Saturday, July 11, 2020

इसे कहते हैं न्याय..



जुनूबी, अमेरिका। 

मुलजिम एक पंद्रह साल का लड़का था। 
स्टोर से चोरी करता हुआ पकड़ा गया। 
पकड़े जाने पर गार्ड की गिरफ्त से भागने की कोशिश में स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया।
जज ने जुर्म सुना और लड़के से पूछा...
तुमने सचमुच कुछ चुराया था ??
"ब्रैड" और "पनीर का पैकेट" 
लड़के ने नीचे नज़रें कर के जवाब दिया।
हाँ

क्यों ? 
मुझे ज़रूरत थी।

खरीद लेते :-- जज
पैसे नहीं थे :-- लड़का 

घर वालों से ले लेते 
-- घर में सिर्फ मां है, बीमार है,,, बेरोज़गार भी  
उसी के लिए चुराई थी।।

तुम कुछ काम नहीं करते ? 
-- करता था, एक कार वाश में 
मां की देखभाल के लिए एक दिन की 
छुट्टी की तो निकाल दिया।

तुम किसी से मदद मांग लेते 
-- सुबह से घर से निकला था। 
तकरीबन पचास लोगों के पास गया । 
बिल्कुल आख़री में ये क़दम उठाया।

जिरह ख़त्म हुई जज ने 
फैसला सुनाना शुरू किया

चोरी और ब्रेड की चोरी बहुत खौफनाक जुर्म है 
और इस जुर्म के हम सब ज़िम्मेदार हैं। 
अदालत में मौजूद हर शख़्स मुझ समेत।   

हम सब मुजरिम हैं इसलिए यहां मौजूद हर शख़्स पर दस डालर का जुर्माना लगाया जाता है। 
दस डालर दिए बग़ैर कोई भी यहां से बाहर नहीं निकल सकेगा। 

ये कह कर जज ने दस डालर अपनी जेब से बाहर निकाल कर रख दिए 
और फिर पेन उठाया।

 लिखना शुरू किया ۔

इसके अलावा मैं स्टोर पर एक हज़ार डालर का जुर्माना करता हूं 
कि उसने एक भूखे बच्चे से ग़ैर इंसानी सुलूक करते हुए पुलिस के हवाले करा। 
अगर  चौबीस घंटे में जुर्माना जमा नहीं भरा तो कोर्ट स्टोर सील करने का हुक्म दे देगी।

सारी जुर्माना राशि इस लड़के को देकर कोर्ट इस लड़के से माफी तलब करती है। 

फैसला सुनने के बाद कोर्ट में मौजूद लोगों के आंखों से आंसू तो बह ही रहे थे, 
उस लड़के की भी हिचकियां बंध गईं। 

वो बार बार जज को देख रहा था ...
जो अपने आंसू छिपाते हुए बाहर निकल गया।


Thursday, June 18, 2020

प्राइवेट स्कूल हुए एक्सपोज़

एक बार फिर साबित हो गया कि प्राइवेट स्कूल संचालकों को बस पैसों से प्यार है, विद्यार्थी उनके कुछ नहीं लगते। इनका मुख्य उद्देश्य पैसे कमाना है ना कि शिक्षा देना। आप सभी जानते हैं कि ये मासूम बच्चों की किताबों, स्टेशनरी और स्कूल ड्रेस में से भी कमिशन खाते हैं। 
हरियाणा सरकार ने SLC की अनिवार्यता को समाप्त करके बहुत अच्छा निर्णय लिया है। ये निजी स्कूल बच्चों को SLC के नाम बंधक बना लेते हैं, वो बच्चा चाह कर भी कहीं और एडमिशन नहीं ले पाता।
SLC की अनिवार्यता को समाप्त करने के सरकार के जनहितकारी निर्णय का विरोध करके प्राइवेट स्कूलों ने ये साबित कर दिया है कि अगर इन्हें फीस ना मिले तो ये मासूम विद्यार्थियों को ना तो खुद पढ़ाएंगे ना ही कहीं और पढ़ने देंगे और उनका साल खराब कर देंगे।
शिक्षा के इन ठेकेदारों को ये भी नहीं पता कि RTE (Right to Education) के अनुसार विद्यार्थियों के लिए निशुल्क अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया है। और बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने से रोकना कानूनन अपराध है। 
जो भी प्राइवेट स्कूल किसी बच्चे की SLC देने से मना करता है, सरकार को उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही करनी चाहिए और उनकी मान्यता रद्द कर देनी चाहिए। क्योंकि ऐसा करना RTE का सीधा सीधा उल्लंघन है।
अभिभावकों से भी निवेदन है कि वो इन लूटेरों को पहचाने और इनका बहिष्कार करें।

