Thursday, July 25, 2013

विश्व गुरु भारत।

अद्धभुत है।

अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत शोध मण्डल ने प्राचीन पाण्डुलिपियों की खोज के विशेष प्रयास किये। फलस्वरूप् जो ग्रन्थ मिले, उनके आधार पर भरद्वाज का `विमान-प्रकरण´, विमान शास्त्र प्रकाश में आया। इस ग्रन्थ का बारीकी से अध्यन करने पर आठ प्रकार के विमानों का पता चला :
1. शक्त्युद्गम - बिजली से चलने वाला।
2. भूतवाह - अग्नि, जल और वायु से चलने वाला।
3. धूमयान - गैस से चलने वाला।
4. शिखोद्गम - तेल से चलने वाला।
5. अंशुवाह - सूर्यरश्मियों से चलने वाला।
6. तारामुख - चुम्बक से चलने वाला।
7. मणिवाह - चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त मणियों से चलने वाला।
8. मरुत्सखा - केवल वायु से चलने वाला।

इसी ग्रन्थ के आधार पर भारत के बम्बई निवासी शिवकर जी ने Wright brothers से 8 वर्ष पूर्व ही एक विमान का निर्माण कर लिया था

विमानों के तीन मुख्य प्रकार बतलाए गए हैं : मांत्रिक, तांत्रिक तथा यांत्रिक। मांत्रिक विमान वे हैं जो मंत्रों की शक्ति द्वारा निर्माण किए जाते हैं तथा चलाए जाते हैं। महर्षि भारद्वाज का कथन है कि सतयुग अथवा कृतयुग में मनुष्यों में इतनी आध्यात्मिक शक्ति होती थी कि वे बिना किसी यान की सहायता के स्वयं उड़ सकते थे, जैसे नारद मुनि । त्रेता युग में वे मंत्र-सिद्ध कर विमान-निर्माण कर उनमें उड़ सकते थे। पुष्पक विमान मांत्रिक विमान था (और ऐसे विमानों के पच्चीस प्रकार थे)।
अध्याय 16 के श्लोक 42 आदि में तांत्रिक विमानों का अत्यंत संक्षिप्त वर्णन है : द्वापर में मनुष्यों के ‘तंत्र प्रभाव’ (वस्तुयोग्य-प्रभाव) की अधिकता से सब विमान ‘तंत्र प्रभाव’ से संपन्न किए जाते थे। द्वापर युग में 56 प्रकार के तांत्रिक विमान थे। यांत्रिक (कृतक या मानव निर्मित) विमानों के 25 भेद बतलाए गए।

Sunday, July 14, 2013

टांगीनाथ धाम , मझगाँव झारखंड।

हमारे शास्त्रों में वर्णन किया गया है परशुराम जी अमर है,सहस्त्रबाहु का वध करने के बाद परशुराम ने महर्षि कश्यप के सानिध्य में अश्वमेघ यज्ञ किया था।।तथा सारी धरती को जीत कर कश्यप को दान में दे दी थी।।परशुराम जी के कुछ निशान झारखंड में आज भी मौजूद है .

त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम ने जनकपुर में आयोजित सीता माता के स्वयंवर में शिव जी का धनुष तोड़ा तो वहां पहुंचे भगवान परशुराम काफी क्रोधित हो गए। इस दौरान लक्ष्मण से उनकी लंबी बहस हुई। 

बहस के बीच में ही जब परशुराम को पता चला कि भगवान श्रीराम स्वयं नारायण ही हैं तो उन्हें बड़ी आत्मग्लानि हुई। शर्म के मारे वे वहां से निकल गए और पश्चाताप करने के लिए घने जंगलों के बीच एक पर्वत श्रृंखला में आ गए। यहां वे भगवान शिव की स्थापना कर आराधना करने लगे। बगल में उन्होंने अपना परशु अर्थात फरसे को गाड़ दिया।

परशुराम ने जिस जगह फरसे को गाड़ कर शिव जी की अराधना की वह झारखंड प्रांत के गुमला जिले में स्थित डुमरी प्रखंड के मझगांव में स्थित है। झारखंड में फरसा को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस स्थान का नाम टांगीनाथ धाम पड़ गया। धाम में आज भी भगवान परशुराम के पद चिह्न मौजूद हैं।

कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान परशुराम ने लंबा समय बिताया। टांगीनाथ धाम, इसका पश्चिम भाग छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ जिला व सरगुजा से सटा हुआ है। वहीं उत्तरी भाग पलामू जिले व नेतरहाट की तराई से घिरा हुआ है। छोटानागपुर के पठार का यह उच्चतम भाग है, जो सखुवा के हरे भरे वनों से आच्छादित है।

