Sunday, December 20, 2015

नया साल किसने बनाया और कैसे ?

1 जनवरी नव वर्ष न ही वैज्ञानिक है न ही सनातन धर्मियों को शोभनीय।

हिन्दू सनातन धर्मियों के नव वर्ष को अप्रैल फूल से प्रचारित करने वाले इन ईसाईयों के येशु के खतने की दिवस है 1 जनवरी ।

क्या आप येशु के खतने के दिन को नव वर्ष का शुभारम्भ मानते हो ?

क्या आप हिन्दू पंचांग के नव वर्ष को अप्रैल फूल मानते हो ?

जानिये असली इतिहास

वंदेमातरम् ।

नया साल किसने बनाया और कैसे ? http://bharatsamachaar.blogspot.com/2014/12/blog-post_30.html

नए साल का सच

पढिऐ फिर HAPPY NEW YEAR मना लेना ..

ना तो जनवरी साल का पहला मास है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन ..

जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए है वो जरा इस बात पर विचार करिए ..

सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ, 8वाँ, नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है .. ये क्रम से 9वाँ,10वाँ,11वां और
बारहवाँ महीना है .. हिन्दी में सात को सप्त, आठ को अष्ट कहा जाता है, इसे अग्रेज़ी में sept(सेप्ट) तथा oct(ओक्ट) कहा जाता है .. इसी से september तथा October बना ..

नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के "नव" को ले लिया गया है तथा दस अंग्रेज़ी में "Dec" बन जाता है जिससे
December बन गया ..

ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था। इसका एक प्रमाण और है ..

जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है????
इसका उत्तर ये है की "X" रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना .. चूंकि दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया ..

इन सब बातों से ये निष्कर्ष निकलता है
की या तो अंग्रेज़ हमारे पंचांग के अनुसार ही चलते थे या तो उनका 12 के बजाय 10 महीना ही हुआ करता था ..

साल को 365 के बजाय 305 दिन
का रखना तो बहुत बड़ी मूर्खता है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि प्राचीन काल में अंग्रेज़ भारतीयों के प्रभाव में थे इस कारण सब कुछ भारतीयों जैसा ही करते थे और इंगलैण्ड ही क्या पूरा विश्व ही भारतीयों के प्रभाव में था जिसका प्रमाण ये है कि नया साल भले ही वो 1 जनवरी को माना लें पर उनका नया बही-खाता 1 अप्रैल से शुरू होता है ..

लगभग पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानि मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू..

भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या ये इस बात का प्रमाण नहीं है कि पूरे विश्व को भारतीयों ने अपने अधीन रखा था।

इसका अन्य प्रमाण देखिए-अंग्रेज़
अपना तारीख या दिन 12 बजे
रात से बदल देते है .. दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है ??

तुक बनता है भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है, सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कही जाती है और यहाँ से नए दिन की शुरुआत होती है.. यानि की करीब 5-5.30 के आस-पास और
इस समय इंग्लैंड में समय 12 बजे के आस-पास का होता है।

चूंकि वो भारतीयों के प्रभाव में थे इसलिए वो अपना दिन भी भारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे ..

इसलिए उन लोगों ने रात के 12 बजे से ही दिन नया दिन और तारीख बदलने का नियम अपना लिया ..

जरा सोचिए वो लोग अब तक हमारे अधीन हैं, हमारा अनुसरण करते हैं,
और हम राजा होकर भी खुद अपने अनुचर का, अपने अनुसरणकर्ता का या सीधे-सीधी कहूँ तो अपने दास का ही हम दास बनने को बेताब हैं..

कितनी बड़ी विडम्बना है ये .. मैं ये नहीं कहूँगा कि आप आज 31 दिसंबर को रात के 12 बजने का बेशब्री से इंतजार ना करिए या 12 बजे नए साल की खुशी में दारू मत पीजिए या खस्सी-मुर्गा मत काटिए। मैं बस ये कहूँगा कि देखिए खुद को आप, पहचानिए अपने आपको ..

हम भारतीय गुरु हैं, सम्राट हैं किसी का अनुसरी नही करते है .. अंग्रेजों का दिया हुआ नया साल हमें नहीं चाहिये, जब सारे त्याहोर भारतीय संस्कृति के रीती रिवाजों के अनुसार ही मानते हैं तो नया साल क्यों नहीं?