निवेदन है कि शेयर जरूर करें। 🙏🙏🙏








Sunday, May 31, 2020

सरकारी विद्यालयों में पढने वाले मासूमों को नसीब नहीं शिक्षक



सरकार ने राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में पढने वाले मासूम विद्यार्थियों के साथ हमेशा भेदभाव किया है| यही कारण है की राज्य में प्राथमिक शिक्षा का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है| सरकार के द्वारा बनाए गए नियम ही प्राथमिक शिक्षा को अन्धकार में धकेल रहे हैं|
सरकार के नियमों में अनुसार पहली से पाँचवीं कक्षा वाले प्राथमिक विद्यालयों में 60 विद्यार्थियों पर मात्र 2 अध्यापको के पद ही आबंटित हैं, अगर हम मिडिल स्कूल से तुलना करें तो वहां तीन कक्षाएं हैं, छठी सातवीं और आठवीं| इन तीन कक्षाओं में अगर हर कक्षा में एक विद्यार्थी है तो इस तरह तीन विद्यार्थियों के लिए मिडिल स्कूल में अध्यापको के 4 पद आबंटित हैं| ( टीजीटी विज्ञान, टीजीटी संस्कृत, टीजीटी इंग्लिश, पी.टी या ड्राइंग टीचर)| इन सब के अलावा मिडिल स्कूल में एक पर ESHM का भी होता है|
अगर हम हाई स्कूल के तुलना करें, तो वहां 9वीं और 10वीं दो कक्षाएं हैं, अगर इन दोनों कक्षाओ में अगर एक-एक विद्यार्थी भी हो तब भी उस हाई स्कूल में उन दो छात्रो के लिए अध्यापकों के 6 पद आबंटित हैं | (6 विषय हैं उनके लिए 6 पीजीटी)
इसके अलावा मिडिल और हाई हाई स्कूल में चतुर्थ श्रेणी (peon) और क्लर्क का पद भी होता है| पर सरकार के प्राथमिक विद्यालयों में ना तो peon होता है और ना ही क्लर्क होता है, peon और क्लर्क का काम वहां पर प्राथमिक शिक्षक को ही करना होता है, और हैरान करने वाली बात तो ये है की बीएलओ का चयन भी इन्ही 2 अध्यापकों में से ही किया जाता है जिनपर पहले से ही 60 बच्चों की जिम्मेदारी है|
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि अध्यापक तो 2 ही हैं पर इन्हें कक्षाएं तो 5 ही पढ़ानी पड़ती हैं||(पहली से पाँचवीं)|  इसका मतलब ये की इनमे से एक अध्यापक तीन कक्षाओं को पढ़ाएगा और दूसरा दो कक्षाओं को| RTE के अनुसार साल में 220 कार्यदिवस होने चाहिए|  जो अध्यापक तीन कक्षाओं को पढ़ा रहा है वो स्पष्ट है की हर कक्षा को अपना एक तिहाई समय ही दे पाएगा| इस तरह से उन तीन कक्षाओं के 220 कार्यदिवस तीन साल में पूरे होंगे ना की एक साल में| एक साल में तो उनके कार्यदिवस मात्र 73 ही बने| जब तक प्राथमिक विद्यालयों में हर कक्षा के लिए अलग-अलग अध्यापक ना हो तब तक ऐसी कक्षाओं के 220 कार्यदिवस एक साल में पूरे हो ही नहीं सकते|
राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में पढने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा की बुनियाद लगातार कमजोर होती जा रही है, और सरकार इस ओर कोई ध्यान दे ही नहीं रही| सरकार की तरफ से शिक्षा में सुधार  के लिए चाहे कितनी ही योजनाएं चलाई जाएँ जब तक प्राथमिक विद्यालयों में हर कक्षा के लिए अलग-अलग अध्यापक नहीं होगा तब तक प्राथमिक शिक्षा में सुधार संभव ही नहीं है|
एक कक्षा एक अध्यापक के बिना सरकार की शिक्षा में सुधार की सारी योजनाएं, सारे प्रयास मात्र ढकोसला ही हैं|

