Tuesday, July 10, 2012

रामसेतु - राम के युग की प्रामाणिकता



रामसेतु - राम के युग की प्रामाणिकता

हम भारतीय विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के वारिस है तथा हमें अपने गौरवशाली इतिहास तथा उत्कृष्ट प्राचीन संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। रामसेतु एक आश्चर्यजनक ऐतिहासिक पक्ष है जो भौतिक रूप में उत्तर में बंगाल की खाड़ी को दक्षिण में शांत और स्वच्छ पानी वाली मन्नार की खाड़ी से (मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरू मध्य को) अलग करता है, जो धार्मिक एवं मानसिक रूप से दक्षिण भारत को उत्तर भारत से जोड़ता है। भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच उथली चट्टानों की एक चेन है। इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है। समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ़ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है। इसे भारत में रामसेतु व दुनिया में एडम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई लगभग 48 किमी है।

वाल्मीकि के रामायण में एक ऐसे रामसेतु का ज़िक्र है जो काफ़ी प्राचीन है और गहराई में हैं तथा जो 1.5 से 2.5 मीटर तक पतले कोरल और पत्थरों से भरा पड़ा है। इस पुल को राम के निर्देशन पर कोरल चट्टानों और रीफ से बनाया गया था। प्राचीन वस्तुकारों ने इस संरचना की परत का उपयोग बड़े पैमाने पर पत्थरों और गोल आकार के विशाल चट्टानों को कम करने में किया और साथ ही साथ कम से कम घनत्व तथा छोटे पत्थरों और चट्टानों का उपयोग किया, जिससे आसानी से एक लंबा रास्ता तो बना ही, साथ ही समय के साथ यह इतना मज़बूत भी बन गया कि मनुष्यों व समुद्र के दबाव को भी सह सके। शांत परिस्थिति के कारण मन्नार की खाड़ी में काफ़ी कम संख्या में कोरल और समुद्र जीव जंतुओं का विकास होता है, जबकि बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र में ये जीव-जंतु पूरी तरह अनुपस्थित हैं।

इस तथ्य के अनेक प्रमाण हैं कि पुरातन काल में रामसेतु का प्रयोग भारत और
श्रीलंका के बीच में भूमार्गके तौर पर किया जाता था। बौद्ध धर्म के इतिहास में
भी इस बात का जिक्र है कि अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उनकी पुत्री
संघमित्राव पुत्र महेंद्र इसी पुल के रास्ते आज से लगभग 2300वर्ष पूर्व भारत से
श्रीलंका बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए पहुंचे थे। महाकवि कालिदासद्वारा
रचित रघुवंशम्में राम सेतु का वर्णन नासा द्वारा दिए गए चित्रों से बिल्कुल
मिलता है। महाभारत, विष्णुपुराणतथा अग्निपुराणमें भी इस पुल के बारे में लिखा
गया है। दक्षिण भारत तथा श्रीलंका के अत्यंत प्राचीन सिक्कों पर भी इस
रामसेतु पुल के चित्र उपलब्ध हैं। प्राकृत साहित्य में 7वींसे 12वींसदी के बीच
इस रामसेतुको सेतुबंध का नाम दिया गया था। रामसेतुका नाम एडम्स ब्रिज सोलहवीं शताब्दी में यूरोपवासियों के भारत आने के बाद पडा। 16वींतथा 17वींशताब्दी में बने दो डच मानचित्र तथा एक फ्रेंच मानचित्र में एडम्सब्रिज अर्थात रामसेतु को रामेश्वरम्तथा तलाईमन्नार (श्रीलंका) के बीच क्रियात्मक भूमार्गदर्शाया गया है। सन् 1803 के मद्रास प्रेसिडेंसीके अंग्रेजी सरकार द्वारा जारी गजट में लिखा गया है कि 15वीं शताब्दी के मध्य तक रामसेतु का प्रयोग तमिलनाडु से श्रीलंका जाने के लिए किया जाता था, परंतु बाद में एक भयंकर तूफान से इस पुल का बडा भाग समुद्र में डूब गया। 14वर्ष के वनवास में श्रीराम ने जिन स्थानों की यात्रा की उनका क्रमिक विवरण अनुसंधानकारों ने (विशेषकर श्रीराम अवतार ने) अयोध्या से लेकर रामेश्वरम्तक उन स्थानों की यात्रा की, जहां वनवास की अवधि में श्रीराम गए थे और पाया कि 195 स्थानों पर आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं। वाल्मीकि रामायण में श्रीराम द्वारा वनवास के समय गमन किए गए स्थानों का विवरण मिलता है, जिनमें कई नदियों तथा सरोवरों के किनारे स्थित ऋषि आश्रमों का भी उल्लेख है। इनमें से कई स्थानों में अभी भी स्मारक स्थल हैं तथा स्थानीय लोग यह मानते हैं कि प्रभु राम वास्तव में उन जगहों पर आए थे। —

