Tuesday, July 17, 2018

मरीजों के देवता प्रो. लहरी

आप हैरत में पड़ेंगे। मेडिकल कॉलेज में तीन दशक की प्रोफेसरी में पढ़ा-लिखाकर सैकड़ों डॉक्टर तैयार करने वाले लहरी साहब के पास खुद का चारपहिया वाहन नहीं है। आज जब तमाम डॉक्टर चमक-दमक। ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं। लंबी-लंबी मंहगी कारों से चलते हैं। चंद कमीशन के लिए दवा कंपनियों और पैथालॉजी सेंटर से सांठ-गांठ करने में ऊर्जा खपाते हैं। नोटों के लिए दौड़-भाग करते हैं। तब प्रो. लहरी साहब आज भी अपने आवास से अस्पताल तक पैदल ही आते जाते है।

मरीजों के लिए किसी देवता से कम नहीं हैं। उनकी बदौलत आज लाखों गरीब मरीजों का दिल धड़क रहा है, जो पैसे के अभाव में महंगा इलाज कराने में लाचार थे। गंभीर हृदयरोगों का शिकार होकर जब तमाम गरीब मौत के मुंह में समा रहे थे। तब डॉ. लहरी ने फरिश्ता बनकर उन्हें बचाया।

प्रो. टीके लहरी बीएचयू से 2003 में ही रिटायर हो चुके हैं। चाहते तो बाकी साथियों की तरह बनारस या देश के किसी कोने में आलीशान हास्पिटल खोलकर करोड़ों की नोट हलोरने लगते। मगर खुद को नौकरी से रिटायर माना चिकित्सकीय सेवा से नहीं।

रिटायर होने के बाद 15 साल बाद भी बीएचयू को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वो भी पूरी तरह मुफ्त।

आप यह जानकर सिर झुका लेंगे। सोचेंगे कि चरण मिल जाएं तो छू लूं। जब पता चलेगा कि प्रो. लहरी साहब पेंशन से सिर्फ अपने भोजन का पैसा रखते हैं, बाकी बीएचयू को दान दे देते हैं। ताकि महामना का यह संस्थान उस पैसों से गरीबों की खिदमत कर सके।

इस महान विभूति की गाथा यहीं नहीं खत्म होती। समय के पाबंद लोगों के लिए भी प्रो. लहरी मिसाल हैं। 75 साल की उम्र में भी वक्त के इतने पाबंद हैं कि उन्हें देखकर बीएचयू के लोग अपनी घड़ी की सूइयां मिलाते हैं। वे हर रोज नियत समय पर बीएचयू आते हैं और जाते हैं। प्रो. लहरी साहब को देखकर बीएचयू का स्टाफ समझ जाता है कि इस वक्त समय घड़ी की सूइयां कहां पर पर होंगी।

उनके अदम्य सेवाभाव और मरीजों के प्रति प्रेम को देखते हुए बीएचयू ने उन्हें इमेरिटस प्रोफेसर का दर्जा दिया हुआ है। यूं तो इस विभूति को बहुत पहले ही पद्मश्री जैसे सम्मान मिल जाने चाहिए थे। मगर देर से ही सही, पिछले साल पूरी काशीनगरी तब खुशी से झूम उठी थी, जब इस महान विभूति को 26 जनवरी 2016 को केंद्र सरकार ने पद्मश्री से नवाजा। लाखों मरीजों का दिल धड़काने वाले प्रो. लहरी को मिले सम्मान से पद्मश्री का भी गौरव बढ़ता नजर आया। और हां लहरी साहब को देखकर सवाल का जवाब भी मिल गया- डॉक्टरों को भगवान का दर्जा क्यों दिया गया है।

उम्मीद है कि डॉ. लहरी साहब के इस देवतुल्य कार्य के बारे में जानकर उन तमाम डॉक्टरों का जमीर जरूर जागेगा, जिनके लिए चिकित्सा धर्म से धंधा बन चुका है।

मेरा हमेशा से मानना रहा है। धरती पर बुरे लोगों से कहीं ज्यादा अच्छे लोग हैं। तभी दुनिया चल रही है। यही वजह है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। जरूरत है हमें अपने बीच ऐसी शख्सियतों को ढूंढकर सम्मान देने की। वामपंथ-दक्षिणपंथ के नाम पर गाली-गलौज। बेफिजूल की बातों से इतर कुछ सकारात्मक पढ़ते-लिखते रहिए। आनंद मिलेगा।

Monday, July 16, 2018

कविता - हूँ इतना वीर की पापड़ भी तोड़ सकता हूँ..

