबे पे 70 रुपए डाइट पे नास्ता किया, नास्ता क्या पूरी 7-7 रोटी पेट के अन्दर की और वापसी में निकल पड़े सांगला वैली की तरफ।

करछम डैम पहुंचने के बाद हम मुड़ गए सांगला की तरफ जहां के प्राकृतिक दृश्यों ने मन मोह लिया। एक पल के लिए भी आप की पलकें वहां झपकना नही चाहती। बेहद दुर्गम रास्तों पर एक तरफ तो पहाड़ो पर बर्फ थी और झरने कूद रहे थे वही नीचे बलखाती नदी थी। जल्द ही हम सांगला पहुंच गए, पहाड़ो में बसा छोटा सा प्यारा सा सांगला लाहौल स्पीति जैसा ही लगता है। प्रकृति ने इसे बेहद प्यार से सजाया है, घाटी में देख कर लगता था मानो हम स्विट्जरलैंड पहुंच गए है।

मगर सांगला हमारी मंजिल नही थी इसलिए हम छितकुल की तरफ बढ़ गए। रस्ते में एक पुल के पास झरना बह रहा था जो 300-400 मीटर ऊपर पहाड़ो पर पड़ी बर्फ से निकल रहा था। हम लोगो ने नहाने का प्रोग्राम बनाया और हुक्के के लिए आग भी। मग़र पानी बिल्कुल बर्फ था, हालत खराब हो गई। पर जब ओखली में सर दे दिया था तो मूसली से क्या डरना। नहाये और मेरी कृपा से उस झरने का नाम "तपस्वी बाबा" का झरना भी रख दिया। हुक्का पी ही रहे थे कि हरियाणा नम्बर की 3 गाड़ियां उधर रुकी और हुक्के को देखकर बेहद खुश होते हुए हमारे साथ ही बैठ गए। हुक्के के लिए उन्होंने हम लोगो से तम्बाकू भी लिया जो वे लोग होटल में भूल गए थे। 

अब यहां से हम लोग पहुंचे छितकुल, वाकई छितकुल स्वर्ग जैसा था। छितकुल में आने के बाद तो रस्ते में दिखाई पड़ा हर दृश्य फीका हो गया था।पहाड़ो पर बर्फ, ठंडी हवा, नीचे नदी और घाँस के मैदान। लग ही नही रहा था हम धरती पर ये जगह इंद्रलोक जैसी थी। वही पर एक ढाबे पर हम लोगो ने मैगी खाई, 50 रुपये की मैगी वाकई लजीज थी। कुछ देर बिताने के बाद शाम को हम लोग वापसी के लिए निकल लिए। अंधेरे में सांगला ही हमारी मंजिल होना चाहिए था, मगर मन नही माना और 5 घण्टे की ड्राइव के बाद हम वापस पहुंचे ज्यूरी। 

वही 800 के 2 रूम, वही 70 की डाइट, खैर हम खा पीके हुक्का पीकर सो गए। सुबह 7 बजे होम स्टे के मालिक ने हमे कुदरती गर्म पानी के झरने के बारे में बताया जो मंदिर के अंदर था। पानी बेहद गर्म था, नहाने के बाद, पूजा पाठ की गई और नास्ता करके हम लोग वापस चल पड़े। रस्ते में नारकंडा के पास हम लोगो ने 3000 रुपए के फल खरीदे ताकि घर ले जा सके। 

रात को पहुंचे मेरे रूम पे चंडीगढ़, आराम से खाना बनाया, खाया और सो गए, 16 को वापस रेवाड़ी पहुंच गए।

पूरी यात्रा में केवल 20हजार रुपए खर्च हुए, जिसमे 11 हजार केवल गाड़ी के तेल में लग गए। बाकी में हम सबने 3000 के फ़्रूट, गोहाना से 1400 रुपए की देशी घी की जलेबी, 500 रुपए का 5 किलो हुक्के का तम्बाकू लिया। 

