Sunday, October 11, 2015

सरकारी शिक्षक की दुर्दशा

राजस्थान में  शिक्षा संबलन कार्यक्रम चल रहे है, अधिकारी अफसर स्कूल चेक कर रहे है और  रोज  अख़बारों में आ रहा है कि  फलाना स्कूल चेक हुआ और बच्चों से राजधानी पूछी, मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री का नाम पुछा और बच्चों को नही आया , इसी क्रम में आज एक खबर आई कि  किसी जगह  एक अफसर ने एक हिंदी शिक्षिका को black board  पर   अंत्येष्टि शब्द  गलत लिखते हुए देखा और उस अध्यापिका का  फोटो अख़बार में छाप दिया गया है l

अब विचारणीय प्रश्न ये है कि ऐसा करके समाज में, लोगों को, अभिभावकों को  क्या सूचना और संदेश दी जा रही है ? यही कि  सरकारी स्कूल के अध्यापकों को विषय का ज्ञान नही है ? उनको हिन्दी, अंग्रेजी,  गणित, आदि  नही आती ?

बड़ा विरोधाभास है…. एक तरफ सरकार कहती है कि सरकारी स्कूल में नामांकन बढ़े, ज्यादा बच्चे जुड़े, कोर्ट में केस दाखिल किये जा रहे है कि सरकारी स्कूल में अफसरों के बच्चे पढाई करें और दूसरी तरफ शिक्षकों की गरिमा और मर्यादा और उनके ज्ञान को धूमिल किया जा रहा है, ऐसी खबरे आने के बाद अभिभावक गण और समाज में ये सोच   पनपेगी कि   मास्टरों को कुछ नही आता, "मास्टर" यही शब्द अब संबोधन का जिन्दा रह गया है और गुरु जी जैसे लफ्ज गायब है l

एक सोचनीय तत्व ये है कि अफसर किस उद्देश्य से संबलन कार्यक्रम में निरीक्षण करने जाते है ? अपनी अफसरी दिखाने ? अध्यापकों को नीचा दिखाने ? उनको अपमानित करने ? अपना रौब दिखाने ? उनको फटकार लगाने ?

निंदनीय है ….  
नकारात्मक है ….
गलत है ….

होना तो ये चाहिए कि  अफसरों को शिक्षकों और बच्चों को प्रेरित करना चाहिए, उनका morale up करना चाहिए, उनको boost करना चाहिए, एक जोश  भरना चाहिए, कोई कमी दिखे भी तो शिक्षकों और बच्चों में सकारात्मक उर्जा भरनी चाहिए, अपमानित करने से तो शिक्षक निराश हो जायेगा,

अच्छा,  इन अफसरों के प्रश्न होते भी ऐसे है जो syllabus से बाहर के होते है, अफसरों का उद्देश्य सुधारवादी नही, आलोचक द्रष्टिकोण लिए होता है कि शिक्षक की गलती नजर आये बस, और हम अपना रौब दिखाए, 
एक अफसर ने लेफ्टिनेंट शब्द पुछा था शिक्षक से, क्योकि ये भी अप्रचलित शब्द है और लेफ्टिनेंट अंग्रेजी में lieutenant लिखा जाता है l

हिंदी में तो और भी कठिन शब्द है जो भ्रमित करते है, और किताबों में अख़बारों में गलत वर्तनी ही प्रचलित है जैसे उपरोक्त शब्द मिलता है सही शब्द उपर्युक्त की जगह, कितने लोग जानते है कि कैलाश शब्द गलत है और कैलास सही, दुरवस्था सही है दुरावस्था गलत, सुई नही सूई शब्द सही है, अध: पतन को अधोपतन लिखा जाता है ,  हिंदी भाषा की सही वर्तनी पूरे भारत में ही गिने चुने लोग सही लिख पायेगे, दो  aunthentic (प्रमाणिक) किताबो में एक में दोपहर सही शब्द माना है और एक ने दुपहर,  ,  भगवान जाने स्थाई शब्द सही है या स्थायी ?दवाई शब्द तो होता ही नही है,    सही शब्द या तो दवा है या दवाइयाँ, दुकानों पर लिखा मिष्ठान शब्द गलत है क्योकिं सही शब्द मिष्टान्न है, 