हूं इतना वीर की पापड़ भी तोड़ सकता हूं
जो गुस्सा आये तो कागज मरोड़ सकता हूं

अपनी टांगो से जो जोर लगाया मैंने
बस एक लात में पिल्ले को रुलाया मैंने
...
मेरी हिम्मत का नमूना कि जब भी चाहता हूं
रुस्तम ऐ हिंद को सपने में पीट आता हूं

एक बार गधे ने जो मुझको उकसाया
उसके हिस्से की घास छीनकर मैं खा आया

अपनी ताकत के झंडे यूं मैंने गाड़े हैं
मरे चूहों के सर के बाल भी उखाड़े हैं

-- हद है हिम्मत की --

जब अपनी जान हथेली पे मैं लेता हूं
हर आतंकी की निंदा मैं कर देता हूं

- भारतीय नेता

Thursday, February 22, 2018

भगवान और ईश्वर में अंतर क्या है

भगवान और ईश्वर में अंतर क्या है
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   यह बहुत अच्छी शंका है इस प्रश्न को हमें अवश्य समझना चाहिए।
   भगवान राम भगवान कृष्ण भगवान बुद्ध इत्यादि इत्यादि यह सब भगवान कहाते हैं परंतु इन को ईश्वर कोई नहीं कहता।
  ऋषि मुनि योगी राजा महाराजा को भगवान कहना कहां तक उचित है यह हमें समझना चाहिए।
  संपूर्ण ऐश्वर्य वीर्य यश श्री ज्ञान और वैराग्य इन छह का नाम भग है जिन महापुरुषों में  उपरोक्त 6 गुण विद्यमान होते हैं वह भगवान काहने योग्य हैं।
   भगवान एक उपाधि है जैसे ब्राह्मण, मुनि ,ऋषि, महर्षि, ब्रम्हर्षि इत्यादि राजा जनक को राज ऋषि कहते थे और नारद जी को देव ऋषि कहते थे यह सब सत्य असत्य को जानने व मानने वाले महात्मा थे।
  कौन भगवान ईश्वर कहलाने के योग्य है देखें ईश्वर सर्व सतगुण युक्त चेतन तत्व है वह सच्चिदानंद स्वरूप- निराकार- सर्व शक्तिमान - न्यायकारी- दयालु -अजन्मा- अनंत- निर्विकार -अनादि -अनुपम- विचित्र- अद्भुत- सर्वाधार- सर्वेश्वर- सर्वव्यापक- सर्व अंतर्यामी -सर्वज्ञ -अजर -अमर- अभय -नित्य- पवित्र- सृष्टि कर्ता- सृष्टि धरता और सृष्टि करता है वह सबका मित्र ,सबका साथी, सबका माता पिता ,बंधु और सखा है, सबका कर्मफल दाता विधाता है वह अखंड और अकाय है जितने भी सद्गुणों की कल्पना कर सकते हैं वह परमात्मा उन सब में पूर्ण है वह परिपूर्ण है ईश्वर अनेक नहीं एक है।
   देहधारी कभी ईश्वर नहीं हो सकता नहीं उसकी बराबरी कर सकता है ।अपने अच्छे कर्मों से महात्मा बन सकता है ऐश्वर्य प्राप्त कर सकता है ईश्वर के कुछ ही गुणों को धारण करके वह भगवान बन सकता है।
    भगवान श्री कृष्ण ने गीता के चौथे अध्याय में कहा है
    हे अर्जुन मेरे और तुम्हारे बहुत से जन्म बीत चुके हैं मैं उन जन्मों को योगबल से जान सकता हूं परंतु तुम नहीं जानते।
    गीता के इस कथन से सिद्ध होता है कि श्री कृष्ण भी भगवान थे परंतु ईश्वर नहीं थे क्योंकि शरीर धारण करने वाला ईश्वर नहीं बन सकता भगवान अवश्य बन सकता है।
   जगत में भगवान होते हैं यह ठीक है, परंतु भगवान में जगत है यह कथन गलत है, ईश्वर में जगत है और जगत में ईश्वर विद्यमान है यह ठीक है।
         धन्यवाद।
        मा०सुन्दर धतीर।

Monday, January 22, 2018

क्या है आर्टिकल 147...???