बस कुछ जरूरी बातें जो हमे समझनी चाहिए वो ये की, पहाड़ बेहद सुंदर है, वहां पर गंदगी न फैलाये। पहाड़ी लोग सीधे है अतः ज्यादा छल कपट से दूर रहे, किसी के साथ व्यर्थ में बतदमीजी न करे क्योंकि कल को आप नही तो आपके कोई और साथी वहां घूमने जाएंगे तो मुसीबत उनके लिए ही होगी। गन्दगी न फैलाये, प्रकृति का सम्मान करें, पहाड़ो में कभी भी पी कर गाड़ी न चलाये। और एक जरुरी बात पहाड़ी लोगो की बात को इग्नोर करके कहीं भी अपनी मर्जी से मत जाइए।

लोकेश कौशिक
Lokesh Sharma
#जय_भूतेश्वर








Thursday, June 27, 2019

भारत का संविधान (pdf format)

भारत का संविधान हिंदी में यहाँ से डाउनलोड करे.
👇

Sunday, June 16, 2019

उपयोगी कहावतें


*A. चैते गुड़, वैसाखे तेल। जेठ के पंथ¹, अषाढ़े बेल। । *
*B. सावन साग, भादौ दही²। कुवांर करेला, कार्तिक मही³। । *
*C. अगहन जीरा, पूसै धना। माघे मिश्री, फागुन चना। । *
*D. जो कोई इतने परिहरै, ता घर बैद पैर नहीं धरै। । *

*किस माह में क्या न खाएँ???*
*~~~~~~~~~~~~~~~*
*आवश्यक निर्देश*
*~~~~~~~~~~*
*1. चैत्र माह में नया गुड़ न खाएं। *
*2. बैसाख माह में नया तेल न लगाएं। *
*3. जेठ माह में दोपहर में नहीं चलना चाहिए। *
*4. आषाढ़ माह में पका बेल न खाएं। *
*5. सावन माह में साग न खाएं। *
*6. भादों माह में दही न खाएं। *
*7. क्वार माह में करेला न खाएं। *
*8. कार्तिक माह में जमीन पर न सोएं। *
*9. अगहन माह में जीरा न खाएं। *
*10. पूस माह में धनिया न खाएं। *
*11. माघ माह में मिश्री न खाएं। *
*12. फागुन माह में चना न खाएं। *

*👉अन्य निर्देश👇*
*~~~~~~~~~~*
*👉1. स्नान के पहले और भोजन के बाद पेशाब जरूर करें। *
*👉2. भोजन के बाद कुछ देर बायी करवट लेटना चाहिये। *
*👉3. रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठाना चाहिये। *
*👉4. प्रातः पानी पीकर ही शौच के लिए जाना चाहिये। *
*👉5. सूर्योदय के पूर्व गाय का धारोष्ण दूध पीना चाहिये व्यायाम के बाद दूध अवश्य पियें। *
*👉6. मल, मूत्र, छीक का वेग नहीं रोकना चाहिये। *
*7. ऋतु (मौसमी) फल खाना चाहिये..*
*8. रसदार फलों के अलावा अन्य फल भोजन के बाद खाना चाहिये..*
*9. रात्रि में फल नहीं खाना चाहिये। *
*10. भोजन करते समय जल कम से कम पियें। *
*11. भोजन के पश्चात् कम से कम 45 मिनट के बाद जल पीना चाहिए। *
*12. नेत्रों में सुरमा / काजल अवस्य लगायें। स्नान रोजाना अवश्य करना चाहिये। *
*13. सूर्य की ओर मुह करके पेशाब न करें। *
*14. बरगद, पीपल, देव मन्दिर, नदी व शमशान् में पेशाब न करें। *
*15. गंदे कपड़े न पहने, इससे हानि होती है। *
*16. भोजन के समय क्रोध न करें बल्कि प्रसन्न रहें। *

*17. आवश्यकता से अधिक बोलना भी नहीं चाहिये व बोलते समय भोजन करना रोक दें। *
*18. ईश्वर आराधना अवश्य करनी चाहिये। *

