कृपया यह पूरा लेख पढ़ें ........
सरल हिन्दी में लिखा गया है : F D I यानि Foreign Direct Investment के मतलब को - आज के लेख के शीर्षक में .
हिंदी के प्रति हमारे कम हुए लगाव का परिणाम है कि हम केवल " एफ डी आई " ही समझ पा रहे हैं - इसके माने क्या है - इस गहराई में उतरने पर केवल मात्र सिरहन , बेबसी , उकताहट , निराशा , हताशा , लाचारी और गुलामी ...... बस कुछ इसी तरह के अर्थ निकलेंगे .
ज़रा इन पर्याय वाची शब्दों के मायाजाल से निकल कर सरल और सहज भाव से सोचिए कि " कोई " क्यों आपके व्यापार में बिना पूंजी के रकम लगाएगा ? " वह " आपकी सहायता क्यों करना चाहता है ? सरल सा उदाहरण : आप अपने घर / दुकान के निर्माण - कार्य में व्यस्त हैं , रकम थोड़ी कम पड़ रही है , इसी बीच बिलकुल अनजाना दूर देश का राही आकर आपको कहता है कि लाओ बाकी का निर्माण मैं करा देता हूँ ...... कैसा लगेगा आपको ? बस .... ....
अभी जो बवाल मचा है कि खुदरा किराणा व्यापार इस " शब्द " के अंतर्गत होगा ......यही तो मायाजाल है ! यह तो अंग्रेजों को दुबारा बुलाने की तरकीब मात्र है . एक कहावत है " सिर भी तुम्हारा - जूता भी तुम्हारा " देश के गद्दारों ने हमारा ही पैसा लूट कर विदेशियों के हवाले कर दिया - अब वही पैसा हम पर शासन करने आ रहा है . आप अपने स्वयं के जीवनकाल ( विद्यार्थी भी अपने छोटे से जीवनकाल से समझ सकते हैं ) में झाँक कर देखें कि " फोगट या फ़ोकट " शब्द आपातकाल में धोखा ही देता है , कड़ी मेहनत - सच्ची लगन की कमाई ही बरकत करती है .
एक बात और : क्या हम और हमारे बच्चे केवल मात्र " नौकर " बनने के लिए ही काबिल है ? यह भयंकर दुर्भाग्य का दौर चल रहा है कि आज की नौजवान पीढ़ी बिना सोचे समझे न जाने क्या क्या " पढ़ " रही है ! उद्देश्य मात्र नौकरी का !! प्राकृतिक संसाधनों , जंगलों में बिखरी पड़ी अमूल्य जड़ी - बूंटी जैसी संपदाओं , खेत - खलिहानों , फल - फूलों , शाक - शब्जियों , विभिन्न अनाजों ........ इस धरा की अमूल्य धरोहरों को भी ये विदेशी पैनी नज़रों से देख रहे हैं . क्यों ? क्योंकि हमें तो बस " पढ़ " कर १८ - २० घंटों की गुलामी ( नौकरी का कड़ा हरियाणवी शब्द ) करनी है ..... क्या करना है खेत - खलिहानों से ?
ध्यान रखिए - ये एफ डी आई टाइप के लूटेरे एक दिन आपके घरों में घुस कर हमारे लिए बच्चों का उत्पादन भी करने लग जाएंगे ... और हम शानदार सूट - हैट पहन कर घर के बाहर चोकीदारी करते नज़र आयेंगे - हमारा अतीत गवाह है इस बात का - इस कड़वी तथ्यात्मक बात के लिए मैं मेरे समस्त देशवासियों से नतमस्तक होकर अग्रिम क्षमा की भी याचना करता हूँ ...... पर सच्चाई आपके कानों में उड़ेलना चाहता हूँ .
सचेत हो जाओ , हमें हमको - हमारों को बचाना है तो इन क्षुब्द राजनीतिक दलों की दलीलों से भी ऊपर उठ कर " गुलामी की चिकनी रोटी की जगह आज़ादी की हरी घास खानेको तैयार करना है "
मर्जी आपकी ...........
जुगल किशोर सोमाणी , जयपुर
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