जमीन में 17 फीट धंसे इस फरसे की ऊपरी आकृति कुछ त्रिशूल से मिलती-जुलती है। इसलिए स्थानीय लोग इसे त्रिशूल भी कहते हैं। सबसे आश्चर्य की बात कि इसमें कभी जंग नहीं लगता। खुले आसमान के नीचे धूप, छांव, बरसात, ठंड का कोई असर इस त्रिशूल पर नहीं पड़ता है। अपने इसी चमत्कार के कारण यह विश्वविख्यात है। 

कहा जाता है टांगीनाथ धाम में साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं। सावन व महाशिवरात्रि में यहां हजारों की संख्या में शिवभक्त आते हैं इसके पीछे भी एक बड़ी ही रोचक कथा है। कहते हैं शिव इस क्षेत्र के पुरातन जातियों से संबंधित थे। शनिदेव के किसी अपराध के लिए शिव ने त्रिशूल फेंक कर वार किया। त्रिशूल डुमरी प्रखंड के मझगांव की चोटी पर आ धंसा। लेकिन उसका अग्र भाग जमीन के ऊपर रह गया। त्रिशूल जमीन के नीचे कितना गड़ा है, यह कोई नहीं जानता। 17 फीट एक अनुमान ही है।

टांगीनाथ धाम में कई पुरातात्विक व ऐतिहासिक धरोहर हैं। यहां की कलाकृतियां व नक्काशियां देवकाल की कहानी बयां करती है। साथ ही कई ऐसे स्रोत हैं, जो त्रेता युग में ले जाते हैं। इन स्रोतों का अध्ययन किया जाए, तो गुमला जिले को एक अलग पहचान मिल सकती है।

1989 ई. में पुरातत्व विभाग ने टांगीनाथ धाम के रहस्यों से पर्दा हटाने के लिए अध्ययन किया था। यहां जमीन की भी खुदाई की गई थी। उस समय भारी मात्रा में सोने व चांदी के आभूषण सहित कई बहुमूल्य वस्तुएं मिली थीं। लेकिन कतिपय कारणों से खुदाई पर रोक लगा दिया गया। इसके बाद टांगीनाथ धाम के पुरातात्विक धरोहर को खंगालने के लिए किसी ने पहल नहीं की।

खुदाई से हीरा जड़ा मुकुट, चांदी का सिक्का (अद्र्ध गोलाकार), सोना का कड़ा, कान की बाली सोना का, तांबा का टिफिन जिसमें काला तिल व चावल मिला था, जो आज भी डुमरी थाना के मालखाना में रखे हुए हैं।

टांगीनाथ धामों में यत्र तत्र सैकंडों की संख्या में शिवलिंग है। बताया जाता है कि यह मंदिर शाश्वत है। स्वयं विश्वकर्मा भगवान ने टांगीनाथ धाम की रचना की थी। वर्तमान में यह खंडहर में तब्दील हो गया है। यहां की बनावट, शिवलिंग व अन्य स्रोतों को देखने से ऐसा लगता भी है कि इसे आम आदमी नहीं बना सकता है।

त्रिशूल के अग्र भाग को मझगांव के लोहरा जाति के लोगों ने काटने का प्रयास किया था। त्रिशूल कटा नहीं, पर कुछ निशान हो गए। इसकी कीमत लोहरा जाति को उठानी पड़ी। आज भी इस इलाके में 10 से 15 किमी की परिधि में इस जाति का कोई व्यक्ति निवास नहीं करता। अगर कोई निवास करने का प्रयास करता है, तो उसकी मृत्यु को हो जाती है। टांगीनाथ धाम में विश्रामागार नहीं है। लाइट की व्यवस्था, चलने लायक सड़क नहीं है।""

Thursday, July 11, 2013

ये दिल मांगे कैंसर ।

पेप्सी में मिले खतरनाक स्तर तक कैंसरकारी तत्व.....!!! स्वामी रामदेव जी इतने सालों से बोल बोल कर थक गये कि ठंडा मतलब टॉयलेट क्लीनर लेकिन कूल डूड्स के कानों पर जू तक नहीं रेंगी....अब पियो ठंडा और बुलाओ अपनी मौत.... सबूत :- Whttp://bit.ly/17TB8AK