Monday, April 27, 2020

मंदी कैसे आती है

*मंदी कैसे आती है*

एक छोटे से शहर मे एक बहुत ही मश्हूर बनवारी लाल समोसे बेचने वाला था, वो ठेला लगाकर रोज दिन में 500 समोसे खट्टी मीठी चटनी के साथ बेचता था रोज नया तेल इस्तमाल करता था और कभी अगर समोसे बच जाते तो उनको कुत्तो को खिला देता 

बासी समोसे या चटनी का प्रयोग बिलकुल नहीं करता था, उसकी चटनी भी ग्राहकों को बहुत पसंद थी जिससे समोसों का स्वाद और बढ़ जाता था 

कुल मिलाकर उसकी क्वालिटी और सर्विस बहोत ही बढ़िया थी

*उसका लड़का अभी अभी शहर से अपनी MBA की पढाई पूरी करके आया था, एक दिन लड़का बोला पापा मैंने न्यूज़ में सुना है मंदी आने वाली है, हमे अपने लिए कुछ cost cutting करके कुछ पैसे बचने चाहिए, उस पैसे को हम मंदी के समय इस्तेमाल करेंगे*

समोसे वाला : बेटा में अनपढ़ आदमी हूँ, मुझे ये cost cutting wost cutting नहीं आता, न मुझसे ये सब होगा, बेटा तुझे पढ़ाया लिखाया है अब ये सब तू ही सम्भाल

बेटा : ठीक है पिताजी आप रोज रोज ये जो फ्रेश तेल इस्तमाल करते हो इसको हम 80% फ्रेश और 20% पिछले दिन का जला हुआ तेल इस्तेमाल करेंगे

अगले दिन समोसों का टेस्ट हल्का सा चेंज था पर फिर भी उसके 500 समोसे बिक गए और शाम को बेटा बोलता है देखा पापा हमने आज 20%तेल के पैसे बचा लिए और बोला पापा इसे कहते है COST CUTTING

समोसे वाला : बेटा मुझ अनपढ़ से ये सब नहीं होता ये तो सब तेरे पढाई लिखाई का कमाल है

लड़का : पापा वो सब तो ठीक है पर *अभी और पैसे बचाने चाहिए, कल से हम खट्टी चटनी नहीं देंगे और जले तैल की मात्र 30% प्रयोग में लेंगे*

अगले दिन उसके 400 समोसे बिक गए और स्वाद बदल जाने के कारण 100 समोसे नहीं बिके जो उसने जानवरो और कुत्तो को खिला दिए

*लड़का: देखा पापा मैंने बोला था न मंदी आने वाली है, आज सिर्फ 400 समोसे ही  बिके हैं*

समोसे वाला : बेटा अब तुझे पढ़ाने लिखाने का कुछ फायदा मुझे होना ही चाहिए। अब आगे भी मंदी के दौर से तू ही बचा

लड़का : पापा कल से हम मीठी चटनी भी नहीं देंगे और जले तेल की मात्रा हम 40% इस्तेमाल करेंगे और समोसे भी कल से 400 हीे बनाएंगे

अगले दिन उसके 400 समोसे बिक गए पर सभी ग्राहकों को समोसे का स्वाद कुछ अजीब सा लगा और चटनी न मिलने की वजह से स्वाद और बिगड़ा हुआ लगा

शाम को लड़का अपने पिता से : देखा पाप आज हमे 40% तेल, चटनी और 100 समोसे के पैसे बचा लिए, पापा इसे कहते है cost कटाई और कल से जले तेल की मात्रा 50% कर दो और साथ में tissue पेपर देना भी बंद कर दो

अगले दिन समोसों का स्वाद कुछ और बदल गया और उसके 300 समोसे ही बिके

*शाम को लड़का पिता से : पापा बोला था न आपको कि मंदी आने वाली है*

समोसे वाला : हाँ बेटा तू सही कहता है मंदी आ गई है, अब तू आगे देख क्या करना है, कैसे इस मंदी से लड़ें ?

