Monday, December 21, 2020

किसान आन्दोलन कॉर्पोरेट के खिलाफ एक निर्णायक और ऐतिहासिक आंदोलन है।

Sidarth Ramu:
पिछले 25 दिनों से चल रहा किसान आंदोलन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के सामने उपस्थित सबसे बड़ी चुनौती क्यों है?

1- पूरे पंजाब में यह एक जनांदोलन है। जिसे पंजाब के बहुलांश जनता का समर्थन प्राप्त है और यह समर्थन बढ़ता ही जा रहा है।

2- हरियाणा में भी यह तेजी से जनांदोलन की शक्ल ले रहा है।

3- देश के कोने-कोने से धीरे-धीरे इस आंदोलन को बड़े पैमान पर समर्थन प्राप्त हो रहा है और यह एक देशव्यापी जनांदोलन बनने की ओर बढ़ रहा है।

4- अभी तक इस जनांदोलन की बागडोर उन किसानों और किसान नेताओं के हाथ में है, जो झुकने को तैयार नहीं हैं।

5- इस आंदोलन को खालिस्तानी और नक्सली-माओवादी कहकर बदनाम करने की कोशिश नाकाम साबित हुई है, बल्कि इसका उलटा असर पड़ा है।

6- इस आंदोलन की रीढ़ पंजाबी सिख और जाट हैं, जो गहरे स्तर पर मानवतावादी होने के साथ ही अपने मान-सम्मान के लिए लडाकू कौम रही है। अत्याचारी शासकों के खिलाफ संघर्ष और कुर्बानी की इनकी करीब 500 वर्षों की परंपरा है।

7- यह मेहनतकश किसानों का जनांदोलन है, जो खुद अपने खेतों में अपने परिवार सहित कठिन श्रम करते हैं, भले ही इसके साथ वे मजदूरों का उपयोग करते हों। वे अपने खेतों में अपने पूरे परिवार सहित काम करते हैं, जिसमें महिला-पुरूष दोनों शामिल हैं।

8- इस आंदोलन की रीढ़ मूलत: पंजाब-हरियाणा के वे किसान हैं, जिनकी समृद्धि एवं संपन्नता का मूल आधार उनकी खेती है।

9- यह आंदोलन उन किसानों का आंदोलन है, जो अपने आर्थिक संसाधनों के बलबूते इस आंदोलन को महीनों-वर्षों टिकाए रख सकते हैं।

10- प्राकृतिक आपदा, युद्ध, जनसंघर्षों-जनांदोलनों आदि में देश-दुनिया के हर क्षेत्र में हर समुदाय के लिए सहायता पहुंचाने वाले सिखों के देशव्यापी एवं विश्वव्यापी समूह इस आंदोलन की हर तरह से मानवीय सहायता कर रहे हैं।

11- कुछ जड़सूत्रवादी वामपंथियों को छोड़कर हर तरह के जनवादी-प्रगतिशील समूह इस आंदोलन के साथ हैं, वे अपने तरीके से हर संभव मदद इस आंदोलन को पहुंचा रहे हैं।

12- देश के किसानों, विशेषकर पंजाब-हरियाण के किसानों को इस बिल से यह संंदेश गया है कि मोदी सरकार किसानों की फसल और जमीन अपने कार्पोरेट मित्रों ( अंबानी-अडानी) को सौंपना चाहती है और उन्हें इन कार्पोरेट घरानों का गुलाम किसान या मजदूर बना देना चाहती है। उनकी सोच आधार है, क्योंकि दुनिया के कई सारे देशों में ऐसा हुआ और इसकी तरीके से कार्पोरेटे को खेती की जमीन सौंपी गई।

13- सिंघू बार्डर और टिकरी बार्डर पर मौजूद किसान इस आंदोलन को अपने जीवन-मरण के प्रश्न के रूप में देखने लगे हैं। उन्हें यह विश्वास हो गया है कि यदि ये कानून लागू हो गए तो उनकी जितनी भी और जैसी संपन्नता एवं समृद्धि है, वह खत्म ही हो जाएगी, इसके साथ आने वाली पीढियां भी बर्बाद हो जायेंगी।

14- यह एक ऐसा जनांदोलन है, जिसके निशान पर कार्पोरेट घराने और उनके मीडिया हाउस भी हैं।

15- इस जनांदोलन में शामिल अधिकांश किसानों को यह विश्वास हो गया है कि मोदी सिर्फ कार्पोरेट घरानों के लिए काम करते हैं, वे उनके हाथ की कठपुतली हैं। अंबानी-अडानी जो चाहते हैं, वही होता है। यह मोदी की सरकार नहीं अंबानी-अड़ानी की सरकार है। उनका कहना है कि यह कानून भी अंबानी-अडानी के हितों के लिए बनाया गया है।

16- इस जनांदोलन को बहुलांश वैकल्पिक मीडिया का खुला समर्थन प्राप्त है और सोशल मीडिया भी इस जनांदोलन को समर्थन दे रही है।

17- इस जनांदोलन को मोदी जी हिंदू-मुस्लिम का एंगल या पाकिस्तान का एंगल नहीं दे पा रहे हैं। सिर्फ उनके पास कोसने के लिए विपक्षी पार्टियां हैं। विपक्षी पार्टियां किसानों को गुमराह कर रही हैं यह तर्क अधिकांश लोगों के गले नहीं उतर रहा है। शायद भीतर से मोदी सरकार को भी इस पर भरोसा नहीं।

18- भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के वादों को पूरा करने में मोदी जितन भी सफल हुए हो, लेकिन आर्थिक मामलों में उन्होंने जितने भी वादे किए उन सभी में वे अविश्वसनीय साबित हुए हैं। जिसके चलते मोदी जी के किसी भी वादे पर किसानों को भरोसा नहीं है, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि वे किसानों के नहीं कार्पोरेट के दोस्त हैं और उनके द्वारा पाले-पासे गए हैं।

19- इस आंदोलन को धीरे-धीरे मजदूरों का भी समर्थन प्राप्त हो रहा है, क्योंकि जिन कार्पोरेट मित्रों के लिए ये तीन कृषि कानून बने हैं, उन्हीं कार्पोरेट मित्रों के लिए मोदी सरकार तीन बड़े लेबर लॉ भी पास कर चुकी है।

20- आम गरीब जनता में भी यह संदेश जा रहा है कि यदि गेहू-चावल पैदा करने वाले किसानों की खेती कार्पोरेटे के हाथ में चली गई, तो उन्हें सस्ते गल्ले की दुकानों से मिलने वाला सस्ता अनाज मिलना भी बंद हो जाएगा और उनकी भूखमरी और कंगाली और बढ़ जाएगी।

निम्न कारणों से मोदी जी इस कानून को वापस नहीं लेना चाहते है या नहीं ले पा रहे हैं-

1- देशी-विदेशी कार्पोरेट घरानों की निगाह देश के किसानों की फसल और जमीन पर है और यह कानून देश के किसानों की फसल और जमीन पर कार्पोरेट के कब्जे का रास्ता खोलता है, जो कार्पोरेट के मुनाफे और संपदा में बेहतहाशा वृद्धि करेगा

2- खेती पर निर्भर करीब 75 करोड़ लोगों के बड़े हिस्स की तबाही उन्हें शहरी स्लम बस्तियों में जाने के लिए बाध्य करेगी, जो कार्पोरेटे घरानों के लिए बहुत ही सस्ते मजदूर के रूप में उपलब्ध होंगे। यही कार्पोरेट घराने चाहते हैं.