वंदेमातरम् ।

यह लेख नवनीत सिंघल जी के ब्लॉग से लिया गया है।

नया साल किसने बनाया और कैसे ? http://bharatsamachaar.blogspot.com/2014/12/blog-post_30.html

Sunday, October 25, 2015

सौन्दर्य प्रतियोगिताओं का असर

सौन्दर्य प्रतियोगिताओं का असर ---
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मित्रो दस साल पहले भारत से कई विश्व सुंदरियां बनी इसके पीछे विदेशी कंपनियों की सोची समझी साजिश थी .

- कई प्रसाधन बनाने वाली कम्पनियां भारत में अपना मार्केट खोज रही थी . पर यहाँ अधिकतर महिलाएं ज़्यादा प्रसाधन का इस्तेमाल नहीं करती थी . इसलिए उन्होंने भारत से सुंदरियों को जीता कर लड़कियों के मन में ग्लेमर की चाह उत्पन्न की.
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मिसेज़ इंडिया जैसी प्रतियोगिताओं से बड़ी उम्र की महिलाओं को भी टारगेट किया गया .
- इन सौन्दर्य प्रतियोगिताओं के बाद लडकियां सपने देखने लगी की वे भी मिस इंडिया , फिर मिस वर्ल्ड, फिर हीरोइन, फिर बहुत धनी बन सकती है .

- इसके लिए वे अपने आपको स्लिम करने के चक्कर में फिटनेस सेंटर में जाने लगी जहां क्रेश डाइटिंग , लाइपोसक्शन , गोलियां , प्लास्टिक सर्जरी जैसे महंगे और अनैसर्गिक तरीकेबताये जाते .

- सौन्दर्य प्रसाधन इस्तेमाल करना आम हो गया

.- ब्यूटी पार्लर जाना आम हो गया .

- इस तरह हर महिला सौन्दर्य प्रसाधनों , ब्यूटी पार्लर , फिटनेस सेंटर आदि पर हर महीने हज़ारो रुपये खर्च करने लगी .

- पर सबसे ज़्यादा बुरा असर उन महिलाओं पर पड़ा जोइन मोड़ेल्स की तरह दिखने के लिए अपनी भूख को मार कुपोषण का शिकार हो गई .

- इसलिए आज देश में दो तरह के कुपोषण है

- एक गरीबों का जो मुश्किल से एक वक्त की रोटी जुटा पाते है और दुसरा संपन्न वर्ग का जो जंक फ़ूड खाकर और डाइटिंग कर कुपोषण का शिकार हो रहाहै .

- यहाँ तक की नई नई माँ बनी हुई बहनों को भी वजन कम करने की चिंता सताने लगती है . जब की यह वो समय है जब वजन की चिंता न कर पोषक खाना खाने पर , आराम पर ध्यान देना कर माँ का हक है . ये समय ज़िन्दगी में एक या दो बार आता है और इस समय स्वास्थ्य की देख भाल आगे की पूरी ज़िन्दगी को प्रभावित करती है . यह समय मातृत्व का आनंद लेने का है ना की कोई नुमाइश की चीज़ बनाने का .

- ताज़ा उदाहरण है ऐश्वर्या राय . वह माँ बनाने की गरिमा और आनंद कोजी ही नहीं पाई . मीडिया ने उनके बढ़ते वजन पर ऐसे ताने कसे की वो अपने बच्ची की देखभाल और नए मातृत्व का आनंद लेना छोड़ वजन कम करने में जुट गई होंगी .

- अब जब इन कंपनियों का मार्केट भारत में स्थापित हो चुका है तो कोई विश्व सुंदरी भारत से नहीं बनेगी . अब इनकी दुसरे देशों पर नज़र है .! या कभी इनको लगे की मंदी आने लगी है तो दुबारा किसी को भारत मे से चुन ले !! क्यूंकि चीन के बाद भारत 121 करोड़ की आबादी वाला दुनिया का सबसे बढ़ा market है !!

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तो मित्रो ये सब कार्य बहुत ही गहरी साजिश बना कर अंजाम दिया जाता है ! जिसमे हमारा मीडिया विदेशी कंपनियो के साथ मिलकर बहुत  रोल अदा करता है !

मित्रो एक तरफ मीडिया देश मे बढ़ रहे बलात्कार पर छाती पीटता है ! और दूसरी तरफ खुद भी अश्लीलता को बढ़ावा देता है ! वो चाहे india today की मैगजीन के कवर हो ! या ये विदेशी  times of india अखबार ! ये times of india आप उठा लीजिये ! रोज times of india मे आपको पहले पेज पर या दूसरे पेज पर किसी ना किसी लड़की की आधे नंगी या लगभग पूरी नंगी तस्वीर मिलेगी ! जब की उसका खबर से कोई लेना देना नहीं ! जानबूझ कर आधी नंगी लड़कियों की तस्वीर छापना ही इनकी पत्रकारिता रह गया है !!

