ये अफवाह फैलाई जाती है कि अंग्रेजी एक विश्व-भाषा है, इसका नतीजा ये होता है कि हम समझने लगते हैं कि दुनिया का सारा ज्ञान अंग्रेजी में है, जबकि असलियत में कई अन्य भाषाओँ में अंग्रेजी से अच्छे कार्ये हुए हैं, अनुसन्धान हुए हैं| हम उनसे या तो वंचित रह जाते हैं या फिर उन्हें अंग्रेजी अनुवाद के जरिये ही पढते हैं| आज विज्ञान कि जितनी पुस्तकें रुसी भाषा में हैं, दुनिया कि और किसी भाषा में नहीं हैं| जर्मन भाषा में जितने ऊँचे स्तर के दार्शनिक हुए हैं और किसी भाषा में नही हुए|दुनिया के बड़े बड़े अखबार असाई शिम्बून और प्रावदा जापानी और रुसी भाषा में निकलते हैं न कि अंग्रेजी भाषा में| कला, संगीत, चित्रकारी, पुरातत्व आदि विषयों पर आज भी फ़्रांसिसी भाषा फ्रेंच में जितना गहन और प्रचुर साहित्य उपलब्ध है, उसकी तुलना में अंग्रेजी साहित्य पासंग के बराबर भी नहीं है|
दुनिया के इतिहास तो सर्वाधिक प्रभावित करने वाली पुस्तकें- बाइबल, वेद, कुरआन, धम्मपद, जिन्दवेस्ता, दास कापिटल- आदि भी अंग्रेजी में नही लिखी गयी| लेकिन जिन लोगो के दिमाग पर अंग्रेजी का भूत सवार है, उनके लिए सारे तथ्य निरर्थक हैं| उनके लिए चर्चिल अगर अंग्रेज था तो नपोलियन भी अंग्रेज ही होगा|ग्लेडस्टोन अगर अंग्रेजी बोलता था , तो लेनिन भी अंग्रेजी बोलता होगा| दुनिया का सारा ज्ञान, साहस, शौर्य, प्रतिभा सब कुछ अंग्रेजी में है, ऐसा सोचने वाला दिमाग छोटा और संकुचित दिमाग है, वह विश्व स्तर पर सोचने वाला दिमाग बन ही नही सकता....
वन्देमातरम.......