Thursday, March 19, 2015

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Thursday, February 12, 2015

शिवजी को दूध अर्पित करने के वैज्ञानिक कारण।

भगवान शिव को विश्वास का प्रतीक माना गया है क्योंकि उनका अपना चरित्र अनेक विरोधाभासों से भरा हुआ है जैसे शिव का अर्थ है जो शुभकर व कल्याणकारी हो, जबकि शिवजी का अपना व्यक्तित्व इससे जरा भी मेल नहीं खाता, क्योंकि वे अपने शरीर में इत्र के स्थान पर चिता की राख मलते हैं तथा गले में फूल-मालाओं के स्थान पर विषैले सर्पों को धारण करते हैं | वे अकेले ही ऐसे देवता हैं जो लिंग के रूप में पूजे जाते हैं | सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का विशेष महत्व माना गया है | इसीलिए शिव भक्त सावन के महीने में शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उन पर दूध की धार अर्पित करते हैं |

पुराणों में भी कहा गया है कि इससे पाप क्षीण होते हैं | लेकिन सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है | सावन के महीने में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। शिव ऐसे देव हैं जो दूसरों के कल्याण के लिए हलाहल भी पी सकते हैं | इसीलिए सावन में शिव को दूध अर्पित करने की प्रथा बनाई गई है क्योंकि सावन के महीने में गाय या भैस घास के साथ कई ऐसे कीड़े-मकोड़ो को भी खा जाती है | जो दूध को स्वास्थ्य के लिए गुणकारी के बजाय हानिकारक बना देती है | इसीलिए सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है |
आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं| श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है| इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ? ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे, इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिएं और उस समय पशु क्या खाते हैं ?
सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं| इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है | इसलिए आयुर्वेद कहता है कि श्रावण के महीने में दूध नहीं पीना चाहिए| इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे |

बरसात में भी बहुत सारी चीज़ें होती हैं लेकिन हम उनको दीवाली के बाद अन्नकूट में कृष्ण भोग लगाने के बाद ही खाते थे (क्यूंकि तब वर्षा ऋतू समाप्त हो चुकी होती थी)| एलोपैथ कहता है कि गाजर मे विटामिन ए होता है आयरन होता है लेकिन आयुर्वेद कहता है कि शिव रात्रि के बाद गाजर नहीं खाना चाहिए इस ऋतू में खाया गाजर पित्त को बढाता है तो बताओ अब तो मानोगे ना कि वो शिवलिंग पर दूध चढाना समझदारी है ?

ज़रा गौर करो, हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है | ये इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते |

जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है वो सनातन है, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें | “

वेदों से किसी की तुलना नही।-- फरहाना ताज।

मेरे वेदों से किसी की तुलना नहीं, लो खुद ही पढकर निर्णय कर लीजिये :

डार्विन ने कहा : दूसरों को खाकर जियो।
हक्सले और भगवान महावीर ने कहा : जियो और जीने दो।
परन्तु मेरे वेदों ने कहा : सबको सुखी बनाने के लिये जियो । सर्वे भवन्तु सुखिन: ।
बाइबिल ने कहा : जिसका काम उसी का दाम।
कुरान ने कहा : जहान खुदा का और जिहाद इन्सान करे ।
किन्तु मेरे वेदों ने कहा : मेहनत इन्सान की , सम्पत्ति भगवान की यानी तेन त्यक्तेन भुजींथा ।
बाइबिल ने कहा : ईसाई बनो ।
कुरान ने कहा : मुसलमान बनो ( कुरान म.सि.2)।
किन्तु मेरे वेदों ने कहा : मनुष्य बन जाओ (मनुर्भव)।
बाइबिल ने कहा : पढाई नौकरी के लिये ।
कुरान ने कहा : पढाई कुरान के लिये ।
किन्तु मेरे वेदों ने कहा : पढाई केवल नैतिकता , ज्ञान और नम्रता के लिये ।
अरस्तू ने कहा : राजनीति शासन के लिये ।
कुरान ने कहा : शासन इस्लाम के प्रचार के लिये ।
किन्तु मेरे वेदों ने कहा : राजनीति की अपेक्षा लोकनीति , शासन की अपेक्षा अनुशासन , तानाशाही की जगह संयम और अधिकार के स्थान पर कर्तव्य पालन करें ।
ईसाइयों ने कहा परमाणु हथियार नागासाकी और हिरोशिमा जैसे शहरों को नष्ट करने के लिये ।
मुस्लिम आतंकियों ने कहा : परमाणु हथियार मिल जायें तो काफिरों को मिटाने के लिये ।
किन्तु मेरे वेदों ने कहा : सम्पूर्ण विज्ञान ही जनकल्याण के लिये (यथेमा वाचं कल्याणी ) ।