3- खाद्य उत्पादों पर कार्पोरेट का नियंत्रण उन्हें बड़े पैमाने पर उपभोक्ताओं से मुनाफा कमाने का अवसर प्रदान करेगा।

4- चुनाव जीतने के लिए कार्पोरेट घरानों द्वारा भाजपा को मुहैया कराए गए अकूत धन की वसूली के लिए कृषि क्षेत्र को कार्पोरेट घरानों को सौंपना नरेंद्र मोदी की बाध्यता है, जैसे आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन को और बैंकों एवं भारतीय जीवन बीमा निगम की पूंजी को।

5- इसके साथ मोदी का व्यक्तिगत अहंकार भी इसके आड़े आ रहा होगा,जिस व्यक्ति ने देश को तबाह कर देने वाली नोटबंदी को भी आज तक अपनी गलती नहीं मानी, वह कैसे मान लेगा कि ये तीन कृषि कानून गलत हैं और उन्हें वापस लिया जा रहा है।

मोदी जी इन कृषि कानूनों को वापस लेने या स्थगित करने की जगह गुरु तेगबहादुर के शहदी दिवस पर उन्हें माथा टेकने का भावात्मक खेल खेल रहे हैं। लेकिन इस जनांदोलन में शामिल किसान इस पाखंड कह रहे हैं।

किसान आर-पार की लडाई की तैयारी के साथ बार्डर पर डटे हुए हैं, पीछे से उन्हें रसद मुहैया हो रही है, देखना है कि इन जाबांज किसानों के सामने मोदी सरकार कितने देर टिकती है और अपने बचाव के लिए कौन सा रास्ता निकालती है।

अबकी बार मोदी सरकार का सामने योद्धाओं की कौम से है, जिन्हें शहीद होना तो आता है, लेकिन झुकना नहीं आता। उन्हें झुकाना एक बहुत मुश्किल भरा काम है। साथ में उनका सबकुछ दांव पर लगा हुआ है।

Sunday, September 20, 2020

दुनिया को बर्बाद करने का षड्यंत्र by Munish Sharma

दोस्तों हमारे देश के चोटी के नेताओं और सत्ता में बैठे लोगों की नीयत कैसी है ये इसी बात से अंदाज़ा लगा लिजिए कि टेस्टिंग से लेकर दवाईयों से लेकर वैक्सीन से लेकर उसी वैक्सीन के Digital Certificate तक का सारा प्रोग्राम बिल गेट्स, WHO और उन अदृश्य ताकतों के कहने पे सेट किया जा रहा है जिन्हें हम Rockefeller और Rothschild इत्यादि इत्यादि के नाम से भी जानते हैं...

अब तो ID 2020 का नाम बच्चे बच्चे की ज़ुबान पर है, लेकिन इसके लिए 1992 के UNO के Rio De Jenerio में हुई सम्मेलन में ही सारा प्लान सेट कर लिया गया था जब उसके दो साल बाद David Rockefeller जो अमेरिका के बैंकों का बादशाह है उसने कह दिया था कि एक बड़ी आपदा, और विश्व हमारे घुटनों पर होगा...
तो लिजिए आज वो आपदा आपके सामने है..

शुरू में तो इसे Sustainable Development का नाम दिया गया था, परंतु बाद में इसकी सारी परतें खुलती गईं जब Climate Change और Global Warming के मुद्दे दुनिया के सामने लाए गए जिसमें ये डर पैदा किया गया कि यदि हमने जलवायु परिवर्तन को नहीं रोका तो धरती का सर्वनाश हो जाएगा..

इसमें कोई संदेह नहीं कि धरती को कुदरती तौर पर बनाए रखना हर मनुष्य का कर्तव्य है परंतु जिस मानसिकता से कुछ लोगों ने ऐसे मनघड़ंत मुद्दे बनाए वो मानसिकता गलत है..आज तक सिर्फ़ और सिर्फ़ आपदाएं बनाईं गई किसी न किसी तरीके से परंतु धरती के बारे में संवेदनशीलता से नहीं सोचा गया, जो सबसे बड़े ठेकेदार बनते हैं उन्होंने ही सब कायदे-कानूनों की धज्जियां भी उड़ाई हैं..

ख़ैर, मुद्दे पर आते हैं.. तो दोस्तों ये सब समझने के लिए आपको Henry Kissinger के बारे में पढ़ना होगा, 1972 के उसके NSSM 200 प्रोग्राम को भी पढ़ना होगा जिसमें उसने साफ़ तौर पर कहा था कि अमेरिका और इसकी आने वाली नस्लों के लिए धरती की संपदाओं, कुदरती खनिजों और पानी को बचाना अति आवश्यक है जो कि बढ़ती हुई जनसंख्या से दिन-प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं...

बात यहीं नहीं रुकती, उसके बाद अथक प्रयास जारी रहे समुचे विश्व को घुटनों पर लाने के लिए जिसका प्रमाण आपको एचआईवी एड्स षड्यंत्र में भी मिल जाएगा कि कैसे अफ्रीका और अन्य ग़रीब देशों को निशाना बनाया गया आबादी नियंत्रण करने की मंशा से...

अब 1992 आते-आते कहानी बदलती जा रही थी, महामारी वाला मंत्र ठीक से चल नहीं पा रहा था, अब एक नया पैंतरा निकाला गया Global Warming और Climate Change का, दुनिया इसे सही और सच मानने लगी, बिना ये सोचे समझे कि यदि ख़बरों के ज़रिए यही अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मौसम जलवायु संस्थान बताते हैं कि 100 साल पहले वाला गर्मी या बरसात का रिकार्ड अब टूटा है तो भला 100 साल पहले को Global Warming Climate Change जैसे कारण मुद्दे या लक्षण थे ?? तब कैसे ये सब होता था ?? इस सवाल का जवाब आजतक मुझे किसी जलवायु वैज्ञानिक से नहीं मिला है... और न मिलेगा...