कोई भी व्यक्ति पूर्ण नही होता और कोई भी  शिक्षक सर्वज्ञ नही होता, चाहे कितना भी कोई स्वाध्याय कर लें,  शादी न करें, घर से कम निकलें , शादी विवाह मृत्यु  त्योहार आदि में जाना बन्द करके कोई टीचर सारी जिन्दगी पढ़ाई करें फिर भी किसी न किसी प्रश्न पर वो  अटक जायेगा क्योकि विषय और ज्ञान कोष अनन्त है

सरकारी स्कूल का अध्यापक कोई भी हो,  वो बुद्धिमान अवश्य होगा,  उसका कारण साफ़ है, वो 10 परीक्षाए पास करके शिक्षक बनता है, बीए, ऍम ए, pre बीएड, फिर b.ed, tet,  ctet, reet, फिर teacher के लिए प्रतियोगिता परीक्षा, सिर्फ क्रीम क्रीम प्रतियोगी ही अध्यापक बन पाते है,

कुछ हद तक  शिक्षक स्वाध्याय नही कर रहा,  जिसकी जिम्मेदारी  समाज और शिक्षा विभाग की है, आम इन्सान को नही पता कि सरकारी teacher के करियर में 40% field work है, 40% लिखा पढ़ी और सिर्फ20% अध्ययन अध्यापन है, field work मतलब शिक्षक गाँव में या शहर में घूमता है,  उसको स्कूल परिसर में बैठने का वक्त नही,  जनगणना,  pulse पोलियों, चुनाव, सर्वे, पोषाहार के लिए दाल सब्जी मिर्च मसाले लाना,  अभी चूल्हे cylinder लाने के लिए मशक्कत की,  और सबसे बड़ा कार्य b.l.o, गाँव में घुमते रहो,  फिर आये दिन ट्रेनिंग,  वाग पीठ, नामाकन के लिए द्वार द्वार घूमो, छात्रवृति वाले काम के लिए बच्चों और अभिभावकों से आय प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र की माथा पच्ची में पूरा जुलाई निकल जाता है और बोर्ड एग्जाम में सिर्फ govt टीचर की  ड्यूटी लगती है तो मार्च में सरकारी स्कूल खाली हो जाते है, वृक्षारोपण अभियान में पेड़ लेने भागो,   निश्शुल्क  पाठ्य पुस्तक लेने भागो, राशन कार्ड की ड्यूटी, रैलियां,  आये दिन बैंक का काम,    अध्यापक स्कूल में 2 मिनट चैन की सांस नही ले पाता है, मोटर साइकिल पर दे kick और भागों,   फिर कुछ जान बचती है तो लिखा पढ़ी का काम, 30  दिन में 60 डाके स्कूल से आती जाती रहती है,  अभी taf form भरे गये,  पूरा दिन form भरने में गया,  बच्चों की पढ़ाई गयी भाड़ में, रोजाना नई नई सूचनाये विभाग मांगता है और तरह तरह की u.c, किसी स्कूल में कमरा office निर्माण कार्य आ जाए तो समझों 6 महिने गये,  स्कूल में कोई पढाई नही होगी, कभी पोषाहार की डाक जाती है तो कभी छात्रवृति की,  कभी dise बुकलेट भरो तो अनीमिया गोलियों की डाक,  स्कूल आकर कोई आम इन्सान देखे तो पता चलेगा कि सरकारी स्कूल डाक खाना है, 

