Thursday, March 7, 2024

पैसे के आवंटन से किसी को संतुष्टि नहीं है


पैसे के चक्कर से किसी एक व्यक्ति को भी संतुष्टि नहीं मिली। पैसे का संग्रह करने जाते हैं तो और संग्रह करने की जगह बना ही रहता है। पैसे को बाँटने (दान आदि करने) जाते हैं तो और बाँटने की जगह रखा ही रहता है। पैसे को गाड़ने जाते हैं तो और गाड़ने की जगह बना ही रहता है। इससे संतुष्टि की जगह तो कभी किसी को मिलती नहीं है। इसके तृप्ति बिन्दु की कोई जगह ही नहीं है। इसके तृप्ति बिन्दु की कोई दिशा भी नहीं है। स्वयं हम पैसे से संतुष्ट हो नहीं सकते। पैसे को बाँटने से भी संतुष्ट नहीं हो सकते। ज्यादा पैसे इकट्ठा कर लिए उससे कोई समझदार हो गया हो, यह प्रमाणित नहीं हुआ। कुछ भी पैसे नहीं रख कर, घर बार बेच कर कोई समझदार हो गया हो, यह भी प्रमाणित नहीं हुआ। ज्यादा कम लगा ही रहता है। न ज्यादा में तृप्ति है, न कम में तृप्ति है, न ही बीच की किसी स्थिति में। पैसे के चक्कर में लक्ष्य सुविधा संग्रह ही बनता है। सुविधा संग्रह का कोई तृप्ति बिन्दु नहीं है। कितना भी कर लो और चाहिए, यह बना ही रहता है। पैसे के चक्कर में मानव की संतुष्टि का कोई निश्चित स्वरूप निकल ही नहीं सकता।

-संवाद
नागराज जी के साथ
(मध्यस्थदर्शन)