Friday, November 30, 2018

चोर माल ले गए

--कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे
चोर माल ले गए, लोटे थाल ले गए
मूंग और मसूर की वो सारी दाल ले गए
और हम डरे डरे खाट पर पड़े पड़े
सामने खुला हुआ किवाड़ देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

आँख जब खुली तो हाय, दम ही मेरा घुट गया
बेडरूम साफ़ था, ड्राइंग रूम रपट गया -२
टी.वी., वीसीआर गायब, डीवीडी सटक गया
और हम खड़े खड़े, सोच में पड़े पड़े
खाली खाली कैडियों की जार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

सैंडविच पचा गए, जूस भी गपा गए
चार अण्डों का बना के, आमलेट खा गए -२
माइक्रोवेव तोड़ गए, फ्रिज खाली छोड़ गए
और हम लुटे लुटे, बुरी तरह पिटे पिटे
शहीद हुए अण्डों की मज़ार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

क्राक्रिज ले गए, तिजोरी मेरी तोड़ गए
कोट मेरा पहन गए निकर अपनी छोड़ गये-2
शर्ट का पता नहीं, टाई मुझे मिला नहीं
और हम डरे डरे, भीत से अड़े अड़े
दीवार पर वो सेंध की मार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे

चोर माल ले गए, लोटे थाल ले गए
मूंग और मसूर की वो सारी दाल ले गए
और हम डरे डरे खाट पर पड़े पड़े
सामने खुला हुआ किवाड़ देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे...

Monday, September 3, 2018

योगेश्वर श्री कृष्ण के असली स्वरुप को पहचानें |


अपने इतिहास, संस्कृति, धर्मग्रन्थों, महापुरुषों आदि को विकृत, कलंकित पतित एवं छेड़खानी करने वाली संसार में जाति है तो वह हिन्दू हैं। जिसने अपने इतिहास, पूर्वजों महापुरुषों के सत्य यथार्थ स्वरूप को समझा, जाना, माना और अपनाया नहीं है। जैसा आज योगीराज भगवान श्रीकृष्ण का अश्लील, भोगी, विलासी, लम्पट, पनघट पर गोपिकाओं को छोड़ने वाला आदि दिखाया, सुनाया पढ़ाया तथा बताया जा रहा है। वैसा सच्चे अर्थ में उनका प्रमाणिक जीवन चरित्र नहीं था। उन्हें चोरजार शिरोमणि, माखन चोर आदि कहकर/लांछन लगाये गए। मीडिया श्रीकृष्ण के नाम पर अश्लीलता, श्रृंगार, वासना, कामुकता, ग्लैमर अन्ध विश्वास, पाखण्ड आदि दिखा, सुना और फैला रहा है। आज की पीढ़ी इन्हीं बातों को सच व ऐतिहासिक मान रही है। कोई रोकने, टोकने व कहने वाला नहीं है। वास्तव में श्रीकृष्ण का गुण, कर्म स्वभाव आचरण, जीवन दर्शन चरित्र ऐसा नहीं था जो आज मिलता है। असली उनका चरित्र महाभारत में है जहां वे सर्वमान्य, सर्वपूज्य, योगी, उपदेशक, मार्ग दर्शन, विश्वबन्धुत्त्व, नीतिनिपुण, सत्य न्याय, धर्म के पक्षधर के रूप में दिखाई देते हैं।

