भारतीय इतिहास का एक यथार्थ -
अकबर के समय के इतिहास लेखक अहमद यादगार ने लिखा-
"बैरम खाँ ने निहत्थे और बुरी तरह घायल हिन्दू राजा
हेमू के हाथ पैर बाँध दिये और उसे नौजवान शहजादे के पास ले गया और बोला, आप अपने पवित्र हाथों से इस काफिर का कत्ल कर दें और"गाज़ी"की उपाधि कुबूल करें,
और शहजादे ने उसका सिर उसके धड़ से अलग कर दिया।'' (नवम्बर, ५ AD १५५६)
(तारीख-ई-अफगान, अहमदयादगार, अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VI, पृष्ठ ६५-६६)
इस तरह अकबर ने १४ साल की आयु में ही गाज़ी (1000 काफिरों का कातिल) होने का सम्मान पाया।
इसके बाद हेमू के कटे सिर को काबुल भिजवा दिया और धड़ को दिल्ली के दरवाजे पर टांग दिया।
अबुल फजल ने आगे लिखा - ''हेमू के पिता को जीवित ले आया गया और नासिर-उल-मलिक के सामने पेश किया गया जिसने उसे इस्लाम कबूल करने
का आदेश दिया, किन्तु उस वृद्ध पुरुष ने उत्तर दिया,
''मैंने अस्सी वर्ष तक अपने ईश्वर की पूजा की है; मै अपने धर्म को कैसे त्याग सकता हूँ?
मौलाना परी मोहम्मद ने उसके उत्तर को अनसुना कर अपनी तलवार से उसका सर काट दिया।''
(अकबर नामा, अबुल फजल : एलियट और डाउसन, पृष्ठ२१)
इस विजय के तुरन्त बाद अकबर ने काफिरों के कटे हुए सिरों से एक ऊँची मीनार बनवायी।
२ सितम्बर १५७३ को भी अकबर ने अहमदाबाद में २००० दुश्मनों के सिर काटकर अबतक की सबसे ऊँची सिरों की मीनार बनवायी और अपने दादा बाबर
का रिकार्ड तोड़ दिया। यानी घर का रिकार्ड घर में ही रहा।
अकबरनामा के अनुसार ३ मार्च १५७५ को अकबर ने बंगाल विजय के दौरान इतने सैनिकों और नागरिकों की हत्या करवायी कि उससे कटे सिरों की आठ मीनारें बनायी गयीं। यह फिर से एक नया रिकार्ड था।
जब वहाँ के हारे हुए शासक दाउद खान ने मरते समय पानी माँगा तो उसे जूतों में भरकर पानी पीने के लिए दिया गया।
अकबर की चित्तौड़ विजय के विषय में अबुल फजल ने लिखा था-
''अकबर के आदेशानुसार प्रथम ८००० राजपूत योद्धाओं को बंदी बना लिया गया, और बाद में उनका वध कर दिया गया।
उनके साथ-साथ विजय के बाद
प्रात:काल से दोपहर तक अन्य ४०००० किसानों का भी वध कर दिया गया जिनमें ३००० बच्चे और बूढ़े थे।''
(अकबरनामा, अबुल फजल, अनुवाद एच. बैबरिज)
चित्तौड़ की पराजय के बाद महारानी जयमाल मेतावाड़िया समेत १२००० क्षत्राणियों ने मुगलों के हरम में जाने की अपेक्षा जौहर की अग्नि में स्वयं
को जलाकर भस्म कर लिया।
जरा कल्पना कीजिए
विशाल गड्ढों में धधकती आग और दिल दहला देने वाली चीखों-पुकार के बीच उसमें कूदती १२००० महिलाएँ ।
अपने हरम को सम्पन्न करने के लिए अकबर ने अनेकों हिन्दू राजकुमारियों के साथ जबरन शादियाँ की थी परन्तु कभी भी, किसी मुगल महिला को हिन्दू
से शादी नहीं करने दी। केवल अकबर के शासनकाल में 38 राजपूत राजकुमारियाँ शाही खानदान में ब्याही जा चुकी थीं। १२ अकबर को, १७ शाहजादा
सलीम को, छः दानियाल को, २ मुराद को और १ सलीम के पुत्र खुसरो को।
अकबर की गंदी नजर गौंडवाना की विधवा रानी दुर्गावती पर थी
''सन् १५६४ में अकबर ने अपनी हवस की शांति के लिए रानी दुर्गावती पर आक्रमण कर दिया किन्तु एक वीरतापूर्ण संघर्ष के बाद अपनी हार निश्चित देखकर
रानी ने अपनी ही छाती में छुरा घोंपकर आत्महत्या कर ली। किन्तु उसकी बहिन और पुत्रवधू को बन्दी बना लिया गया। और अकबर ने उसे अपने हरम में ले लिया। उस समय अकबर की उम्र २२ वर्ष और रानी दुर्गावती की ४० वर्ष थी।''
(आर. सी. मजूमदार, दी मुगल ऐम्पायर, खण्ड VII)
सन् 1561 में आमेर के राजा भारमल और उनके ३ राजकुमारों को यातना दे कर उनकी पुत्री को साम्बर से अपहरण कर अपने हरम में आने को मज़बूर किया।
औरतों का झूठा सम्मान करने वाले अकबर ने सिर्फ अपनी हवस मिटाने के लिए न जाने कितनी मुस्लिम औरतों की भी अस्मत लूटी थी। इसमें मुस्लिम नारी चाँद बीबी का नाम भी है।
अकबर ने अपनी सगी बेटी आराम बेगम की पूरी जिंदगी शादी नहीं की और अंत में उस की मौत अविवाहित ही जहाँगीर के शासन काल में हुई।
सबसे मनगढ़ंत किस्सा कि अकबर ने दया करके सतीप्रथा पर रोक लगाई; जबकि इसके पीछे उसका मुख्य मकसद केवल यही था की राजवंशीय हिन्दू नारियों के पतियों को मरवाकर एवं उनको सती होने से रोककर अपने हरम में डालकर एय्याशी करना।