*🙏वर्जित वस्तुएं कब से कब तक🙏*
*-------------------------------------*
*1.👉 चैत्र माह में नया गुड़ न खाएं (15 March-15 April)*

*2.👉 बैसाख माह में नया तेल न लगाएं (16 April-15 May)*

*3.👉 जेठ माह में दोपहर में नहीं चलना चाहिए (16 May-15 June)*

*4.👉 अषाढ़ माह में पका बेल न खाएं (16 June-15 July)*

*5.👉 सावन माह में साग न खाएं (16 July-15 August)*

*6.👉 भादों माह में दही न खाएं (16 August-15 Sep)*

*7.👉 क्वार माह में करेला न खाएं (16 Sept-15 Oct)*

*8.👉 कार्तिक माह में जमीन पर न सोएं (16 Oct-15 Nov)*

*9.👉 अगहन माह में जीरा न खाएं (16 Nov-15 Dec)*

*10.👉 पूस माह में धनिया न खाएं (16 Dec- 15 Jan)*

*11.👉 माघ माह में मिश्री न खाएं (16 Jan-15feb)*

*12.👉 फागुन माह में चना न खाएं (16 Feb- 14 March )*

*✍1. पंथ=रास्ता:* जेठ माह में दिन में रास्ता नहीं चलना चाहिए। 

*✍2. दही=मट्ठा या दही व दही से बने पदार्थ:* ऐसी कहावत है कि भादो मास में दही या मट्ठा अगर घास या दूब की जड़ में डाल दें तो उसको भी फूक देता है। अर्थात् भादो मास में दही व दही से बने पदार्थ काफी हानिकारक हैं। 

*✍3. मही=भूमि* पर कार्तिक मास में न सोए।

Wednesday, May 29, 2019

इस तरह बचें आग से

यह मैसेज जनसाधारण के लिए है और बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसे कृपया अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य और खासकर बच्चों को अवश्य पढ़ाएं और समझाएं:-

कई वर्ष पहले जे0 पी0 होटल वसंत विहार नई दिल्ली में आग की दुर्घटना हुई, जिसमें बहुत सारे भारतीय मारे गए लेकिन जापानी और अमेरिकन नहीं। जानते हैं क्यों? मैं आपको बताता हूँ:-

1.  सभी अमेरिकन और जापानी लोगों ने अपने कमरों के दरवाज़ों के नीचे खाली जगहों में गीले तौलिये लगा दिए और खाली जगहों को सील कर दिया, जिससे धुआं उनके कमरों तक नहीं पहुंच सका। या बहुत कम मात्रा में पहुंचा।

2.  इन सभी विदेशी मेहमानों ने अपनी नाक पर गीले रुमाल बांध लिए, जिससे उनके फेफड़ों में धुआं प्रवेश न कर सके।

3.  सभी विदेशी मेहमान अपने अपने कमरों के फर्श पर औंधे लेट गए। (क्योंकि धुआं हमेशा ऊपर की ओर उठता है)

इस प्रकार जब तक अग्निशमन विभाग के कर्मचारी आये, तब तक वे अपने आपको जीवित रख पाने में सफल रहे।

जबकि होटल के भारतीय मेहमानों को इन सुरक्षा उपायों के बारे में पता ही नहीं था इसलिए वे इधर से उधर भागने लगे और उनके फेफड़ों में धुआं भर गया और कुछ समय में ही उनकी मौत हो गई।

अभी 24.05.2019 को सूरत (गुजरात) के एक कोचिंग सेंटर में आग की दुर्घटना हुई जिसमें कई बच्चों की जान इस अज्ञानता और भगदड़ के कारण हो गई। यदि उन्हें इन सुरक्षा उपायों के बारे में जानकारी होती तो शायद इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की जान न जाती।

याद रखें, आग लगने की स्थिति में ज़्यादातर मौतें शरीर में धुआं जाने से होती हैं, जबकि आग के कारण कम होती हैं।

