आप हैरत में पड़ेंगे। मेडिकल कॉलेज में तीन दशक की प्रोफेसरी में पढ़ा-लिखाकर सैकड़ों डॉक्टर तैयार करने वाले लहरी साहब के पास खुद का चारपहिया वाहन नहीं है। आज जब तमाम डॉक्टर चमक-दमक। ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं। लंबी-लंबी मंहगी कारों से चलते हैं। चंद कमीशन के लिए दवा कंपनियों और पैथालॉजी सेंटर से सांठ-गांठ करने में ऊर्जा खपाते हैं। नोटों के लिए दौड़-भाग करते हैं। तब प्रो. लहरी साहब आज भी अपने आवास से अस्पताल तक पैदल ही आते जाते है।
मरीजों के लिए किसी देवता से कम नहीं हैं। उनकी बदौलत आज लाखों गरीब मरीजों का दिल धड़क रहा है, जो पैसे के अभाव में महंगा इलाज कराने में लाचार थे। गंभीर हृदयरोगों का शिकार होकर जब तमाम गरीब मौत के मुंह में समा रहे थे। तब डॉ. लहरी ने फरिश्ता बनकर उन्हें बचाया।
प्रो. टीके लहरी बीएचयू से 2003 में ही रिटायर हो चुके हैं। चाहते तो बाकी साथियों की तरह बनारस या देश के किसी कोने में आलीशान हास्पिटल खोलकर करोड़ों की नोट हलोरने लगते। मगर खुद को नौकरी से रिटायर माना चिकित्सकीय सेवा से नहीं।
रिटायर होने के बाद 15 साल बाद भी बीएचयू को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वो भी पूरी तरह मुफ्त।
आप यह जानकर सिर झुका लेंगे। सोचेंगे कि चरण मिल जाएं तो छू लूं। जब पता चलेगा कि प्रो. लहरी साहब पेंशन से सिर्फ अपने भोजन का पैसा रखते हैं, बाकी बीएचयू को दान दे देते हैं। ताकि महामना का यह संस्थान उस पैसों से गरीबों की खिदमत कर सके।
इस महान विभूति की गाथा यहीं नहीं खत्म होती। समय के पाबंद लोगों के लिए भी प्रो. लहरी मिसाल हैं। 75 साल की उम्र में भी वक्त के इतने पाबंद हैं कि उन्हें देखकर बीएचयू के लोग अपनी घड़ी की सूइयां मिलाते हैं। वे हर रोज नियत समय पर बीएचयू आते हैं और जाते हैं। प्रो. लहरी साहब को देखकर बीएचयू का स्टाफ समझ जाता है कि इस वक्त समय घड़ी की सूइयां कहां पर पर होंगी।
उनके अदम्य सेवाभाव और मरीजों के प्रति प्रेम को देखते हुए बीएचयू ने उन्हें इमेरिटस प्रोफेसर का दर्जा दिया हुआ है। यूं तो इस विभूति को बहुत पहले ही पद्मश्री जैसे सम्मान मिल जाने चाहिए थे। मगर देर से ही सही, पिछले साल पूरी काशीनगरी तब खुशी से झूम उठी थी, जब इस महान विभूति को 26 जनवरी 2016 को केंद्र सरकार ने पद्मश्री से नवाजा। लाखों मरीजों का दिल धड़काने वाले प्रो. लहरी को मिले सम्मान से पद्मश्री का भी गौरव बढ़ता नजर आया। और हां लहरी साहब को देखकर सवाल का जवाब भी मिल गया- डॉक्टरों को भगवान का दर्जा क्यों दिया गया है।
उम्मीद है कि डॉ. लहरी साहब के इस देवतुल्य कार्य के बारे में जानकर उन तमाम डॉक्टरों का जमीर जरूर जागेगा, जिनके लिए चिकित्सा धर्म से धंधा बन चुका है।
मेरा हमेशा से मानना रहा है। धरती पर बुरे लोगों से कहीं ज्यादा अच्छे लोग हैं। तभी दुनिया चल रही है। यही वजह है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। जरूरत है हमें अपने बीच ऐसी शख्सियतों को ढूंढकर सम्मान देने की। वामपंथ-दक्षिणपंथ के नाम पर गाली-गलौज। बेफिजूल की बातों से इतर कुछ सकारात्मक पढ़ते-लिखते रहिए। आनंद मिलेगा।