Saturday, December 1, 2012

अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा है, ना कि विश्व भाषा:


ये अफवाह फैलाई जाती है कि अंग्रेजी एक विश्व-भाषा है, इसका नतीजा ये होता है कि हम समझने लगते हैं कि दुनिया का सारा ज्ञान अंग्रेजी में है, जबकि असलियत में कई अन्य भाषाओँ में अंग्रेजी से अच्छे कार्ये हुए हैं, अनुसन्धान हुए हैं| हम उनसे या तो  वंचित रह जाते हैं या फिर उन्हें अंग्रेजी अनुवाद के जरिये ही पढते हैं| आज विज्ञान कि जितनी पुस्तकें रुसी भाषा में हैं, दुनिया कि और किसी भाषा में नहीं हैं| जर्मन भाषा में जितने ऊँचे स्तर के दार्शनिक हुए हैं और किसी भाषा में नही हुए|दुनिया के बड़े बड़े अखबार असाई शिम्बून और प्रावदा जापानी और रुसी भाषा में निकलते हैं न कि अंग्रेजी भाषा में| कला, संगीत, चित्रकारी, पुरातत्व आदि विषयों पर आज भी फ़्रांसिसी भाषा फ्रेंच में जितना गहन और प्रचुर साहित्य उपलब्ध है, उसकी तुलना में अंग्रेजी साहित्य पासंग के बराबर भी नहीं है|
दुनिया के इतिहास तो सर्वाधिक प्रभावित करने वाली पुस्तकें- बाइबल, वेद, कुरआन, धम्मपद, जिन्दवेस्ता, दास कापिटल- आदि भी अंग्रेजी में नही लिखी गयी| लेकिन जिन लोगो के दिमाग पर अंग्रेजी का भूत सवार है, उनके लिए सारे तथ्य निरर्थक हैं| उनके लिए चर्चिल अगर अंग्रेज था तो नपोलियन भी अंग्रेज ही होगा|ग्लेडस्टोन अगर अंग्रेजी बोलता था , तो लेनिन भी अंग्रेजी बोलता होगा| दुनिया का सारा ज्ञान, साहस, शौर्य, प्रतिभा सब कुछ अंग्रेजी में है, ऐसा सोचने वाला दिमाग छोटा और संकुचित दिमाग है,  वह विश्व स्तर पर सोचने वाला दिमाग बन ही नही सकता....
वन्देमातरम.......

अंग्रेजी कि बैशाखिया:


अंग्रेजी के प्रति हमारे एकांगी प्रेम का परिणाम ये हुआ है कि भारत अपने पुराने मालिक इंग्लैंड से और उसके नए उतराधिकारी अमेरिका से एक पिछलग्गू कि तरह काफी अच्छी तरह जुड गया है, लेकिन बाकि दुनिया से उसके अच्छे रिश्ते कायम नही हो पाए हैं|अंग्रेजों के कुछ पुराने गुलाम देशों जैसे पकिस्तान , बर्मा , लंका, घना आदि और जहाँ अंग्रेज जाकर बस गए थे ऐसे देशों जैसे अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि तो छोड़ कर दुनिया के किसी भी देश में अंग्रेजी का प्रयोग नही होता, और पुराने गुलाम देशो में भी अंग्रेजी का प्रयोग सिर्फ नौकरशाह और अंग्रेजी तालीम-याफ्ता लोग करते हैं.. उनकी संख्या प्राय: 2% से भी कम होती है|

अंग्रेजी को विश्व भाषा मान लेने का सीधा दुष्परिणाम यह हुआ है कि दुनिया के हर देश के साथ हम अंग्रेजी में व्यवहार करते हैं चाहे वहाँ कि भाषा जर्मन हो, रुसी हो, चीनी हो, अरबी हो या फ़ारसी हो| हर रोग का हमारे पास एक ही इलाज है -जमाल घोटा |इसी का नतीजा है कि जब विजय लक्ष्मी पंडित जब राजदूत का पद ग्रहण करने रूस गई तो उनके अंग्रेजी में लिखे परिचय पत्र को स्टालिन ने उठा कर फेंक दिया और पूछा कि क्या आपकी अपनी कोई भाषा नही है?
हमारे देश के राजदूत को जब किसी देश में नियुक्त किया जाता है तो वो उस देश कि भाषा नहीं सीखते सिर्फ अंग्रेजी से काम चला लेने कि असफल कोशिश करते रहते हैं| उस देश के राजनीतिज्ञ क्या सोचते हैं, उस देश कि जनता का विचार प्रवाह किस तरफ जा रहा है, उस देश के अखबार क्या लिख रहे हैं, ये सब हमारे राजदूतों तो तभी पता चल सकता हैं और जल्दी पता लगा सकता है जब वो वहाँ कि स्थानीय भाषा को जानते हो| प्राय: होता यह है कि या तो दुभाषिये के जरिये सूचनाएं इकठ्ठी करते हैं या फिर तब तक हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहते हैं जब तब तक लन्दन या न्यूयोर्क के अंग्र्रेजी अखबार उन्हें पढ़ने को ना मिले |वे अंग्रेजी कि बैसाखियों के सहारे चलते हैं, नकली बैसाखियाँ असली पैरों से भी अधिक प्यारी हो गयी हैं| जो कौम बैसाखियों के सहारे चलती है वह हजार साल कि यात्रा के बावजूद भी खुद को वहीँ खड़ा पाती है, जहाँ से उसने पहले यात्रा शुरू कि थी........

Friday, October 19, 2012

आप सब से एक विनती है !!!

आप सभी से विनती है कि भगवान से दुआ करें कि प्यारे अंकल जी जहाँ कहीं भी हो सही सलामत हों और जल्द से जल्द घर लौट आयें.......
plz..!!!
(He is missing since 16-10-2012 from Ambala)
agar aapko is baare me koi b jaankari mile to jaruru sampark karein.
09467116029, 09416026383, 09416461037
pls... aapki thodi si satarkta kisi ghar ki khushiyaan lauta sakti hai.
call me at 9671415432

Plz share it...


Monday, October 15, 2012

जन भावनाओं के विपरीत काम कर रहे हैं हमारे जन प्रिय नायक और युवाओं के चालाक आदर्श पुतले....आखिर इनके पास जनता की गाढ़ी कमाई का ही चूसा हुआ पैसा है न..


कालाधन विदेश से वापस लाने के अभियान में इन्होने अभी तक अपनी जबान क्यों नहीं खोली, फिल्मो में और दर्शकों से आदर्श दर्शाने वाले इन चालाक भेदियो को क्या जनता की आकांक्षा समझ में नहीं आती है.



मीडिया क्रिकेट और फिल्म का महिमा मंडन करती है, लोग फिर उसको देखने जाते हैं, समय और पैसा बरबाद करते हैं, फिर ये  विदेशी और नुकसान देह चीजों का प्रचार करते हैं जिससे इन चालाक भेडियो के समर्थक इन उत्पादों की जम कर खरीदी करते हैं, जिससे कंपनियों को खूब पैसा जाता है, इन पैसो से इन हीरो-हिरोइनों-खिलाडियों को खूब हिस्सा मिलता है, कंपनी उसी कमाई में से मडिया को भी पैसा देती है. यानी ये चालाक आदर्श बने शातिर लोग जनता को बेवकूफ बनाते है और इस देश व् देश की जनता  के बारे में इनकी सोच बहुत ही घिनौनी है...नहीं तो क्या ये---