जब वर्तमान में प्रदर्शित जीवन चरित्र की तुलना महाभारत के श्रीकृष्ण से करते हैं। तो रोना आता है। गीता जैसा अमूल्य ग्रन्थ महाभारत का ही अंग है। विश्व में धर्म व आध्यात्म के क्षेत्र में ज्ञान भारत को गीता से मिला और सम्मान व पहिचान बनी। गीता में श्रीकृष्ण ने जो जीवन जगत के लिए अमर उपदेश व सन्देश दिए हैं वे युगों-युगों तक जीवित-जागृत रहेंगे। गीता भागने का नहीं जागने की दृष्टि विचार एवं चिन्तन देती है। जीवन-जगत में रहते हुए, निष्काम करते हुए जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष तक पहुंचने का गीता दिव्य सन्देश देती है। गीता में ज्ञान-विवेक वैराग्य पूर्ण श्रीकृष्ण योगी के रूप में सामने आते हैं। जैसे कोई हिमायल की चोटी पर खड़ा योगी आत्मा-परमात्मा, जीवन-मृत्यु, भोग,योग, ज्ञान, कर्म, भक्ति आदि का चिन्तन प्रेरणा व सन्देश दे रहा हो। तत्वज्ञ पाठकगण सोचें-विचारें और समझें- कहां गीता के श्रीकृष्ण और पुराणों कथाओं कल्पित कहानियों के श्रीकृष्ण हैं? हमने उन्हें क्या से क्या बना दिया है। अमृत से निकालकर उन्हें कीचड़ में डाल रहे हैं? महाभारत और गीता के श्रीकृष्ण को भूलकर, छोड़कर आज समाज पुराणों व रसीली कथाओं के श्रीकृष्ण के चरित्र को पकड़ रहे हैं।

संसार का दुर्भाग्य है कि श्रीकृष्ण के सत्यस्वरूप, जीवनादर्शन के साथ अन्याय व धोखा हो रहा है। पुराणों में श्रीकृष्ण को युवा व वृ( होने ही नहीं दिया, बाल लीलाओं में उनका सम्पूर्ण जीवन अंकित व चित्रित होकर रह गया। जिन्हांने कभी भीख नहीं मांगी थी। आज हम उनके चित्र व नाम पर धन बटोर व भीख मांग रहे हैं? किसी विदेशी चिन्तक ने श्रीकृष्ण के वर्तमान स्वरूप को देखकर टिप्पणी की थी यदि भारत में सबसे अधिक अन्याय व अत्याचार किया है तो वह अपने महापुरुषों के चरित्र के साथ किया है उनके असली स्वरूप को भुलाकर विकृत व कलंकत रूप में उन्हें दिखा रहे हैं। इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा।

 महाभारत में राधा का कहीं नाम नहीं आता है। किन्तु राधा के नाम बिना श्रीकृष्ण की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। राधा यशोदा के भाई रावण की पत्नी थी। पुराणों, लोक कथाओं, कहानियों साहित्य आदि में श्रीकृष्ण के चरित्र को कलंकित व विकृत बदनाम करने के लिए राधा का नाम जोड़ा गया। इतिहास में मिलावट की गई। लोगों को नैतिक, धार्मिक जीवन मूल्यों से पथभ्रष्ट करने के लिए श्रीकृष्ण और राधा के नाम पर अश्लीलता व श्रृंगारिक कूड़ा-करकट इकट्ठा कर लिया गया। जो आज फल-फूल रहा है। श्रीकृष्ण पत्नीव्रत थे उनकी धर्म पत्नी रुक्मिणी थीं। श्रीकृष्ण के जीवन वृत्त में तो रुक्मिणी का नाम आता है मगर व्यावहारिक रूप में मंदिरों, लीलाओं, कथाओं, झांकियों आदि में रुक्मिणी को श्रीकृष्ण के साथ नहीं दिखाया जाता है। यह रुक्मिणी के साथ पाप और अन्याय है। सच्चा इतिहास इसे कभी माफ नहीं करेगा। श्रीकृष्ण जैसे एक पत्नीव्रती, ज्ञानी, संयमी मर्यादापालक महापुरुष व्यभिचारी एवं परस्त्रीगामी कैसे हो सकते हैं। श्रीकृष्ण संसार के अद्वितीय महापुरुष थे।