वहां से यदि हम अगर कुछ और आगे चलें तो सन् 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई साहब ने भी इसी एजेंडे को आगे बढ़ाने की बात राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कही थी जिसे मनमोहन सिंह सरकार ने UDI बनाकर आगे बढ़ाने में सहायता की...

परंतु अभी भी बहुत कुछ और करना बाकी था तो एस ऐसी तैयारी की गई जिसे भेद पाना तरकीबन असंभव हो गया... इस बार नाम है कोरोना या COVID19 और जिसका खाका तैयार किया गया Event 201 जो 18 अक्तूबर 2019 को अमेरिका में आयोजित की गई थी... आप देख सकते हैं विडियो उपलब्ध हैं...

अब जो मोटे तौर पर बात सामने आई है वो ये है कि बिल गेट्स और उसके पीछे जो लोग ये सब कार्यक्रम चला रहे हैं वो दुनिया की आबादी को आधी से भी कम करना चाहते हैं जिसके लिए बिल गेट्स ने बहुत बार अपने इंटरव्यू में भी ज़िक्र किया है,, आप में से बहुतों ने सुना देखा होगा... अब वो आबादी वैक्सीन से कम की जाएगी ?? GMO फ़ूड से कम की जाएगी या फ़िर आर्थिक रूप से ग़रीब देशों को पंगु बनाकर लोगों को भूखे मार कर की जाएगी ये देखना अभी बाकी है...

और बाकी जो कुछ हो रहा है जैसे आनलाईन कामकाज वगैरह वगैरह वो सब इंसानों की मूवमेंट को घटाने का एक प्रयास है जिससे की उन्हीं लोगों की भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए पदार्थों से लेकर तेल गैस के भंडार बचाए जा सकें..

ये जो उपर सब लिखा है इसी का नाम एजेंडा 2030 जिसका ज़िक्र प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त के दिन लाल किले की प्राचीर से भी किया था. बाकी आप सब देख सुन ही रहे हैं,, बस समय-समय पर मैं अपनी समझ अनुसार आप तक अपनी बात पहुंचा देता हूं...

अब आपको काफ़ी हद तक कोरोना के मायने समझ आ चुके होंगे....



Wednesday, August 5, 2020

हरियाणा वालों के राम

इस पूरी दुनिया मे "राम" शब्द का सबसे ज्यादा उच्चारण धरती के जिस हिस्से पर होता है वो है ― #हरियाणा

हरियाणा वो भूमि है जहाँ पर न सिर्फ स्वागत और अभिवादन के लिए राम-राम बोलते हैं अपितु सारी दुनिया में जहाँ जहाँ भगवान, ईश्वर इत्यादि शब्द प्रयोग होते हैं वहाँ पर हरियाणा में राम शब्द का प्रयोग किया जाता है । 

जैसे दुनिया कहेगी - भगवान देख रहा है, ईश्वर न्याय करेगा, धर्मराज के द्वार जाना है इत्यादि।

लेकिन हरियाणा मे कहेंगे ―

राम देखै है,
राम न्याय करेगा,
राम के घर जाना है,
राम से डर। 

हरियाणा की कहावतें भी केवल राम से संबंधित है जैसे ―

हिम्मती का राम हिमायती,
आंधे की मक्खी राम उड़ावै,
राम को राम नहीं कहता, 
अपने को राम से बड़ा समझना।

हरियाणा में आकाश को भी राम कहते है और आराम को भी राम कहते है।

जैसे दुनिया कहेगी आराम से चल, आराम कर ले।

लेकिन हरियाणा में कहेंगे कि ―

राम से चल, राम कर ले। 

जब कही जाना हो तो गाड़ी मे बैठने के बाद दुनिया वाले कहते हैं कि "चलो"

लेकिन हरियाणा मे कहते है कि ―

"चालन दो भाई लेके राम का नाम" 

हरियाणा में बारिश को भी राम कहते है। जब बरसात होती है तो दुनिया वाले कहते हैं कि बूंदे आई थी, बहुत बारिश हूई इत्यादि । 

लेकिन हरियाणा में कहते हैं कि राम जी आया था, राम जी बहुत बरसा भाई।

जब कोई किसी का हाल चाल पूछता है तो बाकी दुनिया मे कहते है कि सब बढिय़ा है इत्यादि ।

लेकिन हरियाणा मे कहते हैं कि ―

"राम राजी स" या "दया है राम की ।"

हरियाणा मे गाँव को गाम कहते हैं और हरियाणवी कहावत है कि ―

"गाम राम होता है"

हरियाणा वाले राम से प्यार करते हैं 
राम का व्यापार नहीं करते हैं 

हरियाणा के कण-कण और शब्द-शब्द मे राम बसता है और मुझे गर्व है स्वयं के हरियाणवी होने का |