Thursday, July 4, 2013

राजीव दिक्षित जी।

आपने श्री राजीव दीक्षित जी के बारे में कई बार
सुना होगा पर क्या आप उनके कार्यों के बारे में
भी जानते है ??
अगर आपके ह्रदय में अपने देश के लिए
थोडा सा भी प्रेम है तो कृपया थोडा सा समय
निकाल कर एक बार श्री राजीव दीक्षित जी के
बारे में अवश्य जाने।
यहाँ श्री राजीव दीक्षित जी द्वारा किये गए कुछ
कार्यो के बारे में एक संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत
किया गया है। नीचे लिखे गए किसी भी कार्य के
बारे में पूरी जान
कारी के लिए उनके व्याख्यान सुने। www.rajivdixit.
com
* भोपाल गैस हत्याकांड की गुनाहगार
कंपनी (UNION CARBIDE - एक अमेरिकी कंपनी)
जिसकी वजह से २२,००० लोगो की जान गयी, उस
कंपनी को हमारी सरकार ने माफ़ कर
दिया था लेकिन श्री राजीव दीक्षित जी को यह
बात नहीं जमी और उन्होंने इस २२,००० बेगुनाह
भारतीयों की हत्या करने वाली कंपनी को इस देश से
भगाया।
* श्री राजीव दीक्षित जी ने १९९१ में डंकल प्रस्ताव
के खिलाफ घूम-घूम कर जन-जागृति की और
रैलियाँ निकालीं।
* उन्होंने विदेशी कंपनियों द्वारा हो रही भारत
की लूट, खासकर कोका कोला और पेप्सी जैसे प्राण
हर लेने वाले, जहरीले कोल्ड ड्रिंक्स आदि के खिलाफ
अभियान चलाया और कानूनी कार्यवाही की।
* १९९१-९२ में राजस्थान के अलवर जिले में
केडिया कम्पनी (जो हर दिन चार करोड़ लीटर दारू
बनाने वाली थी) के शराब-कारखानों को बन्द
करवाने में श्री राजीव भाई जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण
भूमिका निभायी।
* १९९५-९६ में टिहरी बाँध के खिलाफ ऐतिहासिक
मोर्चे में उन्होंने बहुत संघर्ष किया और वहाँ पर हुए
पुलिस लाठी चार्ज में उन्हें काफी चोटें भी आई।
इसी प्रकार श्री राजीव दीक्षित जी ने CARGILL,
DU PONT, केडिया जैसी कई
बड़ी विदेशी कंपनियों को भगाया जो इस देश को बड़े
पैमाने पर लूटने की नियत से इस देश में
अपना डेरा जमाना चाहती थी।

भारत को पुनः विश्वगुरु कैसे बनाया जाये, इसका बहुत
ही सरल और प्रमाणिक उपाय श्री राजीव दीक्षित
जी ने ही बताये। हमारे देश के हजारों- लाखों साल
पुराने स्वर्णिम अतीत को कई वर्षो तक अध्ययन कर पूरे
देश को इस बारे में बताया और हमारे गौरव से अवगत
करवाया। अंग्रेजी भाषा की सच्चाई के बारे में पूरे देश
को बताया। संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता के बारे
में गहन अध्ययन कर देश को बताया। देश में पहली बार
विदेशी कंपनियों के षड्यन्त्र के बारे में बहुत बड़े स्तर
लोगो पर बताया। स्वदेशी के स्वीकार और विदेशी के
बहिष्कार की बात देश को पूरी प्रमाणिकता के साथ
बताया।
भारत की विश्व को क्या क्या देन रही, इस बारे में
अति महत्वपूर्ण जानकारियां बताई। श्री राजीव
दीक्षित जी ने ही हमें बताया की सबसे पहले प्लेन
का आविष्कार भारत के श्री बापू जी तलपडे ने
किया था वो भी राइट बंधुओ से सात साल पहले। जन
गन मन और वन्दे मातरम की सच्चाई के बारे में
पहली बार पूरे देश को उन्होंने ही बताया। पहली बार
इस देश में श्री राम कथा को एक नए देशभक्ति सन्दर्भ
में प्रस्तुत करने वाले भी श्री राजीव दीक्षित
जी ही है।
उदारीकरण और वैश्वीकरण की सच्चाई को पूरे देश के
सामने रखा और इसके कई दुष्प्रभावों से देश को बचाने
के लिए अपनी अंतिम स्वांस तक प्रयास करते रहे।
हमारे देश के गाँव गाँव में जाकर इस देश की हर एक
समस्या को देखा, समझा तथा उसके निवारण के लिए
प्रभावशाली उपाय बताये और किये।
वो होमियोपेथी और आयुर्वेद के महान विद्वान रहे है।
महर्षि वाघभट्ट जी के "अष्टांग हृदयं" नामक ग्रन्थ
को कई वर्षी तक अध्ययन कर उसे आज की जलवायु एवं
परिस्थितियों के हिसाब से पुनर्रचित
किया तथा बहुत ही सरल तरीकों से उसे आम जनता के
बीच बताया जिससे हम बिना किसी दवाई के, बस
खाने-पीने आदि के समय और सही तरीके मात्र से
स्वस्थ रहने के उपाय बताये।
श्री राजीव दीक्षित ने लाखोँ लोगो के दिलो-
दिमाग में प्रत्यक्ष रूप से
देशभक्ति की ज्वाला नहीं अपितु
धधकता लावा प्रज्वलित किया। इस देश को कैसे
महाशक्ति बनाया जा सकता है, इसके लिए बहुत
ही सरल उपाय बताये जिन उपायों पर आज बहुत से
लोग कार्य कर रहे हैं।
ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए बहुत ही जबरदस्त
उपाय बताये। ग्लोबल वार्मिंग एवं वैश्विक
भुखमरी को एक साथ ख़त्म करने के लिए पूरे प्रमाणों के
साथ सिद्ध किया की अगर
मांसाहारी खाना खाना बंद कर दिया जाये
तो दोनों समस्याओं से एक साथ
छुटकारा पाया जा सकता है। विदेशी षणयंत्रों से
पहली बार पूरे देश को अवगत करवाया। उनके पास हर
एक समस्या का समाधान बहुत ही सरलता और
प्रमाणिकता के साथ उपलब्ध रहता था।

