राजस्थान में शिक्षा संबलन कार्यक्रम चल रहे है, अधिकारी अफसर स्कूल चेक कर रहे है और रोज अख़बारों में आ रहा है कि फलाना स्कूल चेक हुआ और बच्चों से राजधानी पूछी, मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री का नाम पुछा और बच्चों को नही आया , इसी क्रम में आज एक खबर आई कि किसी जगह एक अफसर ने एक हिंदी शिक्षिका को black board पर अंत्येष्टि शब्द गलत लिखते हुए देखा और उस अध्यापिका का फोटो अख़बार में छाप दिया गया है l
अब विचारणीय प्रश्न ये है कि ऐसा करके समाज में, लोगों को, अभिभावकों को क्या सूचना और संदेश दी जा रही है ? यही कि सरकारी स्कूल के अध्यापकों को विषय का ज्ञान नही है ? उनको हिन्दी, अंग्रेजी, गणित, आदि नही आती ?
बड़ा विरोधाभास है…. एक तरफ सरकार कहती है कि सरकारी स्कूल में नामांकन बढ़े, ज्यादा बच्चे जुड़े, कोर्ट में केस दाखिल किये जा रहे है कि सरकारी स्कूल में अफसरों के बच्चे पढाई करें और दूसरी तरफ शिक्षकों की गरिमा और मर्यादा और उनके ज्ञान को धूमिल किया जा रहा है, ऐसी खबरे आने के बाद अभिभावक गण और समाज में ये सोच पनपेगी कि मास्टरों को कुछ नही आता, "मास्टर" यही शब्द अब संबोधन का जिन्दा रह गया है और गुरु जी जैसे लफ्ज गायब है l
एक सोचनीय तत्व ये है कि अफसर किस उद्देश्य से संबलन कार्यक्रम में निरीक्षण करने जाते है ? अपनी अफसरी दिखाने ? अध्यापकों को नीचा दिखाने ? उनको अपमानित करने ? अपना रौब दिखाने ? उनको फटकार लगाने ?
निंदनीय है ….
नकारात्मक है ….
गलत है ….
होना तो ये चाहिए कि अफसरों को शिक्षकों और बच्चों को प्रेरित करना चाहिए, उनका morale up करना चाहिए, उनको boost करना चाहिए, एक जोश भरना चाहिए, कोई कमी दिखे भी तो शिक्षकों और बच्चों में सकारात्मक उर्जा भरनी चाहिए, अपमानित करने से तो शिक्षक निराश हो जायेगा,
अच्छा, इन अफसरों के प्रश्न होते भी ऐसे है जो syllabus से बाहर के होते है, अफसरों का उद्देश्य सुधारवादी नही, आलोचक द्रष्टिकोण लिए होता है कि शिक्षक की गलती नजर आये बस, और हम अपना रौब दिखाए,
एक अफसर ने लेफ्टिनेंट शब्द पुछा था शिक्षक से, क्योकि ये भी अप्रचलित शब्द है और लेफ्टिनेंट अंग्रेजी में lieutenant लिखा जाता है l
हिंदी में तो और भी कठिन शब्द है जो भ्रमित करते है, और किताबों में अख़बारों में गलत वर्तनी ही प्रचलित है जैसे उपरोक्त शब्द मिलता है सही शब्द उपर्युक्त की जगह, कितने लोग जानते है कि कैलाश शब्द गलत है और कैलास सही, दुरवस्था सही है दुरावस्था गलत, सुई नही सूई शब्द सही है, अध: पतन को अधोपतन लिखा जाता है , हिंदी भाषा की सही वर्तनी पूरे भारत में ही गिने चुने लोग सही लिख पायेगे, दो aunthentic (प्रमाणिक) किताबो में एक में दोपहर सही शब्द माना है और एक ने दुपहर, , भगवान जाने स्थाई शब्द सही है या स्थायी ?दवाई शब्द तो होता ही नही है, सही शब्द या तो दवा है या दवाइयाँ, दुकानों पर लिखा मिष्ठान शब्द गलत है क्योकिं सही शब्द मिष्टान्न है,
कोई भी व्यक्ति पूर्ण नही होता और कोई भी शिक्षक सर्वज्ञ नही होता, चाहे कितना भी कोई स्वाध्याय कर लें, शादी न करें, घर से कम निकलें , शादी विवाह मृत्यु त्योहार आदि में जाना बन्द करके कोई टीचर सारी जिन्दगी पढ़ाई करें फिर भी किसी न किसी प्रश्न पर वो अटक जायेगा क्योकि विषय और ज्ञान कोष अनन्त है
सरकारी स्कूल का अध्यापक कोई भी हो, वो बुद्धिमान अवश्य होगा, उसका कारण साफ़ है, वो 10 परीक्षाए पास करके शिक्षक बनता है, बीए, ऍम ए, pre बीएड, फिर b.ed, tet, ctet, reet, फिर teacher के लिए प्रतियोगिता परीक्षा, सिर्फ क्रीम क्रीम प्रतियोगी ही अध्यापक बन पाते है,