शिक्षक स्वाध्याय कैसे करे? क्यों करे ?   इस अजीबोगरीब माहौल में ? और पढ़ाई चाहिए भी किसको ?  हर कोई पास भर होना चाहता है,  डिग्री चाहता है,  ज्ञान किसको चाहिए ?  एक तरफ गुणवत्ता सुधारने के लिए    ncert  books लगा दी गयी और जिनका standard ऐसा है कि विज्ञानं की किताब पढाने के लिए lab की जरूरत है क्योकि सारे प्रयोग है,  सरकारी स्कूल में chalk dustar black बोर्ड की व्यवस्था तो होती नही सही से, बाकी lab की बात …. ? कक्षा कमरे है सही लेकिन एक में कबाड़ पड़ा है एक में चावल गेहूं है और एक में  पोषाहार पकाने के लिए लकड़ी भरी है और एक में ऑफिस अलमारी,  बच्चे फटी दरी लेकर पेड़ के नीचे बैठे रहते है, एक तरफ ncert books का आदर्शवाद और वही बोर्ड result सुधारने के लिए 20% संत्राक, 80 मे से 16 लाओ और 20 मे से 20…और  board result अच्छे की वाह वाही,

शिक्षा विभाग भी जादू का खेल है,  कभी क्या तो कभी क्या ? कभी एकीकरण,  कभी समानीकरण, कभी स्टाफिंग pattern,  शिक्षक को खुद नही पता कि उसका पत्ता  कब कट जाएगा ?    

शिक्षक भी इन्सान है, मीडिया भी बस आदर्शवाद का ढकोसला करता है,अंत्येष्टि गलत लिखा शिक्षिका ने तो उसका फोटो खींच दिया,  किसी बच्चे  ने चाहे खुद ही खुद को चोटिल कर दिया हो लेकिन बड़े बड़े अक्षरों में खबर छपेगी
"शिक्षक ने पीटा" 
"शिक्षक की करतूत,
कोई भी शिक्षक स्कूल में बैठकर time pass नही करता,  बच्चों को उनके माँ बाप  भी पिटाई करते है,  शिक्षक राक्षस नही है, अगर कोई एक शिक्षक गलती करता है तो पूरा शिक्षक समुदाय गलती सिद्ध नही हो जाता, पढ़ाई कोई घुट्टी नही है कि बच्चे का मुँह खोला और 2 बूँद डाल दी,  अनुशासन के लिए भय भी जरुरी होता है,  मीडिया को बहुत शौक है सच छपने का तो किसी सरकारी स्कूल में कुछ दिन काट कर आये,  देखे शिक्षक की दोहरी तिहरी जिम्मेदारी और माहौल, 

विश्व  का सारा ज्ञान और विकास शिक्षा  और शिक्षक के कारण ही वजूद में आया है, सरकारी शिक्षक बहुत ही निरीह है और आम इन्सान है, वो अपना 100% देना चाहता है, ये जरुर है कि वो दबावों में है, शिक्षण बस एक नौकरी भर नही है, अफसर मीडिया और समाज तीनों शिक्षक के प्रति अनुदार है और शिक्षक की गलत छवि पेश कर रहे है

