आडवाणी द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ़ "रथयात्रा" की घोषणा से। यानी जो "माल" NGO गैंग ने अपनी"दुकान" पर सजाकर रखा था, वही माल एक"स्थापित दुकान" पर आ गया तो चुनौती मिलने की तगड़ी सम्भावना दिखने लगी। रथयात्रा की घोषणा भर से टीम अण्णा ऐसी बिफ़री है कि ऊलजलूल बयानों का दौर शुरु हो गया…मानोभ्रष्टाचार से लड़ना सिर्फ़ टीम अण्णा की "बपौती" हो। कल अण्णा साहब "टाइम्स नाऊ"पर फ़रमा रहे थे कि हम "ईमानदार" लोगों का साथ देंगे।
हम अण्णा जी से पूछना चाहते हैं कि - हवाला डायरी में नाम आने भर से इस्तीफ़ा देने और जब तक मामला नहीं सुलझता तब तक संसद न जाने की घोषणा और अमल करने वाले आडवाणीक्या "ईमानदार" नहीं हैं? फ़िर उनकी रथयात्रा कीघोषणा से इतना बिदकने की क्या जरुरत है? क्या उमा भारती पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप है? फ़िर टीम अण्णा ने उन्हें अपने मंच से क्यों धकियाया?
टीम अण्णा की"अधपकी खीर" में दूसरा चम्मच पड़ा है दलित संगठनों का…
दरअसल टीम अण्णा चाहती है कि 11 सदस्यीय लोकपाल समिति में"आरक्षण" ना हो…। अर्थात टीम अण्णाचाहती है कि जिसे"सिविल सोसायटी" मान्यता प्रदान करे, ऐसे व्यक्ति ही लोकपाल समिति के सदस्य बनें। जबकि ऐसा करना सम्भव नहीं है, क्योंकि ऐसी कोई भी सरकारी संस्थाजिसमें एक से अधिक पद हों वहाँ आरक्षण लागू तो होगा ही। टीम अण्णा के इस बयान का दलित संगठनों एवं कई क्षेत्रीयदलों के नेताओं ने विरोध किया है और कहा है कि 11 सदस्यीय जनलोकपाल टीम मेंSC भी होंगे, ST भी होंगे, पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय का एक-एक सदस्य भी होगा… यानी मैगसेसे पुरस्कार विजेताओं वाली शर्त की "गई भैंस पानी में…"।
तात्पर्य यह है कि "टीम अण्णा" की दुकान जमने से पहले ही उखड़ने का खतरा मंडराने लगाहै, इसीलिए कल केजरीवाल साहब"वन्देमातरम" के नारे पर सवाल पूछने वाले पत्रकार पर ही भड़क लिए। असल में टीम अण्णा चाहती है कि हर कोई उनसे"ईमानदारी" का सर्टीफ़िकेट लेकर ही रथयात्रा करे, उनके मंच पर चढ़े, उनसे पूछकर ही वन्देमातरम कहे… जबकि टीम अण्णा चाहे, तो अपनी मर्जी से संसद को गरियाए, एक लाइन से सभी नेताओं को बिकाऊ कहे… लेकिनकोई इन "स्वयंभू सिविलियनों" से सवाल न करे, कोई आलोचना न करे।
टीम अण्णा द्वारायह सारी कवायद इसलिये की जा रही है कि उन्होंने जो "ईमानदारी ब्राण्ड का तेल-साबुन" बनाया है, उसका मार्केट शेयर कोई और न हथिया सके…।
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