लड़का : पापा एक काम करते हैं, कल 200 समोसे ही बनाएंगे और जो आज 100 समोसे बचे है कल उन्ही को दोबारा तल कर मिलाकर बेचेंगे

अगले दिन समोसों का स्वाद और बिगड़ गया, कुछ ग्राहकों ने समोसे खाते वक़्त बनवारी लाल को बोला भी और कुछ चुप चाप खाकर चले गए। आज उसके 100 समोसे ही बिके और 100 बच गए।

शाम को लड़का बनवारी लाल से : पापा, देखा मैंने बोला था आपको कि अभी और ज्यादा मंदी आएगी, अब देखो कितनी मंदी आ गई है

समोसे वाला : हाँ बेटा तू सही बोलता है, तू पढ़ा लिखा है समझदार है, अब आगे कैसे करेगा ?

लड़का : पापा कल हम आज के बचे हुए 100 समोसे दोबारा तल कर बेचेंगे और नए समोसे नहीं बनाएंगे

अगले दिन उसके 50 समोसे ही बीके और 50 बच गए ... ग्राहकों को समोसा का स्वाद बेहद ही ख़राब लगा और मन ही मन सोचने लगे बनवारी लाल आजकल कितने बेकार समोसे बनाने लगा है और चटनी भी नहीं देता कल से किसी और दुकान पर जाएंगे

शाम को लड़का : पापा, देखा मंदी ? आज हमने 50 समोसों के पैसे बचा लिए। अब कल फिर से 50 बचे हुए समोसे दोबारा तल कर गरम करके बचेंगे

अगले दिन उसकी दुकान पर शाम तक एक भी ग्राहक नहीं आया और बेटा बोला देखा पापा मैंने बोला था आपको और मंदी आएगी और देखो आज एक भी ग्राहक नहीं आया और हमने आज भी 50 समोसे के पैसा बचा लिए। इसे कहते है Cost Cutting.

बनवारी लाल समोसे वाला : बेटा खुदा का शुक्र है तू पढ़ लिख लिया वरना इस मंदी का मुझ अनपढ़ को क्या पता की cost cutting क्या होता है .... *और अब एक बात और सुन*

बेटा : क्या.....????

समोसे वाला : कल से चुपचाप बर्तन धोने बैठ जाना यहाँ पर .... ये सारी मंदी तेरी खुद की लाई हुई है, अब से मंदी को मैं खुद देख लूंगा।
😂😂😂😂😂
साभार : फेसबुक मीडिया।

इसके आगे मैं बताता हूँ, बेटे ने ज्यादा पैसा इसलिए नहीं लगाया क्योंकि वो अब समोसे बनाना नही चाहता था, वो MBA करके आया था, वो अब बड़ा रेस्टोरेंट खोलना चाह रहा है। इसलिए उसने मार्किट में से सारा पैसा खींच लिया।
शेयर बाजार में भी ऐसे ही मंदी लाई जाती है। जब शेयरों की कीमत बढ़ जाती है तो बड़े खिलाड़ी शेयरों को बेच देते हैं, बाजार में भगदड़ मच जाती है, सभी बेचने लगते हैं। बाजार नीचे आ जाता है। शेयरों की कीमत कम हो जाती है। तो बड़े खिलाड़ी फिर से कम कीमत पर शेयर खरीद लेते है। और लाभ कमाते हैं।

तो साथियों मंदी कभी खुद नहीं आती बल्कि लाई जाती है।


Tuesday, April 21, 2020

अंधेर नगरी चौपट राजा...

अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके शेर खाजा।।

काशी-तीर्थयात्रा की वापसी में एक गुरु और शिष्य किसी  नगरी में पहुँचे। नाम उसका अंधेर नगरी था। शिष्य बाजार में सौदा खरीदने निकला तो वहाँ हर चीज एक ही भाव-‘सब धान बाइस पसेरी।’

भाजी टका सेर और खाजा (एक मिठाई) भी टका सेर। शिष्य और चीजें खरीदने के झंझट में क्यों पड़ता ? एक टके का सेर भर खाजा खरीद लाया और बहुत खुश होकर अपने गुरु से बोला, ‘‘गुरुजी, यहाँ तो बड़ा मजा है। खूब सस्ती हैं, चीजें, सब टका सेर। देखिए, एक टका में यह सेर भर खाजा लाया हूँ। हम तो अब कुछ दिन यहीं मौज करेंगे। छोड़िए तीर्थयात्रा, यह सुख और कहाँ मिलेगा ?’’