Saturday, August 29, 2015

संस्कृत की महिमा

जिस भाषा को आप गये बीते जमाने की मानते हैं उस संस्कृत को सीखने में लगे हैं अनेक विकसित देश . आओ देखें क्यों : संस्कृत के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य !
1. कंप्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा।
संदर्भ: – फोर्ब्स पत्रिका 1987
2. सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, भारतीय विक्रम संवत कैलेंडर है (जिसमें नया साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है)
संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी
3. दवा के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति… स्वस्थ और बीपी, मधुमैह , कोलेस्ट्रॉल आदि जैसे रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश(Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।
संदर्भ: अमेरीकन हिन्दू यूनिवर्सिटी (शोध के बाद)
4. संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी (Technology) रखती है।
संदर्भ: रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी
5.नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर रहे हैं. असत्यापित रिपोर्ट का कहना है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं
6.दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय
इंडिया (भारत) में नहीं है।
7. दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है।
संदर्भ: – यूएनओ
8. नासा वैज्ञानिक द्वारा एक रिपोर्ट है कि अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर
संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके। परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है, इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।
9. दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है। संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1985.
10. संस्कृत भाषा वर्तमान में “उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी” तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है। (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज “सरल किर्लियन
फोटोग्राफी” भी नहीं है)
11. अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया वर्तमान में भरत नाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। (नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव
या नटराज की एक मूर्ति है)
12. ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है | तो आने वाला समय अंग्रेजी का नही संस्कृत का है , इसे सीखे और सिखाएं, देश को विकास के पथ पर बढ़ाएं. —
13 अमेरिका की सबसे बड़ी संस्था NASA (National Aeronautics and Space Administration )ने संस्कृत भाषा को अंतरिक्ष में कोई भी मैसेज भेजने के लिए सबसे उपयोगी भाषा माना है ! नासा के वैज्ञानिकों की मानें तो जब वह स्पेस ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलटे हो जाते थे। इस वजह से मेसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने दुनिया के कई भाषा में प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मेसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलटे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। यह रोचक जानकारी हाल ही में एक समारोह में दिल्ली सरकार के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. जीतराम भट्ट ने दी।

Tuesday, August 11, 2015

शिव रात्रि के दिन शिव लिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है?

शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का "महाविज्ञान" जानें

शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाते हैं..????

यहाँ दो पात्र हैं : एक है

भारतीय और एक है इंडियन !

आइए देखते हैं दोनों में क्या बात होती है !

इंडियन : ये शिव रात्रि पर जो तुम इतना दूध चढाते हो शिवलिंग पर, इस से अच्छा तो ये हो कि ये दूध जो बहकर नालियों में बर्बाद हो जाता है, उसकी बजाए गरीबों मे बाँट दिया जाना चाहिए ! तुम्हारे शिव जी से ज्यादा उस दूध की जरुरत देश के गरीब लोगों को है. दूध बर्बाद करने की ये कैसी आस्था है ?

भारतीय : सीता को ही हमेशा अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है, कभी रावण पर प्रश्न चिन्ह क्यूँ नहीं लगाते तुम ?

इंडियन : देखा ! अब अपने दाग दिखने लगे तो दूसरों पर ऊँगली उठा रहे हो ! जब अपने बचाव मे कोई उत्तर नहीं होता, तभी लोग दूसरों को दोष देते हैं. सीधे-सीधे क्यूँ नहीं मान लेते कि ये दूध चढाना और नालियों मे बहा देना एक बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है !

भारतीय : अगर मैं आपको सिद्ध कर दूँ की शिवरात्री पर दूध चढाना बेवकूफी नहीं समझदारी है तो ?

इंडियन : हाँ बताओ कैसे ? अब ये मत कह देना कि फलां वेद मे ऐसा लिखा है इसलिए हम ऐसा ही करेंगे, मुझे वैज्ञानिक तर्क चाहिएं.

भारतीय : ओ अच्छा, तो आप विज्ञान भी जानते हैं ? कितना पढ़े हैं आप ?

इंडियन : जी, मैं ज्यादा तो नहीं लेकिन काफी कुछ जानता हूँ, M Tec किया है, नौकरी करता हूँ. और मैं अंध विशवास मे बिलकुल भी विशवास नहीं करता, लेकिन भगवान को मानता हूँ.

भारतीय : आप भगवान को मानते तो हैं लेकिन भगवान के बारे में जानते नहीं कुछ भी. अगर जानते होते, तो ऐसा प्रश्न ही न करते ! आप ये तो जानते ही होंगे कि हम लोग त्रिदेवों को मुख्य रूप से मानते हैं : ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी (ब्रह्मा विष्णु महेश) ?

इंडियन : हाँ बिलकुल मानता हूँ.

भारतीय : अपने भारत मे भगवान के दो रूपों की विशेष पूजा होती है :

विष्णु जी की और शिव जी की ! ये शिव जी जो हैं, इनको हम क्या कहते हैं –

भोलेनाथ, तो भगवान के एक रूप को हमने भोला कहा है तो दूसरा रूप क्या हुआ ?

