सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
Saturday, May 4, 2013
Sunday, April 21, 2013
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
रामप्रसाद बिस्मिल भारत के महान सपूत थे जिन्होने भारत की आजादी के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनका जन्म सन १८९७ में उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में हुआ था। १९ दिसम्बर, सन १९२७ को ब्रिटिश शासन ने उनको गोरखपुर जेल में फांसी पर चढा दिया।
रामप्रसाद बिस्मिल ने यह आत्म-कथा अपनी फांसी से दो दिन पहले ही समाप्त की थी।
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित वन्दे मातरम् के बाद अमर शहीद रामप्रसाद 'बिस्मिल' का सरफरोशी की तमन्ना ही वह गीत है जिसे गाते हुए कितने ही देशभक्त फांसी के फन्दे को चूम लिये। यह गीत नीचे दिया जा रहा है :
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में
लज्जते-सेहरा न वर्दी दूरिए-मंजिल में है
अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है ।
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर,
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिन में हो जुनून कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें कोई रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
- बिस्मिल आजिमाबादी
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में
लज्जते-सेहरा न वर्दी दूरिए-मंजिल में है
अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है ।
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर,
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिन में हो जुनून कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें कोई रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
- बिस्मिल आजिमाबादी
Friday, April 19, 2013
The Worst of the Worst dictator - ...तो क्या गद्दाफी, सद्दाम जैसा ही होगा मुशर्रफ का हश्र? - www.bhaskar.com
कभी जनता उनके आगे सिर झुकाती थी। आज जनता उन्हें गालियां देती है। कभी लोग उनके सामने जाने से डरते थे। आज वहीं सीना तान कर उन जूतों की बरसात करते हैं। यह कहानी दुनिया के बड़े तानाशाहों की जिन्होंने जितनी तेजी से फर्श से अर्श का सफर तय किया, उतनी तेजी से यह लोग नीचे आ गिरे।
कभी पाकिस्तान पर एकछत्र राज्य करने वाले पूर्व राष्ट्रपति और फौजी तानाशाह परवेज मुशर्रफ अपने सबसे बदतरीन समय से गुजर रहे हैं। जिन जजों को कभी उन्होंने बंधक बनाया था, वे आज चुन-चुन कर बदला ले रहे हैं। मुशर्रफ को दो दिनों की ट्रांजिट रिमांड पर भेजा गया है। उन पर आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है।
दुनिया में ऐसे बहुत से तानाशाह हुए जिन्होंने दशकों तक देश और दुनिया को हिला कर रखा। लेकिन अपने आखिरी वक्त में उनका हश्र बहुत ही बुरा हुआ। तानाशाह मुल्क कहे जाने वाले अमेरिका का भी आज हाल बुरा है।
Monday, April 15, 2013
देश का बंटवारा आज भी जख्म दे रहा है इन हिंदुओं को:
मात्र 3 दिन के अपने बेटे को उसके दादा-दादी के पास छोड्कर पाकिस्तान से तीर्थयात्रा वीजा पर भारत आने वाली 30 वर्षीय भारती रोती हुई अपनी व्यथा बताते हुए कहती है कि “अगर मै अपने बेटे का वीजा बनने का इंतज़ार करती तो कभी भी भारत न आ पाती.” 15 वर्षीय युवती माला का कहना है कि पाकिस्तान मे उनके लिये अपनी अस्मिता को बचाये रखना मुश्किल है तो 76 वर्षीय शोभाराम कहते है कि वे भारत मे हर तरह की सजा भुगत लेंगे परंतु अपने वतन पाकिस्तान वापस नही जायेंगे क्योंकि हमारा कसूर यह है कि हमने हिन्दू-धर्म मे पाकिस्तान की धरती पर जन्म लिया है. मै अपनी आँखो के सामने अपने घर की महिलाओ की अस्मिता लुटते नही देख सकता कहते हुए 80 वर्षीय बुजुर्ग वैशाखी लाल की आँखे नम हो गयी. दरअसल यह दिल्ली स्थित बिजवासन गाँव के एक सामाजिक कार्यकर्ता नाहर सिँह के द्वारा की गई आवास व्यवस्था मे रह रहे 479 पाकिस्तानी हिन्दुओं की कहानी है (कुल 200 परिवारो मे 480 लोग है, परंतु एक 6 माह की बच्ची का पिछले दिनो स्वर्गवास हो गया). एक माह की अवधि पर तीर्थयात्रा पर भारत आये पाकिस्तानी -हिन्दू अपने वतन वापस लौटने के लिये तैयार नही है, साथ ही भारत-सरकार के लिये चिंता की बात यह है कि इन पाकिस्तानी हिन्दुओ की वीजा-अवधि समाप्त हो चुकी है.