क्योंकि आग की स्थिति में हम लोग धैर्य से काम नहीं लेते हैं और इधर से उधर भागने लगते हैं। भागने से हमारी सांसें तेज़ हो जाती हैं जिसके कारण बहुत सारा धुआं हमारे फेफड़ों में प्रवेश कर जाता है और हम बेहोश हो जाते हैं और ज़मीन पर गिर जाते हैं तथा फिर आग की लपटों से घिर जाते हैं।

इसलिए आग लगने की स्थिति में ये सुरक्षा उपाय अपनाएं:-

1.  भगदड़ न मचाएं और अपने होश कायम रखें ताकि आप दूसरों की मदद कर सकें।

2.  अपने नाक पर गीला रुमाल या गीला लेकिन घना कपड़ा बांधें। तथा फर्श पर लेट जाएं।

3.  यदि आप किसी कमरे में बंद हों तो उसके खिड़की दरवाज़े बंद कर दें तथा उनके नीचे या ऊपर या कहीं से भी धुआं आने की संभावना हो तो उस जगह को भी गीले कपड़े से सील कर दें।

4   अपने आसपास के लोगों से भी ऐसा ही करने को कहें।

5.   अग्निशमन की सहायता की प्रतीक्षा करें। याद रखें, अग्निशमन वाले प्रत्येक कमरे की जांच करते हैं और वे फंसे हुए व्यक्तियों को ढूंढ लेंगे।

6.   यदि आपका मोबाइल काम कर रहा हो तो आप लगातार 100, 101 या 102 पर मदद के लिए कॉल करते रहें। उन्हें आप अपने स्थान की जानकारी भी दें। वे आप तक सबसे पहले पहुंचेंगे।

दुर्घटना में कोई भी फंस सकता है। इसलिए सुरक्षा उपायों की जानकारी सबको अवश्य होनी चाहिए।

