Tuesday, July 30, 2013

जागो रे।

जागो रे
एक राजा था जिसकी प्रजा हम भारतीयों की तरह सोई हुई थी ! बहुत से तीस मार खां लोगों ने कोशिश की प्रजा जग जाए .. अगर कुछ गलत हो रहा है  तो उसका विरोध करे, लेकिन प्रजा को कोई फर्क नहीं पड़ता था !

राजा ने तेल के दाम बढ़ा दिये प्रजा चुप रही
राजा ने अजीबो गरीब टेक्स लगाए प्रजा चुप रही
राजा ज़ुल्म करता रहा लेकिन प्रजा चुप रही

एक दिन राजा के दिमाग मे एक बात आई उसने एक अच्छे-चौड़े रास्ते को खुदवा के एक पुल बनाया .. जबकि वहां पुल की कतई ज़रूरत नहीं थी .. प्रजा फिर भी चुप थी किसी ने नहीं पूछा के भाई यहा तो किसी पुल की ज़रूरत नहीं है आप काहे बना रहे है ?

राजा ने अपने सैनिक उस पुल पे खड़े करवा दिए और पुल से गुजरने वाले हर व्यक्ति से टेक्स लिया जाने लगा फिर भी किसी ने कोई विरोध नहीं किया ! फिर राजा ने अपने सैनिको को हुक्म दिया कि जो भी इस पुल से गुजरे उसको 4 जूते मारे जाए और एक शिकायेत पेटी भी पुल पर रखवा दी कि किसी को अगर कोई शिकायेत हो तो शिकायेत पेटी मे लिख कर डाल दे लेकिन प्रजा फिर भी चुप !

राजा रोज़ शिकायत पेटी खोल कर देखता की शायद किसी ने कोई विरोध किया हो लेकिन उसे हमेशा पेटी खाली मिलती ! कुछ दिनो के बाद अचानक एक एक चिट्ठी मिली ... राजा खुश हुआ के चलो कम से कम एक आदमी तो जागा ,,,,, जब चिट्ठी खोली गयी तो उसमे लिखा था - "हुजूर जूते मारने वालों की संख्या बढ़ा दी जाए ... हम लोगो को काम पर जाने मे देरी होती है !
Yahi india me ho raha hai!

Monday, July 29, 2013

भगवान् को नारियल क्यों अर्पित करते हैं।

भगवान को नारियल क्यों अर्पित किया जाता है?
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आप देखेंगे की मन्दिर में आम तौर पर नारियल अर्पित
किया जाता है. शादी, त्यौहार, गृहप्रवेश, नई गाड़ी के उपलक्ष में
या किसी प्रकार के अन्य उत्सव या शुभ कार्य में भी प्रभु
को नारियल अर्पित किया जाता है.
प्रभु को नारियल अर्पित के पीछे जो मुख्य कारण है, आइये
उनका अवलोकन करे.
नारियल अर्पित करने से पहले उसके सिर के अलावा सारे तंतु
या रेशे उतार लिए जाते है. ऐसे में अब ये नारियल मानव
खोपडी के सामान दीखता है, और इसे फोड़ना इस बात का प्रतीक
है कि हम अपने अंहकार को तोड़ रहे है.
नारियल के अन्दर का पानी हमारी भीतर की वासनाये है,
जो हमारे अंहकार के फूटने पर बह जाती है.
नारियल निस्वार्थता का भी प्रतीक है. नारियल के पेड़ का तना,
पत्ती, फल (नारियल या श्रीफल) मानव को घर का छज्जा,
चटाई, तेल, साबुन आदि बनाने में काम में आता है.
नारियल का पेड़ समुद्र का खारा पानी लेकर मीठा, स्वादिष्ट और
पौष्टिक नारियल और नारियल का पानी देता है.

Thursday, July 25, 2013

सन 2031 में एक बंगलादेशी बनेगा आपके पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री।


