सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
Wednesday, February 6, 2013
राजीव भाई के प्रचार का एक और माध्यम : छोटा मेमोरी कार्ड
Saturday, December 8, 2012
एक चिंतन:
समता मूलक समाज का निर्माण करने के लिए देश पर शासन करने वाले और देश के लिए नीतियां बनने वाले लोगो का देश कि जनता के साथ सीधा रिश्ता होना चाहिए| लेकिन जो शासकगण हैं, जो देश के लिए नीतियां बनाते हैं, जो संपन्न हैं, जो उच्च वर्ग हैं वो शहरों में रहते हैं, वे जनता से बिलकुल दूर हो गए हैं.|
जब वे बच्चे होते हैं तो अलग स्कूलों में पढते हैं, और जब उनके बच्चे होते हैं तो वो भी इन्ही स्कूलों में पढते हैं| इस वर्ग को क्या मालूम की टाटपट्टी पर स्कूलों कि टपकती हुई छत के नीचे बैठने का क्या मतलब होता है? ये क्या जाने कि पेशाब की बदबू और कक्षा कि पढाई में क्या रिश्ता है? इस वर्ग का बच्चा घर आकार अपने पिता से शिकायत नही करता कि मास्टर उसपर झुंझलाहट निकालता है| हमारे देश के निति-निर्माता वर्ग को ये सब भोगना नहीं पड़ता, इसलिए कुछ चुनिन्दा स्कूलों पर तो करोडो रूपये खर्च किये जाते हैं और जिन पाठशालाओं में करोड़ों बच्चे पढते हैं वे उपेक्षा का शिकार बनी रहती हैं|
जिस देश में "कॉन्वेंट" स्कूल नहीं होगा, और शासक वर्ग का बच्चा भी टाटपट्टी स्कूल में पढ़ेगा और घर आकार स्कूल की बदबू की, अँधेरे की, पिटाई की चर्चा करेगा, उस दिन देश कि शिक्षा का नक्शा बदल जाएगा|
जिस दिन रेल कि तृतीय श्रेणी में मंत्री धक्के खायेगा, अफसर को टॉयलेट के पास खड़े होकर रात काटनी पड़ेगी और नेता को दरवाजे से लटक कर सफर करना पड़ेगा, उस दिन देश कि रेलों कि दशा सुधारने के लिए सही चिंतन कि शुरुआत होगी....
वन्देमातरम....
Friday, December 7, 2012
for those who lost their mobile.
If u lost your mobile, send an e-mail to cop@vsnl.net with the following info.
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“No need to go to police station”
Saturday, December 1, 2012
अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा है, ना कि विश्व भाषा:
ये अफवाह फैलाई जाती है कि अंग्रेजी एक विश्व-भाषा है, इसका नतीजा ये होता है कि हम समझने लगते हैं कि दुनिया का सारा ज्ञान अंग्रेजी में है, जबकि असलियत में कई अन्य भाषाओँ में अंग्रेजी से अच्छे कार्ये हुए हैं, अनुसन्धान हुए हैं| हम उनसे या तो वंचित रह जाते हैं या फिर उन्हें अंग्रेजी अनुवाद के जरिये ही पढते हैं| आज विज्ञान कि जितनी पुस्तकें रुसी भाषा में हैं, दुनिया कि और किसी भाषा में नहीं हैं| जर्मन भाषा में जितने ऊँचे स्तर के दार्शनिक हुए हैं और किसी भाषा में नही हुए|दुनिया के बड़े बड़े अखबार असाई शिम्बून और प्रावदा जापानी और रुसी भाषा में निकलते हैं न कि अंग्रेजी भाषा में| कला, संगीत, चित्रकारी, पुरातत्व आदि विषयों पर आज भी फ़्रांसिसी भाषा फ्रेंच में जितना गहन और प्रचुर साहित्य उपलब्ध है, उसकी तुलना में अंग्रेजी साहित्य पासंग के बराबर भी नहीं है|
दुनिया के इतिहास तो सर्वाधिक प्रभावित करने वाली पुस्तकें- बाइबल, वेद, कुरआन, धम्मपद, जिन्दवेस्ता, दास कापिटल- आदि भी अंग्रेजी में नही लिखी गयी| लेकिन जिन लोगो के दिमाग पर अंग्रेजी का भूत सवार है, उनके लिए सारे तथ्य निरर्थक हैं| उनके लिए चर्चिल अगर अंग्रेज था तो नपोलियन भी अंग्रेज ही होगा|ग्लेडस्टोन अगर अंग्रेजी बोलता था , तो लेनिन भी अंग्रेजी बोलता होगा| दुनिया का सारा ज्ञान, साहस, शौर्य, प्रतिभा सब कुछ अंग्रेजी में है, ऐसा सोचने वाला दिमाग छोटा और संकुचित दिमाग है, वह विश्व स्तर पर सोचने वाला दिमाग बन ही नही सकता....
वन्देमातरम.......
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