Saturday, September 7, 2013

भारतीयों को चारित्रिक और नैतिक पतन एक चुनौती

*** "हर भारतीय के लिए चुनौती" ***

सन् 1836 में लार्ड मैकाले अपने पिता को लिखे एक पत्र में कहता है :-
"अगर हम इसी प्रकार अंग्रेजी नीतिया चलाते रहे और भारत इसे अपनाता रहा तो आने वाले कुछ सालों में 1 दिन ऐसा आएगा की यहाँ कोई सच्चा भारतीय नहीं बचेगा.....!!"
(सच्चे भारतीय से मतलब......चरित्र में ऊँचा, नैतिकता में ऊँचा, धार्मिक विचारों वाला, धर्मं के रस्ते पर चलने वाला)

भारत को जय करने के लिए, चरित्र गिराने के लिए, अंग्रेजो ने 1758 में कलकत्ता में पहला शराबखाना खोला, जहाँ पहले साल वहाँ सिर्फ अंग्रेज जाते थे। आज पूरा भारत जाता है।
सन् 1947 में 3.5 हजार शराबखानो को सरकार का लाइसेंस.....!!

सन् 2009-10 में लगभग 25,400 दुकानों को मौत का व्यापार करने की इजाजत।

चरित्र से निर्बल बनाने के लिए सन् 1760 में भारत में पहला वेश्याघर कलकत्ता में सोनागाछी में अंग्रेजों ने खोला और लगभग 200 स्त्रियों को जबरदस्ती इस काम में लगाया गया।

आज अंग्रेजों के जाने के 64 सालों के बाद, आज लगभग 20,80,000 माताएँ, बहनें इस गलत काम में लिप्त हैं।

अंग्रेजों के जाने के बाद जहाँ इनकी संख्या में कमी होनी चाहिए थी वहीं इनकी संख्या में दिन दुनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है !!

आज हमारे सामने पैसा चुनौती नहीं बल्कि भारत का चारित्रिक पतन चुनौती है। इसकी रक्षा और इसको वापस लाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए !!!

http://98.130.113.92/Bharat_Ke_Samajik_Evam_Charitrik_Patan_Ka_Shadyantra.mp3

॥ जय हिन्द ॥ जय माँ भारती ॥ वन्दे मातरम् ॥

Wednesday, September 4, 2013

Paid Mahatma of British Empire.. गांघी के बारे में कुछ अनसुनी बाते............


अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से
समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस
नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग
चलाया जाये। गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह
को समर्थन देने से स्पष्ठ मना कर दिया।
भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से
सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था,
कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से
बचायें, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह
की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस
माँग को अस्वीकार कर दिया।
६ मई १९४६ को समाजवादी कार्यकर्ताओं को दिये
गये अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग
की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं
के विरोध को अनदेखा करते हुए १९२१ में गान्धी ने
खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की।
तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के
हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग १५०० हिन्दू
मारे गये व २००० से अधिक को मुसलमान
बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध
नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के
रूप में वर्णन किया।
१९२६ में आर्य समाज द्वारा चलाए गए
शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल
रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी,
इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद
को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित
ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-
विरोधी तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये
अहितकारी घोषित किया।
गान्धी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व
गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
गान्धी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह
को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व
काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया,
वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दू
बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
यह गान्धी ही थे जिन्होंने मोहम्मद
अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
कांग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिये
बनी समिति (१९३१) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित
भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गान्धी की जिद
के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र
बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन
लिया गया किन्तु
गान्धी पट्टाभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे,
अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के
कारण पद त्याग दिया।
लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव
सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद
जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
१४-१५ १९४७ जून को दिल्ली में आयोजित अखिल
भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन
का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने
वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह
भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश
का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने
सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण
का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु
गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे; ने
सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव
को निरस्त करवाया और १३ जनवरी १९४८
को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर
दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण
कराने के लिए दबाव डाला।
पाकिस्तान से आये विस्थापित हिन्दुओं ने
दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण
ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध,
स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर
ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
२२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर
आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत
सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपये
की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय
मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने
को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय
यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू
कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान
को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।

Tuesday, August 27, 2013

दिल्ली का लालकिला लाल कोट ही है जो शाहजहाँ से कई साल पहले पृथ्वीराज चौहान ने बनवाया था।