वोट बैंक के लालची कुत्तो ने भारत के इस्लामीकरण की कसम खा ली है बंगाल में हिन्दुओ की हालत खराब है बांग्लादेशी मुस्लिम पापुलेशन बहा पर लाखो में कुछ वोट बैंक की बझा से आज TMC में 70 %मुस्लिम नेता है लगता है अब हिन्दुओ को बहा पर जमीर को जगाना अपने हक़ के लिए लड़ो हम आपके साथ है कुल मुस्लिम आबादी बंगाल में 20.240,536 .
पश्चिम बंगाल में वर्तमान विधानसभा चुनावों में बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठियों सरकार के गठन के बारे में फैसला करेंगे. मुस्लिम मतदाताओं भी चुनाव और अतीत में अपनी पसंद की सरकार बनाने की शक्ति के साथ निहित थे. W.Bengal में बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ हैरत की बात है अब केवल मुसलमान मतदाताओं जो राज करेंगे कि तय करेंगे कि राज्य में जनसांख्यिकीय संतुलन बदल गया है. इसके अलावा जम्मू एवं कश्मीर से, W.Bengal आबादी के अनुपात में मुसलमानों की सबसे बड़ी आबादी वाले दूसरे राज्य है. W.Bengal की राजनीति हमेशा मुसलमानों के चारों ओर ध्यान केंद्रित किया है.
ममता खासकर बांग्लादेशी मुसलमानों की बड़े पैमाने पर घुसपैठ की वजह से जनसांख्यिकीय संतुलन काफी बदल गया है जहां क्षेत्रों में आकर्षक मुसलमानों में काफी आगे छोड़ दिया है. ममता और उसकी सेना इस तरह के मुस्लिम बहुल एक दर्जन जिलों में कार्रवाई में मजबूती है और खाद्य प्रसंस्करण संयंत्रों की सब्जियां, फल, मछली और समुद्री भोजन और स्थापना के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए अपने चुनाव घोषणा पत्र में घोषित किया है. मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर और वीरभूम की तरह चारों ओर 12 जिलों में रहने का मतलब है कि इन जिलों में सब्जियां, फल, मछली और समुद्री भोजन और मुसलमानों की आबादी 30 प्रतिशत से 70 प्रतिशत के बीच है. जनगणना 2001 के आंकड़ों के अनुसार, इन जिलों में मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि की दर बहुत ही खतरनाक है. 1991 से 2001 के दशक के दौरान मुस्लिम आबादी में 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. सरकार के सूत्रों का कहना है और राजनीतिक दलों को मुस्लिम आबादी की इस वृद्धि प्राकृतिक नहीं है कि विश्वास करते हैं. बांग्लादेश से घुसपैठ के बिना मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि की दर में अनुपात संभव नहीं है.
इसके अलावा W.Bengal से, बांग्लादेश के साथ सीमा से सटे बिहार और असम के कुछ जिलों में भी उसी तरह से मुस्लिम आबादी में अजीब वृद्धि की सूचना दी है. W.Bengal में कम्युनिस्ट काडर सामूहिक और भारतीय नागरिकता में राशन कार्ड की खरीद करने में बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठियों की मदद की है. 10 प्रतिशत मुस्लिम आबादी की वृद्धि की जनगणना 2011 में अनुमान है, W.Bengal में जाहिर है अब मुस्लिम आबादी 40 प्रतिशत है. सरकारी अधिकारियों ने यह स्वीकार किया है और इस तरह ममता के बीच निर्णायक संघर्ष करता है और मुस्लिम वोटों का यह बड़ा हिस्सा हड़पने के लिए छोड़ दिया. ऐसा लगता है कि ममता का साथ दिया पूरे मुस्लिम आबादी ग्राम नंदी में भूमि आंदोलन के दौरान देखा गया था. इसी प्रकार उत्तर 24 परगना और नादिया जिलों में, Satua समुदाय भी ममता को समर्थन दिया. satua समुदाय 1971 में भारत के लिए चले गए और इसकी जनसंख्या लगभग 60 लाख है.
बांग्लादेशी मूल के मुसलमानों का satua समुदाय बहुत तेजी से बढ़ रही है. रिक्शा खींचने, हॉकरों और मजदूरों के रूप में काम कर रहे बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठियों की संख्या में वृद्धि हुई है और उनके रहने की स्थिति में भी सुधार हुआ है. गैर मुसलमानों को 0.7 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई है जबकि 1991 to2001 से कोलकाता में मुस्लिम आबादी है, लगभग 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई. कोलकाता में उस समय 20 प्रतिशत मुसलमान नहीं थी, लेकिन अब धीरे - धीरे बांग्लादेशी मुसलमानों बांग्लादेश के गांवों की सीमा से कोलकाता के लिए चले गए और बड़ी संख्या में हैं. W.Bengal सरकार के एक हाल ही में सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी ने 2011 की जनगणना के अनुसार, कोलकाता के मुस्लिम आबादी कम से कम 35 प्रतिशत नहीं है कि एक बहुत ही आश्चर्यजनक खुलासा किया गया है.
हिन्दू बंगालियों सबसे बुद्धिजीवी माना जाता है, लेकिन वे 34 साल के लिए वाम दलों का समर्थन किया है और अभी भी छोड़ दिया, तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस की तरह राष्ट्र विरोधी राजनीतिक दलों का समर्थन किया है जिस तरह से, उनका रवैया समझ में आता नहीं है. यह W.Bengal का भविष्य बहुत निराशाजनक है लगता है, और यह उन लोगों के साथ बांग्लादेश में हुआ है के रूप में मुख्य रूप से बंगाली हिंदुओं को अपने ही देश में नरसंहार का सामना करना पड़ेगा. हम भविष्यवाणी की है के रूप में 2031 से अनुमान के रूप में एक बार,, मुसलमानों की आबादी 50 प्रतिशत से अधिक, बंगाली हिंदुओं के बाहर प्रवाह W.Bengal में कोलकाता और अन्य मुस्लिम बहुल जिलों से शुरू होगा और राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में बांग्लादेशी मूल के मुसलमान का चयन करेंगे.