Friday, June 29, 2012

ऐसे थे जाट

झूठ नहीं थे जाट लूटेरे ,जो तारीख के पाठां में 
लूटन खातर ताकत चाहिए ,जो थी बस जाट्टां में ...........................

सोमनाथ के मंदिर का सब धर्या ढक्या उघाड़ लेग्या,
मोहम्मद गजनी लूट मचाके सारा सौदा पाड लेग्या |
हीरे-पन्ने कंनी-मंनि चन्दन के कीवाड़ लेग्या ,
सब सामान लाद के चाल्या सत्रह सौ ऊँट लिए ,
कोए भी ना बोल सक्या सब के गोडे टूट लिए |
मोहम्मद गजनी आया था एक जाट्टां की आटआँ में ...................................

ब्रज का योधा जाट गोकुला औरन्ग्जेब ने मार दिया ,
सिकरी का महल किला जाट्टां ने उजाड़ दिया |
ताजमहल में लूट मचाई सारा गुस्सा तार दिया ,
राजाराम जाट ने लड़के दिल्ली की गद्दी हिला दई |
औरन्ग्जेब की मरोड़ तोड़ के माटी के महाँ मिला दई |
कबर खोद अकबर की हाड़ी चिता बणा कें जला दई |
एक चूडामण ने मुगलां की लई खाल तार साट्टयाँ तें ..............................................

भरतपुर के सूरजमल को मुगलां ने धोखे तें मार्या ,
उसका बेटा होया जवाहर सिंह लाल किले पे जा लल्कार्या |
लालकिला जीत लिया लूट लिया माल सारा |
धोखा पट्टी सीखी नहीं जंग में पछाड़ ल्याए ,
मुगलां का सिंघासन जाट दिल्ली तें उखाड़ ल्याए |
साथ में नजराना अर किले के कीवाड़ ल्याए ,
देशभक्ति का खून बहे इन् जट्टां की गान्ठ्या में .................................................. .

जाते-जाते सिकंदर को कर्या भगोड़ा जट्टां ने ,
मुग़ल अर अंग्रेजों को ना बिलकुल छोड्या जाट्टां ने |
कलनौर की बौर काढ दी कोला तोड्या जाट्टां ने |
जलालत की जिंदगी नहीं गंवारा जाट्टां ने |
जिहने भी न्योंदा घाल्या राख्या नहीं उधारा जाट्टां ने |
प्रथ्विराज का कातिल मोहम्मद गोरी मार्या जाट्टां ने |
कहे "जयप्रकाश घुशकाणी" के ,थारे कमी नहीं ठाठां में .

Monday, June 11, 2012

अमर शहीद वीर कान्हा रावत




अभी २५ मई को जब गाँव बहीन में बाबा रामदेव जी कि जनसभा हुई तो वहाँ दादा कान्हा अमर रहे के नारे लगाये जा रहे थे थे, मैंने भी पहली बार उसी दिन उनका नाम सुना था, फिर कुछ लोगो से मैंने उनके बारे में जाना , उनकी शहादत कि कहानी सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए, सच में हमारा इतिहास शहादतो से भरा पड़ा है, सभी धर्मो और सभी जातियों के लोगो ने कुर्बानियां दी , पर हमारा दुर्भाग्य है कि आज हम उनकी शहादत कि कहानी तो दूर उनका नाम तक नही जान पाते हैं.. ऐसे ही एक वीर शहीद दादा कान्हा कि दास्तान आप सब के साथ शेयर करते हुए गर्व महसूस कर रहा हूँ .....




