नरेन्द्र मोदी केउपवास को लेकर कांग्रेस एवं सिविल सोसायटी वालों की बेचैनी देखते ही बनती है। छटपटा रहे हैं, फ़ड़फ़ड़ा रहे हैं, तिलमिला रहे हैं लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे, विभिन्न टीवी बहसों एवं बयानबाजियों में दिग्विजय सिंह, शकील अहमद, मनीष तिवारी, लालू यादव से लेकर छोटे भूषण और टीम अण्णा के अन्य सदस्यों के चेहरेदेखने लायक बन गये हैं। नरेन्द्र मोदी नेएक ही "मास्टर स्ट्रोक" में जहाँ इन लोगों को चारों खाने चित कर दिया है, वहीं दूसरी ओर जेटली-सुषमा जोड़ी को भी पार्श्व में धकेलकर राष्ट्रीय स्थिति प्राप्त कर ली है…
जिसने भी मोदी जी को यह "उपवास" वाला आयडिया दियाहै वह एक अच्छा मार्केटिंग मैनेजमेंट गुरु होगा…। इस उपवास की वजह से मीडिया को मजबूरन नरेन्द्र मोदी काचेहरा और उनके इंटरव्यू दिखाने पड़ रहे हैं, साथ हीउनके धुर विरोधियों जैसे वाघेला इत्यादि के हास्यास्पद बयानों के कारण मोदी की इमेज में और इज़ाफ़ा हो रहा है।
असल में टीम अण्णा के सदस्य एक "रोमाण्टिक आंदोलन" की तात्कालिक सफ़लता(?) से बौरा गये हैं, जबकि इनके जनलोकपाल आंदोलन के मुकाबले राम मन्दिर आंदोलन बहुत व्यापक और जनाधार वाला था। राम जन्मभूमि आंदोलन के सामने जनलोकपाल आंदोलन कुछ भी नहीं है, खासकर यह देखते हुए कि उस समय न तोफ़ेसबुक/ट्विटर थे, न तो आडवाणी कोमीडिया का"सकारात्मक कवरेज" मिला था, न ही "सत्ता प्रतिष्ठान का आशीर्वाद" उनके साथ था… इसके बावजूद गाँव-गाँवमें देश के कोने-खुदरे मे हर जगह राम मन्दिर आंदोलन की धमक मौजूद थी।
नरेन्द्र मोदी जैसे कई"वास्तविक नेता" मन्दिर आंदोलन कीउपज हैं, इसलिए सिविल सोसायटी वालों को "हर राजनैतिक मामले में" अपने "टाँग-अड़ाऊ" बयानों से बचना चाहिए। उन्हें एक मुफ़्त सलाह यह है कि, पहले नरेन्द्र मोदी जैसी स्वीकार्यता और लोकप्रियता तो हासिल कर लो, आठ-दससाल जनता के बीच जाकर जनाधार बनाओ, मेहनत करो… उसके पश्चात कुछ बोलना…।
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हे प्रभु इन्हें (टीम अण्णा और कांग्रेस को) क्षमा कर देना, ये नहीं जानते कि (नरेन्द्र मोदी का विरोध करके) ये क्या कर रहे हैं…!!!
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