विश्व गुरु भारत।

अद्धभुत है।

अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत शोध मण्डल ने प्राचीन पाण्डुलिपियों की खोज के विशेष प्रयास किये। फलस्वरूप् जो ग्रन्थ मिले, उनके आधार पर भरद्वाज का `विमान-प्रकरण´, विमान शास्त्र प्रकाश में आया। इस ग्रन्थ का बारीकी से अध्यन करने पर आठ प्रकार के विमानों का पता चला :
1. शक्त्युद्गम - बिजली से चलने वाला।
2. भूतवाह - अग्नि, जल और वायु से चलने वाला।
3. धूमयान - गैस से चलने वाला।
4. शिखोद्गम - तेल से चलने वाला।
5. अंशुवाह - सूर्यरश्मियों से चलने वाला।
6. तारामुख - चुम्बक से चलने वाला।
7. मणिवाह - चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त मणियों से चलने वाला।
8. मरुत्सखा - केवल वायु से चलने वाला।

इसी ग्रन्थ के आधार पर भारत के बम्बई निवासी शिवकर जी ने Wright brothers से 8 वर्ष पूर्व ही एक विमान का निर्माण कर लिया था

विमानों के तीन मुख्य प्रकार बतलाए गए हैं : मांत्रिक, तांत्रिक तथा यांत्रिक। मांत्रिक विमान वे हैं जो मंत्रों की शक्ति द्वारा निर्माण किए जाते हैं तथा चलाए जाते हैं। महर्षि भारद्वाज का कथन है कि सतयुग अथवा कृतयुग में मनुष्यों में इतनी आध्यात्मिक शक्ति होती थी कि वे बिना किसी यान की सहायता के स्वयं उड़ सकते थे, जैसे नारद मुनि । त्रेता युग में वे मंत्र-सिद्ध कर विमान-निर्माण कर उनमें उड़ सकते थे। पुष्पक विमान मांत्रिक विमान था (और ऐसे विमानों के पच्चीस प्रकार थे)।
अध्याय 16 के श्लोक 42 आदि में तांत्रिक विमानों का अत्यंत संक्षिप्त वर्णन है : द्वापर में मनुष्यों के ‘तंत्र प्रभाव’ (वस्तुयोग्य-प्रभाव) की अधिकता से सब विमान ‘तंत्र प्रभाव’ से संपन्न किए जाते थे। द्वापर युग में 56 प्रकार के तांत्रिक विमान थे। यांत्रिक (कृतक या मानव निर्मित) विमानों के 25 भेद बतलाए गए।

Sunday, July 14, 2013

टांगीनाथ धाम , मझगाँव झारखंड।

हमारे शास्त्रों में वर्णन किया गया है परशुराम जी अमर है,सहस्त्रबाहु का वध करने के बाद परशुराम ने महर्षि कश्यप के सानिध्य में अश्वमेघ यज्ञ किया था।।तथा सारी धरती को जीत कर कश्यप को दान में दे दी थी।।परशुराम जी के कुछ निशान झारखंड में आज भी मौजूद है .

त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम ने जनकपुर में आयोजित सीता माता के स्वयंवर में शिव जी का धनुष तोड़ा तो वहां पहुंचे भगवान परशुराम काफी क्रोधित हो गए। इस दौरान लक्ष्मण से उनकी लंबी बहस हुई। 

बहस के बीच में ही जब परशुराम को पता चला कि भगवान श्रीराम स्वयं नारायण ही हैं तो उन्हें बड़ी आत्मग्लानि हुई। शर्म के मारे वे वहां से निकल गए और पश्चाताप करने के लिए घने जंगलों के बीच एक पर्वत श्रृंखला में आ गए। यहां वे भगवान शिव की स्थापना कर आराधना करने लगे। बगल में उन्होंने अपना परशु अर्थात फरसे को गाड़ दिया।