टीइतिहास के नाम पर झूठ क्यों पढ़ रहे है ??
क्या कभी किसी ने सोचा है की इतिहास के नाम पर हम झूठ
क्यों पढ़ रहे है?? सारे प्रमाण होते हुए भी झूठ को सच
क्यों बनाया जा रहा है?? हम भारतीयो की बुद्धि की आज
ऐसी दशा हो गयी है की अगर एक आदमी की पीठ मे खंजर मार कर
हत्या कर दी गयी हो और उसको आत्महत्या घोषित कर
दिया जाए तो कोई भी ये भी सोचने का प्रयास
नही करेगा की कोई आदमी खुद की पीठ मे खंजर कैसे मार
सकता है....यही हाल है हम सब का की सच देख कर भी झूठ को सच
मानना फ़ितरत बना ली है हमने.....
***दिल्ली का लाल किला शाहजहाँ से भी कई
शताब्दी पहलेपृथवीराज चौहान द्वारा बनवाया हुआ लाल कोट
है*** जिसको शाहजहाँ ने पूरी तरह से नष्ट करने की असफल कोशिश
करी थी ताकि वो उसके द्वारा बनाया साबित हो सके..लेकिन
सच सामने आ ही जाता है.
*इसके पूरे साक्ष्य प्रथवीराज रासो से मिलते है
*शाहजहाँ से २५० वर्ष पहले १३९८ मे तैमूर लंग ने
पुरानी दिल्ली का उल्लेख करा है
(जो की शाहजहाँ द्वारा बसाई बताई जाती है)
*सुअर (वराह) के मुह वाले चार नल अभी भी लाल किले के एक खास
महल मे लगे है. क्या ये शाहजहाँ के इस्लाम का प्रतीक चिन्ह है
या हमारे हिंदुत्व के प्रमाण??
*किले के एक द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति अंकित है राजपूत
राजा लोग गजो( हाथियों ) के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात
थे ( इस्लाम मूर्ति का विरोध करता है)
* दीवाने खास मे केसर कुंड नाम से कुंड बना है जिसके फर्श पर हिंदुओं
मे पूज्य कमल पुष्प अंकित है, केसर कुंड हिंदू शब्दावली है जो की हमारे
राजाओ द्वारा केसर जल से भरे स्नान कुंड के लिए प्रयुक्त
होती रही है
* मुस्लिमों के प्रिय गुंबद या मीनार का कोई भी अस्तित्व
नही है दीवानेखास और दीवाने आम मे.
*दीवानेखास के ही निकट राज की न्याय तुला अंकित है ,
अपनी प्रजा मे से ९९% भाग को नीच समझने वाला मुगल
कभी भी न्याय तुला की कल्पना भी नही कर सकता,
ब्राह्मानो द्वारा उपदेशित राजपूत राजाओ की न्याय
तुला चित्र से प्रेरणा लेकर न्याय करना हमारे इतिहास मे प्रसीध है
*दीवाने ख़ास और दीवाने आम की मंडप शैली पूरी तरह से 984 के
अंबर के भीतरी महल (आमेर--पुराना जयपुर) से मिलती है
जो की राजपूताना शैली मे बना हुवा है
*लाल किले से कुछ ही गज की दूरी पर बने देवालय जिनमे से एक लाल
जैन मंदिर और दूसरा गौरीशंकार मंदिर दोनो ही गैर मुस्लिम है
जो की शाहजहाँ से कई शताब्दी पहले राजपूत राजाओं ने बनवाए
हुए है.
*लाल किले का मुख्या बाजार चाँदनी चौक केवल हिंदुओं से
घिरा हुआ है, समस्त पुरानी दिल्ली मे अधिकतर आबादी हिंदुओं
की ही है, सनलिष्ट और घूमाओदार शैली के मकान भी हिंदू शैली के
ही है ..क्या शाजहाँ जैसा धर्मांध व्यक्ति अपने किले के आसपास
अरबी, फ़ारसी, तुर्क, अफ़गानी के बजे हम हिंदुओं के लिए मकान
बनवा कर हमको अपने पास बसाता ???
*एक भी इस्लामी शिलालेख मे लाल किले का वर्णन नही है
*""गर फ़िरदौस बरुरुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता,
हमीं अस्ता""--अर्थात इस धरती पे अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है,
यही है, यही है....
इस अनाम शिलालेख को कभी भी किसी भवन
का निर्मांकर्ता नही लिखवा सकता ..और ना ही ये किसी के
निर्मांकर्ता होने का सबूत देता है
इसके अलावा अनेकों ऐसे प्रमाण है जो की इसके लाल कोट होने
का प्रमाण देते है, और ऐसे ही हिंदू राजाओ के सारे प्रमाण नष्ट करके
हिंदुओं का नाम ही इतिहास से हटा दिया गया है, अगर हिंदू
नाम आता है तो केवल नष्ट होने वाले शिकार के रूप मे......ताकि हम
हमेशा ही अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ कर इस झूठे इतिहास से
प्रेरणा ले सके...सही है ना???..लेकिन कब तक अपने धर्म को ख़तम करने
वालो की पूजा करते रहोगे और खुद के सम्मान को बचाने वाले
महान हिंदू शासकों के नाम भुलाते रहोगे..ऐसे ही....??????? -
इस सारी सच्चाई को ज्यादा जानने के लिए प्रो. पी.एन. ओक
जी की ये पुस्तके डाउनलोड करे और पढे ::