🙏🏻🙏🏻राम-राम🙏🏻🙏🏻


Tuesday, July 14, 2020

सरकारी विद्यालयों में पढने वाले मासूमों को नसीब नहीं शिक्षक



Right to education means that education is the fundamental right of every individual and it is the government’s responsibility to ensure that individuals are able to exercise their right.
सरकार ने राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में पढने वाले मासूम विद्यार्थियों के साथ हमेशा भेदभाव किया है| यही कारण है की राज्य में प्राथमिक शिक्षा का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है| सरकार के द्वारा बनाए गए नियम ही प्राथमिक शिक्षा को अन्धकार में धकेल रहे हैं|
सरकार के नियमों में अनुसार पहली से पाँचवीं कक्षा वाले प्राथमिक विद्यालयों में 60 विद्यार्थियों पर मात्र 2 अध्यापको के पद ही आबंटित हैं, अगर हम मिडिल स्कूल से तुलना करें तो वहां तीन कक्षाएं हैं, छठी सातवीं और आठवीं|  इन तीन कक्षाओं में अगर हर कक्षा में एक विद्यार्थी है तो इस तरह तीन विद्यार्थियों के लिए मिडिल स्कूल में अध्यापको के 4 पद आबंटित हैं| ( टीजीटी विज्ञान, टीजीटी संस्कृत, टीजीटी इंग्लिश, पी.टी.आई या ड्राइंग टीचर)| इन सब के अलावा मिडिल स्कूल में एक पद ESHM का भी होता है|
अगर हम हाई स्कूल के तुलना करें, तो वहां 9वीं और 10वीं दो कक्षाएं हैं, अगर इन दोनों कक्षाओ में अगर एक-एक विद्यार्थी भी हो तब भी उस हाई स्कूल में उन दो छात्रो के लिए अध्यापकों के 6 पद आबंटित हैं | (6 विषय हैं उनके लिए 5 पीजीटी और 1 डी.पी या पी. टी. आई.) 
इसके अलावा मिडिल और हाई हाई स्कूल में नॉन टीचिंग स्टाफ भी होता है| चतुर्थ श्रेणी (peon) और क्लर्क का पद भी होता है| पर हरियाणा सरकार के प्राथमिक विद्यालयों में ना तो peon होता है और ना ही क्लर्क होता है, peon और क्लर्क का काम वहां पर प्राथमिक शिक्षक को ही करना होता है, और हैरान करने वाली बात तो ये है की बीएलओ का चयन करना हो तो वो भी इन्ही 2 JBT अध्यापकों में से ही किया जाता है जिन पर पहले से ही 60 बच्चों की जिम्मेदारी है|
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि अध्यापक तो 2 ही हैं पर इन्हें कक्षाएं तो 5 ही पढ़ानी पड़ती हैं||(पहली से पाँचवीं)|  इसका मतलब ये की इनमे से एक अध्यापक तीन कक्षाओं को पढ़ाएगा और दूसरा दो कक्षाओं को| RTE के अनुसार साल में 220 कार्यदिवस होने चाहिए|  जो अध्यापक तीन कक्षाओं को पढ़ा रहा है वो स्पष्ट है की हर कक्षा को अपना एक तिहाई समय ही दे पाएगा| इस तरह से उन तीन कक्षाओं के 220 कार्यदिवस तीन साल में पूरे होंगे ना की एक साल में| एक साल में तो उनके कार्यदिवस मात्र 73 ही बने| और जो अध्यापक दो कक्षाओं को पढ़ा रहा है वो स्पष्ट है की हर कक्षा को अपने कार्यदिवस का आधा समय ही दे पाएगा| इस तरह से उन दोनों कक्षाओं के 220 कार्यदिवस दो साल में पूरे होंगे ना की एक साल में| एक साल में तो उनके 110 कार्यदिवस ही हुई| ऐसी दशा में 220 कार्यदिवस शिक्षक के तो पूरे हो रहे हैं, पर हर कक्षा के 220 कार्यदिवस पूरे नहीं हो पा रहे| ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि शिक्षा एक द्विपक्षीय प्रक्रिया है ना की एक पक्षीय, और  220 कार्य दिवस दोनों पक्षों के पूरे होने चाहिए ना की एक पक्ष के |
शिक्षण एक द्विपक्षीय प्रक्रिया है, जिसका एक पक्ष शिक्षक हैं और दूसरा पक्ष छात्र या कक्षा हैं, शिक्षण प्रक्रिया के सफल सञ्चालन के लिए दोनों पक्षों की भागीदारी आवश्यक है|

अब बात करते हैं पाठ्यक्रम की| पाठ्यक्रम हर कक्षा के लिए पूरे साल का तैयार किया जाता है, और यह पाठ्यक्रम 220 कार्यदिवसों  में पूरा करना होता है| जिस प्राथमिक शिक्षक के पास 3 कक्षाओं की जिम्मेदारी है उस अध्यापक ने यह पाठ्यक्रम हर कक्षा को पूरा कराया और वह हर कक्षा को अपना एक तिहाई समय ही दे पाया, यानि हर कक्षा को वह 220 कार्यदिवसों में से 73 दिन ही दे पाया|
हम कह सकते हैं की छात्रों को जो पाठ्यक्रम 220  कार्यदिवसों में पूरा करना था वह उन्होंने 73 कार्यदिवसों में ही पूरा किया, क्योंकि उनके अध्यापक ने उन्हें अपना एक तिहाई समय ही दिया| छात्रों को उस पाठ्यक्रम को सीखने और उसे आत्मसात करने का पूरा समय ही नहीं मिल पाया | ऐसे में उनके सीखने का स्तर तो नीचे गिरेगा ही, क्योंकि उन्हें जो समय मिलना चाहिए उन्हें उसका एक तिहाई समय ही मिल पाया है | क्या इन बच्चों को मानसिक तनाव नहीं होगा, क्या यह उन मासूम बच्चों के अधिकारों का हनन नहीं है |
RTE के अनुसार निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के साथ साथ साल में 220 कार्यदिवसों का प्रावधान किया गया है, 220 कार्यदिवसों का मतलब है की इतने दिन अध्यापकों ने पढाया और बच्चों में पढ़ा तभी शिक्षण प्रक्रिया पूरी मानी जाएगी| यहाँ अध्यापक के तो 220 कार्यदिवस पूरे हो रहे हैं, पर कक्षा के हिसाब से छात्रों में 220 कार्यदिवस शैक्षणिक वर्ष में पूरे नहीं हो रहे|
पिछले कुछ सालों के प्राथमिक सरकारी विद्यालयों ने छात्रों की संख्या तो बढ़ी हैं पर  शिक्षा के स्तर में गिरावट आई है| प्राथमिक सरकारी विद्यालयों में छात्रों के या कह सकते हैं की कक्षा के 220 कार्यदिवस व्यावहारिक रूप से पूरे नहीं हो पा रहे, यह RTE का उल्लंघन है और प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षा के स्तर में गिरावट आने का एक बहुत बड़ा कारण है | पाठ्यक्रम 220 कार्यदिवसों में सीखना और समझना है, पर एक अध्यापक के पास 2 या 3 कक्षाओं की जिम्मेदारी है, इसलिए इन कक्षाओं के छात्रों को 73 (एक तिहाई) या 110 (आधे) कार्यदिवस ही मिल पा रहे हैं| हम कह सकते हैं की इन कक्षाओं को दो तिहाई या आधे समय के लिए शिक्षक ही उपलब्ध नहीं हो पाया| क्या इसे हम क्वालिटी एजुकेशन कह सकते है? याद दिला दूँ कि RTE के अनुसार हर बच्चे के लिए क्वालिटी एजुकेशन का प्रावधान किया गया है |
·        RTE के अनुसार छात्रों पर बिना अतिरिक्त बोझ डाले उन्हें शिक्षा देनी है, आप यह बताइए की जब 220 दिन का पाठ्यक्रम छात्रों को 73 या 110 कार्यदिवसों में पूरा कराया जाए तो उनपर अतिरिक्त बोझ नहीं डाला जा रहा है|
·        RTE के अनुसार कक्षा में बच्चों की भागीदारी को बढ़ाना है, आप यह बताइए की जब छात्रों के कार्यदिवस साल में 73 या 110 ही बन पा रहे हैं, जबकि होने चाहिए 220, तो छात्रों की भागीदारी कक्षा में बढ़ रही है या फिर कम हो रही है|
·        RTE अनुसार ड्रॉपआउट दर को कम करना है|  पर जब अध्यापक एक कक्षा को अपना एक तिहाई या आधा समय ही दे पा रहा है तो ऐसे में ड्रॉपआउट दर बढ़ने का खतरा ज्यादा है|
·        RTE के अनुसार शिक्षा को बाल केंदित और रूचिकर बनाना है, पर एक अध्यापक पर अधिक कक्षाओं की जिम्मेदारी है वह हर कक्षा को अपना एक तिहाई या आधा समय ही दे पा रहा है, तो निश्चित रूप से छात्रों में शिक्षा के प्रति अरूचि उत्पन्न तो होगी ही|
ऐसे में सरकार को समझना चाहिए की विद्यालयों ने बच्चों की संख्या बढ़ा देने से ही काम नहीं चलने वाला, क्वालिटी एजुकेशन के लिए और RTE को अमल में लाने के लिए प्राथमिक विद्यालयों में ‘एक कक्षा एक अध्यापक’ ( One Class, One Teacher) की आवश्यकता है|

