Friday, September 7, 2012

किसानों कि लाश पर बने हैं संसद भवन और राष्ट्रपति भवन...

मालचा गाँव पंजाब राज्य का इलाका था बाद में हरियाणा बना तो ये गाँव हरियाणा के अधीन आ गया | इस गाँव के किसानों से अंग्रेजों ने मारपीट कर, डरा-धमका कर जमीन छिनी थी | किसान जमीन देने को तैयार नहीं थे, अंग्रेज सरकार ने जबरदस्ती किसानों से ये जमीने छिनी थी | भूमि अधिग्रहण कानून के हिसाब से नोटिस दिया और सन 1912 में मालचा गाँव के किसानों से तैंतीस (33 ) हजार बीघा जमीन छीन ली थी सरकार ने | किसानों ने जब विरोध किया तो अंग्रेज सरकार ने वैसे ही गोली चलायी जैसे आज चलती है और उस गोलीबारी में 33 किसान शहीद हुए थे, उनकी लाश पर अंग्रेज सरकार ने इस जमीन को भारत के संसद भवन और राष्ट्रपति भवन में बदल दिया और मुझे बहुत अफ़सोस है ये कहते हुए कि जिन किसानों से ये जमीने छिनी गयी उनको आज 100 साल बाद (1912 -2011) और आजादी के 64 साल बाद तक एक रूपये का मुआवजा नहीं मिल पाया है और उन किसानों के परिजन ड

िस्ट्रिक्ट कोर्ट से हाईकोर्ट और हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक चक्कर लगाते लगाते थक गए हैं और वो कहते हैं कि "जैसे हम अंग्रेजों के सरकार का चक्कर लगाते थे, आजादी के बाद हम हमारी सरकार के वैसे ही चक्कर लगा रहे हैं हम कैसे कहें कि देश आजाद हो गया है, कैसे कहें कि देश में स्वाधीनता आ गयी है"| वो कहते हैं कि "हमारे पुरखे लड़ रहे थे अंग्रेजी सरकार से मुआवजे के लिए और वो मर गए और अब हम लड़ रहे हैं भारत सरकार से कि हमें उचित मुआवजा मिले, हो सकता है कि हम भी मारे जाएँ और हमारी आने वाली पीढ़ी देखिये कब तक लडती है" | हमारे देश का राष्ट्रपति भवन, संसद भवन जो सबसे सम्मान का स्थान है इस देश में वो इसी भूमि अधिग्रहण कानून के अत्याचार का प्रमाण है, शोषण का प्रमाण है | किसानों से जबरदस्ती छीन कर बनाया गया भवन है ये इसलिए मुझे नहीं लगता कि इस संसद भवन या राष्ट्रपति भवन से हमारे देश के लोगों के लिए कोई सद्कार्य हो सकता है, कोई शुभ कार्य हो सकता है, कोई अच्छा कार्य हो सकता है | आजादी के 64 सालों में ऐसा कोई नमूना तो मिला नहीं मुझे |
-----राजीव दीक्षित

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