इतिहास के पन्नों में दर्ज 15 अगस्त 1947 वह तारीख है, जिस तारीख को भारत न केवल भौगोलिक दृष्टि से दो टुकडो में बँटा अपितु लोगो के दिल भी टुकडो मे बँट गये. पाकिस्तान के प्रणेता मुहमद अली जिन्ना को पाकिस्तान में हिन्दुओं के रहने पर कोई आपत्ति नहीं थी ऐसा उन्होंने अपने भाषण में भी कहा था कि “क्योंकि पाकिस्तानी - संविधान के अनुसार पाकिस्तान कोई मजहबी इस्लामी देश नहीं है , तथा विचार अभिव्यक्ति से लेकर धार्मिक स्वतंत्रता को वहा के संविधान के मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया है.” विभाजन की त्रासदी से लेकर अब तक गंगा-यमुना मे बहुत पानी बह चुका है. ज़ख्मो को भरने के लिये दोनो देशो के बीच आगरा जैसी कई वार्ताएँ हुई, टी.वी चैनलो पर कार्यक्रम किये गये, बस व रेलगाडी चलाई गयी, क्रिक़ेट खेला गया परंतु ज़ख्म तो नही भरा, इसके उलट विभाजन का यह ज़ख्म एक् नासूर बन गया. स्वाधीन भारत की प्रथम सरकार मे उद्योग मंत्री डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पुरजोर विरोध के उपरांत भी अप्रैल 1950 मे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और लियाकत अली के साथ एक समझौता किया जिसके तहत भारत सरकार को पाकिस्तान मे रह रहे हिन्दुओ और सिखो के कल्याण हेतु प्रयास करने का अधिकार है. परंतु वह समझौता मात्र कागजी ही सिद्ध हुआ. पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओ ने हिन्दुस्तान में शरण लेने के लिए ज्योहि पलायन शुरू किया, विभाजन के घाव फिर से हरे हो गये. पर कोई अपनी मातृभूमि व जन्मभूमि से पलायन क्यों करता है यह अपने आप में एक गंभीर चिंतन का विषय है. क्योंकि मनुष्य का घर-जमीन मात्र एक भूमि का टुकड़ा न होकर उसके भाव-बंधन से जुड़ा होता है. समाचारो से पता चलता है कि पाकिस्तान में आये दिन हिन्दूओ पर जबरन धर्मांतरण,महिलाओ का अपहरण, उनका शोषण, इत्यादि जैसी घटनाएँ आम हो गयी है.
प्रकृति कभी भी किसी से कोई भेदभाव नहीं करती और इसने सदैव ही इस धरा पर मानव-योनि में जन्मे सभी मानव को एक नजर से देखा है. हालाँकि मानव ने समय – समय पर अपनी सुविधानुसार दास-प्रथा, रंगभेद-नीति, सामंतवादी इत्यादि जैसी व्यवस्थाओं के आधार पर मानव-शोषण की ऐसी कालिमा पोती है जो इतिहास के पन्नो से शायद ही कभी धुले. समय बदला. लोगो ने ऐसी अत्याचारी व्यवस्थाओं के विरुद्ध आवाज उठाई. विश्व के मानस पटल पर सभी मुनष्यों को मानवता का अधिकार देने की बात उठी परिणामतः विश्व मानवाधिकार का गठन हुआ. मानवाधिकार के घोषणा-पत्र में साफ शब्दों में कहा गया कि मानवाधिकार हर व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है, जो प्रशासकों द्वारा जनता को दिया गया कोई उपहार नहीं है तथा इसके मुख्य विषय शिक्षा ,स्वास्थ्य ,रोजगार, आवास, संस्कृति ,खाद्यान्न व मनोरंजन इत्यादि से जुडी मानव की बुनयादी मांगों से संबंधित होंगे. इसके साथ-साथ अभी हाल में ही पिछले वर्ष मई के महीने में पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी द्वारा मानवाधिकार कानून पर हस्ताक्षर करने से वहाँ एक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग कार्यरत है.