·        The main object of the RTE Act 2009 is to ensure that each child in India receives quality elementary education irrespective of their economic or caste background: this includes children who are forced to drop out of school.  It also ensures that schools comply with certain regulations—regarding infrastructure and manpower—to maintain the quality of education. The Act puts the responsibility of ensuring its implementation on the government.
क्वालिटी एजुकेशन के man-power और इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार की है | अतः व्यावहारिक रूप से 220 कार्यदिवस पूरे कराने के लिए सरकार हर कक्षा को अध्यापक उपलब्ध कराए|
·        The Right to Education Act 2009 prohibits all kinds of physical punishment and mental harassment, discrimination based on gender, caste, class and religion, screening procedures for admission of children capitation fee, private tuition centres, and functioning of unrecognised schools.
अध्यापक के पास एक से अधिक कक्षाएं है तो वह एक कक्षा को अपना आधा या एक तिहाई समय ही दे पाता है, तो क्या यह छात्रों की mental harassment नहीं है?
·        The Right to Education Act 2009 provides for development of curriculum, which would ensure the all-round development of every child. Build a child’s knowledge, human potential and talent.
जब अध्यापक एक कक्षा को अपना आधा या एक तिहाई समय ही दे पा रहा है तो ऐसे में उस कक्षा के छात्रों की all-round development कैसे संभव है |
·        Every child has a right to life, family, health, protection from violence, abuse or neglect, and quality education to help reach their full potential, irrespective of their race, religion or abilities. These rights are legally bound by the United Nations Convention on the Rights of the Child (UNCRC). India ratified the UNCRC on 11 December 1992.
यहाँ बच्चे की उपेक्षा न करने की बात कही गयी है, पर जहाँ एक अध्यापक के पास दो या तीन कक्षाएं हैं वहाँ क्या छात्रों की उपेक्षा नहीं हो रही ? क्या यह मासूम बच्चों के अधिकारों का हनन नहीं है?

·        Every child has the right to education. Education is critical for the holistic development of a child. Education helps a child develop different skills and behaviours which further help in developing a successful and fruitful future and an adequate standard of living.
छात्रों को पूरे समय के लिए शिक्षक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, ऐसा होने से बच्चों में कौन सी skill विकसित हो रही है, क्या ये विद्यार्थी भविष्य में सफल हो पाएंगे?


United Nations Convention on the Rights of the Child (UNCRC) 1992 क्या कहता है देखें:
Article 28-
·        State parties shall take measures to encourage regular attendance at schools and the reduction of drop-out rates.
·        State parties shall take appropriate measures to ensure that school discipline is administered in a manner consistent with the child’s human dignity and in conformity with the present Convention.
Article 29-
·        State parties agree that the education of the child shall be directed to the development of the child’s personality, talents and mental and physical abilities to their fullest potential.

प्राथमिक विद्यालयों में एक अध्यापक के पास एक से अधिक कक्षाएं होने के कारण वह हर कक्षा को अपना आधा और एक तिहाई समय ही दे पा रहा है, ऐसे में UNCRC के उपरोक्त प्रावधानों की अनुपालना भी नहीं हो पा रही है|

जब तक प्राथमिक विद्यालयों में हर कक्षा के लिए अलग-अलग अध्यापक ना हो तब तक ऐसी कक्षाओं के 220 कार्यदिवस एक साल में पूरे हो ही नहीं सकते|
राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में पढने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा की बुनियाद लगातार कमजोर होती जा रही है| अभी तक किसी ने भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया, क्योंकि मामला मासूम बच्चों के अधिकारों से जुड़ा है|सरकार की तरफ से शिक्षा में सुधार  के लिए चाहे कितनी ही योजनाएं चलाई जाएँ जब तक प्राथमिक विद्यालयों में हर कक्षा के लिए अलग-अलग अध्यापक नहीं होगा तब तक प्राथमिक शिक्षा में सुधार संभव ही नहीं है|
एक कक्षा एक अध्यापक के बिना सरकार की शिक्षा में सुधार की सारी योजनाएं, सारे प्रयास मात्र ढकोसला ही हैं|
एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते, नन्हे मुन्ने विद्यार्थियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए, QUALITY EDUCATION के लिए और 220 कार्यदिवस के प्रावधान को वास्तविक धरातल पर उतारने के लिए हर कक्षा के लिए एक अध्यापक की व्यवस्था की जाए| प्राथमिक शिक्षा ही शिक्षा और भविष्य की नींव है, इसे खोखला होने से हमें बचाना होगा| अभी तक प्राथमिक शिक्षा का बहुत नुकसान हो चुका है, आगे के लिए हमें संभालना होगा|

यह सरकार का दायित्व है की वह Quality Education और Meaningful Teaching process के लिए उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराए|




Saturday, July 11, 2020

इसे कहते हैं न्याय..



जुनूबी, अमेरिका। 

मुलजिम एक पंद्रह साल का लड़का था। 
स्टोर से चोरी करता हुआ पकड़ा गया। 
पकड़े जाने पर गार्ड की गिरफ्त से भागने की कोशिश में स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया।
जज ने जुर्म सुना और लड़के से पूछा...
तुमने सचमुच कुछ चुराया था ??
"ब्रैड" और "पनीर का पैकेट" 
लड़के ने नीचे नज़रें कर के जवाब दिया।
हाँ

क्यों ? 
मुझे ज़रूरत थी।

खरीद लेते :-- जज
पैसे नहीं थे :-- लड़का 

घर वालों से ले लेते 
-- घर में सिर्फ मां है, बीमार है,,, बेरोज़गार भी  
उसी के लिए चुराई थी।।

तुम कुछ काम नहीं करते ? 
-- करता था, एक कार वाश में 
मां की देखभाल के लिए एक दिन की 
छुट्टी की तो निकाल दिया।

तुम किसी से मदद मांग लेते 
-- सुबह से घर से निकला था। 
तकरीबन पचास लोगों के पास गया । 
बिल्कुल आख़री में ये क़दम उठाया।