और ये ही times of india है जो भारत की संस्कृति का नाश करने पर तुला है !!
इसी ने आज से 10 -15 वर्ष पूर्व miss india, miss femina आदि शुरू किए ! जो अब मिस वर्ड ,मिस यूनिवर्स पता नहीं ना जाने क्या क्या बन गया है !!

आज हमने इनके खिलाफ आवाज नहीं उठाई ,इनका बहिष्कार नहीं ! तो कल ये हमारी बची कूची संस्कृति को भी निकग  जाएगा !!

MUST CLICK

LINK - https://www.youtube.com/watch?v=wI7foiSejO8

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Sunday, October 11, 2015

सरकारी शिक्षक की दुर्दशा

राजस्थान में  शिक्षा संबलन कार्यक्रम चल रहे है, अधिकारी अफसर स्कूल चेक कर रहे है और  रोज  अख़बारों में आ रहा है कि  फलाना स्कूल चेक हुआ और बच्चों से राजधानी पूछी, मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री का नाम पुछा और बच्चों को नही आया , इसी क्रम में आज एक खबर आई कि  किसी जगह  एक अफसर ने एक हिंदी शिक्षिका को black board  पर   अंत्येष्टि शब्द  गलत लिखते हुए देखा और उस अध्यापिका का  फोटो अख़बार में छाप दिया गया है l

अब विचारणीय प्रश्न ये है कि ऐसा करके समाज में, लोगों को, अभिभावकों को  क्या सूचना और संदेश दी जा रही है ? यही कि  सरकारी स्कूल के अध्यापकों को विषय का ज्ञान नही है ? उनको हिन्दी, अंग्रेजी,  गणित, आदि  नही आती ?

बड़ा विरोधाभास है…. एक तरफ सरकार कहती है कि सरकारी स्कूल में नामांकन बढ़े, ज्यादा बच्चे जुड़े, कोर्ट में केस दाखिल किये जा रहे है कि सरकारी स्कूल में अफसरों के बच्चे पढाई करें और दूसरी तरफ शिक्षकों की गरिमा और मर्यादा और उनके ज्ञान को धूमिल किया जा रहा है, ऐसी खबरे आने के बाद अभिभावक गण और समाज में ये सोच   पनपेगी कि   मास्टरों को कुछ नही आता, "मास्टर" यही शब्द अब संबोधन का जिन्दा रह गया है और गुरु जी जैसे लफ्ज गायब है l

एक सोचनीय तत्व ये है कि अफसर किस उद्देश्य से संबलन कार्यक्रम में निरीक्षण करने जाते है ? अपनी अफसरी दिखाने ? अध्यापकों को नीचा दिखाने ? उनको अपमानित करने ? अपना रौब दिखाने ? उनको फटकार लगाने ?

निंदनीय है ….  
नकारात्मक है ….
गलत है ….

होना तो ये चाहिए कि  अफसरों को शिक्षकों और बच्चों को प्रेरित करना चाहिए, उनका morale up करना चाहिए, उनको boost करना चाहिए, एक जोश  भरना चाहिए, कोई कमी दिखे भी तो शिक्षकों और बच्चों में सकारात्मक उर्जा भरनी चाहिए, अपमानित करने से तो शिक्षक निराश हो जायेगा,

अच्छा,  इन अफसरों के प्रश्न होते भी ऐसे है जो syllabus से बाहर के होते है, अफसरों का उद्देश्य सुधारवादी नही, आलोचक द्रष्टिकोण लिए होता है कि शिक्षक की गलती नजर आये बस, और हम अपना रौब दिखाए, 
एक अफसर ने लेफ्टिनेंट शब्द पुछा था शिक्षक से, क्योकि ये भी अप्रचलित शब्द है और लेफ्टिनेंट अंग्रेजी में lieutenant लिखा जाता है l

हिंदी में तो और भी कठिन शब्द है जो भ्रमित करते है, और किताबों में अख़बारों में गलत वर्तनी ही प्रचलित है जैसे उपरोक्त शब्द मिलता है सही शब्द उपर्युक्त की जगह, कितने लोग जानते है कि कैलाश शब्द गलत है और कैलास सही, दुरवस्था सही है दुरावस्था गलत, सुई नही सूई शब्द सही है, अध: पतन को अधोपतन लिखा जाता है ,  हिंदी भाषा की सही वर्तनी पूरे भारत में ही गिने चुने लोग सही लिख पायेगे, दो  aunthentic (प्रमाणिक) किताबो में एक में दोपहर सही शब्द माना है और एक ने दुपहर,  ,  भगवान जाने स्थाई शब्द सही है या स्थायी ?दवाई शब्द तो होता ही नही है,    सही शब्द या तो दवा है या दवाइयाँ, दुकानों पर लिखा मिष्ठान शब्द गलत है क्योकिं सही शब्द मिष्टान्न है, 