 प्रतिवर्ष श्रीकृष्ण के जन्म को जन्माष्टमी के रूप में बड़ी धूमधाम से कृष्णलीला, रासलीला, झांकियां और तरह -तरह के कार्यक्रमों के रूप में मनाया जाता है। ग्लैमरस रास-रंग, रसीले श्रृंगारिक कार्यक्रम होते हैं। करोड़ों का बजट चकाचौंध में चला जाता है। जो श्रीकृष्ण के योगदान महत्त्व, जीवनदर्शन, गीताज्ञान, शिक्षाओं उपदेशों आदि का चिन्तन-मनन होना चाहिए वह गौण होकर ओझल हो जाता है। मूल छूट जाता है। ऐसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रेरक अवसरों पर महापुरुषों द्वारा दिए गए उपदेशों, सन्देशों, विचारों व ग्रन्थों पर चिन्तन-मनन व आचरण की शिक्षा लेनी चाहिए। जो महापुरुषों के जीवन चरित्रों के साथ काल्पनिक, चमत्कारिक और अतिशयोक्ति पूर्ण बातें जोड़ दी गई हैं जिन्हें लोग सत्य वचन महाराज और सिर नीचा करके स्वीकार कर रहे हैं उन व्यर्थ की मनगढ़न्त बातों पर परस्पर चर्चा करके भ्रांतियों और अन्जान को हटाना चाहिए तभी महापुरुषों को स्मरण करने तथा जन्मोत्सव मनाने की सार्थकता,उपयोगिता और व्यावहारिकता है। उस महामानव इतिहास पुरुष योगेश्वर श्रीकृष्णकी स्मृति को कोटि-कोटि प्रणाम।
 -डॉ. महेश विद्यालंकार

Tuesday, July 17, 2018

मरीजों के देवता प्रो. लहरी

आप हैरत में पड़ेंगे। मेडिकल कॉलेज में तीन दशक की प्रोफेसरी में पढ़ा-लिखाकर सैकड़ों डॉक्टर तैयार करने वाले लहरी साहब के पास खुद का चारपहिया वाहन नहीं है। आज जब तमाम डॉक्टर चमक-दमक। ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं। लंबी-लंबी मंहगी कारों से चलते हैं। चंद कमीशन के लिए दवा कंपनियों और पैथालॉजी सेंटर से सांठ-गांठ करने में ऊर्जा खपाते हैं। नोटों के लिए दौड़-भाग करते हैं। तब प्रो. लहरी साहब आज भी अपने आवास से अस्पताल तक पैदल ही आते जाते है।

मरीजों के लिए किसी देवता से कम नहीं हैं। उनकी बदौलत आज लाखों गरीब मरीजों का दिल धड़क रहा है, जो पैसे के अभाव में महंगा इलाज कराने में लाचार थे। गंभीर हृदयरोगों का शिकार होकर जब तमाम गरीब मौत के मुंह में समा रहे थे। तब डॉ. लहरी ने फरिश्ता बनकर उन्हें बचाया।

प्रो. टीके लहरी बीएचयू से 2003 में ही रिटायर हो चुके हैं। चाहते तो बाकी साथियों की तरह बनारस या देश के किसी कोने में आलीशान हास्पिटल खोलकर करोड़ों की नोट हलोरने लगते। मगर खुद को नौकरी से रिटायर माना चिकित्सकीय सेवा से नहीं।

रिटायर होने के बाद 15 साल बाद भी बीएचयू को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वो भी पूरी तरह मुफ्त।

आप यह जानकर सिर झुका लेंगे। सोचेंगे कि चरण मिल जाएं तो छू लूं। जब पता चलेगा कि प्रो. लहरी साहब पेंशन से सिर्फ अपने भोजन का पैसा रखते हैं, बाकी बीएचयू को दान दे देते हैं। ताकि महामना का यह संस्थान उस पैसों से गरीबों की खिदमत कर सके।

इस महान विभूति की गाथा यहीं नहीं खत्म होती। समय के पाबंद लोगों के लिए भी प्रो. लहरी मिसाल हैं। 75 साल की उम्र में भी वक्त के इतने पाबंद हैं कि उन्हें देखकर बीएचयू के लोग अपनी घड़ी की सूइयां मिलाते हैं। वे हर रोज नियत समय पर बीएचयू आते हैं और जाते हैं। प्रो. लहरी साहब को देखकर बीएचयू का स्टाफ समझ जाता है कि इस वक्त समय घड़ी की सूइयां कहां पर पर होंगी।