परशुराम ने जिस जगह फरसे को गाड़ कर शिव जी की अराधना की वह झारखंड प्रांत के गुमला जिले में स्थित डुमरी प्रखंड के मझगांव में स्थित है। झारखंड में फरसा को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस स्थान का नाम टांगीनाथ धाम पड़ गया। धाम में आज भी भगवान परशुराम के पद चिह्न मौजूद हैं।

कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान परशुराम ने लंबा समय बिताया। टांगीनाथ धाम, इसका पश्चिम भाग छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ जिला व सरगुजा से सटा हुआ है। वहीं उत्तरी भाग पलामू जिले व नेतरहाट की तराई से घिरा हुआ है। छोटानागपुर के पठार का यह उच्चतम भाग है, जो सखुवा के हरे भरे वनों से आच्छादित है।

जमीन में 17 फीट धंसे इस फरसे की ऊपरी आकृति कुछ त्रिशूल से मिलती-जुलती है। इसलिए स्थानीय लोग इसे त्रिशूल भी कहते हैं। सबसे आश्चर्य की बात कि इसमें कभी जंग नहीं लगता। खुले आसमान के नीचे धूप, छांव, बरसात, ठंड का कोई असर इस त्रिशूल पर नहीं पड़ता है। अपने इसी चमत्कार के कारण यह विश्वविख्यात है। 

कहा जाता है टांगीनाथ धाम में साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं। सावन व महाशिवरात्रि में यहां हजारों की संख्या में शिवभक्त आते हैं इसके पीछे भी एक बड़ी ही रोचक कथा है। कहते हैं शिव इस क्षेत्र के पुरातन जातियों से संबंधित थे। शनिदेव के किसी अपराध के लिए शिव ने त्रिशूल फेंक कर वार किया। त्रिशूल डुमरी प्रखंड के मझगांव की चोटी पर आ धंसा। लेकिन उसका अग्र भाग जमीन के ऊपर रह गया। त्रिशूल जमीन के नीचे कितना गड़ा है, यह कोई नहीं जानता। 17 फीट एक अनुमान ही है।

टांगीनाथ धाम में कई पुरातात्विक व ऐतिहासिक धरोहर हैं। यहां की कलाकृतियां व नक्काशियां देवकाल की कहानी बयां करती है। साथ ही कई ऐसे स्रोत हैं, जो त्रेता युग में ले जाते हैं। इन स्रोतों का अध्ययन किया जाए, तो गुमला जिले को एक अलग पहचान मिल सकती है।

1989 ई. में पुरातत्व विभाग ने टांगीनाथ धाम के रहस्यों से पर्दा हटाने के लिए अध्ययन किया था। यहां जमीन की भी खुदाई की गई थी। उस समय भारी मात्रा में सोने व चांदी के आभूषण सहित कई बहुमूल्य वस्तुएं मिली थीं। लेकिन कतिपय कारणों से खुदाई पर रोक लगा दिया गया। इसके बाद टांगीनाथ धाम के पुरातात्विक धरोहर को खंगालने के लिए किसी ने पहल नहीं की।

खुदाई से हीरा जड़ा मुकुट, चांदी का सिक्का (अद्र्ध गोलाकार), सोना का कड़ा, कान की बाली सोना का, तांबा का टिफिन जिसमें काला तिल व चावल मिला था, जो आज भी डुमरी थाना के मालखाना में रखे हुए हैं।

टांगीनाथ धामों में यत्र तत्र सैकंडों की संख्या में शिवलिंग है। बताया जाता है कि यह मंदिर शाश्वत है। स्वयं विश्वकर्मा भगवान ने टांगीनाथ धाम की रचना की थी। वर्तमान में यह खंडहर में तब्दील हो गया है। यहां की बनावट, शिवलिंग व अन्य स्रोतों को देखने से ऐसा लगता भी है कि इसे आम आदमी नहीं बना सकता है।

त्रिशूल के अग्र भाग को मझगांव के लोहरा जाति के लोगों ने काटने का प्रयास किया था। त्रिशूल कटा नहीं, पर कुछ निशान हो गए। इसकी कीमत लोहरा जाति को उठानी पड़ी। आज भी इस इलाके में 10 से 15 किमी की परिधि में इस जाति का कोई व्यक्ति निवास नहीं करता। अगर कोई निवास करने का प्रयास करता है, तो उसकी मृत्यु को हो जाती है। टांगीनाथ धाम में विश्रामागार नहीं है। लाइट की व्यवस्था, चलने लायक सड़क नहीं है।""