Article 147 के बारे में सोशल मीडिया पर चर्चा चल रही है कि 

हमारे देश के संविधान का आर्टिकल 147 कहता है
कि यदि ब्रिटिश पार्लियामेंट कोई रेस्लोल्युशन पास
करदे तो वो भारत के सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए
मान्य होगा।
मतलब यदि आज ब्रिटेन का पार्लियामेंट भारत
की सत्ता वापस अपने हाथ लेने का कानून पास
कर दे तो यह पूर्णतया कानूनी होगा और भारत
सरकार को कानूनी तौर पर इसे मानना ही होगा क्योंकि यह संविधान में लिखा हैl

आर्टिकल 147:- 

"निर्वचन-इस अध्याय में और भाग 6 के अध्याय 5 में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान्‌ प्रश्न के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अतंर्गत भारत शासन अधिनियम, 1935 के (जिसके अंतर्गत उस अधिनियम की संशोधक या अनुपूरक कोई अधिनियमिति है) अथवा किसी सपरिषद आदेश या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के अथवा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान्‌ प्रश्न के प्रति निर्देश हैं।"

" Interpretation In this Chapter and in Chapter V of Part VI references to any substantial question of law as to the interpretation of this Constitution shall be construed as including references to any substantial question of law as to the interpretation of the Government of India Act, 1935 (including any enactment amending or supplementing that Act), or of any Order in Council or order made thereunder, or of the Indian Independence Act, 1947 , or of any order made thereunder CHAPTER V COMPTROLLER AND AUDITOR GENERAL OF INDIA."

यह बात मुश्किल भाषा में संविधान मेँ लिखकर
तथा घुमा फिराकर, इतनी अच्छी तरह छुपायी
गयी है की इसे समझना अत्यंत कठिन कार्य है। साथ ही भारत का हर प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री पद की शपथ
लेते समय एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करता है
जिसमें लिखा होता है की वो काउन्सिल (ब्रिटिश पार्लियामेंट) और ब्रिटेन की रानी द्वारा दिए गए आदेश को मानने के लिए बाध्य होगा। ब्रिटेन, की रानी आज भी कानूनी तौर पर भारत की रानी है, वो अपनी मर्ज़ी से बिना पासपोर्ट और वीजा के भारत आ जा सकती है। अर्थात भारत पूर्ण रूप से आजाद नही है।
परन्तु यदि संसद में आर्टिकल 147 को निरस्त कर दिया जाये तो भारत पूर्णतया स्वतंत्र हो
जायेगा।

"अगर ऊपर लिखी हुई बातें सच है तो ये बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण बात है l" 

Wednesday, August 16, 2017

क्या हम आज़ाद हैं

स्वतंत्र -
स्व मतलब अपना
तंत्र मतलब व्यवस्था

क्या देश मे हमारा अपना तंत्र है, अपनी व्यवस्था है?
क्या कानून हमारे अपने हैं, क्या संविधान हमारा अपना है, क्या शासन व्यवस्था अपनी है, क्या न्याय व्यवस्था अपनी है?
हमारे ज्यादातर कानून अंग्रेजों के बनाए हुए हैं..
आइए एक नज़र डालें 👇

*Indian Police Act 1861
(1857 जैसा विद्रोह फिर से ना हो, उसे कुचलने के लिए indian police act बनाया gya)

*Indian Penal Code 1860
*The Indian income tax Act 1860
(The Indian Income Tax Act of 1860 was enforced to meet the losses sustained by the government on account of the military mutiny of 1857.)

*Government of India Act 1935
(भारत के संविधान का अधिकतर हिस्सा Government of India Act 1935 से हो लिया gya है)

Indian trusts Act 1882
Land acquisition Act 1894
Sale of goods Act 1930
Transfer of Property Act 1882
Weekly Holidays Act 1942
Registration Act 1908
Indian Stamp Act 1899
Employer's Liability Act 1938
Employees compensation Act 1923
Religious Endowments Act 1863
Waste Lands (claim) Act 1863
Indian Tolls Act 1851
Power of Attorney Act 1882
Indian forest Act 1927
Central excise 1944

*Indian Arms Act 1878
(भारतीयों से हथियार रखने का अधिकार छीन लिया गया, इसी का नया रूप है Arms Act 1959)

अब जरा सोचिए कि हम कितने आज़ाद हैं.!!