http://www.archive.org/download/HindiBooksOfP.n.Oak/
DilliKeLalKilaLalKothHeiP.n.Oak.pdf
http://www.archive.org/download/HindiBooksOfP.n.Oak/
FatehpurSikriEkHinduNagar.pdf

Thursday, August 15, 2013

झूठी आज़ादी की सच्ची कहानी।


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15 अगस्त आजादी नहीं धोखा है, देश का समझौता है , शासन नहीं शासक बदला है, गोरा नहीं अब काला है 15 अगस्त 1947 को देश आजाद नहीं हुआ तो हर वर्ष क्यों ख़ुशी मनाई जाती है ?

क्यों भारतवासियों के साथ भद्दा मजाक …किया जा रहा है l
यह नेहरू का वो पत्र है जो साबित करता है कि 15 अगस्‍त 1947 को भारत आजाद नहीं हुआ था। इस पत्र से जाहिर होता है कि देश को कांग्रेस ने एक और झूठ बताया है। 1948 में लिखे गए इस पत्र मे नेहरू ने इंग्‍लैंड की महारानी के निर्देश और आदेश पर राजगोपालाचारी को भारत उपनिवेश में महारानी का प्रतिनिधि बताया है।

भारत के दुसरे गवर्नर के रूप में चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने निम्न शपथ ली l “मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यथाविधि यह शपथ लेता हूँ की मैं सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी के प्रति कानून के मुताबिक विश्वास के साथ वफादारी निभाऊंगा, एवं मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यह शपथ लेता हूँ की मैं गवर्नर जनरल के पद पर होते हुए सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी की यथावत सेवा करूँगा l ”

इस सन्दर्भ में निम्नलिखित तथ्यों को जानें …. :

1. भारत को सत्ता हस्तांतरण 14-15 अगस्त 1947 को गुप्त दस्तावेज के तहत, जो की 1999 तक प्रकाश में नहीं आने थे (50 वर्षों तक ) l

2. भारत सरकार का संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में संशोधन करने का अधिकार नहीं है l

3. संविधान के अनुच्छेद 348 के अंतर्गत उच्चतम न्यायलय, उच्च न्यायलय तथा संसद की कार्यवाही अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में होने के बजाय अंग्रेजी भाषा में होगी l

4. अप्रैल 1947 में लन्दन में उपनिवेश देश के प्रधानमंत्री अथवा अधिकारी उपस्थित हुए, यहाँ के घोषणा पत्र के खंड 3 में भारत वर्ष की इस इच्छा को निश्चयात्मक रूप में बताया है की वह …

क ) ज्यों का त्यों ब्रिटिश का राज समूह सदस्य बना रहेगा तथा

ख ) ब्रिटिश राष्ट्र समूह के देशों के स्वेच्छापूर्ण मिलाप का ब्रिटिश सम्राट को चिन्ह (प्रतीक) समझेगा, जिनमे शामिल हैं ….. (इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, श्री लंका) … तथा