जिरह ख़त्म हुई जज ने 
फैसला सुनाना शुरू किया

चोरी और ब्रेड की चोरी बहुत खौफनाक जुर्म है 
और इस जुर्म के हम सब ज़िम्मेदार हैं। 
अदालत में मौजूद हर शख़्स मुझ समेत।   

हम सब मुजरिम हैं इसलिए यहां मौजूद हर शख़्स पर दस डालर का जुर्माना लगाया जाता है। 
दस डालर दिए बग़ैर कोई भी यहां से बाहर नहीं निकल सकेगा। 

ये कह कर जज ने दस डालर अपनी जेब से बाहर निकाल कर रख दिए 
और फिर पेन उठाया।

 लिखना शुरू किया ۔

इसके अलावा मैं स्टोर पर एक हज़ार डालर का जुर्माना करता हूं 
कि उसने एक भूखे बच्चे से ग़ैर इंसानी सुलूक करते हुए पुलिस के हवाले करा। 
अगर  चौबीस घंटे में जुर्माना जमा नहीं भरा तो कोर्ट स्टोर सील करने का हुक्म दे देगी।

सारी जुर्माना राशि इस लड़के को देकर कोर्ट इस लड़के से माफी तलब करती है। 

फैसला सुनने के बाद कोर्ट में मौजूद लोगों के आंखों से आंसू तो बह ही रहे थे, 
उस लड़के की भी हिचकियां बंध गईं। 

वो बार बार जज को देख रहा था ...
जो अपने आंसू छिपाते हुए बाहर निकल गया।


Thursday, June 18, 2020

प्राइवेट स्कूल हुए एक्सपोज़

एक बार फिर साबित हो गया कि प्राइवेट स्कूल संचालकों को बस पैसों से प्यार है, विद्यार्थी उनके कुछ नहीं लगते। इनका मुख्य उद्देश्य पैसे कमाना है ना कि शिक्षा देना। आप सभी जानते हैं कि ये मासूम बच्चों की किताबों, स्टेशनरी और स्कूल ड्रेस में से भी कमिशन खाते हैं। 
हरियाणा सरकार ने SLC की अनिवार्यता को समाप्त करके बहुत अच्छा निर्णय लिया है। ये निजी स्कूल बच्चों को SLC के नाम बंधक बना लेते हैं, वो बच्चा चाह कर भी कहीं और एडमिशन नहीं ले पाता।
SLC की अनिवार्यता को समाप्त करने के सरकार के जनहितकारी निर्णय का विरोध करके प्राइवेट स्कूलों ने ये साबित कर दिया है कि अगर इन्हें फीस ना मिले तो ये मासूम विद्यार्थियों को ना तो खुद पढ़ाएंगे ना ही कहीं और पढ़ने देंगे और उनका साल खराब कर देंगे।
शिक्षा के इन ठेकेदारों को ये भी नहीं पता कि RTE (Right to Education) के अनुसार विद्यार्थियों के लिए निशुल्क अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया है। और बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने से रोकना कानूनन अपराध है। 
जो भी प्राइवेट स्कूल किसी बच्चे की SLC देने से मना करता है, सरकार को उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही करनी चाहिए और उनकी मान्यता रद्द कर देनी चाहिए। क्योंकि ऐसा करना RTE का सीधा सीधा उल्लंघन है।
अभिभावकों से भी निवेदन है कि वो इन लूटेरों को पहचाने और इनका बहिष्कार करें।

निवेदन है कि शेयर जरूर करें। 🙏🙏🙏








Sunday, May 31, 2020

सरकारी विद्यालयों में पढने वाले मासूमों को नसीब नहीं शिक्षक



सरकार ने राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में पढने वाले मासूम विद्यार्थियों के साथ हमेशा भेदभाव किया है| यही कारण है की राज्य में प्राथमिक शिक्षा का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है| सरकार के द्वारा बनाए गए नियम ही प्राथमिक शिक्षा को अन्धकार में धकेल रहे हैं|
सरकार के नियमों में अनुसार पहली से पाँचवीं कक्षा वाले प्राथमिक विद्यालयों में 60 विद्यार्थियों पर मात्र 2 अध्यापको के पद ही आबंटित हैं, अगर हम मिडिल स्कूल से तुलना करें तो वहां तीन कक्षाएं हैं, छठी सातवीं और आठवीं| इन तीन कक्षाओं में अगर हर कक्षा में एक विद्यार्थी है तो इस तरह तीन विद्यार्थियों के लिए मिडिल स्कूल में अध्यापको के 4 पद आबंटित हैं| ( टीजीटी विज्ञान, टीजीटी संस्कृत, टीजीटी इंग्लिश, पी.टी या ड्राइंग टीचर)| इन सब के अलावा मिडिल स्कूल में एक पर ESHM का भी होता है|
अगर हम हाई स्कूल के तुलना करें, तो वहां 9वीं और 10वीं दो कक्षाएं हैं, अगर इन दोनों कक्षाओ में अगर एक-एक विद्यार्थी भी हो तब भी उस हाई स्कूल में उन दो छात्रो के लिए अध्यापकों के 6 पद आबंटित हैं | (6 विषय हैं उनके लिए 6 पीजीटी)
इसके अलावा मिडिल और हाई हाई स्कूल में चतुर्थ श्रेणी (peon) और क्लर्क का पद भी होता है| पर सरकार के प्राथमिक विद्यालयों में ना तो peon होता है और ना ही क्लर्क होता है, peon और क्लर्क का काम वहां पर प्राथमिक शिक्षक को ही करना होता है, और हैरान करने वाली बात तो ये है की बीएलओ का चयन भी इन्ही 2 अध्यापकों में से ही किया जाता है जिनपर पहले से ही 60 बच्चों की जिम्मेदारी है|
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि अध्यापक तो 2 ही हैं पर इन्हें कक्षाएं तो 5 ही पढ़ानी पड़ती हैं||(पहली से पाँचवीं)|  इसका मतलब ये की इनमे से एक अध्यापक तीन कक्षाओं को पढ़ाएगा और दूसरा दो कक्षाओं को| RTE के अनुसार साल में 220 कार्यदिवस होने चाहिए|  जो अध्यापक तीन कक्षाओं को पढ़ा रहा है वो स्पष्ट है की हर कक्षा को अपना एक तिहाई समय ही दे पाएगा| इस तरह से उन तीन कक्षाओं के 220 कार्यदिवस तीन साल में पूरे होंगे ना की एक साल में| एक साल में तो उनके कार्यदिवस मात्र 73 ही बने| जब तक प्राथमिक विद्यालयों में हर कक्षा के लिए अलग-अलग अध्यापक ना हो तब तक ऐसी कक्षाओं के 220 कार्यदिवस एक साल में पूरे हो ही नहीं सकते|
राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में पढने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा की बुनियाद लगातार कमजोर होती जा रही है, और सरकार इस ओर कोई ध्यान दे ही नहीं रही| सरकार की तरफ से शिक्षा में सुधार  के लिए चाहे कितनी ही योजनाएं चलाई जाएँ जब तक प्राथमिक विद्यालयों में हर कक्षा के लिए अलग-अलग अध्यापक नहीं होगा तब तक प्राथमिक शिक्षा में सुधार संभव ही नहीं है|
एक कक्षा एक अध्यापक के बिना सरकार की शिक्षा में सुधार की सारी योजनाएं, सारे प्रयास मात्र ढकोसला ही हैं|