उनके अदम्य सेवाभाव और मरीजों के प्रति प्रेम को देखते हुए बीएचयू ने उन्हें इमेरिटस प्रोफेसर का दर्जा दिया हुआ है। यूं तो इस विभूति को बहुत पहले ही पद्मश्री जैसे सम्मान मिल जाने चाहिए थे। मगर देर से ही सही, पिछले साल पूरी काशीनगरी तब खुशी से झूम उठी थी, जब इस महान विभूति को 26 जनवरी 2016 को केंद्र सरकार ने पद्मश्री से नवाजा। लाखों मरीजों का दिल धड़काने वाले प्रो. लहरी को मिले सम्मान से पद्मश्री का भी गौरव बढ़ता नजर आया। और हां लहरी साहब को देखकर सवाल का जवाब भी मिल गया- डॉक्टरों को भगवान का दर्जा क्यों दिया गया है।

उम्मीद है कि डॉ. लहरी साहब के इस देवतुल्य कार्य के बारे में जानकर उन तमाम डॉक्टरों का जमीर जरूर जागेगा, जिनके लिए चिकित्सा धर्म से धंधा बन चुका है।

मेरा हमेशा से मानना रहा है। धरती पर बुरे लोगों से कहीं ज्यादा अच्छे लोग हैं। तभी दुनिया चल रही है। यही वजह है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। जरूरत है हमें अपने बीच ऐसी शख्सियतों को ढूंढकर सम्मान देने की। वामपंथ-दक्षिणपंथ के नाम पर गाली-गलौज। बेफिजूल की बातों से इतर कुछ सकारात्मक पढ़ते-लिखते रहिए। आनंद मिलेगा।

Monday, July 16, 2018

कविता - हूँ इतना वीर की पापड़ भी तोड़ सकता हूँ..

हूं इतना वीर की पापड़ भी तोड़ सकता हूं
जो गुस्सा आये तो कागज मरोड़ सकता हूं

अपनी टांगो से जो जोर लगाया मैंने
बस एक लात में पिल्ले को रुलाया मैंने
...
मेरी हिम्मत का नमूना कि जब भी चाहता हूं
रुस्तम ऐ हिंद को सपने में पीट आता हूं

एक बार गधे ने जो मुझको उकसाया
उसके हिस्से की घास छीनकर मैं खा आया

अपनी ताकत के झंडे यूं मैंने गाड़े हैं
मरे चूहों के सर के बाल भी उखाड़े हैं

-- हद है हिम्मत की --

जब अपनी जान हथेली पे मैं लेता हूं
हर आतंकी की निंदा मैं कर देता हूं

- भारतीय नेता

Thursday, February 22, 2018

भगवान और ईश्वर में अंतर क्या है

भगवान और ईश्वर में अंतर क्या है
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   यह बहुत अच्छी शंका है इस प्रश्न को हमें अवश्य समझना चाहिए।
   भगवान राम भगवान कृष्ण भगवान बुद्ध इत्यादि इत्यादि यह सब भगवान कहाते हैं परंतु इन को ईश्वर कोई नहीं कहता।
  ऋषि मुनि योगी राजा महाराजा को भगवान कहना कहां तक उचित है यह हमें समझना चाहिए।
  संपूर्ण ऐश्वर्य वीर्य यश श्री ज्ञान और वैराग्य इन छह का नाम भग है जिन महापुरुषों में  उपरोक्त 6 गुण विद्यमान होते हैं वह भगवान काहने योग्य हैं।
   भगवान एक उपाधि है जैसे ब्राह्मण, मुनि ,ऋषि, महर्षि, ब्रम्हर्षि इत्यादि राजा जनक को राज ऋषि कहते थे और नारद जी को देव ऋषि कहते थे यह सब सत्य असत्य को जानने व मानने वाले महात्मा थे।
  कौन भगवान ईश्वर कहलाने के योग्य है देखें ईश्वर सर्व सतगुण युक्त चेतन तत्व है वह सच्चिदानंद स्वरूप- निराकार- सर्व शक्तिमान - न्यायकारी- दयालु -अजन्मा- अनंत- निर्विकार -अनादि -अनुपम- विचित्र- अद्भुत- सर्वाधार- सर्वेश्वर- सर्वव्यापक- सर्व अंतर्यामी -सर्वज्ञ -अजर -अमर- अभय -नित्य- पवित्र- सृष्टि कर्ता- सृष्टि धरता और सृष्टि करता है वह सबका मित्र ,सबका साथी, सबका माता पिता ,बंधु और सखा है, सबका कर्मफल दाता विधाता है वह अखंड और अकाय है जितने भी सद्गुणों की कल्पना कर सकते हैं वह परमात्मा उन सब में पूर्ण है वह परिपूर्ण है ईश्वर अनेक नहीं एक है।
   देहधारी कभी ईश्वर नहीं हो सकता नहीं उसकी बराबरी कर सकता है ।अपने अच्छे कर्मों से महात्मा बन सकता है ऐश्वर्य प्राप्त कर सकता है ईश्वर के कुछ ही गुणों को धारण करके वह भगवान बन सकता है।
    भगवान श्री कृष्ण ने गीता के चौथे अध्याय में कहा है
    हे अर्जुन मेरे और तुम्हारे बहुत से जन्म बीत चुके हैं मैं उन जन्मों को योगबल से जान सकता हूं परंतु तुम नहीं जानते।
    गीता के इस कथन से सिद्ध होता है कि श्री कृष्ण भी भगवान थे परंतु ईश्वर नहीं थे क्योंकि शरीर धारण करने वाला ईश्वर नहीं बन सकता भगवान अवश्य बन सकता है।
   जगत में भगवान होते हैं यह ठीक है, परंतु भगवान में जगत है यह कथन गलत है, ईश्वर में जगत है और जगत में ईश्वर विद्यमान है यह ठीक है।
         धन्यवाद।
        मा०सुन्दर धतीर।