पेट्रोल, डीजल आदि की समस्या का छुटकारा पाने
के लिए कुछ साथियों के साथ मिलकर उन्होंने गोबर
गैस से व्हिकल चलाने के सफल प्रयोग किये जिसमें नाम
मात्र का खर्चा आता है।
श्री राजीव दीक्षित जी ने ही पेप्सी और कोका-
कोला जैसे खतरनाक जहर के बारे में पहली बार पूरे देश
को बताया तथा लोगो को बहुत बड़े स्तर पर जागृत
किया।
हमारे देश की बिजली उत्पादन से सम्बंधित समस्या के
प्रमाणिक उपाय बताये।
उनके द्वारा बताये गए सभी उपाय इतने असरदार,
दमदार और सरल है की उन्हें जिस दिन लागू
किया जाये उसी दिन उस समस्या का समाधान
हो जाये।
उनके ह्रदय में स्वदेश के प्रति इतनी तड़प
थी की वो रात दिन अपने अंतिम स्वांस तक बस स्वदेश
और स्वदेशी के लिए ही कार्य करते रहे। उन्होंने पूरे देश
में १५,००० से अधिक प्रत्यक्ष व्याख्यान दिए और अगर
उनके अप्रत्यक्ष व्याख्यानों (T.V., CD, DVD, Internet
etc) को शामिल किया जाये
तो गिनती करना असंभव हो जायेगा।
श्री राजीव दीक्षित जी ने विभिन्न विषयों पर
अनेकों लेख व पुस्तकें लिखी हैं - बहुराष्ट्रीय
कम्पनियों का मकड़जाल, अष्टांग ह्रदयम्
(स्वदेशी चिकित्सा), हिस्ट्री ऑफ द एमेन्सिस, भारत
और यूरोपीय संस्कृति, स्वदेशी : एक नया दर्शन,
हिन्दुस्तान लिवर के कारनामे आदि आदि।
श्री राजीव दीक्षित ने पिछले ३० वर्षो तक हमारे देश
के लिए कई घातक कानूनों को बनने से रोका तथा कई
अच्छे कानून बनवाने में उनका योगदान रहा। भारतीय
और पश्चिमी संस्कृति, सभ्यता आदि पर गहन अध्ययन
कर पूरे देश के सामने रखा। श्री धर्मपाल जी के साथ
मिलकर हमारे पुराने गौरवशाली इतिहास
को पुनः एकत्रित किया और पूरे देश में प्रचारित
किया।
उन्होंने कई बार अपनी जान पर खेलकर कई घातक
कानूनों और खतरनाक विदेशी कम्पनियों को हमारे
देश में आने से रोका। देश की रक्षा करते हुए उन्हें कई
बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन श्री राजीव
दीक्षित जी पीछे नहीं हटे।
देश हित के कई कार्यो में कई बार उन्हें और उनके
साथियों को लाठियां-गोलियां खानी पड़ी लेकिन
उन्होंने कभी अपने कदम पीछे नहीं बढ़ाये। श्री राजीव
दीक्षित ने भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने के लिए एक
बहुत ही मजबूत आधार बनाकर हमें दिया है जिस पर इस
देश को बहुत जल्द महाशक्ति बनाया जा सकता है।
श्री राजीव दीक्षित
जी बिना मीडिया की सहायता के ही पूरे देश के
कोने कोने में जाकर रात-दिन व्याख्यान देते रहे।
उनकी आवाज जैसे भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आग
उगलने वाली आवाज हो।
उनके सीने में देश के प्रति इतना प्रेम एवं तड़प
थी की जेसे वो एक पल में ही इस देश को पुनः विश्वगुरु
बना दे और अगर आज ही उनके बताये गए
उपायों को हमारे देश में लागू कर दिया जाये तो सच
में एक ही पल में ये देश पुनः विश्वगुरु बन सकता है।