कुछ हद तक शिक्षक स्वाध्याय नही कर रहा, जिसकी जिम्मेदारी समाज और शिक्षा विभाग की है, आम इन्सान को नही पता कि सरकारी teacher के करियर में 40% field work है, 40% लिखा पढ़ी और सिर्फ20% अध्ययन अध्यापन है, field work मतलब शिक्षक गाँव में या शहर में घूमता है, उसको स्कूल परिसर में बैठने का वक्त नही, जनगणना, pulse पोलियों, चुनाव, सर्वे, पोषाहार के लिए दाल सब्जी मिर्च मसाले लाना, अभी चूल्हे cylinder लाने के लिए मशक्कत की, और सबसे बड़ा कार्य b.l.o, गाँव में घुमते रहो, फिर आये दिन ट्रेनिंग, वाग पीठ, नामाकन के लिए द्वार द्वार घूमो, छात्रवृति वाले काम के लिए बच्चों और अभिभावकों से आय प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र की माथा पच्ची में पूरा जुलाई निकल जाता है और बोर्ड एग्जाम में सिर्फ govt टीचर की ड्यूटी लगती है तो मार्च में सरकारी स्कूल खाली हो जाते है, वृक्षारोपण अभियान में पेड़ लेने भागो, निश्शुल्क पाठ्य पुस्तक लेने भागो, राशन कार्ड की ड्यूटी, रैलियां, आये दिन बैंक का काम, अध्यापक स्कूल में 2 मिनट चैन की सांस नही ले पाता है, मोटर साइकिल पर दे kick और भागों, फिर कुछ जान बचती है तो लिखा पढ़ी का काम, 30 दिन में 60 डाके स्कूल से आती जाती रहती है, अभी taf form भरे गये, पूरा दिन form भरने में गया, बच्चों की पढ़ाई गयी भाड़ में, रोजाना नई नई सूचनाये विभाग मांगता है और तरह तरह की u.c, किसी स्कूल में कमरा office निर्माण कार्य आ जाए तो समझों 6 महिने गये, स्कूल में कोई पढाई नही होगी, कभी पोषाहार की डाक जाती है तो कभी छात्रवृति की, कभी dise बुकलेट भरो तो अनीमिया गोलियों की डाक, स्कूल आकर कोई आम इन्सान देखे तो पता चलेगा कि सरकारी स्कूल डाक खाना है,
शिक्षक स्वाध्याय कैसे करे? क्यों करे ? इस अजीबोगरीब माहौल में ? और पढ़ाई चाहिए भी किसको ? हर कोई पास भर होना चाहता है, डिग्री चाहता है, ज्ञान किसको चाहिए ? एक तरफ गुणवत्ता सुधारने के लिए ncert books लगा दी गयी और जिनका standard ऐसा है कि विज्ञानं की किताब पढाने के लिए lab की जरूरत है क्योकि सारे प्रयोग है, सरकारी स्कूल में chalk dustar black बोर्ड की व्यवस्था तो होती नही सही से, बाकी lab की बात …. ? कक्षा कमरे है सही लेकिन एक में कबाड़ पड़ा है एक में चावल गेहूं है और एक में पोषाहार पकाने के लिए लकड़ी भरी है और एक में ऑफिस अलमारी, बच्चे फटी दरी लेकर पेड़ के नीचे बैठे रहते है, एक तरफ ncert books का आदर्शवाद और वही बोर्ड result सुधारने के लिए 20% संत्राक, 80 मे से 16 लाओ और 20 मे से 20…और board result अच्छे की वाह वाही,
शिक्षा विभाग भी जादू का खेल है, कभी क्या तो कभी क्या ? कभी एकीकरण, कभी समानीकरण, कभी स्टाफिंग pattern, शिक्षक को खुद नही पता कि उसका पत्ता कब कट जाएगा ?
शिक्षक भी इन्सान है, मीडिया भी बस आदर्शवाद का ढकोसला करता है,अंत्येष्टि गलत लिखा शिक्षिका ने तो उसका फोटो खींच दिया, किसी बच्चे ने चाहे खुद ही खुद को चोटिल कर दिया हो लेकिन बड़े बड़े अक्षरों में खबर छपेगी
"शिक्षक ने पीटा"
"शिक्षक की करतूत,
कोई भी शिक्षक स्कूल में बैठकर time pass नही करता, बच्चों को उनके माँ बाप भी पिटाई करते है, शिक्षक राक्षस नही है, अगर कोई एक शिक्षक गलती करता है तो पूरा शिक्षक समुदाय गलती सिद्ध नही हो जाता, पढ़ाई कोई घुट्टी नही है कि बच्चे का मुँह खोला और 2 बूँद डाल दी, अनुशासन के लिए भय भी जरुरी होता है, मीडिया को बहुत शौक है सच छपने का तो किसी सरकारी स्कूल में कुछ दिन काट कर आये, देखे शिक्षक की दोहरी तिहरी जिम्मेदारी और माहौल,
विश्व का सारा ज्ञान और विकास शिक्षा और शिक्षक के कारण ही वजूद में आया है, सरकारी शिक्षक बहुत ही निरीह है और आम इन्सान है, वो अपना 100% देना चाहता है, ये जरुर है कि वो दबावों में है, शिक्षण बस एक नौकरी भर नही है, अफसर मीडिया और समाज तीनों शिक्षक के प्रति अनुदार है और शिक्षक की गलत छवि पेश कर रहे है