इंडियन (हँसते हुए) : चतुर्नाथ !

भारतीय : बिलकुल सही ! देखो, देवताओं के जब प्राण संकट मे आए तो वो भागे विष्णु जी के पास, बोले “भगवान बचाओ ! ये असुर मार देंगे हमें”.

तो विष्णु जी बोले अमृत पियो. देवता बोले अमृत कहाँ मिलेगा ?

विष्णु जी बोले इसके लिए समुद्र मंथन करो ! तो समुद्र मंथन शुरू हुआ, अब इस समुद्र मंथन में कितनी दिक्कतें आई ये तो तुमको पता ही होगा, मंथन शुरू किया तो अमृत निकलना तो दूर विष निकल आया, और वो भी सामान्य विष नहीं हलाहल विष !

भागे विष्णु जी के पास सब के सब ! बोले बचाओ बचाओ ! तो चतुर्नाथ जी, मतलब विष्णु जी बोले, ये अपना डिपार्टमेंट नहीं है, अपना तो अमृत का डिपार्टमेंट है और भेज दिया भोलेनाथ के पास !

भोलेनाथ के पास गए तो उनसे भक्तों का दुःख देखा नहीं गया, भोले तो वो हैं ही, कलश उठाया और विष पीना शुरू कर दिया ! ये तो धन्यवाद देना चाहिए पार्वती जी का कि वो पास में बैठी थी, उनका गला दबाया तो ज़हर नीचे नहीं गया और नीलकंठ बनके रह गए.

इंडियन : क्यूँ पार्वती जी ने गला क्यूँ दबाया ?

भारतीय : पत्नी हैं ना, पत्नियों को तो अधिकार होता है .. किसी गण की हिम्मत होती क्या जो शिव जी का गला दबाए……अब आगे सुनो फिर बाद मे अमृत निकला ! अब विष्णु जी को किसी ने invite किया था ???? मोहिनी रूप धारण करके आए और अमृत लेकर चलते बने. और सुनो – तुलसी स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है, स्वादिष्ट भी, तो चढाई जाती है कृष्ण जी को (विष्णु अवतार). लेकिन बेलपत्र कड़वे होते हैं, तो चढाए जाते हैं भगवान भोलेनाथ को !
हमारे कृष्ण कन्हैया को 56 भोग लगते हैं, कभी नहीं सुना कि 55 या 53 भोग लगे हों, हमेशा 56 भोग ! और हमारे शिव जी को ? राख , धतुरा ये सब चढाते हैं, तो भी भोलेनाथ प्रसन्न ! कोई भी नई चीज़ बनी तो सबसे पहले विष्णु जी को भोग ! दूसरी तरफ शिव रात्रि आने पर हमारी बची हुई गाजरें शिव जी को चढ़ा दी जाती हैं…… अब मुद्दे पर आते हैं……..इन सबका मतलब क्या हुआ ??? _________________________________________________________________ विष्णु जी हमारे पालनकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का रक्षण-पोषण होता है वो विष्णु जी को भोग लगाई जाती हैं ! _________________________________________________________________ और शिव जी ? __________________________________________________________________ शिव जी संहारकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का नाश होता है, मतलब जो विष है, वो सब कुछ शिव जी को भोग लगता है !
_________________________________________________________
इंडियन : ओके ओके, समझा !

भारतीय : आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं. श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है. इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ? ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे, इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिएं ! और उस समय पशु क्या खाते हैं ?

इंडियन : क्या ?

भारतीय : सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं. इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है ! इसलिए आयुर्वेद कहता है कि श्रावण के महीने में (जब शिवरात्रि होती है !!) दूध नहीं पीना चाहिए. इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे ! इस तरह हर जगह शिव रात्रि मनाने से पूरा देश वाइरल की बीमारियों से बच जाता था !
समझे कुछ ?