कान्हा रावत

हिंदुस्तान का इतिहास बलिदानी, साहसी देशभक्त वीरों की वीरगाथा से भरा पडा है. ऐसे वीर जिन्होंने भारतीय संस्कृति, रीति-रिवाजों और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के निकट वीरभूमि हरियाणा वैदिक सभ्यता नैतिकता, विशाल त्याग, यज्ञों की स्थली तथा विद्वानों की कर्म स्थली रही है. यहां के रणबांकुरों ने समय-समय पर देश की रक्षा व स्वाभिमान के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी.
धर्म बलिदानी कान्हा रावत का जन्म दिल्ली से ६० मील दक्षिण में स्थित रावत जाटों के उद्गम स्थान बहीन गाँव में चौधरी बीरबल के घर माता लाल देवी की कोख से संवत १६९७ (सन १६४०) में हुआ. वह समय भारत में मुग़ल साम्राज्य के वैभव का था. हर तरफ मुल्ले मौलवियों की तूती बोलती थी. कान्हा ने जन्म से ही मुग़लों के अत्याचारों के बारे में सुना था. यही कारण था कि कान्हा को छोटी अवस्था से ही लाठी, भाला, तलवार, ढाल चलाने की शिक्षा दी गई.

पांच गावों (बहीन, नागल जाट, अल्घोप, पहाड़ी, और मानपुर) की एक महापंचायत हुई थी जिसमे कान्हा रावत के अध्यक्षता में निर्णय लिए गए थे -
हम अपना वैदिक हिन्दू धर्म नहीं बदलेंगे.
मुसलमानों के साथ खाना नहीं खायेंगे.
कृषि कर अदा नहीं करेंगे.
रावत पंचायत के निर्णयों की खबर जब औरंगजेब को लगी तो वह क्रोध से आग बबूला हो उठा. उसने अब्दुल नवी सेनापति के अधीन एक बहुत बड़ी सेना बहीन पर आक्रमण के लिए भेजी. सन १६८४ में बहिन गाँव को चारों तरफ से घेर लिया. रावतों और मुग़ल सेना में युद्ध छिड़ गया. रावत जाटों ने मुग़ल सेना के छक्के छुडा दिए. यदि फिरोजपुर झिरका से मुग़लों को नई सैन्य टुकड़ी का सहारा नहीं मिलता तो मैदान रावत जाटों के हाथ रहता. लेकिन मुगलों की बहुसंख्यक, हथियारों से सुसज्जित सेना के आगे शास्त्र-विहीन रावत जाट आखिर कब तक मुकाबला करते. इस युद्ध में पांचों रावत गांवों के अलावा अन्य रावत जाट भी लड़े थे और अनुमानतः २००० से अधिक रावत वीरगति को प्राप्त हुए थे. रावत जाटों के नेता कान्हा रावत को गिरफ्तार कर लिया गया.