ग ) सम्राट को ब्रिटिश समूह का अध्यक्ष स्वीकार करेगा l

5. भारत की विदेश नीति तथा अर्थ नीति, भारत के ब्रिटिश का उपनिवेश होने के कारण स्वतंत्र नहीं है अर्थात उन्हीं के अधीन है l

6. नौ-सेना के जहाज़ों पर आज भी तथाकथित भारतीय राष्ट्रीय ध्वज नहीं है l

7. जन गन मन अधिनायक जय हे … हमारा राष्ट्र-गान नहीं है, अपितु जार्ज पंचम के भारत आगमन पर उसके स्वागत में गाया गया गान है, उपनिवेशिक प्रथाओं के कारण दबाव में इसी गीत को राष्ट्र-गान बना दिया गया … जो की हमारी गुलामी का प्रतीक है l

8. सन 1948 में बने बर्तानिया कानून के अंतर्गत भाग 1 (1) 1948 के बर्तानिया के कानून के अनुसार हर भारतवासी बर्तानिया की रियाया है और यह कानून भारत के गणराज्य प्राप्त कर लेने के पश्चात भी लागू है l

9. यदि 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ तो प्रथम गवर्नर जनरल माउन्ट-बेटन को क्यों बनाया गया ??

10. 22 जून 1948 को भारत के दुसरे गवर्नर के रूप में चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने निम्न शपथ ली l “मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यथाविधि यह शपथ लेता हूँ की मैं सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी के प्रति कानून के मुताबिक विश्वास के साथ वफादारी निभाऊंगा, एवं मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यह शपथ लेता हूँ की मैं गवर्नर जनरल के पद पर होते हुए सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी की यथावत सव्वा करूँगा l ”

11. 14 अगस्त 1947 को भारतीय स्वतन्त्रता विधि से भारत के दो उपनिवेश बनाए गए जिन्हें ब्रिटिश Common-Wealth की … धारा नं. 9 (1) – (2) – (3) तथा धारा नं. 8 (1) – (2) धारा नं. 339 (1) धारा नं. 362 (1) – (3) – (5) G – 18 के अनुच्छेद 576 और 7 के अंतर्गत …. इन उपरोक्त कानूनों को तोडना या भंग करना भारत सरकार की सीमाशक्ति से बाहर की बात है तथा प्रत्येक भारतीय नागरिक इन धाराओं के अनुसार ब्रिटिश नागरिक अर्थात गोरी सन्तान है l

12. भारतीय संविधान की व्याख्या अनुच्छेद 147 के अनुसार गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 तथा indian independence act 1947 के अधीन ही की जा सकती है … यह एक्ट ब्रिटिश सरकार ने लागू किये l

13. भारत सरकार के संविधान के अनुच्छेद नं. 366, 371, 372 एवं 392 को बदलने या रद्द करने की क्षमता भारत सरकार को नहीं है l

14. भारत सरकार के पास ऐसे ठोस प्रमाण अभी तक नहीं हैं, जिनसे नेताजी की वायुयान दुर्घटना में मृत्यु साबित होती है l इसके उपरान्त मोहनदास गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और मौलाना अबुल कलाम आजाद ने ब्रिटिश न्यायाधीश के साथ यह समझौता किया कि अगर नेताजी ने भारत में प्रवेश किया, तो वह गिरफ्तार ककर ब्रिटिश हुकूमत को सौंप दिया जाएगाl बाद में ब्रिटिश सरकार के कार्यकाल के दौरान उन सभी राष्ट्रभक्तों की गिरफ्तारी और सुपुर्दगी पर मुहर लगाईं गई जिनको ब्रिटिश सरकार पकड़ नहीं पाई थी l

15. डंकल व् गैट, साम्राज्यवाद को भारत में पीछे के दरवाजों से लाने का सुलभ रास्ता बनाया है ताकि भारत की सत्ता फिर से इनके हाथों में आसानी से सौंपी जा सके l
उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है की सम्पूर्ण भारतीय जनमानस को आज तक एक धोखे में ही रखा गया है, तथाकथित नेहरु गाँधी परिवार इस सच्चाई से पूर्ण रूप से अवगत थे परन्तु सत्तालोलुभ पृवृत्ति के चलते आज तक उन्होंने भारत की जनता को अँधेरे में रखा और विश्वासघात करने में पूर्ण रूप से सफल हुए l