कोई भी व्यक्ति पूर्ण नही होता और कोई भी  शिक्षक सर्वज्ञ नही होता, चाहे कितना भी कोई स्वाध्याय कर लें,  शादी न करें, घर से कम निकलें , शादी विवाह मृत्यु  त्योहार आदि में जाना बन्द करके कोई टीचर सारी जिन्दगी पढ़ाई करें फिर भी किसी न किसी प्रश्न पर वो  अटक जायेगा क्योकि विषय और ज्ञान कोष अनन्त है

सरकारी स्कूल का अध्यापक कोई भी हो,  वो बुद्धिमान अवश्य होगा,  उसका कारण साफ़ है, वो 10 परीक्षाए पास करके शिक्षक बनता है, बीए, ऍम ए, pre बीएड, फिर b.ed, tet,  ctet, reet, फिर teacher के लिए प्रतियोगिता परीक्षा, सिर्फ क्रीम क्रीम प्रतियोगी ही अध्यापक बन पाते है,

कुछ हद तक  शिक्षक स्वाध्याय नही कर रहा,  जिसकी जिम्मेदारी  समाज और शिक्षा विभाग की है, आम इन्सान को नही पता कि सरकारी teacher के करियर में 40% field work है, 40% लिखा पढ़ी और सिर्फ20% अध्ययन अध्यापन है, field work मतलब शिक्षक गाँव में या शहर में घूमता है,  उसको स्कूल परिसर में बैठने का वक्त नही,  जनगणना,  pulse पोलियों, चुनाव, सर्वे, पोषाहार के लिए दाल सब्जी मिर्च मसाले लाना,  अभी चूल्हे cylinder लाने के लिए मशक्कत की,  और सबसे बड़ा कार्य b.l.o, गाँव में घुमते रहो,  फिर आये दिन ट्रेनिंग,  वाग पीठ, नामाकन के लिए द्वार द्वार घूमो, छात्रवृति वाले काम के लिए बच्चों और अभिभावकों से आय प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र की माथा पच्ची में पूरा जुलाई निकल जाता है और बोर्ड एग्जाम में सिर्फ govt टीचर की  ड्यूटी लगती है तो मार्च में सरकारी स्कूल खाली हो जाते है, वृक्षारोपण अभियान में पेड़ लेने भागो,   निश्शुल्क  पाठ्य पुस्तक लेने भागो, राशन कार्ड की ड्यूटी, रैलियां,  आये दिन बैंक का काम,    अध्यापक स्कूल में 2 मिनट चैन की सांस नही ले पाता है, मोटर साइकिल पर दे kick और भागों,   फिर कुछ जान बचती है तो लिखा पढ़ी का काम, 30  दिन में 60 डाके स्कूल से आती जाती रहती है,  अभी taf form भरे गये,  पूरा दिन form भरने में गया,  बच्चों की पढ़ाई गयी भाड़ में, रोजाना नई नई सूचनाये विभाग मांगता है और तरह तरह की u.c, किसी स्कूल में कमरा office निर्माण कार्य आ जाए तो समझों 6 महिने गये,  स्कूल में कोई पढाई नही होगी, कभी पोषाहार की डाक जाती है तो कभी छात्रवृति की,  कभी dise बुकलेट भरो तो अनीमिया गोलियों की डाक,  स्कूल आकर कोई आम इन्सान देखे तो पता चलेगा कि सरकारी स्कूल डाक खाना है, 

शिक्षक स्वाध्याय कैसे करे? क्यों करे ?   इस अजीबोगरीब माहौल में ? और पढ़ाई चाहिए भी किसको ?  हर कोई पास भर होना चाहता है,  डिग्री चाहता है,  ज्ञान किसको चाहिए ?  एक तरफ गुणवत्ता सुधारने के लिए    ncert  books लगा दी गयी और जिनका standard ऐसा है कि विज्ञानं की किताब पढाने के लिए lab की जरूरत है क्योकि सारे प्रयोग है,  सरकारी स्कूल में chalk dustar black बोर्ड की व्यवस्था तो होती नही सही से, बाकी lab की बात …. ? कक्षा कमरे है सही लेकिन एक में कबाड़ पड़ा है एक में चावल गेहूं है और एक में  पोषाहार पकाने के लिए लकड़ी भरी है और एक में ऑफिस अलमारी,  बच्चे फटी दरी लेकर पेड़ के नीचे बैठे रहते है, एक तरफ ncert books का आदर्शवाद और वही बोर्ड result सुधारने के लिए 20% संत्राक, 80 मे से 16 लाओ और 20 मे से 20…और  board result अच्छे की वाह वाही,