गुरु समझदार थे, बोले, ‘‘बच्चा, इसका नाम ही अंधेर नगरी है। यहाँ रहना अच्छा नहीं, जल्दी भाग निकलना चाहिए यहाँ से। वैसे भी, साधु का एक ठिकाने पर जमना अच्छा नहीं। कहा है, ‘साधु रमता भला, पानी बहता भला।’’

पर शिष्य को गुरु की बात नहीं भाई। बोला, ‘‘अपने राम तो यहाँ कुछ दिन जरूर रहेंगे।’’

गुरु को शिष्य को अकेले छोड़ जाना उचित नहीं लगा। बोले, ‘अच्छा, रहो और कुछ दिन। जो होगा, भुगता जाएगा।’’

अब तक शिष्य अंधेर नगरी का सस्ता माल खा-खाकर खूब मोटा हो गया। उन्हीं दिनों एक खूनी को फाँसी की सजा हुई थी। पर वह अपराधी बहुत दुबला-पतला था। फाँसी का फंदा उसके गले में ढीला था। इस समस्या से निजात पाने के लिए राजा ने कहा कि जिसकी गरदन मोटी हो, उसे ही फाँसी लगा दो। अंधेर नगरी ही जो ठहरी। हाकिम ने सिपाहियों को हुक्म दिया कि जो मोटा आदमी सामने मिल जाए, उसी को फाँसी लगा दो। एक खून के बदले में किसी एक को फाँसी होनी चाहिए। इसकी हो या उसकी, किसी की भी हो-"खून का बदला खून"

सिपाही मोटा व्यक्ति खोजने चले तो वही मोटा शिष्य सामने पड़ा। वह हलवाई के यहाँ खाजा खरीद रहा था। सिपाही उसे ही पकड़कर ले चले। गुरु को खबर लगी, वह दौड़े आए। सब बातें लोगों से मालूम कीं। एक बार तो उनके मन में आया कि इसे अपनी बेवकूफी का फल भोगने दें, पर गुरु का हृदय बड़ा दयालु था। सोचा, जीता रहेगा तो आगे समझ जाएगा। सिपाहियों के पास जाकर बोले,
 ‘‘इस वक्त फाँसी चढ़ने का हक तो मेरा है, इसका नहीं।’’
‘‘क्यों ?’’

‘‘इस वक्त कुछ घंटों के मुहूर्त में फाँसी चढ़कर मरनेवाला सीधा स्वर्ग जाएगा। शास्त्र में गुरु के पहले शिष्य को स्वर्ग जाने का अधिकार नहीं है।’’

शिष्य गुरु की चाल समझ गया चिल्ला उठा, ‘‘नहीं गुरुजी, मैं ही जाऊँगा। सिपाहियों ने मुझे पकड़ा है। आपको पकड़ा होता तो आप जाते।’’
इसी एक बात पर दोनों ने परस्पर झगड़ना शुरू कर दिया। सिपाही हैरान थे। भीड़ इकट्ठी हो गई। फाँसी चढ़ने के लिए झगड़ना-वहाँ के लोगों के लिए यह एकदम नई बात थी।

जल्दी ही यह बात राजा के कानों तक पहुँची। राजा ने कहा, ‘‘यदि ऐसा मुहूर्त है तो सबसे पहला अधिकार तो राजा का ही होता है और उसके बाद क्रम उसके उच्चाधिकारियों का।’’

गुरु-शिष्य बहुत चिल्लाए कि साधु के रहते स्वर्ग में जाने का अधिकार किसी दूसरे को कदापि नहीं है; पर किसी ने एक न सुनी। सबसे पहले राजा और फिर एक-एक करके कई मंत्री अधिकारी फाँसी पर चढ़ गए। गुरु ने सोचा कि अब ज्यादा मनुष्य-हत्या नहीं होनी चाहिए, तो अफसोस करते हुए बोले-‘‘अब तो स्वर्ग जाने का मुहूर्त समाप्त हो गया।’’ इसके बाद फिर कोई फाँसी न चढ़ा।

तभी गुरु ने शिष्य के कान में कहा, ‘‘अब यहाँ से जल्दी से निकल भागना चाहिए। देख लिया न तुमने कि अंधेर नगरी में कैसे-कैसे बेवकूफ बसते हैं ?