- Farhana Taj Madhu

Note - बहन फरहाना ताज मधु हैदराबाद नवाब के प्रधानमंत्री कासिम रिजवी साहेब की प्रपौत्री हैं ।  फरहाना जी इस्लाम को त्याग कर सत्य सनातन वेदिक धर्म में वर्षों पूर्व आ गयी हैं। वेद पर आपने अनेक पुस्तकें भी लिखी हैं

Sunday, February 1, 2015

महाराणा का हाथी।

महाराणा के हाथी की कहानी।:---
मित्रो आप सब ने महाराणा प्रताप के घोंड़े चेतक के
बारे
में तो सुना ही होगा, लेकिन उनका एक हाथी था।
जिसका नाम था रामप्रसाद उसके बारे में
आपको कुछ बाते बताता हु।
रामप्रसाद हाथी का उल्लेख अल बदायुनी ने
जो मुगलों की ओर से हल्दीघाटी के युद्ध में
लड़ा था ने
अपने एक ग्रन्थ में कीया है। वो लिखता है की जब
महाराणा पर अकबर ने चढाई की थी तब उसने
दो चीजो की ही बंदी बनाने की मांग की थी एक
तो खुद
महाराणा और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद।
आगे अल बदायुनी लिखता है
की वो हाथी इतना समजदार
व ताकतवर था की उसने हल्दीघाटी के युद्ध में
अकेली ही अकबर के 13 हाथियों को मार
गिराया था और
वो लिखता है : उस हाथी को पकड़ने के लिए हमने 7
हाथियों का एक चक्रव्यू बनाया और उन पर 14
महावतो को बिठाया तब कही जाके उसे
बंदी बना पाये।
अब सुनिए एक भारतीय जानवर
की स्वामी भक्ति।
उस हाथी को अकबर के समक्ष पेश
किया गया जहा अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद
रखा।
रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया। पर
उस
स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिन तक मुगलों का न
दाना खाया और न पानी पीया और वो शहीद हो गया
तब अकबर ने कहा था कि;- जिसके हाथी को मै मेरे
सामने नहीं झुका पाया उस महाराणा प्रताप
को क्या झुका पाउँगा।
ऐसे ऐसे देशभक्त चेतक व रामप्रसाद जैसे
तो यहाँ जानवर थे। इसलिए मित्रो हमेशा अपने
भारतीय
होने पे गर्व करो।
पढ़ के सीना चौड़ा हुआ हो तो शेयर कर देना।

Thursday, January 1, 2015

हमारा भारतीय नववर्ष

शक संवत एवं विक्रमी संवत

शक संवत और विक्रमी संवत में महीनो के नाम और क्रम एक ही हैं- चैत्र, बैसाख, ज्येष्ठ, आसाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, पौष, अघन्य, माघ, फाल्गुन| दोनों ही संवतो में दो पक्ष होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष| दोनों संवतो में एक अंतर यह हैं कि जहाँ विक्रमी संवत में महीना पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष से शुरू होता हैं, वंही शक संवत में महीना अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष से शुरू होते हैं| उत्तर भारत में दोनों ही संवत चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को आरम्भ होते हैं, जोकि शक संवत के चैत्र माह की पहली तारीख होती हैं, किन्तु यह विक्रमी संवत के चैत्र की १६ वी तारीख होती हैं, क्योकि विक्रमी संवत के चैत्र माह के कृष्ण पक्ष के पन्द्रह दिन बीत चुके होते हैं| गुजरात में तो विक्रमी संवत कार्तिक की अमावस्या के अगले दिन से शुरू होता हैं|