Monday, April 27, 2020

मंदी कैसे आती है

*मंदी कैसे आती है*

एक छोटे से शहर मे एक बहुत ही मश्हूर बनवारी लाल समोसे बेचने वाला था, वो ठेला लगाकर रोज दिन में 500 समोसे खट्टी मीठी चटनी के साथ बेचता था रोज नया तेल इस्तमाल करता था और कभी अगर समोसे बच जाते तो उनको कुत्तो को खिला देता 

बासी समोसे या चटनी का प्रयोग बिलकुल नहीं करता था, उसकी चटनी भी ग्राहकों को बहुत पसंद थी जिससे समोसों का स्वाद और बढ़ जाता था 

कुल मिलाकर उसकी क्वालिटी और सर्विस बहोत ही बढ़िया थी

*उसका लड़का अभी अभी शहर से अपनी MBA की पढाई पूरी करके आया था, एक दिन लड़का बोला पापा मैंने न्यूज़ में सुना है मंदी आने वाली है, हमे अपने लिए कुछ cost cutting करके कुछ पैसे बचने चाहिए, उस पैसे को हम मंदी के समय इस्तेमाल करेंगे*

समोसे वाला : बेटा में अनपढ़ आदमी हूँ, मुझे ये cost cutting wost cutting नहीं आता, न मुझसे ये सब होगा, बेटा तुझे पढ़ाया लिखाया है अब ये सब तू ही सम्भाल

बेटा : ठीक है पिताजी आप रोज रोज ये जो फ्रेश तेल इस्तमाल करते हो इसको हम 80% फ्रेश और 20% पिछले दिन का जला हुआ तेल इस्तेमाल करेंगे

अगले दिन समोसों का टेस्ट हल्का सा चेंज था पर फिर भी उसके 500 समोसे बिक गए और शाम को बेटा बोलता है देखा पापा हमने आज 20%तेल के पैसे बचा लिए और बोला पापा इसे कहते है COST CUTTING

समोसे वाला : बेटा मुझ अनपढ़ से ये सब नहीं होता ये तो सब तेरे पढाई लिखाई का कमाल है

लड़का : पापा वो सब तो ठीक है पर *अभी और पैसे बचाने चाहिए, कल से हम खट्टी चटनी नहीं देंगे और जले तैल की मात्र 30% प्रयोग में लेंगे*

अगले दिन उसके 400 समोसे बिक गए और स्वाद बदल जाने के कारण 100 समोसे नहीं बिके जो उसने जानवरो और कुत्तो को खिला दिए

*लड़का: देखा पापा मैंने बोला था न मंदी आने वाली है, आज सिर्फ 400 समोसे ही  बिके हैं*

समोसे वाला : बेटा अब तुझे पढ़ाने लिखाने का कुछ फायदा मुझे होना ही चाहिए। अब आगे भी मंदी के दौर से तू ही बचा

लड़का : पापा कल से हम मीठी चटनी भी नहीं देंगे और जले तेल की मात्रा हम 40% इस्तेमाल करेंगे और समोसे भी कल से 400 हीे बनाएंगे

अगले दिन उसके 400 समोसे बिक गए पर सभी ग्राहकों को समोसे का स्वाद कुछ अजीब सा लगा और चटनी न मिलने की वजह से स्वाद और बिगड़ा हुआ लगा

शाम को लड़का अपने पिता से : देखा पाप आज हमे 40% तेल, चटनी और 100 समोसे के पैसे बचा लिए, पापा इसे कहते है cost कटाई और कल से जले तेल की मात्रा 50% कर दो और साथ में tissue पेपर देना भी बंद कर दो

अगले दिन समोसों का स्वाद कुछ और बदल गया और उसके 300 समोसे ही बिके

*शाम को लड़का पिता से : पापा बोला था न आपको कि मंदी आने वाली है*

समोसे वाला : हाँ बेटा तू सही कहता है मंदी आ गई है, अब तू आगे देख क्या करना है, कैसे इस मंदी से लड़ें ?

लड़का : पापा एक काम करते हैं, कल 200 समोसे ही बनाएंगे और जो आज 100 समोसे बचे है कल उन्ही को दोबारा तल कर मिलाकर बेचेंगे

अगले दिन समोसों का स्वाद और बिगड़ गया, कुछ ग्राहकों ने समोसे खाते वक़्त बनवारी लाल को बोला भी और कुछ चुप चाप खाकर चले गए। आज उसके 100 समोसे ही बिके और 100 बच गए।

शाम को लड़का बनवारी लाल से : पापा, देखा मैंने बोला था आपको कि अभी और ज्यादा मंदी आएगी, अब देखो कितनी मंदी आ गई है

समोसे वाला : हाँ बेटा तू सही बोलता है, तू पढ़ा लिखा है समझदार है, अब आगे कैसे करेगा ?

लड़का : पापा कल हम आज के बचे हुए 100 समोसे दोबारा तल कर बेचेंगे और नए समोसे नहीं बनाएंगे

अगले दिन उसके 50 समोसे ही बीके और 50 बच गए ... ग्राहकों को समोसा का स्वाद बेहद ही ख़राब लगा और मन ही मन सोचने लगे बनवारी लाल आजकल कितने बेकार समोसे बनाने लगा है और चटनी भी नहीं देता कल से किसी और दुकान पर जाएंगे

शाम को लड़का : पापा, देखा मंदी ? आज हमने 50 समोसों के पैसे बचा लिए। अब कल फिर से 50 बचे हुए समोसे दोबारा तल कर गरम करके बचेंगे

अगले दिन उसकी दुकान पर शाम तक एक भी ग्राहक नहीं आया और बेटा बोला देखा पापा मैंने बोला था आपको और मंदी आएगी और देखो आज एक भी ग्राहक नहीं आया और हमने आज भी 50 समोसे के पैसा बचा लिए। इसे कहते है Cost Cutting.