शिक्षा विभाग भी जादू का खेल है,  कभी क्या तो कभी क्या ? कभी एकीकरण,  कभी समानीकरण, कभी स्टाफिंग pattern,  शिक्षक को खुद नही पता कि उसका पत्ता  कब कट जाएगा ?    

शिक्षक भी इन्सान है, मीडिया भी बस आदर्शवाद का ढकोसला करता है,अंत्येष्टि गलत लिखा शिक्षिका ने तो उसका फोटो खींच दिया,  किसी बच्चे  ने चाहे खुद ही खुद को चोटिल कर दिया हो लेकिन बड़े बड़े अक्षरों में खबर छपेगी
"शिक्षक ने पीटा" 
"शिक्षक की करतूत,
कोई भी शिक्षक स्कूल में बैठकर time pass नही करता,  बच्चों को उनके माँ बाप  भी पिटाई करते है,  शिक्षक राक्षस नही है, अगर कोई एक शिक्षक गलती करता है तो पूरा शिक्षक समुदाय गलती सिद्ध नही हो जाता, पढ़ाई कोई घुट्टी नही है कि बच्चे का मुँह खोला और 2 बूँद डाल दी,  अनुशासन के लिए भय भी जरुरी होता है,  मीडिया को बहुत शौक है सच छपने का तो किसी सरकारी स्कूल में कुछ दिन काट कर आये,  देखे शिक्षक की दोहरी तिहरी जिम्मेदारी और माहौल, 

विश्व  का सारा ज्ञान और विकास शिक्षा  और शिक्षक के कारण ही वजूद में आया है, सरकारी शिक्षक बहुत ही निरीह है और आम इन्सान है, वो अपना 100% देना चाहता है, ये जरुर है कि वो दबावों में है, शिक्षण बस एक नौकरी भर नही है, अफसर मीडिया और समाज तीनों शिक्षक के प्रति अनुदार है और शिक्षक की गलत छवि पेश कर रहे है

Saturday, August 29, 2015

संस्कृत की महिमा

जिस भाषा को आप गये बीते जमाने की मानते हैं उस संस्कृत को सीखने में लगे हैं अनेक विकसित देश . आओ देखें क्यों : संस्कृत के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य !
1. कंप्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा।
संदर्भ: – फोर्ब्स पत्रिका 1987
2. सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, भारतीय विक्रम संवत कैलेंडर है (जिसमें नया साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है)
संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी
3. दवा के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति… स्वस्थ और बीपी, मधुमैह , कोलेस्ट्रॉल आदि जैसे रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश(Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।
संदर्भ: अमेरीकन हिन्दू यूनिवर्सिटी (शोध के बाद)
4. संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी (Technology) रखती है।
संदर्भ: रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी
5.नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर रहे हैं. असत्यापित रिपोर्ट का कहना है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं
6.दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय
इंडिया (भारत) में नहीं है।
7. दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है।
संदर्भ: – यूएनओ
8. नासा वैज्ञानिक द्वारा एक रिपोर्ट है कि अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर
संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके। परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है, इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।
9. दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है। संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1985.
10. संस्कृत भाषा वर्तमान में “उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी” तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है। (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज “सरल किर्लियन
फोटोग्राफी” भी नहीं है)
11. अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया वर्तमान में भरत नाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। (नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव
या नटराज की एक मूर्ति है)
12. ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है | तो आने वाला समय अंग्रेजी का नही संस्कृत का है , इसे सीखे और सिखाएं, देश को विकास के पथ पर बढ़ाएं. —
13 अमेरिका की सबसे बड़ी संस्था NASA (National Aeronautics and Space Administration )ने संस्कृत भाषा को अंतरिक्ष में कोई भी मैसेज भेजने के लिए सबसे उपयोगी भाषा माना है ! नासा के वैज्ञानिकों की मानें तो जब वह स्पेस ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलटे हो जाते थे। इस वजह से मेसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने दुनिया के कई भाषा में प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मेसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलटे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। यह रोचक जानकारी हाल ही में एक समारोह में दिल्ली सरकार के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. जीतराम भट्ट ने दी।