ध्यान देने योग्य है कि अभी कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के अध्यक्ष जेठानंद डूंगर मल कोहिस्तानी के अनुसार पिछले कुछ महीनों में बलूचिस्तान और सिंध प्रांतों से 11 हिंदू व्यापारियों सिंध प्रांत के और जैकोबाबाद से एक नाबालिग लड़की मनीषा कुमारी के अपहरण से हिंदुओं में डर पैदा हो गया है. वहा के कुछ टीवी चैनलों के साथ - साथ पाकिस्तानी अखबार डॉन ने भी 11 अगस्त के अपने संपादकीय में लिखा कि ‘हिंदू समुदाय के अंदर असुरक्षा की भावना बढ़ रही है’ जिसके चलते जैकोबाबाद के कुछ हिंदू परिवारों ने धर्मांतरण,फिरौती और अपहरण के डर से भारत जाने का निर्णय किया है. पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल के अनुसार वहां हर मास लगभग 20-25 लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराकर शादियां कराई जा रही हैं. यह संकट तो पहले केवल बलूचिस्तान तक ही सीमित था, लेकिन अब इसने पूरे पाकिस्तान को अपनी चपेट में ले लिया है. रिम्पल कुमारी का मसला अभी ज्यादा पुराना नहीं है कि उसने साहस कर न्यायालय का दरवाजा तो खटखटाया, परन्तु वहाँ की उच्चतम न्यायालय भी उसकी मदद नहीं कर सका और अंततः उसने अपना हिन्दू धर्म बदल लिया. हिन्दू पंचायत के प्रमुख बाबू महेश लखानी ने दावा किया कि कई हिंदू परिवारों ने भारत जाकर बसने का फैसला किया है क्योंकि यहाँ की पुलिस अपराधियों द्वारा फिरौती और अपहरण के लिए निशाना बनाए जा रहे हिंदुओं की मदद नहीं करती है. इतना ही नहीं पाकिस्तान से भारत आने के लिए 300 हिंदू और सिखों के समूह को पाकिस्तान ने अटारी-वाघा बॉर्डर पर रोक कर सभी से वापस लौटने का लिखित वादा लिया गया. इसके बाद ही इनमें से 150 को भारत आने दिया गया.
अभी पिछले दिनो पाकिस्तान द्वारा हिन्दुओ पर हो रही ज्यादतियों पर भारत की संसद में भी सभी दलों के नेताओ ने एक सुर में पाकिस्तान की आलोचना की जिस पर भारत के विदेश मंत्री ने सदन को यह कहकर धीरज बंधाया कि वे इस मुद्दे पर पाकिस्तान से बात करेंगे परन्तु पाकिस्तान से बात करना अथवा संयुक्त राष्ट्र में इस मामले को उठाना तो दूर यूंपीए सरकार ने इस मसले को ही ठन्डे बसते में डाल दिया और आज तक एक भी शब्द नहीं कहा. पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओ पर की जा रही बर्बरता को देखते हुए हम मान सकते है कि विश्व-मानवाधिकार पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओ के लिए नहीं है यह सौ प्रतिशत सच होता हुआ ऐसा प्रतीत होता है. भारत के कुछ हिन्दु संगठनो के लोगो के अनुसार इन पाकिस्तानी हिन्दुओ द्वारा इस सम्बन्ध में पिछले माह (मार्च) में ही भारत के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, विदेश मंत्री, कानून मंत्री, दिल्ली के उपराज्यपाल व मुख्यमंत्री के साथ सभी संबन्धित सरकारी विभागों सहित भारत व संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोगों को भी पत्र भेजा जा चुका है किन्तु आज तक किसी के पास न तो इन पाक पीडितों का दर्द सुनने की फ़ुर्सत है और न ही किसी ऐसी कार्यवाही की जो पाकिस्तानी दरिंदगी पर अंकुश लगा सके. तो क्या यह मान लिया जाय कि पाकिस्तान के 76 वर्षीय शोभाराम का कहना सही ही है कि पाकिस्तानी हिन्दू अपने हिन्दू होने की सजा भुगत रहे है और उनके लिए मानवाधिकार की बात करना मात्र एक छलावा है ? ऐसी वीभत्स परिस्थिति मे यदि समय पर विश्व मानवाधिकार ने इस गंभीर समस्या पर कोई संज्ञान नहीं लिया यह अपने आप में विश्व मानवाधिकार की कार्यप्रणाली और उसके उद्देश्यों की पूर्ति पर ऐसा कुठाराघात है जिसे इतिहास कभी नहीं माफ़ करेगा.