कान्हा रावत को जिन्दा जमीन में गाड़ा

सात फ़ुट लम्बे तगड़े बलशाली युवा कान्हा रावत को गिरफ्तार करके मोटी जंजीरों से जकड़ दिया गया. उसके पैरों में बेडी, हाथों में हथकड़ी तथा गले में चक्की के पाट डालकर कैद करके दिल्ली लाया गया. वहां उसको अजमेरी गेट की जेल में बंद कर दिया गया. उसी जेल के आगे गढा खोदा गया. कान्हा को प्रतिदिन उस गढे में गाडा जाता था तथा अमानवीय यातनाएं दी जाती थी लेकिन वह इन अत्याचारों से भी टस से मस नहीं हुआ.
शेर पिंजरे में बंद होकर भी दहाड़ रहा था -
'जिन्दा रहा तो फिर क्रांति की आग सुलगाऊंगा'
रावतों के इतिहास के लेखक सुखीराम लिखते हैं कि - कान्हा रावत के कष्टों की दास्ताँ से निर्दयी औरंगजेब का दिल भी पसीज गया. एक दिन वह प्रात काल की वेला में अजमेरी गेट की जेल गया. कान्हा रावत की हालत देख वह बोला -
"वीर रावत मैं तुम्हारी वीरता का कायल हूँ और तुम्हें माफ़ करना चाहता हूँ. तेरी युवा अवस्था है, घर में बैठी तेरी प्राण प्यारी विरह में रो-रोकर सूख कर कांटा हो गई है. तेरी माँ, बहन-भाई और रिश्तेदार बेहाल हैं. बहुत दिनों से रावतों के घर में दीपक नहीं जले हैं. किसी ने भी भर पेट खाना नहीं खाया है. तुम्हारे जैसा सात फ़ुट का होनहार जवान अपने दिल की उमंगों को साथ लिए जा रहा है. मुझे इसका अफ़सोस है. अरे पगले ! अपने ऊपर और अपनों पर रहम कर. यदि तू मेरी बात मानले तो तुझे मैं जागीर दे सकता हूँ. सेनापति बना सकता हूँ. तेरी मांगी मुराद पूरी हो सकती है. मेरे साथ चल. बाल कटवा, नहा धो और अच्छे कपडे पहन. दोनों साथ मिलकर खाना खयेंगे. अब बहुत हो चूका. तेरी हिम्मत ने मुझे हरा दिया है. अब तो दोस्ती का हाथ बढा दे."
औरंगजेब की बात सुनकर वीर कान्हा रावत ने जवाब दिया था -
"बादशाह तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ है. खाना ही खाना होता, जागीर ही लेनी होती तो यहाँ इस तरह नहीं आता, इतना जान माल का नुकसान नहीं होता. मैंने सुब कुछ सोच विचार कर यह करने का निश्चय किया है. तुम ज्यादा से ज्यादा मुझे फांसी लगवा सकते हो, गोली से मरवा सकते हो या जमीन में दफ़न करवा सकते हो लेकिन मेरे अन्दर विद्यमान स्वाभिमान तथा देश एवं धर्म के प्रति प्रेम को तुम मार नहीं सकते. हाँ यदि तुझे मुझ पर रहम आता है तो बिना शर्त रिहा करदे."
औरंगजेब अपमान का घूँट पीकर चला गया.
कान्हा रावत ने औरंगजेब के साथ खाना खाने से इंकार कर दिया. उसको अपना धर्म त्यागना भी स्वीकार नहीं था. उसने अब्दुन नबी (मुग़ल सेनापति) के विरोध में उठने वाले किसान-आन्दोलन को नंदराम और गोकुला के साथ मिलकर हवा दी थी. इस जाट वीर ने प्राण भय से स्वधर्म और संघर्ष नहीं छोडा था. उसने जजिया कर के खिलाफ डटकर लडाई लड़ी थी.
एक दिन बड़ी मुश्किल से मिलने की इजाज़त लेकर कान्हा का छोटा भाई दलशाह उसे मिलने के लिए आया. उस समय कान्हा के पैर जांघों तक जमीन में दबाये हुए थे तथा हाथ जंजीरों से जकडे हुए थे. कोड़ों की मार से उसका शरीर सूखकर कांटा हो गया था. दलशाह से यह दृश्य देखा नहीं गया तो उसने कान्हा से कहा भाई अब यह छोड़ दे. तब कान्हा तिलमिला उठा और बोला:
"अरे दलशाह यह तू कह रहा है. क्या तू मेरा भाई है. क्या तू रावतों की शान में कायरता का कलंक लगाना चाहता है. मैंने तो सोचा था कि मेरा भाई अब्दुन नबी की मौत की सूचना देने आया है. ताकि मैं शांति से मर सकूं. मैंने तो सोचा था कि मेरे भाई ने मेरा प्रतोशोध ले लिया है. मैंने सोचा था कि तू रौताई (रावत पाल) का कोई हाल सुनाने आया है और मेरा सन्देश लेने आया है. लेकिन तुझे धिकार है. तू यहाँ आने से पहले मर क्यों नहीं गया. तूने मेरी आत्मा को छलनी कर दिया है."
कान्हा का छोटा भाई दलशाह कान्हा को प्रणाम कर माफ़ी मांग कर वापिस गया. कान्हा रावत के छोटे भाई दलशाह ने रावतों के अतिरिक्त उस क्षेत्र के अनेक गावों के जाटों को इकठ्ठा कर अब्दुल नवी पर हमला बोल दिया. यह खबर कान्हा को उसकी मृत्यु से एक दिन पहले मिली. इस खबर से कान्हा को बड़ी आत्मिक शांति मिली. इस घटना के बाद औरंगजेब ने कान्हा रावत पर जुल्म बढा दिए. अंत में चैत्र अमावस विक्रम संवत १७३८ (सन १६८२ /सन १६८४) को वीरवर कान्हा रावत को जिन्दा ही जमीन में गाड दिया. वह देशभक्त हिन्दू धर्म की खातिर शहीद होकर अमरत्व को प्राप्त किया.
कान्हा रावत के बलिदान ने दिल्ली के चारों तरफ बसे जाटों को जगा दिया. चारों और बगावत की ध्वनि गूंजने लगी. यह घटना मुग़ल सल्तनत के हरास का कारण बनी.
जिस स्थान पर कान्हा रावत को जिन्दा गाडा गया था वह स्थान अजमेरी गेट के आगे मौहल्ला जाटान की गली में आज भी एक टीले के रूप में विद्यमान है.
दिल्ली स्थित पहाडी धीरज पर आज भी वह जगह रावतपाडा के नाम से प्रसिद्ध है। कान्हा रावत को विदेशी छतरी को निर्माण कराया, जो आज भी विद्यमान है। रावत पाल के लोगों ने उनकी स्मृति गौशाला का निर्माण कराया, जहां पर हर वर्ष दो दिन का उत्सव मनाया जाता है।
यह वक्त की ही विडम्बना है कि किसी भी राष्ट्रिय स्तर के लेखक ने इस शहीद पर कलम चलाने का प्रयास नहीं किया.. और इतिहास में आज हमे ये पढाया जाता हैं कि जाट लुटेरे थे
 