राजकुमार जयमल की हत्या के पश्चात अपनी अस्मत बचाने को घोड़े पर सवार होकर सती होने जा रही उसकी पत्नी को अकबर ने रास्ते में ही पकड़ लिया।
शमशान घाट जा रहे उसके सारे सम्बन्धियों को वहीं से कारागार में सड़ने के लिए भेज दिया और
राजकुमारी को अपने हरम में ठूंस दिया ।
इसी तरह पन्ना के राजकुमार को मारकर उसकी विधवा पत्नी का अपहरण कर अकबर ने अपने हरम में ले लिया।
अकबर औरतों के लिबास में मीना बाज़ार जाता था जो हर नये साल की पहली शाम को लगता था।
अकबर अपने दरबारियों को अपनी स्त्रियों को वहाँ सज-धज कर भेजने का आदेश देता था। मीना बाज़ार में जो औरत अकबर को पसंद आ जाती, उसके महान फौजी उस औरत को उठा ले जाते और कामी अकबर की अय्याशी के लिए हरम में पटक देते।
अकबर महान उन्हें एक रात से लेकर एक महीने तक अपनी हरम में खिदमत का मौका देते थे।
जब शाही दस्ते शहर से बाहर जाते थे तो अकबर के हरम की औरतें जानवरों की तरह महल में बंद कर दी जाती थीं।
अकबर ने अपनी अय्याशी के लिए इस्लाम का भी दुरुपयोग किया था। चूँकि सुन्नी फिरके के अनुसार एक मुस्लिम एक साथ चार से अधिक औरतें नहीं रख
सकता और जब अकबर उस से अधिक औरतें रखने लगा तो काजी ने उसे रोकने की कोशिश की। इस से नाराज होकर अकबर ने उस सुन्नी काजी को हटाकर शिया काजी को रख लिया क्योंकि शिया फिरके में असीमित और अस्थायी शादियों की इजाजत है , ऐसी शादियों को अरबी में "मुतअ" कहा जाता है।
अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है-
“अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और ये पांच हजार औरतें उसकी ३६ पत्नियों से अलग थीं। शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था। वहाँ इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी। अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी। कई बार सुन्दर लड़कियों को ले जाने के लिए लोगों में झगड़ा भी हो जाता था। एक बार अकबर ने खुद कुछ
वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबस६े पहले भोग किसने किया”। बैरम खान जो अकबर के पिता जैसा और संरक्षक था, उसकी हत्या करके इसने उसकी पत्नी अर्थात अपनी माता के समान स्त्री से शादी की ।
इस्लामिक शरीयत के अनुसार किसी भी मुस्लिम राज्य में रहने वाले गैर मुस्लिमों को अपनी संपत्ति और स्त्रियों को छिनने से बचाने के लिए इसकी कीमत देनी पड़ती थी जिसे जजिया७ कहते थे।
कुछ अकबर प्रेमी कहते हैं कि अकबर ने जजिया खत्म कर
दिया था। लेकिन इस बात का इतिहास में एक जगह भी उल्लेख नहीं। केवल इतना है कि यह जजिया रणथम्भौर के लिए माफ करने की शर्त रखी गयी थी। रणथम्भौर की सन्धि में बूंदी के सरदार को शाही हरम में औरतें भेजने की "रीति" से मुक्ति देने की बात लिखी गई थी। जिससे बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है
कि अकबर ने युद्ध में हारे हुए हिन्दू सरदारों के परिवार की सर्वाधिक सुन्दर महिला को मांग लेने की एक परिपाटी बना रखी थीं और केवल बूंदी ही इस क्रूर रीति से बच पाया था।
यही कारण था की इन मुस्लिम सुल्तानों के काल में हिन्दू स्त्रियों के जौहर की आग में जलने की हजारों घटनाएँ हुईं ।
जवाहर लाल नेहरु ने अपनी पुस्तक ''डिस्कवरी ऑफ इण्डिया'' में अकबर को 'महान' कहकर उसकी प्रशंसा की है। (जयशंकर द्विवेदी विश्वबंधु) हमारे कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने भी अकबर को एक परोपकारी उदार, दयालु और धर्मनिर्पेक्ष शासक बताया है जो भ्रामक है-(जयशंकर द्विवेदी विश्वबंधु)
अकबर के दादा बाबर का वंश तैमूरलंग से था और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की नसों में एशिया की दो प्रसिद्ध आतंकी और खूनी जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था।
जिसके खानदान के सारे पूर्वज दुनिया के सबसे बड़े जल्लाद थे और अकबर के बाद भी जहाँगीर और औरंगजेब दुनिया के सबसे बड़े दरिन्दे थे तो ये बीच में
महानता की पैदाईश कैसे हो गयी।
अकबर के जीवन पर शोध करने वाले इतिहासकार
विंसेट स्मिथ ने साफ़ लिखा है की अकबर एक दुष्कर्मी, घृणित एवं नृशंश हत्याकांड करने वाला
क्रूर शासक था।
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