इंडियन : omgggggg !!!! यार फिर तो हर गाँव हर शहर मे शिव रात्रि मनानी चाहिए, इसको तो राष्ट्रीय पर्व घोषित होना चाहिए !

भारतीय : हम्म….लेकिन ऐसा नहीं होगा भाई कुछ लोग साम्प्रदायिकता देखते हैं, विज्ञान नहीं ! और सुनो. बरसात में भी बहुत सारी चीज़ें होती हैं लेकिन हम उनको दीवाली के बाद अन्नकूट में कृष्ण भोग लगाने के बाद ही खाते थे (क्यूंकि तब वर्षा ऋतू समाप्त हो चुकी होती थी).
एलोपैथ कहता है कि गाजर मे विटामिन ए होता है आयरन होता है लेकिन आयुर्वेद कहता है कि शिव रात्रि के बाद गाजर नहीं खाना चाहिए इस ऋतू में खाया गाजर पित्त को बढाता है ! तो बताओ अब तो मानोगे ना कि वो शिव रात्रि पर दूध चढाना समझदारी है ?

इंडियन : बिलकुल भाई, निःसंदेह ! ऋतुओं के खाद्य पदार्थों पर पड़ने वाले प्रभाव को ignore करना तो बेवकूफी होगी.

भारतीय : ज़रा गौर करो, हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है ! ये इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है- उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते !

जिस संस्कृति की कोख से मैंने जन्म लिया है वो सनातन (=eternal) है, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें !

हमें अपनी परम्पराओं पर सदा गर्व था और सदा रहेगा.

Tuesday, June 2, 2015

जानिये क्या मिला है मैगी में

Maggi में आखिर है क्या ?
MSG है क्या ?
मोनो सोडियम ग्लूटामेट

ये कैसे खतरनाक है आपके लिए या किसी भी मानव के लिए ??

बिकाऊ मीडिया नही बताएगा
हम बताते हैं

एक कहानी के माध्यम से
2 दोस्त मिलकर एक रेस्तरां खोलते हैं। वो खूब मेहनत करते और बढ़िया से बढ़िया डिश बनाते और लोगों को खिलाते लेकिन फिर भी कुछ न कुछ शाम को बच जाता था जिससे नुक्सान होता था रूपये का ।
वह सोचते थे की ऐसा क्या किया जाये की लोग ज्यादा खाएं
और उनका कोई समान न बचे और ज्यादा मुनाफा हो।
सीधी सी बात है ज्यादा खाएंगे तो ज्यादा फायदा होगा।

उनको एक दोस्त ने सलाह दी की भाई एक केमिकल है हमारे पास जो ये 2 काम कर सकता है ।

1 हमारे शरीर को जब भूख लगती है तो वो दिमाग को बताता है की भाई भोजन करना है ।

2 जब हम भोजन करते हैं और पेट भर जाता है तो पेट दिमाग को फिर बताता है की भाई बस अब रुक जाओ।
यह सब हमारे दिमाग और पेट के बीच का सम्पर्क कुछ केमिकल करते हैं ।

अब ये जो MSG है मोनो सोडियम ग्लूटामेट यह ऐसा केमिकल है की जब इसकी चुटकी भर बूँद भी भोजन में डल जाए तो यह हमारे शरीर के पेट और दिमाग की सम्पर्क वाली केमिकल को खत्म कर देता है। नतीजा
आपको भूख न लगने की बिमारी शुरू। आप कभी भी कुछ भी कितना भी खाने लगते हैं । आपका पेट भर भी जाये तो भी दिमाग को सन्देश नही जायेगा की पेट भर गया, रुक जाओ।
नतीजा पेट बाहर, मोटापा शुरू, डायबिटीज, हार्ट अटैक की भी सम्भावना।