बनवारी लाल समोसे वाला : बेटा खुदा का शुक्र है तू पढ़ लिख लिया वरना इस मंदी का मुझ अनपढ़ को क्या पता की cost cutting क्या होता है .... *और अब एक बात और सुन*

बेटा : क्या.....????

समोसे वाला : कल से चुपचाप बर्तन धोने बैठ जाना यहाँ पर .... ये सारी मंदी तेरी खुद की लाई हुई है, अब से मंदी को मैं खुद देख लूंगा।
😂😂😂😂😂
साभार : फेसबुक मीडिया।

इसके आगे मैं बताता हूँ, बेटे ने ज्यादा पैसा इसलिए नहीं लगाया क्योंकि वो अब समोसे बनाना नही चाहता था, वो MBA करके आया था, वो अब बड़ा रेस्टोरेंट खोलना चाह रहा है। इसलिए उसने मार्किट में से सारा पैसा खींच लिया।
शेयर बाजार में भी ऐसे ही मंदी लाई जाती है। जब शेयरों की कीमत बढ़ जाती है तो बड़े खिलाड़ी शेयरों को बेच देते हैं, बाजार में भगदड़ मच जाती है, सभी बेचने लगते हैं। बाजार नीचे आ जाता है। शेयरों की कीमत कम हो जाती है। तो बड़े खिलाड़ी फिर से कम कीमत पर शेयर खरीद लेते है। और लाभ कमाते हैं।

तो साथियों मंदी कभी खुद नहीं आती बल्कि लाई जाती है।


Tuesday, April 21, 2020

अंधेर नगरी चौपट राजा...

अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके शेर खाजा।।

काशी-तीर्थयात्रा की वापसी में एक गुरु और शिष्य किसी  नगरी में पहुँचे। नाम उसका अंधेर नगरी था। शिष्य बाजार में सौदा खरीदने निकला तो वहाँ हर चीज एक ही भाव-‘सब धान बाइस पसेरी।’

भाजी टका सेर और खाजा (एक मिठाई) भी टका सेर। शिष्य और चीजें खरीदने के झंझट में क्यों पड़ता ? एक टके का सेर भर खाजा खरीद लाया और बहुत खुश होकर अपने गुरु से बोला, ‘‘गुरुजी, यहाँ तो बड़ा मजा है। खूब सस्ती हैं, चीजें, सब टका सेर। देखिए, एक टका में यह सेर भर खाजा लाया हूँ। हम तो अब कुछ दिन यहीं मौज करेंगे। छोड़िए तीर्थयात्रा, यह सुख और कहाँ मिलेगा ?’’

गुरु समझदार थे, बोले, ‘‘बच्चा, इसका नाम ही अंधेर नगरी है। यहाँ रहना अच्छा नहीं, जल्दी भाग निकलना चाहिए यहाँ से। वैसे भी, साधु का एक ठिकाने पर जमना अच्छा नहीं। कहा है, ‘साधु रमता भला, पानी बहता भला।’’

पर शिष्य को गुरु की बात नहीं भाई। बोला, ‘‘अपने राम तो यहाँ कुछ दिन जरूर रहेंगे।’’

गुरु को शिष्य को अकेले छोड़ जाना उचित नहीं लगा। बोले, ‘अच्छा, रहो और कुछ दिन। जो होगा, भुगता जाएगा।’’

अब तक शिष्य अंधेर नगरी का सस्ता माल खा-खाकर खूब मोटा हो गया। उन्हीं दिनों एक खूनी को फाँसी की सजा हुई थी। पर वह अपराधी बहुत दुबला-पतला था। फाँसी का फंदा उसके गले में ढीला था। इस समस्या से निजात पाने के लिए राजा ने कहा कि जिसकी गरदन मोटी हो, उसे ही फाँसी लगा दो। अंधेर नगरी ही जो ठहरी। हाकिम ने सिपाहियों को हुक्म दिया कि जो मोटा आदमी सामने मिल जाए, उसी को फाँसी लगा दो। एक खून के बदले में किसी एक को फाँसी होनी चाहिए। इसकी हो या उसकी, किसी की भी हो-"खून का बदला खून"

सिपाही मोटा व्यक्ति खोजने चले तो वही मोटा शिष्य सामने पड़ा। वह हलवाई के यहाँ खाजा खरीद रहा था। सिपाही उसे ही पकड़कर ले चले। गुरु को खबर लगी, वह दौड़े आए। सब बातें लोगों से मालूम कीं। एक बार तो उनके मन में आया कि इसे अपनी बेवकूफी का फल भोगने दें, पर गुरु का हृदय बड़ा दयालु था। सोचा, जीता रहेगा तो आगे समझ जाएगा। सिपाहियों के पास जाकर बोले,
 ‘‘इस वक्त फाँसी चढ़ने का हक तो मेरा है, इसका नहीं।’’
‘‘क्यों ?’’

‘‘इस वक्त कुछ घंटों के मुहूर्त में फाँसी चढ़कर मरनेवाला सीधा स्वर्ग जाएगा। शास्त्र में गुरु के पहले शिष्य को स्वर्ग जाने का अधिकार नहीं है।’’

शिष्य गुरु की चाल समझ गया चिल्ला उठा, ‘‘नहीं गुरुजी, मैं ही जाऊँगा। सिपाहियों ने मुझे पकड़ा है। आपको पकड़ा होता तो आप जाते।’’
इसी एक बात पर दोनों ने परस्पर झगड़ना शुरू कर दिया। सिपाही हैरान थे। भीड़ इकट्ठी हो गई। फाँसी चढ़ने के लिए झगड़ना-वहाँ के लोगों के लिए यह एकदम नई बात थी।

जल्दी ही यह बात राजा के कानों तक पहुँची। राजा ने कहा, ‘‘यदि ऐसा मुहूर्त है तो सबसे पहला अधिकार तो राजा का ही होता है और उसके बाद क्रम उसके उच्चाधिकारियों का।’’

गुरु-शिष्य बहुत चिल्लाए कि साधु के रहते स्वर्ग में जाने का अधिकार किसी दूसरे को कदापि नहीं है; पर किसी ने एक न सुनी। सबसे पहले राजा और फिर एक-एक करके कई मंत्री अधिकारी फाँसी पर चढ़ गए। गुरु ने सोचा कि अब ज्यादा मनुष्य-हत्या नहीं होनी चाहिए, तो अफसोस करते हुए बोले-‘‘अब तो स्वर्ग जाने का मुहूर्त समाप्त हो गया।’’ इसके बाद फिर कोई फाँसी न चढ़ा।

तभी गुरु ने शिष्य के कान में कहा, ‘‘अब यहाँ से जल्दी से निकल भागना चाहिए। देख लिया न तुमने कि अंधेर नगरी में कैसे-कैसे बेवकूफ बसते हैं ?