जिनके बच्चे “सेंट” वाले कॉन्वेटों में पढ़ते हैं, वे जानते होंगे कि स्कूल के यूनिफ़ॉर्म के अलावा भी इन बच्चों पर कितनी तरह के प्रतिबन्धहोते हैं, जैसे कि “पवित्र”(?) कॉन्वेंट में पढ़ने वाला लड़का अपने माथे पर तिलक लगाकर नहीं आ सकता, लड़कियाँ बिन्दी-चूड़ी पहनना तो दूर, त्यौहारों पर मेहंदी भी लगाकर नहीं आ सकतीं। स्कूलों में बच्चों द्वारा अंग्रेजी में बातकरना तो अनिवार्यहै ही, बच्चों के माँ-बाप की अंग्रेजी भी जाँची जाती है… कुल मिलाकर तात्पर्य यह है कि “सहनशील” (यानी दब्बू और डरपोक) हिन्दुओं के बच्चों को “स्कूल के अनुशासन, नियमों एवं ड्रेसकोड” का हवाला देकर उनकी “जड़ों” से दूर करने और उन्हें “भूरे मानसिक गुलाम बनाने” के प्रयास ठेठ निचलेस्तर से ही प्रारम्भ हो जातेहैं। भारतीय संस्कृति और खासकर हिन्दुओं पर लगाए जा रहे इन “तालिबानी” प्रतिबन्धों को अक्सर हिन्दुओं द्वारा “स्कूल के अनुशासन और नियम” के नाम पर सह लिया जाता है। अव्वल तो कोई विरोध नहीं करता, क्योंकि एक सीमा तक मूर्ख और सेकुलर दिखने की चाहत वाली किस्म के हिन्दू इसके पक्ष में तर्क गढ़ने में माहिर हैं (उल्लेखनीय है कि ये वही लतखोर हिन्दू हैं, जिन्हें सरस्वती वन्दना भी साम्प्रदायिक लगती है और “सेकुलरिज़्म” की खातिर ये उसका भी त्याग कर सकते हैं)। यदि कोई इसका विरोध करता है तो या तो उसके बच्चे को स्कूल में परेशान किया जाता है, अथवा उसे स्कूल से ही चलता कर दिया जाता है।
वर्षों से चली आ रही इस हिन्दुओं की इस “सहनशीलता”(??) का फ़ायदा उठाकर इस “हिन्दू को गरियाओ, भारतीय संस्कृति को लतियाओ टाइप, सेकुलर-वामपंथी-कांग्रेसी अभियान” का अगला चरण अब कारपोरेट कम्पनी तक जा पहुँचा है। एक कम्पनी है “मुथूट फ़ाइनेंस एण्ड गोल्ड लोन कम्पनी” जिसकी शाखाएं अब पूरे भारत के वर्ग-2 श्रेणी के शहरों तक जा पहुँची हैं। यह कम्पनी सोना गिरवी रखकर उस कीमत का 80% पैसा कर्ज़ देती है (प्रकारांतर से कहें तो गरीबों और मध्यम वर्ग का खून चूसने वाली “साहूकारी
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