Sunday, May 20, 2012

SEVEN DANGERS OF COKE & PEPSI (SOFT DRINKS) :: Must read




Friends please "SHARE" this information!!!
For those of you who LOVE Coke/Pepsi:

1) To clean a toilet:
Pour a can of Coca-Cola into the toilet bowl.
Let the "real thing" sit for one hour, then flush clean.
The citric acid in Coke removes stains from vitreous china.
No scrubbing, no sweat - guaranteed.

2) To remove rust spots from chrome car bumpers:
Rub the bumper with a crumpled-up piece of aluminum foils dipped in Coca-Cola.
Much economical than the stuff from Smart Shop.

3) To clean corrosion from car battery terminals;
Pour a can of Coca-Cola over the terminals to bubble away the corrosion.

4) To loosen a rusted bolt;
Applying a cloth soaked in Coca-Cola to the rusted bolt for several minutes.

5) To remove grease from clothes;
Empty a can of Coke into a load of greasy clothes, add detergent, and run through a regular cycle.
6) The Coca-Cola will help loosen grease stains. It will also clean road haze from your windshield.
The world's first soft drink disguise as a multi-purpose cleaner? Or should it be a multi-purpose cleaner disguise as a soft drink!!!

AND WE DRINK THIS STUFF! Coke & Pepsi ALARMING FACTS!!!

The average pH of soft drinks, e.g. Coke, Pepsi is pH 3.4. This acidity is strong enough to dissolve teeth and bones! Our human body stops building bones at around the age of 30. After that it'll be dissolving about 8-18% of the bones each year through the urine, depending on the acidity of the food intake (acidity does not depend on the taste of the food, but on the ratio of potassium / calcium / magnesium / etc. to phosphorus).