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हिंदू शरणार्थियों कि किसी भी तरह कि सहायता करने के लिए सम्पर्क करें:
0996541063, 01275259734
हिंदू औरतें बोलीं, 'वे जबरन कलमा पढ़वाते हैं':
'मुझे जान से मार दो मगर पाकिस्तान वापस मत भेजो...'। कुछ ऐसा कहते हुए रो पड़े पाकिस्तानी हिंदू। कभी अपने वतन से बेहद प्यार करने वाले ये लोग अब वहां नहीं जाना चाहते।
दक्षिणी दिल्ली के बिजवासन इलाके में रह रहे 479पाकिस्तानी हिंदुओं का जत्था करीब महीने भर पहले भारत तीर्थयात्रा पर आया था। पाकिस्तान में अपने साथ हो रहे अत्याचार और सरकारी उपेक्षा की वजह से अब वे वहां जाने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं।
वीजा नहीं, नागरिकता की मांग
हालांकि इन लोगों के लिए राहत की बात यह है कि भारत सरकार ने 8 अप्रैल को खत्म हो रहे उनके वीजा अवधि को एक महीने को बढ़ा दिया गया है। लेकिन उन्हें अभी भी अपने भविष्य की चिंता है। इन लोगों की मांग है कि उन्हें भारतीय नागरिकता मिले।
इन हिंदुओं में कुछ लोगों ने जब मीडिया से अपना दर्द साझा किया तो माहौल गमगीन हो गया। एक औरत ने बताया कि पाकिस्तान में उनके साथ बेइंतहा जुल्म किए जाते हैं। वहां उन्हें अपने बच्चों को पढ़ाने की आजादी नहीं है। मजबूरी में उन्हें अपने बच्चों को मदरसे में पढ़ाना पड़ता है।
कुछ औरतों ने बताया, ''हमें हिंदी नहीं कलमा पढ़ने को बोला गया है। अब वहां रहने का बिल्कुल माहौल नहीं है।
पाकिस्तान में हमारे साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। लूटपाट और डकैती तो आम बात है।''
दिल्ली में खानाबदोश की जिंदगी जी रहे इन लोगों को बस इतना संतोष है कि वे यहां सुरक्षित हैं।
दक्षिणी दिल्ली के बिजवासन इलाके में रह रहे 479पाकिस्तानी हिंदुओं का जत्था करीब महीने भर पहले भारत तीर्थयात्रा पर आया था। पाकिस्तान में अपने साथ हो रहे अत्याचार और सरकारी उपेक्षा की वजह से अब वे वहां जाने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं।
वीजा नहीं, नागरिकता की मांग
हालांकि इन लोगों के लिए राहत की बात यह है कि भारत सरकार ने 8 अप्रैल को खत्म हो रहे उनके वीजा अवधि को एक महीने को बढ़ा दिया गया है। लेकिन उन्हें अभी भी अपने भविष्य की चिंता है। इन लोगों की मांग है कि उन्हें भारतीय नागरिकता मिले।
इन हिंदुओं में कुछ लोगों ने जब मीडिया से अपना दर्द साझा किया तो माहौल गमगीन हो गया। एक औरत ने बताया कि पाकिस्तान में उनके साथ बेइंतहा जुल्म किए जाते हैं। वहां उन्हें अपने बच्चों को पढ़ाने की आजादी नहीं है। मजबूरी में उन्हें अपने बच्चों को मदरसे में पढ़ाना पड़ता है।
कुछ औरतों ने बताया, ''हमें हिंदी नहीं कलमा पढ़ने को बोला गया है। अब वहां रहने का बिल्कुल माहौल नहीं है।
पाकिस्तान में हमारे साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। लूटपाट और डकैती तो आम बात है।''
दिल्ली में खानाबदोश की जिंदगी जी रहे इन लोगों को बस इतना संतोष है कि वे यहां सुरक्षित हैं।
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