Tuesday, May 28, 2019

सूरत हादसा

सूरत में हुए हादसे के बहाने जानिए सीरत अपनी-
21 बच्चे हमेशा के लिए सो गए फिर भी हम नहीं जागेंगे, हैं ना...
"कुछ विषय ऐसे होते हैं जिनपर लिखना खुद की आत्मा पर कुफ्र तोड़ने जैसा है, सूरत की बिल्डिंग में आग...21 बच्चों की मौत...आग और घुटन से घबराए बच्चों को इससे भयावह वीडियो आज तक नहीं देखा....इससे ज्यादा छलनी मन और आत्मा आज तक नहीं हुई....क्योंकि हम सब गलत हैं, सारे कुएं में भांग पड़ी हुई है। हमने किताबी ज्ञान में ठूंस दिया बच्चों को नहीं सिखा पाए लाइफ स्किल। नहीं सिखा पाए डर पर काबू रख शांत मन से काम करना।"
मम्मा डर लग रहा है...एग्जाम के लिए सब याद किया था लेकिन एग्जाम हॉल में जाकर भूल गया...कुछ याद ही नहीं आ रहा था। पांव नम थे...हाथों में पसीना था...आप दो मिनिट उसे दुलारते हैं...बहलाने की नाकाम कोशिश करते हैं फिर पढ़ लो- पढ़ लो- पढ़ लो की रट लगाते हैं। सुबह 8 घंटे स्कूल में पढ़कर आए बच्चे को फिर 4-5 घंटे की कोचिंग भेज देते हैं। जिंदगी की दौड़ का घोड़ा बनाने के लिए, असलियत में हम उन्हें चूहादौड़ का एक चूहा बना रहे हैं। नहीं सिखा पा रहे जीने का तरीका- खुश रहने का मंत्र...साथ ही नहीं सिखा पा रहे लाइफ स्किल। विपरीत परिस्थितियों में धैर्य और शांतचित्त होकर जीवन जीने की कला नहीं सिखा पा रहे हैं ना और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ हम पालक और हमारा समाज जिम्मेदार है। न्यूजीलैंड .मेंबच्चे को नर्सरी क्लास से फस्टटेड से लेकर आग लगने पर कैसे खुद का बचाव करें...फीलिंग सेफ फीलिंग स्पेशल ( चाइल्ड एब्यूसमेंट), पानी में डूब रहे हो तो कैसे खुद को ज्यादा से ज्यादा देर तक जीवित और डूबने से बचाया जा सके.... जैसे विषय हर साल पढ़ाए जाते हैं फायरफाइटिंग से जुड़े कर्मचारी और अधिकारी हर माह स्कूल आते हैं।बच्चों को सिखाया जाता है।किविपरीत परिस्थितियों में डर पर काबू रखते हुए कैसे एक्ट किया जाए। ह्यूमन चेन बनाकर कैसे एक-दूसरे की मदद की जाए.....हेल्पिंग हेंड से लेकर खुद पर काबू रखना ताकि मदद पहुंचने तक आप खुद को बचाए रखें....
हम नहीं सिखा पा रहे यह सब....नहीं दे पा रहे बच्चों को लाइफ स्किल...विपरीत परिस्थितियों से बचना....कल की ही घटना देखिए...हमारे बच्चे नहीं जानते थे कि भीषण आग लगने पर वे कैसे अपनी और अपने दोस्तों की जान बचाएं....नहीं सीखा हमारे बच्चों ने थ्री-G का रूल ( गेट डाउन, गेट क्राउल, गेट आऊट ) जो 3 साल की उम्र से न्यूजीलैंड में बच्चों को सिखाया जाता है, आग लगे तो सबसे पहले झुक जाएं...आग हमेशा ऊपर की ओर फैलती है। गेट क्राउल...घुटनों के बल चले...गेट आऊट...वो विंडों या दरवाजा दिमाग में खोजे जिससे बाहर जा सकते हैं, उसी तरफ आगे बढ़े, जैसा कुछ बच्चों ने किया, खिड़की देख कर कूद लगा दी... भले ही वे अभी हास्पिटल में हो  लेकिन जिंदा जलने से बच गए। लेकिन यहां भी वे नहीं समझ पा रहे थे कि वे जो जींस पहने हैं...वह दुनिया के सबसे मजबूत कपड़ों में गिनी जाती है...कुछ जींस को आपस में जोड़कर रस्सी बनाई जा सकती है। साड़ी को रस्सी बनाया जा सकता है।नहीं सिखा पाए हम उन्हें कि उनके हाथ में स्कूटर-बाइक की जो चाबी है उसके रिंग की मदद से वे दो जींस को एक रस्सी में बदल सकते हैं...