All the dissolved calcium compounds accumulate in the arteries, veins, skin tissue, and organs. This affects the functioning of the kidney (kidney stones). Soft drinks do not have any nutritional value (in terms of vitamins and minerals). They have higher sugar content, higher acidity, and more additives such as preservatives and colourings.

Some people like to take cold soft drinks after each meal, guess what's the impact? Our body has an optimum temperature of 37 degrees for the functioning of digestive enzymes. The temperature of cold soft drinks is much less than 37, sometimes quite close to 0. This will lower the effectiveness of the enzymes and put stress on the digestive system, digesting less food. In fact the food gets fermented. The fermented food produce bad smelling gases, decays and forms toxins, which are absorbed in the intestines, get circulated in the blood and is delivered to the whole body. This spread of toxins can lead to the development of various diseases. Think before you drink Coke or Pepsi or any another soft drinks.

Have you ever thought what you drink when you drink an aerated drink? You gulp down carbon dioxide, something that no sane person in the world would advise you to do. Few months ago, there was a competition in Delhi University "Who can drink the most Coke?". The winner drank 8 bottles and died on the spot because too much carbon dioxide in the blood and not enough oxygen. From then on, the principal banned all soft drinks from the university canteen.

Someone put a broken tooth in a bottle of Pepsi and in 10 days it is dissolved! Teeth and bones are the only human organs that stay intact for years after death. Imagine what the drink must be doing to your delicate soft intestines and stomach lining!
 

नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया था..? जानिए सच्चाई ...??



नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया था..? जानिए सच्चाई ...??


एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क मियां लूटेरा था ....बख्तियार खिलजी. इसने ११९९ इसे जला

 कर पूर्णतः नष्ट कर दिया।




उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था.


एक बार वह बहुत बीमार पड़ा उसके हकीमों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश कर ली

 ...
मगर वह ठीक नहीं हो सका.

किसी ने उसको सलाह दी... नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र 



जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय विधियों से इलाज कराया जाय


उसे यह सलाह पसंद नहीं थी कि कोई भारतीय वैद्य .

..
उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान रखते हो और वह किसी काफ़िर से .उसका इलाज करवाए फिर भी उसे 



अपनी जान बचाने के लिए उनको बुलाना पड़ा


उसने वैद्यराज के सामने शर्त रखी..

.
मैं तुम्हारी दी हुई कोई दवा नहीं खाऊंगा...


किसी भी तरह मुझे ठीक करों ..

.
वर्ना ...मरने के लिए तैयार रहो.


बेचारे वैद्यराज को नींद नहीं आई... बहुत उपाय सोचा...


अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर चले गए.

.
कहा...इस कुरान की पृष्ठ संख्या ... इतने से इतने तक पढ़ लीजिये... ठीक हो जायेंगे...!


उसने पढ़ा और ठीक हो गया ..


जी गया...



उसको बड़ी झुंझलाहट हुई...उसको ख़ुशी नहीं हुई


उसको बहुत गुस्सा आया कि ... उसके मुसलमानी हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है...!

बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले ...उनको पुरस्कार देना तो दूर .

..
उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया ...पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया...!

वहां इतनी पुस्तकें थीं कि ...आग लगी भी तो तीन माह तक पुस्तकें धू धू करके जलती रहीं


उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले.


आज भी बेशरम सरकारें...उस नालायक बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं... !


उखाड़ फेंको इन अपमानजनक नामों को..

.

मैंने यह तो बताया ही नहीं... कुरान पढ़ के वह कैसे ठीक हुआ था.


हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते...


थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते


मिएँ ठीक उलटा करते हैं..... कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के पलटते हैं...!

बस.

..
वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था..

.
वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज चाट गया...ठीक हो गया और उसने इस एहसान का बदला नालंदा


को नेस्तनाबूत करके दिया






आईये अब थोड़ा नालंदा के बारे में भी जान लेते है

यह प्राचीन भारत में उच्च् शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के