Friday, June 28, 2013

आधे घंटे का एकांत चिंतन आपकी जिंदगी बदल देगा


आधे घंटे का एकांत चिंतन आपकी जिंदगी बदल देगा [Success Sidhi]


हम में से ऐसे कई लोग हैं, जो अकेलेपन से घबराते हैं. हम हमेशा चाहते हैं कि कोई न कोई हमारे पास हो, जिससे हम बातें कर सकें. यदि मजबूरीवश हमें घर में अकेला रहना पड़े, तो हम टीवी, गानों, किताबों, इंटरनेट, अपने पालतू का सहारा लेते हैं.
इस तरह हम सिर्फ अपने दिमाग में तरह-तरह के विचारों को भरना चाहते हैं, ताकि हमारा ध्यान अपनी समस्याओं, चिंताओं, चुनौतियों, बोरियत से हट जायें. लेकिन यदि हम सफल लोगों की दिनचर्या देखें, तो हमें पता चलेगा कि वे सभी तमाम जिम्मेवारियों, लोगों से मीटिंग्स, इंटरव्यूज, काम के बावजूद कुछ घंटे अपने चिंतन के लिए अवश्य निकालते हैं. इस तरह वे खुद के बारे में सोचते हैं. वे अपनी समस्याओं के हल खोजते हैं, आगे की प्लानिंग करते हैं, निर्णय लेते है कि क्या सही है, क्या गलत.
अमेरिका में एक प्रोफेशनल डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत 13 स्टूडेंट्स को दो सप्ताह तक हर दिन एक घंटे तक एकांत में रहने के लिए कहा गया. उनसे कहा गया कि वे सारी बाधाओं से दूर, बिल्कुल एकांत में किसी भी घटना के बारे में रचनात्मक रूप से सोचें. यकीन मानिए, दो सप्ताह बाद उन स्टूडेंट्स के व्यवहार में अंतर आ चुका था. वे आत्मविश्वास से भरे थे. उन्होंने अपनी कई समस्याओं का हल खोज निकाला था. उन्होंने कई बड़े ऐसे निर्णय लिये, जो 100 प्रतिशत सही थे, जिसके लिए वे काफी लंबे समय से परेशान थे.
मेरे एक मित्र ने अपना एक अनुभव सुनाया. उसने बताया कि कुछ दिनों पहले ही उसका एक सहकर्मी से बहुत बड़ा झगड़ा हो गया. उसने आक्रोश में आकर इस्तीफा टाइप किया और बॉस को मेल कर दिया. बॉस ने उसे केबिन में बुलाया और कहा कि इस बात पर आराम से सोचो. इस घटनाक्रम पर शांत दिमाग से एकांत में बैठ कर चिंतन करो और दो दिन बाद अपना निर्णय लो.
दोस्त ने ऐसा ही किया. उसने सुबह के शांत माहौल को चुना और कॉफी पीते हुए उस झगड़े पर सोचा. कई घंटे बीतने के बाद उसे अहसास हुआ कि गलती उसकी ही थी. उसके गुस्से ने बात को बिगाड़ दिया. उसे इस्तीफा नहीं देना चाहिए था. उसे तो सहकर्मी से माफी मांगनी चाहिए थी. वह दूसरे दिन ही ऑफिस गया और उसने उस साथी को सॉरी कहा.
- बात पते की
* हर दिन कम-से-कम तीस मिनट पूरी तरह एकांत में जरूर रहें. इससे आपके जीवन में, सोचने के तरीके में बहुत अंतर आयेगा.
* आप एकांत में किसी समस्या या विषय पर निरपेक्ष ढंग से सोचें और इससे आपको सही जवाब मिल जायेगा. यह खुद को जानने को अचूक तरीका है.