जब इन दोनों दोस्तों ने ये केमिकल भोजन में डाला तो sale दुगनी तिग्नि हो गयी।

लोगो की सेहत से उन्हें कोई मतलब नही था न है न होगा

वह तो सिर्फ अपनी जेबें भरना चाहते थे हैं और रहेंगे।

समझदार आपको बनना होगा ।

कुछ भी खाने पिने का समान लेने से पहले उसके पैकेट को ध्यान से पढ़े की उसमे क्या क्या है।

फ़िल्म स्टार और टीवी पर ऐड देने वाले पैसों के लिए अपने माँ बाप को भी बेच दें, आपकी और हमारी सेहत से इनको क्या मतलब।

दिखावे पर न जाओ
अपनी अक्ल (है तो) लगाओ

वर्ना मरो और भाड़ में जाओ
क्योंकि मुर्ख का मरना ही उचित है ।

सन्देश जनहित में जारी।
मुर्ख लोग ignore करें और अपनी जिंदगी को ऐसे ही चलने दें ।
-
-नवनीत सिंघल

Wednesday, May 27, 2015

सरसों के तेल के लाभ

रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है सरसों

सरसों के लाभ -

सरसों के तेल में ओलिक एसिड और लीनोलिक एसिड पाया जाता है, यह फैटी एसिड होते हैं जो बालों के लिए फायदेमंद हैं। इनसे बालों की जड़ो को पोषण मिलता है। अगर आप इस तेल को हफ्ते में दो दिन इस्तेमाल करेंगे तो बाल झड़ना कम हो जाता है।

दातों और मसूड़ों पर सरसों का तेल रगड़ने से वह मजबूत होते हैं। पायरिया के मरीजों के लिए भी यह फायदेमंद है।

इसके अलावा यह सर्दी, जुखाम, सिरदर्द और शरीर के दर्द में भी बहुत फायदा देता है।

सरसों के तेल में एलिल आइसोथियोसाइनेट के गुण मौजूद होते हैं। त्वचा विकारों के लिए सबसे अच्छे इलाज के रूप में काम करता है। साथ ही यह शरीर के किसी भी भाग में फंगस को बढ़ने से रोकता है।

सरसों शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है। यह शरीर को गर्माहट भी प्रदान करता है, अगर इसे ठंडक में खाया जाए तो ठंड बिलकुल नहीं लगेगी।

अगर आपको भूख नहीं लगती तो अपने खाने को सरसों के तेल में बनाना शुरु कर दीजिए, क्योंकि यह तेल भूख बढ़ा कर शरीर में पाचन क्षमता को बढ़ाता है।

सरसों के तेल में विटामिन ई होता है। इसे त्वचा पर लगाने से सूर्य की अल्ट्रावायलेट की किरणों से बचाव होता है।

सरसों का तेल साथ ही यह झाइयों और झुर्रियों से भी काफी हद तक राहत दिलाता है।

सरसों के तेल से मालिश करने से गठिया और जोड़ो का दर्द भी ठीक हो जाता है। गठिया के रोगी सरसों के तेल में कपूर मिलाकर मालिश करें फायदा होगा।

सरसों का तेल खाने से कोरोनरी हार्ट डिज़ीज का खतरा भी थोड़ा कम हो जाता है।

जिन लोगों की त्वचा रूखी-सूखी है, वे लोग अपने हाथों, पैरों में तेल लगाने के बाद पानी से स्नान कर लें। इससे त्वचा को पोषण मिलता है और त्वचा नम हो जाती है।

सरसो के दानों को पीसकर लेप लगाने से किसी भी प्रकार की सूजन ठीक हो जाती है

सरसों के दानों को पीसकर शहद के साथ चाटने से कफ और खांसी समाप्त हो जाती है।

सरसों के तेल को एक टॉनिक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका इस्तेमाल करने से शरीर की कार्य क्षमता बढ़ा कर शरीर की कमजोरी को एकदम दूर कर देता है ।

रिफाइंड छोड़िये
कच्ची धानी का सरसों का तेल इस्तेमाल कीजिये

पतंजलि स्टोर पर उपलब्ध है ।