काफी सारी नॉट्स हैं जिन्हें बांधकर पर्वतारोही हिमालय पार कर जाते हैं फिर चोटी से उतरते भी हैं...वही कुछ नाट्स तो हमें स्कूलों में घरों में अपने बच्चों को सिखानी चाहिए। सूरत हादसे में बच्चे घबराकर कूद रहे थे...शायद थोड़े शांत मन से कूदते तो इंज्युरी कम होती। एक-एक कर वे बारी-बारी जंप कर सकते थे। उससे नीचे की भीड़ को भी बच्चों को कैच करने में आसानी होती। मल्टीपल इंज्युरी कम होती, हमारे अपने बच्चों को। आज आपको मेरी बातों से लगेगा...ज्ञान बांट रहा हूं...लेकिन कल के हादसे के वीडियो को बार-बार देखेंगे तो समझ में आएगा एक शांतचित्त व्यक्ति ने बच्चों को बचाने की कोशिश की। वो दो बच्चों को बचा पाया लेकिन घबराई हुई लड़की खुद को संयत ना रख पाई और .... अच्छे से याद है, पापाजी कहते थे मोना कभी आग में फंस जाओ तो सबसे पहले अपने ऊपर के कपड़े उतार कर फेंक देना, मत सोचना कोई क्या कहेगा। क्योंकि ऊपर के कपड़ों में आग जल्दी पकड़ती है। जलने के बाद वह जिस्म से चिपक कर भीषण तकलीफ देते हैं...वैसे ही यदि पानी में डूब रही हो तो खुद को संयत करना...सांस रोकना...फिर कमर से नीचे के कपड़े उतार देना क्योंकि ये पानी के साथ मिलकर भारी हो जाते हैं, तुम्हें सिंक (डुबाना) करेंगे। जब जान पर बन आए तो लोग क्या कहेंगे कि चिंता मत करना...तुम क्या कर सकती हो सिर्फ यह सोचना।
जो बच्चे बच ना पाए, उनके माँ बाप का सोच कर दिल बैठा जा रहा है। हम सब याद करे हिंदी पाठ्यपुस्तक की एक कहानी...
जिसमें एक पंडित पोथियां लेकर नाव में चढ़ा था...वह नाविक को समझा रहा था 'अक्षर ज्ञान- ब्रह्म ज्ञान' ना होने के कारण वह भवसागर से तर नहीं सकता...उसके बाद जब बीच मझधार में उनकी नाव डूबने लगती है तो पंडित की पोथियां उन्हें बचा नहीं पाती। गरीब नाविक उन्हें डूबने से बचाता है, किनारे लगाता है। हम भी अपने बच्चों को सिर्फ पंडित बनाने में लगे हैं....उन्हें पंडित के साथ नाविक भी बनाइए जो अपनी नाव और खुद  का बचाव स्वयं कर सकें। सरकार से उम्मीद लगाना छोड़िए ... चार जांच बैठाकर, कुछ मुआवजे बांटकर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। कुकुरमुत्ते की तरह उग आए कोचिंग संस्थान ना बदलेंगे। इस तरह के हादसे होते रहे हैं...आगे भी हो सकते हैं....बचाव एक ही है हमें अपने बच्चों को जो लाइफ स्किल सिखानी है। आज रात ही बैठिए अपने बच्चों के साथ...उनके कैरियर को गूगल करते हैं ना...लाइफ स्किल को गूगल कीजिए। उनके साथ खुद भी समझिए विपरीत परिस्थितियों में धैर्य के साथ क्या-क्या किया जाए याद रखिए जान है तो जहान है।
डूबते हुए इंसान को बचाने में बचानेवाला भी डूब जाता है...क्योंकि उसे तैरना आता है बचाना नहीं...स्विमिंग टीचर सिखातेहै कि कोई डूब रहाहो तो उसे खुद पर लदने ना दो...उसके बाल पकड़ों और घसीटकर बाहर लाने की कोशिश करो....यही तो छोटी-छोटी लाइफ स्किल हैं)
काश के हम वीडियो बनाने और देखने के बजाय ये सब सीखें और बच्चों को सिखाएं
पर हम भेड़चाल वाले हैं अफसोस जताकर अगले हादसे का इंतज़ार करते हैं कि इसे भूल सकें.....अब तो अफसोस भी होता है हमें या बस रस्मन......संदेह है।
- साभार - भारत दहिया
भारत स्काउट & गाइड पलवल