Monday, January 22, 2018

क्या है आर्टिकल 147...???

Article 147 के बारे में सोशल मीडिया पर चर्चा चल रही है कि 

हमारे देश के संविधान का आर्टिकल 147 कहता है
कि यदि ब्रिटिश पार्लियामेंट कोई रेस्लोल्युशन पास
करदे तो वो भारत के सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए
मान्य होगा।
मतलब यदि आज ब्रिटेन का पार्लियामेंट भारत
की सत्ता वापस अपने हाथ लेने का कानून पास
कर दे तो यह पूर्णतया कानूनी होगा और भारत
सरकार को कानूनी तौर पर इसे मानना ही होगा क्योंकि यह संविधान में लिखा हैl

आर्टिकल 147:- 

"निर्वचन-इस अध्याय में और भाग 6 के अध्याय 5 में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान्‌ प्रश्न के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अतंर्गत भारत शासन अधिनियम, 1935 के (जिसके अंतर्गत उस अधिनियम की संशोधक या अनुपूरक कोई अधिनियमिति है) अथवा किसी सपरिषद आदेश या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के अथवा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान्‌ प्रश्न के प्रति निर्देश हैं।"

" Interpretation In this Chapter and in Chapter V of Part VI references to any substantial question of law as to the interpretation of this Constitution shall be construed as including references to any substantial question of law as to the interpretation of the Government of India Act, 1935 (including any enactment amending or supplementing that Act), or of any Order in Council or order made thereunder, or of the Indian Independence Act, 1947 , or of any order made thereunder CHAPTER V COMPTROLLER AND AUDITOR GENERAL OF INDIA."

यह बात मुश्किल भाषा में संविधान मेँ लिखकर
तथा घुमा फिराकर, इतनी अच्छी तरह छुपायी
गयी है की इसे समझना अत्यंत कठिन कार्य है। साथ ही भारत का हर प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री पद की शपथ
लेते समय एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करता है
जिसमें लिखा होता है की वो काउन्सिल (ब्रिटिश पार्लियामेंट) और ब्रिटेन की रानी द्वारा दिए गए आदेश को मानने के लिए बाध्य होगा। ब्रिटेन, की रानी आज भी कानूनी तौर पर भारत की रानी है, वो अपनी मर्ज़ी से बिना पासपोर्ट और वीजा के भारत आ जा सकती है। अर्थात भारत पूर्ण रूप से आजाद नही है।
परन्तु यदि संसद में आर्टिकल 147 को निरस्त कर दिया जाये तो भारत पूर्णतया स्वतंत्र हो
जायेगा।

"अगर ऊपर लिखी हुई बातें सच है तो ये बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण बात है l"