Thursday, March 21, 2019

धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन

धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन (धूलि की वन्दना)

होली के दिन प्रज्वलित की गई होली में प्रत्यक्ष अग्निदेवता उपस्थित रहते हैं । उनका तत्त्व दूसरे दिन भी कार्यरत रहता है । इस तत्त्व का लाभ प्राप्त करने हेतु तथा अग्निदेवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु होली के दूसरे दिन अर्थात फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा को सुबह होली के राख की पूजा करते है । उसके उपरांत उस राख को शरीर पर लगाकर स्नान करते हैं । संस्कृत भाषा मे ऱाख को "धूलि" भी कहते हैं। अतः इस पर्व को धूलि वंदन कहते हैं।
अब राख की जगह गुलाल ने ले ली है।

होली ब्रह्मांडका एक तेजोत्सव है। होली के दिन ब्रह्मांड में विविध तेजोमय तरंगों का भ्रमण बढता है। इसके कारण अनेक रंग आवश्यकताके अनुसार साकार होते हैं ।

Sunday, March 10, 2019

फिल्मों के 13 ऐसे डायलॉग जो आपको कहीं हिम्मत नहीं हारने देंगे और सफलता पाने का जज्बा हमेशा जगाए रखेंगे.....

1. Sultan
कोई तुम्हे तब तक नहीं हरा सकता जब तक तुम खुद से ना हार जाओ...

2. 3 Idiots
कामयाबी के पीछे मत भागो, काबिल बनो , कामयाबी तुम्हारे पीछे झक मार कर आएगी....

3. Dhoom 3
जो काम दुनिया को नामुमकिन लगे, वही मौका होता है करतब दिखाने का....

4. Badmaash Company
बड़े से बड़ा बिजनेस पैसे से नहीं, एक बड़े आइडिया से बड़ा होता है.....

5. Yeh Jawaani Hai Deewani
मैं उठना चाहता हूं, दौड़ना चाहता हूं, गिरना भी चाहता हूं....बस रुकना नहीं चाहता .

6. Sarkar
नजदीकी फायदा देखने से पहले दूर का नुकसान सोचना चाहिए.....

7. Namastey London
जब तक हार नहीं होती ना....तब तक आदमी जीता हुआ रहता है...

8. Chak De! India
वार करना है तो सामने वाले के गोल पर नहीं, सामने वाले के दिमाग पर करो..
गोल खुद ब खुद हो जाएगा.

9. Mary Kom
कभी किसी को इतना भी मत डराओ कि डर ही खत्म हो जाए....

10. Jannat
जो हारता है, वही तो जीतने का मतलब जानता है....

11. Happy New Year
दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं विनर और लूजर...

लेकिन जिंदगी हर लूजर को एक मौका जरूर देती है जिसमें वह विनर बन सकता है....

12. Om shanti Om
अगर किसी चिज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती हैं......

13. Once upon time in Mumbai
रास्ते की परवाह करुंगा तो मंजिल बुरा मान जायेगी।

Monday, March 4, 2019

ज़िन्दगी

कभी तानों में कटेगी,
कभी तारीफों में;
ये जिंदगी है यारों,
पल पल घटेगी !!

-पाने को कुछ नहीं,
ले जाने को कुछ नहीं;
फिर भी क्यों चिंता करते हो,
इससे सिर्फ खूबसूरती घटेगी,
ये जिंदगी है यारों पल-पल घटेगी !

-बार बार रफू करता रहता हूँ,
...जिन्दगी की जेब !!
कम्बखत फिर भी,
निकल जाते हैं...,
खुशियों के कुछ लम्हें !!

-ज़िन्दगी में सारा झगड़ा ही...
ख़्वाहिशों का है !!
ना तो किसी को गम चाहिए,
ना ही किसी को कम चाहिए !!

-खटखटाते रहिए दरवाजा...,
एक दूसरे के मन का;
मुलाकातें ना सही,
आहटें आती रहनी चाहिए !!

-उड़ जाएंगे एक दिन ...,
तस्वीर से रंगों की तरह !
हम वक्त की टहनी पर...,
बेठे हैं परिंदों की तरह !!

-बोली बता देती है,इंसान कैसा है!
बहस बता देती है, ज्ञान कैसा है!
घमण्ड बता देता है, कितना पैसा है !
संस्कार बता देते है, परिवार कैसा है !!

-ना राज़* है... "ज़िन्दगी",
ना नाराज़ है... "ज़िन्दगी";
बस जो है, वो आज है, ज़िन्दगी!

-मिलने को तो हर शख्स,
हमसे बड़े एहतराम से मिला,
पर जो भी मिला...,
किसी ना किसी काम से मिला !!

-जीवन की किताबों पर,
बेशक नया कवर चढ़ाइये;
पर...बिखरे पन्नों को,
पहले प्यार से चिपकाइये !!!

...